Hotel Haunted - 35 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 35

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 35

अगली दिन सुबह 6 बजे मेरी नींद खुल गई अपने कमरे से निकल कर नीचे होल मैं आकर देखा तो कोई नही था, मैं अपने कमरे की और बढ़ रह था की तभी "आज जल्दी उठ गया बेटा मां की आवाज सुन के पीछे मुड़ के उनको देखा तो जैसे मेरी सुबह ही रोशन हो गई।मैने उनकी और देखकर कहा "हां मां, बस नींद नहीं आ रही थी तो सोचा बाहर के सुहावने मौसम का मज़ा उठा लूं , बहुत सुकून मिलता है जब सुबह की ये ठंडी हवाएं जब शरीर को छूती है "मैंने इतना कहा और बालकनी की बनी रेलिंग को पकड़ के बाहर का नजारा देखने लगा। घर से दूर पहाड़ों पर गिरती सूरज की रोशनी उनको ओर भी खूबरसूरत बना रही थी "हम्म....तेरी आदतें भी उनसे मिलती-जुलती हैं " माँ ने इतना कहा और मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी "अच्छा किससे?"


मेने उनकी तरफ देखते हुए पुछा "तेरे पापा से" उन्होंने भी मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया, उनकी बात सुनकर में उसके चेहरे की और देखते हुए कुछ सोचने लगा "क्या देख रहा है" माँ ने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पूछा "आप पापा से बहुत प्यार करती हो ना?" मैंने अपनी बात बेझिजक कह दी।मेरी बात सुन के उन्होंने अपनी आइब्रो सिकोड़ ली "बदमाश मां से ऐसी बात करते हैं क्या?" झूठा गुस्सा दिखते हुए उन्हें मुझसे कहा तो मैं हंस पड़ा।
"हां बहुत प्यार करती हूं" मैं जानता था मां मुझे जवाब जरूर देगी " आपको पापा से प्यार कब हुआ?'' उनका जवाब सुनते ही मैंने अपना दूसरा सवाल किया "आज क्या बात है बड्डे सवाल कर रहा है, वो भी प्यार के बारे में!!क्या चक्कर है?" माँ ने मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कहा,उनकी बात सुन के एक पल के दिल में आया कि कह दूं लेकिन फिर ना जाने क्यों गले ने दिल की बात नहीं सुनी "बस ऐसे ही मां आप ही कहती हो ना कि प्यार कुदरत का दिया हुआ तोहफा है, तो मेने सोचा आपसे पुछ लूं कि आपको प्यार कब हुआ?" मैंने माँ की तरफ देखते हुए कहा तो वो मेरी बात सुनके मुस्कुराई और फिर सामने देखने लगी, मेरी नज़र उनके चेहरे पे ही थी और मैं इसी इंतज़ार में था की माँ कुछ कहे।



"प्यार" "मां ने इतना कहा और शांत हो गई फिर कुछ देर बाद "कभी कभी हम नही जानते की हमे अपने जिंदगी मैं कैसा इंसान चाहिए पर जब आप उस इंसान से मिलते हो तो दिल उस एक शख्स के लिए कुछ अलग महसूस करता है,जो हमारे दिल को सुकून के साथ एक अलग बैचेनी भी देता है और धीरे धीरे दिल को अपने आगोश मैं इस कदर समा लेता है कि जैसे उससे बहार निकलना नामुमकिन हो जाता है, चाहे हम जितनी भी कोशिश कर ले पर उसकी ओर खींचे चले जाते है,तेरे पापा ने मुझे इतना प्यार दिया की पता ही नहीं चला कि जिंदगी के यह साल कितनी जल्दी बीत गए, एक बात हमेशा याद रखना श्रेयस, प्यार का एहसास हमारी लाइफ का सबसे अच्छा गिफ्ट होता है उसे कभी दूर मत भागना क्यों की तुम उस से जितना दूर जाओगे तुम अपने आप को उतनी ही तकलीफ पहूंचाओगे।" माँ ने मेरे चेहरे की तरफ देखे हुए जब अपनी बात कह रही थी तो उनका एक एक शब्द दिल में महसूस हो रहा था, उनके शब्दों में ही नहीं बल्की उनकी आंखें मैं भी प्यार की वो चमक झलक रही थी।
उनकी बात सुन के मेने बस अपनी गर्दन हां में हिलाई, वो मेरी तरफ़ देखते हुए मेरे करीब आई और मेरे गाल को अपने हाथ से सहलते हुए मेरी आँखों में देखती है हुई बोली "मैं जानती हूं कि तू यह सब क्यों पूछ रहा है लेकिन एक बात हमेशा याद रखना तुम्हें वो प्यार मिले या ना मिले पर तुम अपने प्यार पर पूरा भरोसा रखना।" इतना कह के माँ मुझसे अलग हुई और जाने लगी, मैं उनकी तरफ हैरानी भरी नजरो से देख रहा था बस यही सोच रहा था कि माँ को कैसे पता की में क्या चाहता हूं, आज फिर उन्होंने जिंदगी की उन बड़ी बातों को इतनी सरलता से समझा दिया। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में चला गया।


आज कॉलेज जाने के लिए मैं जल्दी से तैयार होकर घर से निकल गया,मैने अपनी bicycle की चाबी ली और इस सुहावने सफर का आनंद लेते हुए मैं कॉलेज जाने के लिए निकल पड़ा। आज मौसम पूरी तरह से साफ होने की वजह से आसमान पूरी तरह से नीला था,इस नीले गगन मैं सूरज धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए अपने पीले रंग उसमे भर रहा था।जब मंजिल पर पहुंचने की जल्दी ना हो तो मंजिल से ज्यादा सफ़र ज़िंदगी को सुकून देता है और साथ मैं bicycle हो तो सफ़र मजा ओर भी बढ़ा जाता है।पहाड़ों के उन रास्तों से गुजरते हुए मैं उन वादियों,पेड़ो और फूलो की महक लेते हुए आगे बढ़ रहा था।पेड़ो के उपर से आती हुई पंछियों की आवाज़ वहा के पूरे माहौल मैं गूंज रही थी।मेरा घर कॉलेज से 10km की दूरी पर था इसलिए मैं घर से 2 घंटे पहले ही निकल गया था ताकि कॉलेज पहुंचने मैं कोई देरी न हो।पहाड़ी इलाका होने के बावजूद यह पक्की सड़कें और मेट्रो की अच्छी facilities होने की वजह से ज्यादा कोई problems नही आती है।सड़क के दोनो ओर छोटे गांव और कस्बों से गुजरते हुए 1 घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला,मैने अपना आधा सफर तय कर लिया था बस अब 5km बाकी था।आखिरकार पानी पीने के लिए मैंने एक Town मैं पहुंचकर bicycle रोक दी,यह वही Town था कहा पर आंशिका रहती थी, यहां पहुंचकर उसका खयाल ज़हन मैं दौड़ गया, दिमाग़ मैं एक बार फिर कल की सब बाते आने लगी इसलिए वो ठीक होगी या नहीं ये सब बाते दिमाग मैं दौड़ने लगी। दिल तो किया की एक बार उससे मिलता चलूं पर फिर दिमाग मैं खयाल आया की "नही-नही इतनी सुबह मुझे देखकर क्या सोचेगी?"इन्ही सब जत्तोजहत से उपर आखिरकार दिमाग को दिल के आगे मजबूर होना ही पड़ा और मैं अपनी bicycle उसके घर की ओर बढ़ा दी।



उसके colony पर पहुंचते ही मैं पैदल चलते हुए आगे बढ़ने लगा।मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था साथ ही दिल मैं एक अजीब सी घबराहट भी महसूस हो रही थी।आखिरकार चलते हुए मैं उसके घर के सामने पहुंच गया,2 मंजिला घर,उसके आगे एक छोटा सा गार्डन और उसके बीच से गुजरने के लिए एक छोटा सा रास्ता बनाया हुआ था।बस एक बार आंशिका दिख जाए इसी उम्मीद मैने अपनी चलने की रफ्तार कम की और खिड़की से अंदर देखने की कोशिश करने लगा,पर आंखो को निराशा ही हाथ लगी।मैने ज्यादा वक्त न गवाते हुए जल्दी से वहा निकल जाने का फैसला किया,जैसे ही मैं आगे बढ़ा तभी पीछे से मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा।



जैसे ही वो पीछे मुड़ा उसकी आंखो के सामने आंशिका खड़ी उसकी ओर ही देख रही थी,उसके हाथ मैं एक बैग थी जिसे देखकर यह समझ आ सकता था की वो जरूर कुछ सामान लेने गई होगी।उसको अचानक से देखकर श्रेयस घबरा गया इसलिए डर की वजह वो हल्का सा मुस्कुरा पड़ा,वो डर तो ऐसे रहा था मानो चोरी कर के भाग रहा हो। मन ही मन उसे इस बात का डर सता रहा था कि कहीं आंशिका को बुरा ना लग जाए क्या सोचेगी वो मेरे बारे मैं? श्रेयस ने तो अपनी नजरें झुका रही थी, घबराहट के मारे उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे निकल आई थी वहीं आंशिका उसकी ओर ही देख रही थी, उसका इस तरह देखना श्रेयस की घबराहट को ओर बढ़ा रहा था, हांलाकि वो आंशिका के चेहरे को देख नहीं रहा था पर फ़िर भी वो जानता था कि आंशिका उसी की तरफ देख रही है।


"तुम इतने डरे हुए क्यों हो श्रेयस?" श्रेयस की हालत को देखकर आंशिका ने पूछा।
"नही ऐसा कुछ नही है वो तो cycling की वजह से ऐसा लग रहा है"श्रेयस ने इधर उधर देखते हुए कहा।
"मुझसे बिना मिले जा रहे थे" आंशिका की बात सुनते ही श्रेयस ने अपनी नजरें उपर उठाई और उसकी तरफ देखने लगा। "नहीं ऐसा कुछ नही....वो बस..." मेरे गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी।
"या फिर मुझसे मिलना नहीं चाहते थे, इसलिए जा रहे थे" आंशिका ने फिर मुझे घूरते हुए कहा।
"नहीं, वो तो उस तरफ सड़क थोड़ी खराब है इसलिए मैं इस रास्ते से गुजर रहा था"अटकते हुए मेने बड़ी मुश्किल से अपनी बात कही,मेरी बात सुनकर आंशिका ने मुस्कुराते हुए कहा "जरा अपनी हालत तो देखो,ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा कोई बड़ा झूठ किसी ने पकड़ लिया हो" उसको मुस्कुराते हुए देखकर मैं भी हंस पड़ा।



"चलो आओ अंदर चलते हैं.....माँ तुमसे मिल के बहुत खुश होंगी।" आंशिका ने इतना कहा और मेरी तरफ़ बढ़ी मुझे अंदर ले जाने के लिए लेकिन मेरे पैर खुद बा खुद पीछे हो गए।
"नहीं...नहीं आंशिका मैं फिर कभी आउंगा आज देर हो रही है।"
"मेरा घर क्या कोई Haunted House है कि तुम कभी अंदर ही नहीं आते? क्या अपने friend के घर पर भी नहीं आओगे?" "आंशिका ने मासूम सा चेहरा बनते हुए कहा, एक पल तो मन करा की बस इस चेहरे को वक्त के साथ जोड़ के जिंदगी की रेखा में कैद कर दूं।


"नहीं ऐसी बात नहीं है मैं फिर कभी आऊंगा promise"
"ये क्या बात हुई श्रेयस, तुम यहां तक आए हो मुझसे मिलने और घर के अंदर नहीं आ रहे, ये तो गलत है"आंशिका की इस बात का में कोई जवाब नहीं दे पाया बस मन ही मन इतना कहा कि मैं जिस काम के लिए आया था वो तो हो गया,तुम ठीक हो यही मेरे लिए काफी है।
"मुझे देखने आये थे "कि मैं ठीक हूं कि नहीं है ना.....यहीं देखने आए हो?"उसकी बात सुन के कुछ पल तो मैं उसे यूं ही देखता रहा, समझ नहीं आ रहा रहा था कि आखिर मैं क्या कहूं?, मैं जानता था झूठ में कह नहीं पाऊंगा और सच बोलने की हिम्मत नहीं है इसलिए मैंने बस हां में गर्दन हिला दी।शायद आंशिका भी मेरी परेशानियाँ समझ रही थी, इसलिए उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, हम दोनों बस यूं ही कुछ देर एक दूसरे की आँखों में देखते रहे, शायद आंशिका जो जवाब मुझसे सुनना चाहती रही थी वो सब उसे मेरी आँखों में मिल रहे थे, अजीब खेल है ये आंखों का, कई बार जब लफ़्ज़ कुछ बयां नहीं कर पाते तो ये आंखें सब बाते चुटकियों में बयां कर देती हैं
"अच्छा आंशिका मैं चलता हूँ,अब मुझे देर हो रही है" कहते हुए मैं मुड़ा और जाने लगा,"श्रेयस....." आंशिका की आवाज़ सुनकर में फिर रुक गया और पलट के उसकी तरफ देखने लगा, वो मेरी तरफ देखते हुए मेरी करीब आई ओर कहा "क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूं?"
"हां बिलकुल" मैंने बस इतना ही कहा और आंशिका की तरफ देखने लगा।

"वादा करो कि तुम मुझे सच बताओगे" उसने जब मुझसे मेरी आँखों में आंखें डालते हुए पूछा तो हां में गर्दन हिलाने के अलावा मेरे पास कोई option नहीं बचा।
"तुमने अभिनव को क्यों कुछ नहीं किया...क्यों उससे मार खाते रहे??!क्यों तुमने कुछ नहीं कहा?" आंशिका की बात सुन कर में हैरान हो गया, कुछ देर सोचता रहा कि क्या करूं पर जानता था कि अब बताना पड़ेगा क्यों की मैंने आंशिका को दिया हुआ वादा नहीं तोड़ सकता था।


To be continued......