Hotel Haunted - 36 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 36

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 36

"कल तुमने क्यों कुछ नहीं किया?ऐसी कोनसी वजह थी जो तुम अभिनव से यूं ही मार गए खाते रहे?"आंशिका के सवाल से मैं हैरान हो गया, मुझसे यह उम्मीद ही नहीं थी कि आंशिका मुझसे ऐसा कुछ पूछेगी, लेकिन अब उसने मुझसे प्रॉमिस ले लिया था तो मेरे पास बताने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं बचा था।मेने एक गहरी सांस ली और हिम्मत करके बताना शुरू किया।


"आंशिका, झगड़ा तो हर रिश्ते मैं होता है तुम्हारा भी हुआ पर उस वक़्त तुम्हारे दिल में कहीं ना कहीं तो अभी के लिए प्यार था, तोह में कैसे उस इंसान को तकलीफ़ पहुंचा सकता हूं जिसे तुम प्यार करती हो, मेरे लिए उस वक़्त ज़रूरी था तो सिर्फ इतना कि इस बात को ओर ज्यादा ना बढ़ाऊं, क्यूँकी शरीर पे लगे ज़ख्मो का इलाज़ हो सकता है पर मन के दर्द का नही।"
इतना कहकर में चुप हो गया, आंशिका मेरे सामने खड़ी मुझे बस देखे जा रही थी,मैं हैरान था की मुझमें ये सब बोलने की हिम्मत मुझमें कैसे आ गई पर बस सामने खड़े चेहरे को देखकर दिल खुद ब खुद लफ्जों को बयां कर रहे थे "मैं नहीं जानता कि मैंने सही किया या गलत, मैं तो बस इतना जानता हूं कि जब हम किसी से दिल से प्यार करते हैं तोह उस प्यार का दर्द उसकी तकलीफ हमारी आंखों में दिख जाती है और मैंने उस तकलीफ को तुम्हारी आँखों में देखा है,तो फिर अभिनव से झगड़ा कर के मैं भी तुम्हारे दर्द को एक तरह से बढ़ा देता।"इतना कहकर मैं रुक गया क्योंकि जब मैंने आंशिका की आँखों में देखा तो उसकी आंखें भरी हुई थी।



वो यह सोच रही थी कि एक अंजान शक्स जिसे वो जानती नहीं, वो उसके बारे में कैसे इतना कैसे सोच सकता है यही सोचते हुए वो श्रेयस को बस देखे जा रही थी। " तुम दूसरो के मन की बात तुम इतने अच्छे से कैसे समझ लेते हो?" आंशिका ने जैसे ही ये बात कही तो मैं हंस पड़ा, मुझे हंसता देख वो भी हंसने लगी।"सच में पर इतनी बड़ी बात तुमने इतनी आसानी से कैसे समझा दी?" आंशिका अब हंस नहीं रही थी पर फिर भी उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी।
"माँ कहती है एक बार किसी से प्यार कर लो उसके बाद चाहे उस इंसान से कितनी भी नफ़रत हो जाए लेकिन हम फिर भी उसे दर्द में नहीं देख सकते बस उस वक्त तुम्हे देखकर लगा की तुम भी उन्ही हालातो से गुजर रही हो और वैसे भी मां की कुछ बाते तो बेटे मैं आ ही जाती है "मेरी बात सुन के आंशिका के चेहरे की मुस्कान और बड़ी हो गई।
"तब तो फिर आंटी से मिलना ही पड़ेगा"
"क्यों नहीं बिल्कुल..... जब भी तुम कहो पर अब मैं चलता हूँ लेट हो रहा है, कॉलेज मैं मिलते है"इतना कहते ही श्रेयस वहा से कॉलेज जाने के लिए निकल गया और आंशिका उस जाते हुए देखती रही,उसके चेहरे पर अभी भी वो मुस्कान छाईं हुई थी शायद इसलिए की किसी ने तो उसके मन को समझा था।


कॉलेज पहुंचते ही श्रेयस ने bicycle पार्क की और जल्दी से class मैं जाकर अपनी जगह पर बैठ गया।"हाय श्रेयस...कैसे हो.." श्रुति ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, तो मेंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया"बस बिलकुल ठीक।"
"तुम्हें तो बहुत चोट आई है।" श्रुति ने मेरे चेहरे को अच्छी तरह से देखा हुए कहा।
"हां पर मैं अब ठीक हूं....आज मिलन नहीं आया?" मेने श्रुति से पूछा तो उसने कहा कि उससे कुछ काम आ गया था तो उसे कहीं जाना पड़ा...खैर उसके बाद क्लास में ma'am आ गई और उसके पीछे-पीछे students भी आने लगे की तभी आंशिका क्लास में एंटर हुई, उसने मेरी तरफ देखते हुए Hii का इशारा किया और जाके मेरी बगल वाली Raw मैं पीछे से दूसरी सीट पर जाकर बैठ गई,कुछ पल में उसको ही देख रहा की तभी मेरी नज़र भाई पे पड़ी जो तेज़ी से चलता हुआ आया और आंशिका की Raw मैं पीछे की तरफ बैठ गया।मेरे लिए हैरानी की बात यह थी कि भाई कभी भी आगे की सीट्स पर नही बैठता था पर आज अचानक उसको पता नही क्या हुआ?


Ma'am ने कई designs दिखाते हुए उस कर discussion कर रही थी पर पता नही आज उस topic पर मेरा ध्यान बिलकुल नहीं था,जैसे आज पढ़ाई करने का मन ही नही हो रहा था,मेरा ध्यान कभी बॉर्ड पर जाता तो कभी आंशिका पर वो ma'am की कही बात को नोट कर रही थी,लिखते हुए उसके बाल चेहरे पर आ रहे थे जिसे वो बार बार पीछे कर रही थी, मैंने मुस्कुराते हुए किताब मैं अपनी नज़र करके बैठ गया, दिमाग मैं आज आंशिका से की गई सब बाते घूम रही थी।तभी......
"श्रेयस... श्रेयस..." श्रुति ने जब मुझे हिलाया तो मैं होश में आया, मैं उसकी तरफ़ अजीब सी नज़रोन से देखने लगा, मैंने में नजर घुमाई तो देखा की ma'am जा चुकी थी और क्लास में हल्ला गुल्ला मचा हुआ था "क्या सोच रहे हो....श्रेयस?" श्रुति की आवाज जब दोबारा कानो में पड़ी तब जाके मैं ढंग से होश में आया।


" हा" घबराते हुए मैं उसकी तरफ देखने लगा" क्या हुआ कितनी देर से तुम्हें आवाज़ लग रही हूं पर तुम ना जाने कहाँ खोये हुए थे?" श्रुति ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
"वो..वो...सॉरी.. बस कुछ सोच रहा था" मेने बड़ी मुश्किलो से उसको जवाब दिया।
" अच्छा नो प्रॉब्लम...हटो वो मुझे मिस. से मिलना है उनको ये प्रोजेक्ट सबमिट करना है। "श्रुति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ प्रोजेक्ट दिखाया तो में हट गया और उसे जाने के लिए जगह दे दी, जब वो गई तो मैंने क्लास में देखा तो आंशिका नहीं थी, उसके साथ काफी स्टूडेंट भी नहीं थे , मैं मुस्कुराता हुआ वापीस सीट पर बैठा और मुझे मेरी इस हरकत पर हंसी आ गई, अभी अभी जो दिल ने मेहसूस किया ना जाने क्यों उसको फिर से शब्दों में उतरने का मन किया, मेने जल्दी से पेन और डायरी अपने बैग से निकली और पेन की निब को खाली पन्ने पे रखकर आंखो को बंध कर लिया,आँखें बंद करते ही आंशिका का फिर से वो खिला हुआ चेहरा सामने आ गया और वो चेहरा सामने आते ही मेरा पेन खुद ब खुद पन्ने पे उस कुदरत की छाँव को उतारने लगा।


आज फिर तेरे चेहरे की उस मुस्कान को हम जिंदगी मान बैठे,
उस चेहरे के पीछे छुपे हर दर्द को अपना मान बैठे,
अब दिल धड़क रहा है तो सिर्फ उस दर्द को हमदर्द बनाने के लिए,
क्योंकि तेरे दिल की हर धड़कन को अपना मान बैठे।



मैने इतना ही लिखा था कि तभी" श्रेयस" एक मीठी आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसे सुनते ही में समझ गया कि कौन खड़ा है मेरे पास। मैंने जल्दी से डायरी को बंद किया और अपनी नजरें उठा के देखा तो मेरे सामने आंशिका ही खड़ी थी, उसे देखते ही दिल में घबराहट फैल गई ये सोच के की कहीं आंशिका ने देख तो नहीं लिया।जैसे ही ये बात दिमाग में आई मैंने डायरी को फटाफट बैग में डाल दिया, आंशिका मुझे ये सब करते हुए देखकर थोड़ी Confusion में खड़ी थी।
"क्या छुपा रहा हो....हा?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
" नहीं... नहीं..कुछ नहीं" मेने हकलाते हुए जवाब दिया,जिसे सुनकर आंशिका समझ तो गई पर वो कुछ नहीं बोली।
"अच्छा.. चलो कैंटीन चलते हैं,हम सभी लोग जा रहे हैं तो तुम भी चलो।"
"मैं...पर..." मैंने बस इतना ही कहा कि आंशिका ने मुझे रोक दिया
"पर, वर कुछ नहीं, तुम चल रहे हो।" आंशिका ने थोड़ा गुस्से में कहा, उसके चेहरे पर हल्का गुस्सा देख में उसने मना नहीं कर पाया।
"अच्छा तुम चलो मैं आता हूँ।"
"नहीं मैंने कहा ना" आंशिका ने इतना ही कहा कि प्राची ने उसे आवाज दी" आंशिका चल...जल्दी "आवाज़ सुन आंशिका ने प्राची की तरफ देखा "हां आई...." और फिर मेरी तरफ देखते हुए "जल्दी आना" उसने इतना कहा तो मेने हां में गर्दन हिलाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चली गई उसके जाते ही मैं अभी कुछ सोच ही रहा था।

"अरे...श्रेयस" तभी मेरे कानों में आवाज पड़ी तो मैने तुरंत उस डायरी को बैग के अंदर धक्का दे दीया, मैंने अपनी नजरें तिरछी की तो उस साया को देखते ही समझ गया की कौन है, मैने अपनी नजर दूसरी तरफ घुमा ली क्योंकि अगर कल के हुए झगडे के बारे मैं Trish को पता चला तो पता नही क्या होगा?
"Hii...तृष्टि" मैंने दूसरी तरफ देखते हुए कहा।"अब तुझे क्या हुआ? क्यों अपनी गर्दन उस तरफ घुमाकर बैठा है?"
"नही वो तो बस गर्दन मैं थोड़ी सी मोच आ गई है इसलिए"इतना कहकर मैं क्लासरूम से निकल ने ही वाला था की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे चेहरे को पकड़ते हुए अपनी तरफ घुमा लिया।मेरे चेहरे को देखते ही वो हेरानीभरे नजरो से मुझे देखने लगी।

"किसने मारा?"उसकी आंखों मैं गुस्सा साफ दिख रहा था, उसका सवाल सुनते ही मैंने अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया।
"नहीं Trish ऐसा कुछ नही है यह तो बस मैं फिसल गया था Trish तू...." मैंने फिर इतना कहा कि उसने मुझे रोका दीया, "तू मुझे बताएगा या फिर मैं अपने तरीके से पता लगा लूं"तृष्टि ने मेरी तरफ उंगली दिखाते हुए कहा, उसके चेहरे का गुस्सा देखकर मुझे उसे सब कुछ बताने लगा, जैसे जैसे में उसे बता रहा था वैसे वैसे उसके चेहरे के गुस्से की शिकन बढ़ती जा राही थी।
"बस फ़िर मेने किसी तरह लड़ाई बंद करवायी.....नहीं तो" मेने अभी अपनी बात पूरी भी नही की थी तो देखा Trish तेज़ी से चलते हुए क्लास रूम से बहार निकल चुकी थी "Trish...रुक...रुक जाओ please" चिल्लाते हुए में उसके पीछे भागा।


To be continued.....