ठंड का मौसम रिमझिम बरसात | और समय समय पर चमकती बिजली | एक अलग ही खामोशी को दरशा रही थी | मैं खिड़की के सामनें बैठा | हाथ को खिड़की से बाहर कर | बारिश के पानी के साथ खेल रहा था | बारिश के पानी की कुछ महीन बुँदे मेरे चेहरे पर पड़ रही थी | मैं अपनी आँखें बंद कर उस पल का आनंद ले रहा था | और उस खामोशी
में मेंढको की आवाज | एक अलग ही एहशास दिला रही थी | कुछ देर युँही बैठनें के बाद मै सोनें के लिए चला गया | मिट्टी का घर और छत से टपकता पानी | एक अहम समस्या थी | मैं पलंग पर बैठा नीचे की तरफ देखने लगा | जमीन कई जगहों से गिला था | जहाँ जहाँ से पानी टपक रहा था | मैं अपनी माँ को देखते हुए बहुत ही अजीब महशुश कर रहा
था | क्युँकी वह जमीन पर सोती थी | पर उस वक्त मेरी ऊमर उतनी थी भी नही की मैं जिम्मेदारी उठा सकुँ | अकसर मेरी माँ का तबेयत खराब रहता था | और उनकी हालत मुझे देखा नही जाता था | पर मैं कुछ कर भी नही सकता था | पर मै रोज रात को सोनें से पहले अपनी माँ का पैर दबा कर ही सोता था | तो ईसिलिए मैं नीचे उतरा कर अपनी माँ का पैर दबाने लगा | कुछ देर बाद मेरी माँ की
आँख खुली मुझे पैर दबाते हुए देखकर | वो मुझे बोली की बेटा जा सोजा सुबह स्कुल भी जाना है | थोड़ी देर बाद मै उठकर सोने के लिए पलंग मे चला गया | तकीये में सर रखने के बाद मुझे कब नींद आई पता नही | फिर आधी रात को मेरी प्यास की वजह से नींद खुल गई | मै उतरा और पानी पीने के बाद फिर से सोने लगा | जिसके बाद मैं सुबह
ही उठा | बाहर को निकला तो देखा पड़ोस में रहनें वालें बुढ़े चाचा जो बहुत टाईम से बिमार चल रहे थे | वो डेथ कर चुके थे | उनके घर का माहौल काफी खराब था | शाम हुई तो ऊनकी अंतिम यात्रा की तैयारी होने लगी | उनके शव को गाड़ी में लोड करवा लिया गया | और थोड़ी ही देर में हमलोग शमसान घाट की ओर रवाना हो गए |
शाम का वक्त और बदन हिला देने वाली ठंड | ऊपर से तेज चलती गाड़ी जो ठंड को और भी बढ़ा रही थी | साँय साँय करती ठंड हवाएँ मेरे बदन को एकदम हिला रखी थी | मैं हाथ में हाथ बाँधकर ठंड को झेले जा रहा था | काफी देर खड़े रहनें के कारण मेरे पैरो में झिनझिनाहट हो गई थी | पैर सुज गए थे |
शमशान घाट पहुँचते साथ | मैं गाड़ी से कुद गया | और एक साईड जाके खड़ा हो गया | और गाड़ी की तरफ देखनें लगा | सभी लोग गाड़ी से उनकी लाश को उतार रहे थे | किसी कारण वश उनके चेहरे से कपड़ा थोड़ा हट गया था | और मैंने जो देखा क्या ही बताऊँ
आँख और मुँह एकदम खुला हुआ | और पुरा चेहरा सफेद दिख रहा था | उनके मुँह से एक तरल पदार्थ बह रहा था | जिसे लार कहते है |
जब उनकी लाश को बड़ी मशक्कत के साथ उतार लिया गया तो | उनकी लाश को मेरे सामनें रख कर वह लोग | चीता की तैयार करनें लगे | मेरी नजर जब बुढे चाचा पर पड़ी तो मेरी साँसे एकदम से अटक गई | ईतने पास से उनका वह डरावना चेहरा देख मेरा पुरा बदन सिहर उठा और मै तुरंत वहाँ से दुर हट गया | और एक पेंड़ के नीचे खड़ा होकर उन्हें देखता रहा | मेरी ऊँगली में जलन हो रहा था | और मैं कुछ टपकता हुआ भी महशुश कर रहा था | जब मैंनें अपनी ऊँगली देखा तो | पाया की ऊँगली से खुन निकल रहा है | जो काफी देर से टपक रहा था |
मैंनें जमीन से कुछ महीन बालु उठाकर अपनी ऊँगली पर रगड़ लिया जिस्से खुन निकलना थोड़ा कम हो गया | अकेले पेंड़ के नीचे खड़ा था मैं | और मेरे पीछे से किसी के फुसफुसाने की आवाजें आ रही थी | एैसा लग रहा था चार पाँच लोग हल्की आवाज में कुछ बातें कर रहे हो | मैं पीछे मुड़कर देखना चाहा की कौन है | जब मुड़ा तो देखा की दुर दुर तक कोई नही है | फिर एक झटके से जब मैं बुढे़ चाचा की और देखा तो ?
मेरी आँख खुली तो देखा आस पास के
कुछ लोग मुझे घेर कर खड़े हुए है | मै एकदम हैरानी से उन सब की ओर देखता रहा और पुछा के मैं तो शमशान घाट में था यहाँ कैसे आ गया | मेरा ये सवाल सुनकर वह लोग कहनें लगे की जब हमलोग चाचा का शव को उठानें आए तो देखे की तुम पेंड़ के नीचे बेहोश पड़े हो | चाचा के अंतिम संस्कार कर हमलोग तुम्हें तुम्हारे घर ले आए | रात भर
तुम्हारी माँ सोई नही थी | फिर मैं रात की वो घटना याद कर उन्हें बतानें लगा की मैं जब पेंड़ के नीचे खड़ा हुआ था | तो मुझे एैसा लगा के कोई मेरे पीछे खड़े होकर फुशफुशा के बात कर रहा हो | पर जब मैं मुड़कर देखा तो वहाँ कोई भी नही था | और फिर जब एक झटके से मैंने चाचा की तरफ देखा तो मुझे एैसा लगा की उन्होनें अपनी पलके झपकाई ये देखकर मुझे क्या हुआ पता नही |
फिर उन्हीं में से एक आदमी की नजर मेरी ऊँगली पर पड़ी |
और बोला की शमशान घाट में खुन की एक बुँद भी नही गिराना चाहिए | ईनसे वहाँ पर मौजुद आत्माएँ जाग्रीत हो जाती है | हो न हो तुम्हारा सामना किसी बुरी आत्मा से ही हुआ होगा ये बाद वह कहते हुए कुछ मंत्रो का उच्चारण करने लगा और और मेरे ऊपर जल झिड़क कर चले गया |
उसके बाद धिरे धिरे कर सभी लोग चले गए | मैं एकदम सहमा हुआ बिस्तर ओढ़ के पलंग पर बैछा हुआ था | मेरी माँ खाना लाकर मुझे दी पर मुझे भुख नही थी | फिर भी माँ की जिद के चलते थोड़ा सा खाना खाया और सोनें लगा | पर आज मुझे नींद नही आ रही थी | तकिये में लेटे लेटे मैं वही सब सोच रहा था | जब घड़ी पर टाईम देखा तो 1 बजे के करीब टाईम हो रहा था | पर मुझे नींद कहाँ मानों नींद एकदम से उड़ गई हो |
मैं सोनें की कोशिश करने लगा | मन को एकदम साँतकर मैं सोनें की कोशिश करनें लगा | और थोड़ी ही देर में मुझे नींद के झोकें आनें लगे और मैं हल्की नींद में सोया हुआ था मेरे दिलो दिमाग में वही सब बातें मंडरा रही थी |
मैंने देखा की मैं उस पेंड़ के नीचे खड़ा हुआ हुँ | और उस बुढ़े चाचा का डरावना चेहरा मेरे ही तरफ है | चाचा की आँखों की पुतली एकदम सफेद उपर की तरफ चढ़ी दिख रही थी | उनका मुँह पुरी तरह से खुला हुआ था | मेरे पीछे से कीसी की फुशफुशानें की आवाज आ रही थी | जब मैं वहाँ मुड़कर देखा तो वहाँ कोई भी नही था और एक झटके से चाचा की तरफ देखनें पर एैसा लगा की मानों उन्होंनें
अपनी पलके झपकाई हो | और उस टाईम एैसा भी लग रहा था की मानों कोई मेरा पैर पकड़कर जमीन में धँसानें की कोशिश कर रहा हो | मेरे कानों में फुशफाशानें की आवाज लगातार आ रही थी | ईसिलिए मैं उठकर बैठ गया | और नीचे अपनी माँ की तरफ देखनें लगा वह गहरी नींद में थी मुझे उन्हें उठानें का मन नही कर रहा था | पर डरके
मारे मुझे नींद भी नही आ रहा था | ईसिलिए मैं अपनी माँ को उठाकर बता दिया की मुझे डर लग रहा है | शमशान घाट की सारी बातें मुझे याद आ रही है | मेरी माँ ने मुझे नीचे अपनें पास बुला लिया और मै अपनी माँ से चिपक कर सो गया | मेरी माँ मेरे सर में हाथ फेर कर कहनें लगी की ईतना बड़ा हो गया है फिर भी डर रहा है | जादा नही सोचना चाहिए लंद फंद बातें सो जा | मै आँख बंद करता हुँ तो मानों लगता है की कोई अनजान साया मेरे सामनें आ रही हो |
खैर मै अपनी माँ के सामनें था ईसिलिए मुझे जादा डर नही लगा और मेरी माँ मेरे सर में हाथ फेर रही थी | मुझे कब नींद आया पता ही नही चला
उस दिन के बाद से मैं कभी भी अकेले किसी के साथ शमशान घाट नही जाना चाहा