Pichhal Pari - 1 in Hindi Horror Stories by भूपेंद्र सिंह books and stories PDF | पिछल परी - भाग 1

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पिछल परी - भाग 1

रात का वक्त है। आसमान में कुछ कुछ तारे टिमटिमाते हुए नज़र आ रहे हैं जो काले आसमान में जल रहे दिए जैसे लग रहे हैं। रात हो चुकी है। चारों और से काले और डरावने भयानक जंगलों से घिरा हुआ बहुत ही भयानक सा गांव है जारनियाबाद। इसी गांव के एक छोटे से ढाबे के अंदर तीन दोस्त विजय, मोंटी और उनकी सहेली मोनिका बैठे हुए है और किसी का इंतजार कर रहे हैं। विजय और मोंटी दोनों सगे भाई हैं। मोनिका उनकी मौसी की लड़की है। विजय की उम्र 16 साल है। मोंटी की उम्र 15 साल है तो मोनिका की उम्र भी लगभग 16 साल की होगी। वे तीनों एक टक सड़क की और देख रहे हैं जैसे किसी का इंतजार कर रहे हों।
मोनिका चिंता से बोली " फ्रेंड्स रॉकी अभी तक नहीं आया। रात के दस बजने वाले हैं।"
विजय ने फोन कान के लगाते हुए कहा " वो फोन भी तो नहीं उठा रहा है।"
मोंटी पिज्जा खाते हुए बोला " यार वाकई बहुत देर हो गई है। उसे अब तक तो आ जाना चाहिए था।"
मोनिका - " मुझे तो बहुत टेंशन हो रही है फ्रेंड्स वो ठीक तो होगा ना।"
विजय - " मोनिका तू फिक्र मत कर वो आ जायेगा । तुझे मालूम है ना की वो अपने वायदे का पक्का है। अगर उसने कहा है की वो आएगा तो समझो जरूर आयेगा।"
मोंटी - " यार कुछ खा लो। भूखे रहने से तो कुछ नहीं होने बोला।"
मोनिका - " एक ये है पांडा। खा खा के कैसे मोटा हो गया है।"
मोंटी - " ओह हेलो मुझे पांडा कहना बंद करो। तुम खुद क्या हो छिपकली।"
मोनिका गुस्से से मोंटी की और देखने लगी।
इतने में एक पंद्रह सोलह वर्ष का हैंडसम लड़का जिसने एक काले रंग का बैग टांग रखा था वहां पर आ खड़ा हुआ। उसे देखकर विजय अपनी कुर्सी पर से खड़ा हो गया और उस और इशारा करते हुए बोला " रॉकी आ गया।"
रॉकी को देखकर वे तीनों भावुक हो गए जैसे न जाने कितने सालों के बाद वे आपस में मिल रहे हों।
रॉकी की आंखों से भी आंसू निकल आए। रॉकी ने अपनी दोनों बांहे फैलाते हुए कहा " गले नहीं लगोगे क्या?"
ये सुनकर वे तीनों तेजी से रॉकी की और भागे और उसके गले लग गए और फिर उन चारों की आंखे नम होकर रह गई।
रॉकी ढाबे में एक कुर्सी पर बैठते हुए " यार तुम तीनों की भी कमाल है। मुझे बिन बताए ही अपनी नानी के पास चले आए। कम से कम मुझे बता तो दिया होता मैं भी तुम्हारे साथ चला आता।"
मोंटी पिज्जा खाते हुए " यार नानी जिद कर रही थी जल्दी हमें अपने पास बुलाने की और तूं उस वक्त अपने गांव गया हुआ था इसलिए हमें तुझे बिन बताए ही आना पड़ा।"
रॉकी - " खैर छोड़ो पांडा। अब तो हम जहां आकर एक हो ही गए हैं। और सुनाओ क्या खबर है जहां की?"
मोनिका - " यार रॉकी तुझे क्या बताएं। मेरी नानी का ये गांव बड़ा अजीब सा है और देख तो सही यार कितना डरावना भी है।"
रॉकी काले भयानक और खौफनाक जंगल की और नजर दौड़ाते हुए " बो तो नजर आ रहा है। देख तो सही कैसे अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है। वो क्या बोलते हैं उसे हां जानलेवा सन्नाटा। जो किसी को भी मार डाले।"
तभी ढाबे का मालिक बिरजू काका जल्द बाजी में ढाबे को बंद करता है और उन चारों के पास आते हुए बोलता है " बच्चो अब रात हो गई है। इसलिए चुपचाप अपने घर चले जाओ।"
रॉकी हंसते हुए - " काका अगर घर नहीं गए तो फिर कौनसा भूत आ जायेगा?"
बिरजू काका धीरे से - " भूत का तो पता नहीं लेकिन वो पिछल परी जरूर आ जायेगी।"
" ये पिछल परी क्या होती है? " वे चारों एक साथ बोल पड़े।
बिरजू काका - " बहुत ही खतरनाक काली डायन होती है, जिसके बड़े बड़े खून से लाल नाखून होते हैं , बड़े बड़े लंबे काले बाल , बहुत ही डरावना खून से लथपथ चेहरा , बड़े बड़े दांत और जब वो शिकार करती है तब उल्टे मुंह अपने चारों पैरों पर चलती है और अचानक से शिकार पर झपट पड़ती है और उसे जान से मार डालती है।
ये सुनकर वे चारों थर थर कांपने लगते हैं और बुरी तरह डर जाते हैं।
विजय - " अंकल आप तो हमें डरा रहे हैं।"
रॉकी थर थर कांपते हुए- " अंकल मैं तो बहुत डर गया हूं लगता है की मुझे तो अभी हार्ट अटैक आएगा।"
इतना कहकर रॉकी और विजय दोनों जोर जोर से हंसने लगते हैं और आपस में ताली मारते हैं लेकिन मोनिका और मोंटी तो बिरजू काका के बात सुनकर सच में ही डर गए थे।
रॉकी हंसते हुए - " अंकल आप भी ना कमाल करते हैं। आपके इन टोटकों से हम नहीं डरने वाले। अरे भाड़ में गई पिछल परी।"
विजय - " और नहीं तो क्या? काका आप कहानियां तो अच्छी जोड़ लेते हैं लेकिन ऐसी कहानियां किसी डरपोक आदमी को सुनाएगा हम आपकी इन झूठी बेहूदा बकबास बातों से नहीं डरने वाले।"
बिरजू काका - " तुम अभी बच्चे हो इसलिए मेरी बात को समझ नहीं रहे हो। जब तुम्हारा सामना उस पिछल परी से होगा ना तब तुम्हारी ये पेंटे गीली होकर रह जायेगी। मैं तो तुम्हें सिर्फ चौकन्ना कर रहा हूं और हां रात को हर हाल में घर से बाहर मत निकलना वरना मारे जाओगे।"
इतना कहकर बिरजू काका वहां से चला जाता है।
मोनिका डरते हुए - " यार मुझे तो बहुत डर लग रहा है अगर वो पिछल परी हमारे सामने आ गई तो । हमें मार कर खा गई तो।"
मोंटी - " यार डर तो मुझे भी बहुत लग रहा है।"
उन दोनों को इस तरह डरता देखकर रॉकी और विजय पागलों की तरह हंसने लगते हैं और आपस में ताली मारते हैं।
मोनिका गुस्से से - " तुम दोनों को ऐसे वक्त में मजाक सूझ रहा है।"
रॉकी - " तुम दोनों की भी कमाल है। बिरजू काका की बकबास बातों को सच मान रहे हो। अरे वो तो हमें सिर्फ बच्चे समझ कर डरा रहा था और तुम दोनों उसकी बातों को सच मान बैठे।"
विजय - " और नहीं तो क्या? ये पिछल परी की कहानियां सिर्फ किताबों में ही अच्छी लगती हैं असल जिंदगी में नहीं।"
रॉकी - " बस एक बार वो पिछल परी मेरे सामने आ जाए मैं उसके बाल पकड़ कर उसे जमीन पर दे मारूंगा।"
विजय - " अरे वो सामने तो तब आयेगी ना जब वो सच में होगी।"
इतना कहकर वे दोनों फिर से जोर जोर से हंसने लग जाते हैं इतने में जंगल में से जंगली गीदड़ो के भौंकने की आवाज आती है जिसे सुनकर वे चारों अचानक से डर जाते हैं। वो आवाज इतनी भयानक थी की अगर उनकी जगह और कोई भी होता तो डर ही जाता। इस भयानक आवाज ने रात के सन्नाटे में बाधा पैदा कर दी थी।।

उस सुनसान और भयानक रात में अचानक से गीदड़ों का रूदन स्वर सुनकर मोंटी और मोनिका तो बुरी तरह डर जाते हैं।
मोंटी पिज्जे का पूरा टुकड़ा मुंह में घुसाते हुए - " यार जल्दी घर चलो। नानी हमारा इंतजार कर रही होगी।मुझे तो बहुत डर लग रहा है।"
मोनिका - " यार डर तो मुझे भी बहुत लग रहा है।"
रॉकी - " यार तुम दोनों जब पैदा हुए थे ना तभी से डरपोक थे। देख तो सही विजय दोनों कैसे थर थर कांप रहे हैं। वैसे भी मैं तो कहता हूं की रात में जंगल का एक चक्कर लगाकर आते हैं।"
मोनिका - " ओह हेलो रॉकी तूं पागल हो गया है क्या? अगर पिछल परी आ गई तो।"
विजय - " अरे रॉकी अगर जंगल में चले गए ना तो इन दोनो के तो आ जायेगी सुसु। सुसु।"
मोंटी - " विजय तो अपनी बकवास अपने पास ही रख। चल यार मोनिका अपने घर पर चलते हैं। इन दोनों को यहीं पर खड़ा रहने दे। जब पिछल परी आयेगी ना तब इन्हें पता चलेगा की डर क्या होता है और कैसे डर के मारे पेंट गीली हो जाती है।"
इतना कहकर मोनिका और मोंटी दोनों गांव की और कदम बढ़ा देते हैं।
रॉकी विजय के कंधे पर हाथ रखते हुए - " कुछ तो करना ही पड़ेगा।"
विजय - " मेरे माइंड में एक बहुत ही खतरनाक खिचड़ी पक रही है।"
रॉकी - " वो क्या?"
विजय रॉकी के कान में कुछ बोलता है।
रॉकी - " यार क्या प्लानिंग है। लेकिन अगर इन दोनों को डर के मारे कुछ हो गया तो।"
विजय - " जो होगा सो देखा जायेगा। अब देख हम दोनों मिलकर क्या करते हैं। इन्हें आज की रात असली पिछल परी से मिलवा ही देते हैं।"
इतना कहकर वे दोनों आपस में हंसते हुए ताली मारते हैं और फिर उन दोनों के पीछे पीछे गांव की और कदम बढ़ा देते हैं।।।।।

नानी का घर।
रॉकी घर के आगे रुकते हुए पूरे घर की ऊपर से नीचे तक गौर से देखते हुए बोला " यार ये कोई घर है या फिर महल।"
विजय - " यार तुझे मालूम भी है क्या? ये हमारी नानी की पुस्तैनी हवेली है।"
रॉकी अंदर जाते हुए - " बाहर से जितनी खूबसूरत है उससे ज्यादा तो ये अंदर से खूबसूरत है। यार क्या हवेली है। मैं तो कहता हूं की अब हमेशा यहीं पर ही रहेंगे।"
विजय - " चल पहले तुझे नानी से मिलवाता हूं। आजा जल्दी।"
रॉकी ने हवेली के अंदर जाकर देखा तो वहां पर नौकरों की भीड़ लगी हुई थी। मोंटी और मोनिका डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे थे। मोंटी तो बुरी तरह खाना अपने मुंह में धूंस रहा था।
इतने में एक और से एक बूढ़ी महिला निकलकर आई और बोली " बच्चो आज इतनी रात कैसे कर दी। मैने तुमसे कहा था ना की रात को चाहे कुछ भी हो जाए हवेली से बाहर मत निकलना चाहे कुछ भी हो जाए।"
इतनी विजय नानी के पास जाते हुए बोला " नानी ये हमारा फ्रेंड है रॉकी। जिसके बारे में मैने आपको बताया था की ये आज आने वाला है।"
इतने में रॉकी ने नानी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया।
नानी रॉकी के सर पर हाथ फेरते हुए बोली " बेटा अच्छा हुआ तुम भी आ गए। ये तीनों हर वक्त तुम्हें ही याद करते रहते थे।"
मोंटी - " अब जल्दी से आ जाओ खाना खा लो।"
विजय - " चल रॉकी जल्दी से खाना खाते हैं वरना ये ड्रम सारा खाना ही खत्म कर डालेगा।"
नानी - " अभी बहुत खाना पड़ा है आराम से खाओ।"
इतने में वे चारों ही खाने पर टूट पड़े। रॉकी - " यार ये तो ऐसे लग रहा है जैसे हम किसी महल में बैठकर दावत खा रहे हों।"
मोनिका - " हूं। ऐसा तो अक्सर फिल्मों में होता है।"
मोंटी खाने से अपना मुंह भरते हुए " यार जल्दी खाना खा लो। बाद में नानी हमें सोने से पहले एक अच्छी सी कहानी सुनाएगी।"
रॉकी - " नानी आप कोई डरावनी कहानी मत सुना देना। नहीं तो मोंटी और मोनिका को तो डर के मारे हार्ट अटैक ही आ जायेगा।"
इतना कहकर विजय और रॉकी ने आपस में ताली मारी।
मोनिका गुस्से में - " ओह हेलो हम किसी से नहीं डरते।"
विजय - " पिछल परी से भी नहीं।"
पिछल परी का नाम सुनते ही नानी तो थर थर कांपने लगी और सारे नौकर हैरानी से विजय के मुंह की और देखने लगे। डर के मारे एक नौकर के तो हाथ कांपने लगे और दाल से भरा बर्तन जमीन पर जा गिरा।
रॉकी हैरानी से सबके चेहरों की और देख रहा था। विजय भी सबके हक्के बक्के चेहरों को पड़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो असफल रहा।
रॉकी कुछ शंका से - " क्या ... क्या हुआ?"
नानी - " बेटा तुम पिछल परी के बारे में कैसे जानते हो?"
रॉकी - " नानी पिछल परी तो सिर्फ कहानियों में होती है। असल जिंदगी में नहीं।"
नानी - " देखो बेटा चुपचाप खाना खाओ। और अपने कमरों में जाकर सो जाना और रात को चाहे कुछ भी हो जाए। कोई भी आवाज दे । हर हाल में दरवाजा मत खोलना। और हां आज के बाद में कभी भी उस मनहूस और खूनी पिछल परी का नाम भी मत ले लेना।"
रॉकी - " लेकिन नानी पिछल परी के नाम से आप इतना डर क्यों रहे हो?"
नानी - " मैने कहा ना पिछल परी का नाम भी मत लेना। अब चुपचाप खाना खाओ और अपने अपने कमरों में जाकर सो जाओ।"
इतना कहकर नानी ने एक आदमी रामू काका की और कुछ इशारा किया और वहां से चली गई।
रामू काका भी धीरे धीरे नानी के पीछे चला गया।
नानी एक अंधेरे से भरे हुए खुफिया कमरे में जाते हुए " रामू इन बच्चो को पिछल परी के बारे में पता लग चुका है। सुरक्षा की पूरी तैयारी करो। उस खुफिया कमरे के दस बारह ताले और लगा दो। मैं नहीं चाहती की बीस सालों से बंद वो खुफिया कमरा खुले और हमारा वो राज भी खुल जाए जो हमने पिछले बीस सालों से सबसे छुपाकर रखा है। वो बीस साल पहले का राज राज ही रहना चाहिए।"
रामू काका चुपचाप हां में सिर हिला देता है ।
कमरे के बाहर दरवाजे के पास रॉकी खड़ा चुपचाप सारी बातें सुन रहा था। नानी की बातें सुनकर रॉकी की आंखे फटी की फटी रह गई।।

सतनाम वाहेगुरु।।