Hotel Haunted - 34 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 34

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 34

"Ouch.....ouch....बहुत मारा साले ने अभी तक दर्द हो रहा है अविनाश बेड पे पेट के बल लेटा दर्द मैं कहता हुआ सामने निधि की तरफ देख रहा था।
"ओर लड़, मना कर रही थी, लेकिन मेरी तो उस वक्त सुनी नहीं, अब ऐसे ही पड़ा रह'' निधि ने थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा और किताब में नज़र गड़ाये उसे पढ़ने लगी।
"अरे यार.... जो हो गया वो हो गया, अब बहुत दर्द हो रहा है.. आआआह.... माँ..."अविनाश ने फ़िर से निधि की तरफ देखते हुए कहा।अविनाश की दर्द भरी आवाज सुन निधि के चेहरे पर हल्की सी परेशानी छा गई,उसने अपनी नज़रें किताब से हटाई और अविनाश की तरफ देखने लगी, "ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?"
"yesss sis......बहुत दर्द हो रहा है..... पर मुझे इस दर्द की टेंशन नहीं है, टेंशन है तो कल के प्रोजेक्ट सबमिशन की, अब कौन complete करेगा उसे आह्ह....मैं तो गया..." अविनाश ने दर्द भर्री आवाज़ में हल्का सा भारी गले से कहा.....अविनाश की हालत देख निधि को भी उसकी फ़िक्र होने लगेगी, "तू बिल्कुल टेंशन मत ले भाई, मैं बना दूंगी, तू आराम कर, मैं तेरे लिए हल्दी वाला दूध बनवाती हूं।" निधि के कहते ही अविनाश ने हां में गर्दन हिलाई और फिर अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली।


"कौन दूध पी रहा है?!!?" रूम में एंटर करते हुए हर्ष ने कहा, आवाज सुन के निधि ने उसकी तरफ देखा, "हर्ष तू ठीक तो है ना?" निधि खड़ी होती हुई बोली" बिल्कुल फर्स्ट क्लास हूं,पर इसको क्या हुआ?" हर्ष ने निधि सी हल्की आवाज में कहा और सामने पड़े अविनाश की तरफ़ इशारा किया।
"वो अवि को बहुत दर्द हो रहा है, तो मैंने सोचा इसको हल्दी वाला दूध दे दूं.....फिर इसका प्रोजेक्ट बना दू, कल सबमिशन की लास्ट डेट है और भाई साहब ने शुरू भी नहीं किया है" निधि कहते हुए जाने लगी की हर्ष ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी आँखों से इशारा किया कि एक मिनट यहाँ खड़ी रह, निधि उसका इशारा समझ गई और वहीं खड़ी रही।

"offfoo....बेचारा अवि निधि तू इसका ध्यान रख,ट्रिश का प्रोजेक्ट भी अभी complete नही हुआ है इसलिए वो अवि से हेल्प माग रही थी,खैर मैं Trish से कह दूंगा की अवि उसकी हेल्प नहीं कर पाएगा उसकी तबीयत ठीक नहीं है....अच्छा चल मैं कल आता हूं।'' हर्ष ने थोड़ी ऊंची आवाज मैं अवि की और देखकर इतना ही कहा था की"क्या.....ट्रिश का फोन आया था मेरे लिए" अचानक से अविनाश बेड़ पे कूदता हुआ खड़ा हो गया और सामने दोनों की तरफ देखने लगा, अविनाश को ऐसे उछलकर देख हर्ष तो ज़ोर ज़ोर से हंस पड़ा वहीं निधि कि आँखों में गुस्से की तरंगे फेलने लगी, जिसे देखते ही अविनाश समझ आया गया की अब वो तो गया....."निधि वो तो मैं...." अविनाश ने इतना ही कहा था की "just shut up...." गुस्से में कहती है हुई निधि बहार चली गई।

" अरे निधि सुन तो....." अविनाश चिल्लाया पर उसने उसकी नहीं सुनी उसने गुस्से के साथ हर्ष की और देखा जो अभी भी हंस रहा था "साले तुझे दूसरो की खुशी देखी नही जाती, यार ये क्या किया तूने,बड़ी मुश्किल से मनाया था मैंने उसे और तूने आके सब कबाड़ा कर दिया, कल लास्ट डे है सबमिशन का अब कैसे बनेगा प्रोजेक्ट? तू भी ना यार हद करता है"अविनाश घुटने के बल रोंदु सी शकल बना के बिस्तर पे बैठ गया।अविनाश की हालत देख हर्ष ज़ोर - ज़ोर से हंस रहा था, आख़िर में उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी और अवि के पास आते हुए कहा" अबे क्यों टेंशन ले रहा है, कल लास्ट डे नहीं है सबमिशन का।"
"अच्छा.....कैसे?" अविनाश की आँखों में चमक आ गयी "कल ऑफ है भूल गया.....चिंता मत कर में भी यहां इसलिए आया हूं, तीनो मिल के बना लेंगे " हर्ष ने बिस्तर पर लैटे हुए कहा।
"अबे नहीं यार अब वो नहीं मानेगी... तूने मेरा ड्रामा पकड़वा दिया उसके आगे" अविनाश बिस्तर से खड़ा होते हुए बोला "तू टेंशन ना ले, मैं बोलूंगा तो निधि मना नहीं करेगी।" हर्ष ने confidence में कहा की तभी निधि कमरे में आई उसके हाथ में ट्रे थी "कॉफ़ी?"


थोड़ी देर बाद


एक कोने में अविनाश अपना सर पकड़ के बैठा था, क्योंकि उसे समझ नहीं आया रहा था की करना क्या है और निधि ने भी उसकी मदद के लिए मन कर दिया था...वहीं दूसरी तरफ हर्ष और निधि आपस में बातें कर रहे थे।
"हम्म, मतलब प्राची ने अपने दोस्तों को बताया और फिर उन सब ने ये बात की कॉलेज में घुमा दी.. , तुझे कैसे पता चला ये सब..." कॉफ़ी का मग टेबल पर रखते हुए हर्ष बोला।
"उम्म.....घर आकार मेरी बात प्राची से हुई तब..." निधि ने बस इतना ही कहा।
हर्ष:- "जिसने बताया वो खुद ही कॉलेज नहीं आया कमाल है, तुम लड़कियाँ भी ना यार हद करती हो।"
"हां ठीक है, पर हर्ष सच में इसमें श्रेयस की कोई गलती नहीं थी" निधि ने हर्ष को जब कहा तो हर्ष उसे घुरने लगेगा "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी गलती थी की नहीं" हर्ष ने भी रुखे स्वर मैं कहा।

"अच्छा फर्क नहीं पड़ता तो उसके लिए लड़ाई क्यों की तूने?" निधि ने हर्ष की आँखों में झाँकते हुए कहा "मैं उसके लिए नहीं निधि अपने लिए लडा, वो बेवकुफ पूरी क्लास के सामने पिट गया, अब कल को वो अभिनव मुझ पे हसेगा, मुझे देख के ताने मारेगा और वो बात मुझसे बर्दाश्त नहीं होगी, सिर्फ इसलिए उसे मारा कि कल मुझसे उलझने से पहले वो १०० बार सोचे, मुझे फर्क नहीं पड़ता, श्रेयस के साथ जो मर्जी हो वो करे "हर्ष की आवाज में गुस्सा झलक रहा था "पर क्यों हर्ष.... वह एक अच्छा इंसान है, सीधा साधा कुछ नहीं कहता और i know he loves you a lot" निधि ने अपनी बात बढ़े प्यार से और सरलता से कहीं।

"I don't care nidhi..... I don't care मुझे उस लड़के से चिढ़ है, मेरे लिए वो कुछ नहीं है " हर्ष ने निधि की आँखों में देखते हुए गुस्से से कहा "You know what Harsh अभी ने भी इसी attitude की वजह से आंशिका को खो दिया, तुम आंशिका को जानते हो,उसके जैसी लड़की हर किसी को नहीं मिलती। वह इतनी pure, calm और खूबसूरत दिल वाली लड़की है जिसे अभिनव ने अपने Attitude के चलते उसे हर्ट कर दिया।" निधि ने बुक उठाते हुए कहा, " और शायद तू भी वही गलती दोहरा रहा है श्रेयस जैसा भाई भी किस्मत वालो को मिलता है,एक तरह से तुम भी वही कर रहे हो जो अभी ने किया"निधि की बात सुनकर हर्ष सोच में डूब गया।


"सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, तुम दोनों के बीच छोटा मोटा झगड़ा चलता था जो कि हर भाई के बीच में होता है लेकिन दोनों एक दूसरे से प्यार भी उतना ही करते थे, खासकर तू, लेकिन उस एक रात ने हर्ष के दिल में उस कड़वाहट को जन्म दिया जो मैं कभी नहीं चाहती थी, उसे उस रात वो बात पता चल गई जो मैं अपने साथ दफ़न कर देना चाहती थी " माँ ने एक ही सांस में इतना कहा और फिर कुछ पल मेरी तरफ देखा और आगे कहना शुरू किया "तुम दोनो उस वक़्त 13 साल के थे, सब कुछ सही था एक रात तुम दोनो हमेशा की तरह साथ में कोई गेम खेल रहे थे जिसमें तू हर्ष से जीत गया, तू हर्ष से दूसरा गेम खेलने के लिए कह रहा था पर हर्ष को ना जाने क्यूं उस गेम के हारने की वजह से गुस्सा आ रहा था और वो गुस्सा अचानक इतना बढ़ गया की उसने तुझे धक्का दे दिया, वो धक्का इतनी तेज़ी से लगा कि तेरा सर टेबल से जा टकराया और तू माँ चिल्लाता हुआ वहीं ज़मीन पर गिरते ही बेहोश हो गया... "इतना कहते हुए माँ चुप हो गई, उनकी सांसें इस कदर तेज चल रही थी कि मानो ये हादसा उनकी आंखों के सामने अभी भी उतना ही गहरा हुआ हो जितना उसका वक्त था, मैं कुछ कहता हूं हमसे पहले उन्हें आगे कहना शुरू किया।

"मैं और ध्रुव दोनो तुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तूने आंखें नहीं खोली, तेरे सर पे कोई चोट नहीं आई थी ये देख के मुझे हैरानी तो बहुत हुई लेकिन ख़ुशी भी थी पर वो ख़ुशी रह रह कर ख़तम हो रही थी क्योंकि तू कोई हरकत नहीं कर रहा था फिर और वक्त ना गवाते हुए ध्रुव ने डॉक्टर को बुलाया और उसके बाद..........." "देखिए डरने की कोई बात नहीं है, सर पे थोड़ी चोट लगने और सदमे की वजह से बेहोश है वैसे सब कुछ ठीक है..." "पर डॉक्टर इसका सर बहुत तेज़ी से टकराया था और कोई चोट भी नहीं लगी, कहीं अंधरूनी चोट तो नहीं है " ध्रुव ने गंभीरता से अपना सवाल किया।
"देखिए ऐसा कुछ होता तो मैं आपको बता देता, वैसे ये तो बहुत अच्छी बात है कि कोई चोट नहीं लगी इसमें तो आपको खुश होना चाहिए, खैर आप घबराएं मत ये बिल्कुल ठीक है और जल्दी ही इसे होश आ जाएगा.. "इतना कह के डॉक्टर चला गया।

ध्रुव ने पहले श्रेयस के रूम की तरफ देखा जहां शिल्पा उसके पास बैठी थी और फिर बहार हॉल के सोफ़े पे बैठे हर्ष की तरफ देखा जो उसे देख रहा था "जानते हो तुमने क्या किया है अपने भाई के साथ.....अगर उसे चोट लग जाती तो क्या होता? " ध्रुव ने गुस्से में कहा पर हर्ष कुछ नहीं बोला " मैं कुछ बोल रहा हूं क्यों धक्का दिया तुमने उसे " ध्रुव ने उसकी तरफ बढ़ते हुए गुस्से में कहा पर हर्ष कुछ नहीं बोला और उसकी तरफ गुस्से मैं देखता रहा।

"बोलते क्यों नहीं, क्यों धक्का दिया तुमने" कहते हुए वो हर्ष के करीब पहुच गया "पापा डॉक्टर ने कहा ना की कोई टेंशन की बात नहीं है तो फिर आप इतना overreact क्यों कर रहे हो।" हर्ष ने भी अजीब से लहज़े में ध्रुव की तरफ देखते हुए कहा, जिसे सुनकर ध्रुव का गुस्सा सातवे आसमान पर चला गया, उसने अपना हाथ उठाया ही था उसे मरने के लिए "ध्रुव...." पीछे से शिल्पा चिल्लाई, शिल्पा की आवाज़ सुन के ध्रुव ने अपना हाथ वापस खिच लिया और पलट के शिल्पा की तरफ देखने लगा "ये क्या कर रहे हो? बच्चा है वो अभी " शिल्पा ने ध्रुव को घूरते हुए कहा।शिल्पा की बात सुन के ध्रुव ने हर्ष को एक बार देखा और फिर अपने कमरे मे चला गया।शिल्पा हर्ष के पास आई और उसके हाथ को पकड़ते हुए " बेटा तुमने ऐसा क्यों किया?" शिल्पा की आँखों में देखते हुए हर्ष का चेहरा रुआंसा हो गया " सॉरी मॉम... गलती से हो गया but i sware मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था " इतना कहते हुए वो रोने लगा, "श्श्श कोई बात नहीं "कहते हुए शिल्पा ने उसे अपने गले से लगा लिया।कमरे में ध्रुव गुस्से में इधर उधर घूम रहा था कि तभी शिल्पा कमरे मैं आई, जैसी ही उसकी नज़र शिल्पा पे पड़ी "तुम्हारी वजह से आज ये लड़का बिगाड़ गया है। इतना लाड़ प्यार कर रखा है तुमने की वो हद से ज्यादा बत्तमीज़ हो चूका है, हर बार उसकी गलती पे तुम बीच में आ जाती हो, हर बार शिल्पा.....ऐसा कब तक चलता रहेगा?" ध्रुव उस पर चिल्लाता जा रहा था।शिल्पा बिना कुछ बोले उसकी तरफ चलते हुई आई।


"बच्चां है अभी, धीरे-धीरे खुद समझदार हो जाएगा.." शिल्पा ने ध्रुव को समझते हुए कहा "बचा है....शिल्पा यहीं तुम गलत हो, बच्चा है तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम उसकी हर गलती को नज़र अंदाज़ कर दोगी, इससे वो कभी सुधरेगा नहीं....आज अगर श्रेयस कुछ हो गया होता तो मैं कभी हर्षित को चेहरा नही दिखा पाता,दोनो सगे भाई नही है तो क्या हुआ? इन खून के रिश्तो से बढ़कर हमेशा अपना बेटा मानकर उसे प्यार किया है तो आज अगर श्रेयस को कुछ हो जाता तो मैं कैसे शांत रह सकता हूं? " ध्रुव ने इतना ही कहा है कि तभी रूम का गेट खुल गया।आवाज़ सुन की ध्रुव और शिल्पा ​​दोनो चौंक गए और जैसे ही डोनो की नज़र रूम के दरवाजे पर पड़ी तो शिल्पा की आंखें खुली रह गईं सामने खड़े हर्ष को देखकर "तो फिर मैं कौन हूँ??" कमरे मैं इंटर होते हुए हर्ष ने कहा। ध्रुव इस वक्त बेहद गुस्से में था वहीं शिल्पा ​​को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे, वो फ़ौरन उसकी तरफ चलते हुए गई और घुटने के बल बैठे के उसका हाथ पकड़ के बैठ गई लेकिन हर्ष की नजर ध्रुव के ऊपर ही टिक्की हुई थी।
"मोम डेड ने अभी कहा की हम दोनो सगे भाई नहीं है। " हर्ष का चेहरा बिल्कुल ब्लैंक हो चूका था " नहीं वो..वो... बेटा..तुम्हारे पापा गुस्से में है इसलिए ऐसा बोल दिया" शिल्पा ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा।


"हां सही सुना तुमने.....तुम दोनों सगे भाई नहीं हो..." ध्रुव इस वक्त गुस्से में था इसलिए उसने वो सच हर्ष के सामने बोल दिया "ध्रुव प्लीज" शिल्पा रुआंसे गले से चिल्लाई उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे "तो मैं कौन हूं फिर?" हर्ष ने एक बार फिर कहा। " तुम मेरे बेटे हो " शिल्पा ने चिल्लाते हुए हर्ष के चेहरे को पकड़ते हुए कहा " तुम मेरे बेटे हो।" शिल्पा बोलते हुए रोने लगी "तो श्रेयस?" हर्ष ने इतना ही कहा, उसकी बात सुन के शिल्पा ने अपना चेहरा गुमा लिया, "वो कौन है फ़िर? "हर्ष ने एक बार फिर सवाल किया तो शिल्पा ​​ने उस से नज़रे हटाते हुए कहा "वो तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा है,एक एक्सीडेंट की वजह से उन दोनो की डेथ हो गई।" शिल्पा की बात सुनते ही हर्ष ने अपना चेहरा शिल्पा के हाथों से छुड़वाया और वो रूम से निकल गया "बचपन के उस हादसे की वजह से तुम्हे कोई बाहरी चोट तो नहीं आई पर इस हादसे को तुम‌ भूल गए,पर हर्ष उस दिन को कभी नहीं भुला पाया उसे यह कभी पसंद नहीं आया की जिस प्यार पर उस अकेले का हक था तुम्हारी वजह से दो हिस्सो मैं बंट गया,ना चाहते हुए भी जिंदगी का वो ज़हर सौतेले पन के रूप मैं उसकी जिंदगी मैं बस गया।" माँ की बात सुनते ही मेने अपनी आंखें बंद कर ली और बंध होती उस आंख से आंसू छलकते हुए बहार निकल आया ,मैं कुछ कहता उससे पहले पापा की आवाज कानो में सुनाई दी "शिल्पा.....शिल्पा"
"यहां हूं बहार बालकनी में " शिल्पा ने अपने चेहरे पे आए आंसुओं को पोंछते हुए जवाब दिया।
"ohho क्या बात है माँ का बेटे पर प्यार बरस रहा है था कुछ बूंदे हम पर भी डाल दो" पापा ने कहा तो में माँ की गोद से मुस्कुराते हुए खड़ा हो गया।
"आप भी ना"मां ने शरमाते हुए उनकी तरफ देख फिर कहा "वैसे क्या बात है आज आप जल्दी आ गए?"
"हां वो.....बस कुछ काम नहीं था तो आ गया" पापा ने जब मां से कहा तो मैं उन्हें देख रहा था उनके चेहरे पर मुझे थोड़ी परेशानी दिख रही थी " अच्छा किया,मैं आपके लिए पानी लाती हूं " माँ इतना कहते हुए अंदर चली गई, मां के जाते ही पापा मेरे पास आकर बैठ गए,मैने उनके चेहरे को देखकर पूछा "क्या हुआ पापा आप परेशान लग रहे हो?"
"डॉक्टर से मिलने गया था आज " जैसे ही पापा ने कहा में उनकी तरफ देखने लगा, "फिर??" बेचैनी भर्रे लफ्ज़ों से मेने पूछा " रिपोर्ट आ गई है, कह रहे है नॉर्मल नहीं है " पापा ने अपने चेहरे पे हाथ रखते हुए कहा, उनकी बात सुनते ही मेरे दिल की धड़कने घबराहट के मारे तेज़ चलने लगी।मैं कुछ देर सोच में बैठ गया, पापा की बात सुन के दिल तो बहुत घबरा रहा था लेकिन मुझे अपने आप को मजबूत रखना था, इसलिए कुछ देर सोचने के बाद ही मैंने कहा।

"मां को कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए" मैंने पापा की तरफ देखते हुए कहा, मेरी बात सुनके उन्होंने मेरी तरफ देखा और हां में गरदन हिलायी "आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं हूं ना कुछ नहीं होगा और इस रिपोर्ट के बारे मैं मां को कुछ मत बताना अगर वो पूछे तो कोई भी बात बनाकर इस बात को टाल देंगे।" मेने पापा की आँखों में देखते हुए उनको विश्वास दिलाया तो वो मेरी तरफ देखते हुए हां में गर्दन हिलाने लगे।कुछ वो ऐसे ही बैठे रहे फिर उन्होंने मेरे चेहरे की और देखते हुए पूछा "बेटा ये तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ?"
"कुछ नहीं पापा, लम्बी कहानी है" मैंने इतना ही कहा कि माँ की आवाज़ हम दोनो के कानो में पड़ी जो हमें अंदर बुला रही थी जिसे सुनकर हम अंदर चले गए।


To be continued......