Angad - 10 in Hindi Fiction Stories by Utpal Tomar books and stories PDF | अंगद - एक योद्धा। - 10

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अंगद - एक योद्धा। - 10

ठंड से जकड़ा हुआ बदन जो कांप रहा था, अब वह भयभीत भी था। उस ताप ने, जो अभी तक अंगद तक पहुंच भी ना था, उसकी आंखों में भय का एक साम्राज्य स्थापित कर दिया। भय का यह आभास अंगद के लिए बहुत नवीन था, सजल - भयभीत व केंद्रित दृष्टि से वह उस प्रकाशित ताप को देख रहा था। दहकती हुई प्रकाश ज्वाला अब अंगद से निपटने को ही थी। ठंड तो छू -  मंतर हो चुकी थी, अब तप बढ़ता जा रहा था और अंगद पसीने से तरबतर इस भयंकर स्थिति का सामना करने को अपने बिखरे हुए विचारों को एकत्र कर रहा था, और फिर एक ही क्षण में वह ताप अंगद से लिपट गया, यह आभास बिल्कुल ऐसा था जैसे ओस की एक बूंद को किसी भूखी- दहकती अंगार पर गिरा दिया जाए। क्षण भर के लिए अंगद को यह झुलस महसूस हुई, तभी उसकी शयन- समाधि टूट गई और वह जाग गया।

यह स्वप्न अन्य किसी स्वप्न से सर्वथा भिन्न था। एक-एक क्षण जो उसने स्वप्न में बिताया, उस समय घटी हर छोटी - बड़ी घटना अंगद के मन के पृष्ठ पर अंकित हो गई। अब यह अमिट छाप उसके मन को दो घड़ी चैन से नहीं रहने देती थी। 

चारों दिशाओं से आता शोर उउसके मस्तिष्क को हर समय व्याकुल व अशांत रखता था। अंगद को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, किस अपना हाल सुनाएं, अपने माता-पिता से वह यह बात कहते चिंतित होता था, कहीं उसके माता-पिता भावुक होकर कोई अनुचित विचार ना करें या अन्य कोई गंभीर कदम ना उठा लें। महाराज की मानसिकता से वह अवगत नहीं था, इसलिए उनसे या उनके किसी वैद्य या मंत्री से भी उसने इस बारे में कोई भी चर्चा करने का विचार त्याग दिया।

सो आखिरकार वह पूर्व सेनापति मनपाल जिनके नेतृत्व में उसने अपना पहला युद्ध लड़ा था, उनसे मिलकर कुछ बात करने का फैसला किया। कुछ दिन इसी उधेड़बुन में गुजर गए, फिर एक सुबह अंगद मनपाल के द्वार पर पहुंचा।  वह किसी यात्रा की तैयारी कर रहे थे, तो अंगद देखकर वहीं से वापस चलने लगा, तभी उन्होंने उसे पुकाारा, - "अंगद आज इधर कैसे आए... और जब आ ही गए हो तो तनिक ठहर जा, वापस कहां जाते हो?  कोई जरूरी कार्य हो तो तुरंत बताओ..." यह कहते-कहते मनपाल उसके पास ही आ गए और बोले, "मेरे योद्धा, मैं एक भ्रमण पर जा रहा हूं, यदि तुम चलना चाहो तो मेरे साथ आ सकते हो।"

मनपाल से दृष्टि मिलते ही मानो अंगद के मस्तिष्क में बिजली की तरह यह विचार कौंध गया कि उसे भी यात्रा पर जाना चाहिए तभी उसने ध्यान से देखा कि वहां दो घोड़े तैयार करें खड़े हैं। उसने पूछा, "काका कोई और भी जा रहा है आपके साथ..?" मनपाल ने हंसते हुए अंगद की ओर देखा और कहा,  "नही योद्धा, यह तुम्हारे ही लिए है अंगद चौक गया, "मेरे लिए! आपको क्या अनुमान था कि मैं आज इधर आऊंगा?" "नहीं", मनपाल बोले, तुम आओगे इसका मुझे अनुमान न था, परंतु कोई तो सहयात्री मुझे मिल ही जाएगा इसका विश्वास था, और देखो तुम आ ही गए। तो बस मिल गया योग्य सहयात्री।" हंसकर घोड़े को थपथपाते हुए अंदर जाते-जाते उन्होने अंगद से कहा- "मैं उधर ही आ रहा हूं, जल्दी से तैयार हो जाओ। यात्रा पर शीघ्र निकालना है।"