Kalyug Ke Shravan Kumar - 2 in Hindi Moral Stories by संदीप सिंह (ईशू) books and stories PDF | कलयुग के श्रवण कुमार - 2

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कलयुग के श्रवण कुमार - 2

जीवन भर की बचत - 2


शेष.....

शगुन का प्रमोशन हुआ था, सो दो दिन बाद उसने अपने फ्लैट पर पार्टी रखी थी।
मृदुला बिल्कुल ना खुश थी। कई बार समझाया था कि यह सब ठीक नहीं, जिम्मेदारी को समझो, घर पर बहन शादी लायक है। उसके बारे मे सोचों मम्मी पापा के बारे मे सोचों। पर शगुन को मृदुला की कहाँ सुननी थी, और वह रूठ गया। अंततः मृदुला ने भी जिद छोड़ दी।
सारे जानपहचान के लोगों को आमंत्रित कर लिया था।
ताकि लोग समझ सके कि शगुन कितने बड़े पद पर और कितना पैसे वाला है।
कबीर दास जी ने सच ही कहा था -

"कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय !
या पाए बौराए नर, वा खाए बौराए !!"

अर्थात, कनक (सोना) पा कर नर (मनुष्य) मद मे पागल हो जाता है, और कनक (धतूरा) खा कर बौरा (पागल) हो जाता है।

सब को बुलाया पर माँ बाप बहन की सुध ही ना थी उसे। मृदुला ने कहा पर भी उसने मना कर दिया।
पांच बजे से ही पार्टी जवां होने लगी, लकदक कपड़ों से सजे धजे मेहमानों का आगमन होने लगा था।
बड़े गर्म जोशी से अगवानी करने मे व्यस्त था शगुन।
मृदुला भी हल्के गुलाबी रंग की साड़ी मे बहुत खूबसूरत अप्सरा सरीखी दिख रही थी।
अंदर से वह बेचैन थी, बस बाहर से औपचारिकतावश रह रह कर मुस्करा रही थी।
मेहमान अपनी धुन मे कानफोड़ू संगीत मे मस्ती मे कमर लचका रहे थे।
अचानक मृदुला की नजरें दरवाजे पर पड़ी। उसकी आँखों मे तो सैकड़ों बल्ब की सी चमक आ गई, चेहरे पर आंतरिक प्रसन्नता आ गई।
उसने फुर्ती से सिर पर पल्लू डाला और दरवाजे की ओर तेजी से लपकी।
वहाँ साधारण कपड़ों मे उसके सास ससुर और मधु मुस्कराते हुए खड़े थे। कुछ समान और घर की बनाई शुद्ध खोवा (मावा) की बनी मिठाई का डिब्बा।
झट से मृदुला ने सास ससुर के पैर छुए, और मधु को बाहें फैला आगोश मे ले लिया। और समान पकड़ कर कमरे की ओर चल दी।
शगुन का चेहरा देख लग रहा था कि वह अंदर से प्रसन्न नहीं था। उसे घरवालों का आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।
फिर भी औपचारिकता वश अनमने ढंग से माँ पिता के पैर छुए।
और झूठी हंसी के साथ स्वागत किया।
माधव उषा बहू के साथ अंदर चले जा चुके थे। मधु तो पहुंचते ही अक्षत को गोदी मे ले कर दुलारने, लाड़ करने लगी।
इधर शगुन लोगों के बीच अपने को बड़ा गिरा महसूस कर रहा था। थोड़ी देर बाद वह अंदर आया।
मृदुला के कमरे से बाहर खड़े हो कर आवाज दी - मृदुला थोड़ा यहां आ जाओ, मेहमानों को विदा कर दो मिलना चाहते है।
'जी आई,' । कहते हुए आई
बाहर आते ही शगुन ने दोनों बाजू पकड़ कर थोड़ा किनारे जाते हुए बोला - क्यों बेज्जती कराने पर तुली हो, सबकी नजरो मे गिरा कर तुम्हें खुशी मिल गई। तुम यही चाहती थी ना, अरे ना बोल दिया था ना, फिर भी अपने मन की करके मुझे बिना बताये बुला लिया। और गवांँरो की तरह फटिचर भिखारी जैसे बन कर चले आए। लोग हँस रहे थे। सब मज़ाक उड़ायेंगे मेरा.... ।
मृदुला आवक रह गई... लगा काटो तो खून नहीं।
'क्या बोल रहे हो शगुन माँ पापा है तुम्हारे... उन्होंने तुम्हें कितने कष्ट से पाला है और आज तुम्हारी बेइज्जती हो गई उनसे....... ।
बात बीच मे काट कर बोला शगुन - तो क्या करूं अरे पाला है तो हर महीने पैसे भेजता तो हूँ... कौन सा कष्ट देता हूँ, इसका मतलब मैं सब के बीच अपनी बेइज्जती क......... ।
नहीं बेटा हमे माफ कर दो, कोई बेइज्जती ना कराओ, ये तो तेरी माँ और ये मेरी पागल बेटी जिद किए थी कि भाभी ने बुलाया है, भैया से मिलना है बाबु को देखना है, हमे नहीं पता था........ । रुंधे गले से कहते कहते माधव रो पड़े। फूट- फूट कर रो पड़े। उषा और मधु भी रो रहे थे।
स्तब्ध रह गया था शगुन।
बड़े अरमान थे, बड़ा नाज़ था, कि जीवन मे बच्चों के पढ़ाने लिखाने, खानपान मे कुछ बचा ना सका कोई बात नहीं, जो बुढ़ापे की लाठी है वो तो लायक है, जिम्मेदार है, पर मैं गलत था....
एक पल रुक कर माधव बोला - मेरे त्याग, मेरी मेहनत मेरा अरमान था तू.... मेरे जीवन की जमा पूँजी मेरी बचत था तू। पर तू तो गिरा इंसान है,आज हमसे तेरी बेइज्जती होने लगी, तू जब ऊपर मुतता था तो हमे कभी बेइज्जती नहीं लगी।
चल बेटी समान उठा मुझे नहीं रहना अब एक पल भी, देख लिया उषा ये है "जीवन भर की बचत" ।
मृदुला रोकती रही, समझाती रही, शगुन माफी मांगता रहा।
पर माधव नहीं रुका जैसे आया था, वैसे ही उषा, मधु के साथ वापस लौट गया।
बचे खुचे मेहमान भी आवाक देखते रहे।
घर पहुँच कर कई दिनों तक दोनों बुढ़े और मधु रोती रही। कई दिनों खाना नहीं खाया। इधर मृदुला भी काफी कुछ बोल कर सास ससुर के साथ रहने चली आई।
कुछ समय बाद माधव ने जमीन बेच कर मधु की शादी कर दी।
बुढ़े माधव उषा बस अकेले मे रोते रहते। अब शगुन को मृदुला और अक्षत के गांव जाने के बाद समझ आया कि एक पिता औलाद के लिए क्यों और कैसे तड़पता है।
उसे गलती का अह्सास हो गया था।
आज वह घर जाने को तैयार था, चाहे जो हो जाए वह माँ पापा और मधु, साथ ही मृदुला से माफी मांगेगा। जब तक माफ नहीं करेंगे वह नहीं लौटेगा।

(जीवन भर की बचत - कहानी समाप्त)

" कलयुग के श्रवण कुमार " श्रृंखला के अंतर्गत नई कहानी अगले भाग मे प्रकाशित करूंगा।

✍🏻संदीप सिंह (ईशू)
©सर्वाधिकार लेखकाधीन