Chheliya's terror in Hindi Horror Stories by HDR Creations books and stories PDF | छेलिया का आतंक

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छेलिया का आतंक

ठंडी हवा हिमालय की ऊंची चोटियों से उतरकर गांव में घुसती थी, मानो कहानियां सुना रही हो. गाँव के बुजुर्ग इकट्ठे हुए, आग तापते हुए, कहानियाँ बाँटते हुए. आज की कहानी थी छाल बदलने वालों, यानी छेलिया की.

एक जवान लड़का, सुरेश, नया-नया वनरक्षक बना था. वो शहर से आया था, इन कहानियों को सिर्फ हंसी में उड़ाता था. उसे तैनात किया गया था एक घने जंगल के पास, जहाँ अजीब सी आवाजें और गुमशुदगी के किस्से मशहूर थे.

पहली ही रात, जंगल की गहराई से चीखें सुनाई दीं. डर के मारे सुरेश अपनी झोंपड़ी में छिप गया. सुबह, उसने गश्त करते वक्त खून के धब्बे देखे, और एक भेड़िये के पंजे के निशान.

गाँववालों ने उसे चेतावनी दी, "शायद वो छेलिया थी!" पर सुरेश हंसा. लेकिन, अगली रात, वो ही शिकार बना. आधी रात को, उसकी चीखें पूरे जंगल में गूंज उठीं.

सुबह, गाँववालों ने उसे ढूंढा. उसकी जगह सिर्फ भेड़िये के पैरों के निशान और खून के छींटे थे. लेकिन... गाँव की बूढ़ी औरत की नज़र झोंपड़ी पर गई. वहाँ एक आदमी का पैर बाहर निकला था, लेकिन उसकी टखने पर... भेड़िये के बाल थे!

दहशत फैल गई. वो छेलिया सुरेश का रूप धर चुकी थी! हर रात, एक ग्रामीण गायब हो रहा था. गाँववालों ने छेलिया को पकड़ने का फैसला किया.

उन्होंने जाल बिछाया, मंत्र पढ़े, और सुरेश के जंगल वर्दी का इस्तेमाल किया. छेलिया आई, सुरेश के रूप में. पर वो जाल में फंस गई. आग जलाई गई, उसका असली रूप दिखाने के लिए.

लेकिन आग में वो राख नहीं हुई, बल्कि हंसने लगी. एक भयानक हंसी जो आपके दिमाग को चीरकर गुजरती थी. वो बोली, "तुम मुझे नहीं रोक सकते! मैं इस जंगल का हिस्सा हूँ!"

तभी, बूढ़ी औरत आगे बढ़ी. उसने उस आदमी के भेड़िये के बाल जलाए. छेलिया चीख उठी, और राख हो गई. गाँव सुरक्षित था, लेकिन डर बना रहा. छेलिया की हंसी कभी-कभी हवा के साथ गाँव में गूंजती रहती थी, एक डरावनी याद की तरह.
गाँव में कुछ समय शांति रही, लेकिन खौफ के काले बादल कभी पूरी तरह नहीं छंटे थे. सुरेश के लापता होने के कुछ महीनों बाद, जंगल से अजीब सी गुनगुनाहटें सुनाई देने लगीं. ये सुरेश की जानी-मानी धुन थी, पर एक अनचाही, भयानक गूंज के साथ.

गाँव के बुजुर्ग जानते थे - छेलिया वापस आ गयी है, और इस बार वो और भी खतरनाक थी. वो अब सिर्फ एक रूप नहीं बदल सकती थी, बल्कि मरे लोगों की यादों और आवाजों को भी अपने अंदर समेट लेती थी.

एक रात, जंगल से नारायण की बेटी, लक्ष्मी, गायब हो गई. उसकी चीखें सुनाई दीं, सुरेश की आवाज में, "पिताजी, बचाओ!" नारायण आंसुओं से लथपथ, जंगल की ओर दौड़ा.

वहाँ उसने देखा, लक्ष्मी सुरेश के रूप में खड़ी थी, पर उसके पीछे छेलिया का असली रूप छिपा था. नारायण ने हमला किया, पर लक्ष्मी का चेहरा उसकी बेटी जैसा था, वो उसे चोट नहीं पहुंचा पाया.

तभी, बूढ़ी औरत सामने आई. उसके हाथ में एक खास पत्थर था, जो सदियों पहले छेलिया को बांधने के लिए इस्तेमाल किया गया था. उसने कहा, "नारायण, अपनी असली बेटी को पहचानो!"

बूढ़ी औरत ने एक कहानी सुनाई, जो नारायण और लक्ष्मी को बचपन से याद थी. ये कहानी केवल असली लक्ष्मी ही पूरी कर सकती थी. नारायण ने कहानी शुरू की, हिचकिचाते हुए. उसकी आवाज काँप रही थी.

लेकिन जैसे-जैसे उसने कहानी जारी रखी, लक्ष्मी के चेहरे पर भ्रम हटने लगा. उसकी आँखों में आंसू आ गए. वो असली कहानी बोल नहीं पा रही थी, बस नारायण को देखकर हिलाई.

नारायण समझ गया. वो जोर से बोला, "बेटी, मुझे छू लो!" लक्ष्मी ने ऐसा ही किया. पल भर में, छेलिया का रूप टूट गया. लक्ष्मी बेहोश होकर गिर गई.

बूढ़ी औरत ने पत्थर का इस्तेमाल कर छेलिया को हमेशा के लिए बांध दिया. गांववालों ने राहत की सांस ली, पर वे जानते थे कि जंगल के रहस्य हमेशा बने रहेंगे.

कुछ साल बाद, लक्ष्मी जंगल रक्षक बन गई. उसका चेहरा हमेशा गंभीर रहता था, पर उसकी आँखों में एक चमक थी. वो जानती थी, भले ही छेलिया को बांध दिया गया हो, जंगल में हमेशा डर छिपा रहता है. और वो उस डर का सामना करने के लिए हमेशा तैयार थी.