Nishbd ke Shabd - 27 in Hindi Adventure Stories by Sharovan books and stories PDF | नि:शब्द के शब्द - 27

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

नि:शब्द के शब्द - 27

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक

सत्ताईसवाँ भाग


मोहिनी गायब


मोहिनी अचानक से दिखना बंद हो गई तो आरम्भ में किसी ने भी इसको गम्भीरता से नहीं लिया. सबने सोचा था कि, कोई बात हो चुकी होगी? बीमार भी हो सकती है? अवकाश लेकर कहीं घूमने चली गई होगी, मगर जब वह तीन सप्ताहों से भी अधिक समय के लिए गायब हो गई और कार्यालय में नहीं आई तो उसके दफ्तर में चुप-चुप, छिपकर बातें होने लगी. दफ्तर के अधिकाँश लोग उसके बारे में विभिन्न प्रकार की बातें करने लगे. लेकिन, रोनित को तो सब मालुम ही था कि, उसी के समस्त कार्यक्रम के अनुसार मोहिनी को उसके कार्यालय से हटाया गया था. फिर वह कर भी क्या सकता था. मोहिनी की जान की सुरक्षा करना उसका पहला कर्तव्य था, इसलिए वह जो कर सकता था, वही उसने किया भी था.

फिर भी, मोहिनी जहां एक ओर रोनित के प्रति कृतज्ञ थी, वहीं वह मोहित की बेवफा जैसी कार्यवाहियों से बहुत दुखी भी थी. वह अब तक यह नहीं समझ पाई थी कि, वह युवक जिससे उसने प्यार किया- उस युवक ने खुद उसको चाहा, पसंद किया और विवाह करने के लिए भी राज़ी हुआ और सगाई भी कर ली, उसको वही स्त्री अगर मरने के बाद भी उसको फिर से मिली है तौभी अगर वह नहीं मानता है और उस पर विश्वास नहीं करता है तो कोई बात नहीं; मगर ऐसा क्या हो चुका है कि मोहित के लिए, कि वह अब उसकी जान का भी दुश्मन बन चुका है? वह तो खुद ही एक बार उसके कारण मर चुकी है और अब एक प्रकार से इस दूसरे जन्म में भी उसको चैन नहीं है? क्या मोहित को उसका पहली बार मरना काफी नहीं था?

सो मोहिनी एक दिन बहुत सुबह-सुबह अपने निवास के बाहर आराम कुर्सी पर अकेली बैठी हुई, लॉन की हरी-हरी घास पर बैठी हुई थी. काफी का भरा हुआ मग उसके सामने ही पड़ी हुई लॉन की एक छोटी सी मेज पर रखा हुआ भाप उड़ा रहा था. दूर वृक्षों की घनी पत्तियों के पीछे से नई सुबह की कोमल रश्मियाँ मानों छन-छनकर उसके गोरे चेहरे पर जाली बना रही थीं कि, तभी अचानक से उसके पास रखे हुए उसके मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. मोहिनी ने फोन उठाकर देखा तो वह उसका नंबर देखते ही समझ गई कि, उसे फोन करनेवाला कौन है? पर वह यह जानकर आश्चर्यचकित रह गई कि, फोन करनेवाले को उसका यह नंबर किस प्रकार से मिला है? फिर भी उसने उत्तर दिया और बोली कि,

'तुम्हें मेरा नंबर किसने दिया?'

'?'- खामोशी.

'बताओ न कि, मेरा यह नया नंबर तुम्हें कैसे मिला'

'कैसे भी मिला हो, यह बताओ कि, तुम हो कहाँ?'

'जहन्नम में. तुम्हें मतलब?'

'मतलब नहीं होता तो पूछता क्यों?'

'अब क्या जरूरत आ पड़ी है तुम्हें?'

'हमने तो अपने विवाह की तैयारी कर ली थी. . .और तुम अचानक से . . .?'

'नहीं करूंगी तुमसे मैं अब शादी.'

'क्यों? इतनी जल्दी और अचानक से यह परिवर्तन? कारण जान सकता हूँ मैं?'

'कुछ नहीं बताऊंगी मैं तुम्हें. दोबारा फिर से मर जाऊंगी, लेकिन, तुमसे वास्ता नहीं अब नहीं रखूंगी. विवाह तो बहुत दूर की बात है.'

कहते हुए मोहिनी का पारा और भी अधिक ऊपर पहुँच गया.

'तुम इतना नाराज़ क्यों होती हो मुझसे?'

'तो फिर और क्या करूं? मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या तुमने?'

'?'- फिर से खामोशी छा गई तो मोहिनी ने अपने उसी लहजे में कहा. वह बोली,

'देखो मोहित ! बहुत हो चुका है. भूल जाओ मुझे.'

'मैं तुमसे एक बार मिलना चाहता हूँ.'

'ताकि, तुम मुझे फिर से मार डालो?'

'?'- मोहित के सीने पर अचानक ही बम फूट गया. उसे लगा कि अचानक ही जैसे किसी ने उसके मुंह पर तमाचा मार दिया हो. वह आगे कुछेक पलों तक कुछ भी नहीं कह सका. तभी मोहिनी ने आगे कहा कि,

'क्यों चुप कैसे हो गये यूँ अचानक से? मैंने गलत बोला है क्या?'

'कैसी बातें करती हो? मैं भला तुम्हें क्यों मारूंगा?'

'यह तो तुम अपने दिल से पूछो?'

'?'- मोहित फिर से चुप हो गया.

तब मोहिनी ने बात आगे बढ़ाई. वह बोली कि,

'तुमने ऐसा क्या सोचकर मेरे प्यार पर ठोकर ही नहीं मारी है बल्कि, मेरी अपार चाहतों का घोर अपमान भी किया है. क्या नहीं किया था मैंने तुम्हारी खातिर? सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए मैं सारी दुनियां से लड़ बैठी. आसमान के दस्तूरों को झुकने पर मजबूर कर दिया और तुम इतने गिरे हुए साबित हो चुके हो कि, मैं अब तुम्हारे नाम से कहीं भी अपना मुंह नहीं दिखा सकती हूँ. शर्म आती है मुझे तुम्हारा नाम अपनी जुबां पर लाते हुए. क्या मिल जाएगा तुम्हें मेरी जान लेकर? रुपया, पैसा दौलत . . . मेरा घर आदि? अरे ! तुम मुझसे एक बार कहकर तो देखते. . . कह देते तो मैं तो अपना सब कुछ तुम पर यूँ ही निछावर कर देती? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा? अब मैं इतना अधिक बुरी हो चुकी हूँ कि, तुम मुझे ही अपने मार्ग से हटा देना चाहते हो? इसकदर नफरत हो गई है तुमको मुझसे कि, मेरा गला घोंट देना चाहते हो? मैंने तो सोचा था कि, चलो, कुछ नहीं हुआ? मेरे मां-बाप, भाई-बहन और रिश्तेदारों ने मुझे ठुकरा दिया है, लेकिन तुम तो मेरे अपने थे? तुम इतना शीघ्र कैसे बदल गये? मैं किसकदर खुश होती थी, यही सोचकर कि, ईश्वर मुझे इस दुनिया और आसमान की दुनिया में से कुछ भी नहीं दे, फिर भी मैं तो तुम्हें भीख में मांग कर लाई थी? पर तुमने तो . . .?'

कहते हुए मोहिनी रोने लगी तो मोहित ने उसे टोका. बोला,

'तुम रोती हो?'

'हां, अपनी किस्मत पर रोना आता है.'

'मैं तुमसे फिर कभी बात करूंगा.'

'अब कोई भी जरूरत नहीं है, मुझे बार-बार फोन करने की.'

यह कहकर मोहिनी ने फोन काट दिया.

काट दिया तो मोहित अपना-सा मुंह लेकर रह गया. बड़ी देर तक वह इसी बात पर सोचता रहा कि, मोहिनी को कैसे उसके इरादों के बारे में पता चल गया. उसने सोचा कि, जरुर इसमें रोनित का कहीं-न-कहीं हाथ अवश्य ही है. वरना ऐसा हो ही नहीं सकता था. इसलिए उसका रोनित से मिलना बहुत आवश्यक है. यह भी हो सकता है कि, रोनित उसके इरादों के बारे में पुलिस को अवगत करा दे और फिर एक अन्य केस उसके ऊपर लगा दिया जाए. यही सोचता हुआ वह अपनी कार में बैठ गया और उसे चालु करके वह रोनित से मिलने के लिए चल दिया.

फिर जब वह रोनित की फर्म के कार्यालय में पहुंचा तो उस समय वह अपनी फायलों में उलझा हुआ था. वह अत्यधिक व्यस्त भी था, मगर फिर भी उसने मोहित को अपने कार्यालय में आने की अनुमति दे दी थी.

'आइये ! बैठिये क्या सेवा करूं मैं तुम्हारी?' रोनित मोहित को देख एक संशय से बोला.

'समझ में नहीं आता है कि, कहाँ से शुरू करूं?' मोहित बैठते ही बोला.

'हूँ ! जब कहानी उलझ जाए तो फिर उसे कहीं से भी आरम्भ किया जाए . . . क्या फर्क पड़ता है?'

'मैंने, अभी कुछ देर पहले मोहिनी से बात की थी.' मोहित ने कहा.

'हां, मुझे मालुम है.'

'तुम्हें मालुम है . . .?' मोहित आश्चर्य से बोला.

'तुम्हारे आने से पहले उसने मुझे बता दिया था. बहुत रोती थी वह.' रोनित बोला तो मोहित ने कहा कि,

'रोती थी. . .क्यों?'

'यह तुम मुझसे पूछते हो? मतलब की बात करो. क्यों आये हो तुम मुझसे मिलने?'

'मोहिनी कह रही थी कि, मैं उसे शादी करने के बाद मार दूंगा.?'

'?'- इस पर रोनित ने उसे गौर से देखा. एक भेदभरी दृष्टि से वह उसे घूरता रहा. फिर बोला,

'एक बार अपने दिल पर हाथ रखो और फिर से कहो कि, तुम उसे मार देना नहीं चाहते हो?'

'?'- मोहित अचानक ही चुप हो गया.

फिर जब मोहित काफी देर तक कुछ नहीं बोला तो रोनित ने बात आगे बढ़ाई. वह उससे बोला कि,

'यह मत सोचना कि, मुझे तुम्हारे इन घृणित इरादों के बारे में कुछ भी नहीं मालुम है. अब बताओ कि, क्यों सोचा था तुमने उस भोली लड़की का खात्मा करने का?'

'तुम्हें कैसे मालुम और किस आधार पर तुम मुझ पर ये दोष लगाते हो?'

'अच्छा ! अब मुझे यह सबूत भी देना पडेगा?'

'हाथ कंगन को आरसी क्या? जब इतनी बड़ी बात का दोष मुझ पर लगाते हो तो बताना तो पडेगा ही.' मोहित बोला तो रोनित ने कहा कि,

'तुम मेरे बिजनिस पार्टनर रहे थे. इसलिए क्या मैं तुम्हारा तो क्या अपने अन्य कर्मचारियों के फोन की वार्तालाप हैक नहीं कर सकता हूँ? क्या बातें की थीं तुमने अपने उन दो आदमियों से, मोहिनी को लेकर? यही न कि, बहुत खतरनाक लेडी है जो मोहिनी बनकर मुझसे विवाह करके न मालुम क्या करे मेरे साथ? मेरे बारे में, मेरे घर-परिवार, मेरी तमाम जायदाद के बारे में हरेक छोटी-से-छोटी बात तक जानती है. इसका न रहना ही मेरे लिए भला होगा . . .' यही बातें करते थे तुम उन लोगों के साथ?'

'?'- सुनकर मोहित को जैसे काला नाग छूकर चला गया. खुद की चोरी पकड़े जाने के कारण उसके चेहरे पर हवाइयां-सी उड़ने लगीं. तुरंत ही उसके सारे मुख पर पसीना-सा आ गया. वह घबराते हुए बोला कि,

'अब तुम जो चाहे मुझ पर इलज़ाम लगा दो, लेकिन जैसा तुम कह रहे हो वैसा मेरा ख्याल बिलकुल भी नहीं था.' यह कहते हुए उसने मेज पर रखे हुए नेपकिन को निकाला और अपना चेहरा पोंछने लगा.

'फिर क्या इरादा था तुम्हारा?' रोनित ने पूछा.

'मैं अब तक यह नहीं समझ सका हूँ कि, जिस लड़की को मैंने पहले कभी-भी देखा तक नहीं है वह मेरी हरेक बात कैसे जानती है? इसीलिये मैं उसे एक बहुत पहुंचे हुए बाबा के पास ले जाना चाहता था. उस बाबा का कहना है कि, अगर वह लड़की तुम्हारा भूतकाल, वर्तमान और भविष्य तक जानती है तो वह दूसरों के बारे में भी बहुत कुछ जानती होगी. वह तो यहाँ तक बता सकती है कि, धरती में छिपी हुई माया कहाँ पर है? इसी लालच में मैं उससे विवाह तक करने के लिए राजी हो गया था.'

'बड़ी शर्म की बात है कि, तुम जैसा एक पढ़ा-लिखा समझदार, वह व्यक्ति जो मेरा बिजनिस पार्टनर तक रह चुका है, इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातें मेरे सामने कर रहा है?'

'मूर्खतापूर्ण. . .?'

'और नहीं तो क्या? उस साधू-सन्यासी बाबा जैसे आदमी पर तो तुम भरोसा कर बैठे और वह लड़की जो तुम्हारी मंगेतर होने का दावा करती है उस पर शक करते हो?'

'तो फिर क्या करूं मैं?'

'तुम्हारे सामने तीन ऑप्शन्स हैं. एक- जो मोहिनी कहती है उस पर विश्वास करो. दो- आसमान की बातों पर, जिस पर भी तुम आस्था रखते हो, ईमान में ले आओ. तीन- उपरोक्त दोनों बातों को अगर नहीं मानते हो तो इस समूचे मामले को भूलकर, उस लड़की मोहिनी के रास्ते से चुपचाप हट जाओ.'

'और उससे मेरा विवाह. . .?'

'भूल जाओ, हमेशा-हमेशा के लिए. बहुत देर ही नहीं, बहुत बड़ी भूल कर बैठे हो तुम. अब वह कभी-भी तुमसे अपनी शादी नहीं करेगी.'

अपनी बात समाप्त करके रोनित उठ गया तो मोहित भी अपना-सा मुंह लेकर अपने स्थान से उठास और रोनित के कार्यालय से निकलकर बाहर आ गया.

बाहर आकर उसने पहले अपने आस-पास एक नज़र उठाकर देखा, फिर ऊपर आसमान की तरफ देखा- आकाश में चढ़ता हुआ सूर्य का गोला जैसे तमतमाते हुए उसकी सारी बदतमीजियों पर अपनी आग बरसा देना चाहता था. मोहित चुपचाप सिर झुकाते हुए अपनी कार की तरफ आया और उसे खोलकर, ड्राइविंग सीट पर अपना सिर पकड़कर बैठ गया. रोनित और मोहिनी- दोनों ही को वह खो चुका था. एक को लालच में तो दूसरी को शक में.

-क्रमश: