Chirag ka Zahar - 12 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 12

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चिराग का ज़हर - 12

(12)

"इसी को कहते हैं—उल्टा चोर कोतवाल को डांटे- " हमीद ने मुस्कुरा कर कहा “ यहां सात बजे पहुँच आया था, जब अकेले बैठे बैठे बोर हो गया था तो बाहर कम्पाउन्ड में चला गया था फिर जब तुम्ह कार से उतरते देखा तो टहलता हुआ आया हूँ ।"

'हां कैप्टन - मुझे ही देर हो गई. फिरोजा ने कहा ।

"खैर -- कोई बात नहीं" हमीद भी मुस्कुराया "अब यह बताओ कि तुमने मुझे यहाँ किस लिये बुलाया था ?”

"अभी बताती हूँ - काफी पीयेंगे आप ?”

"जरूर पीऊंगा हमीद ने कहा और जेब से पाउच निकाल कर तमाखू भरने लगा ।

फिरोजा ने बैरा को बुला कर काफी लाने के लिये कहा और हमीद सुलगा कर हलके हलके कश लेने लगा-फिर काफी आने के बाद के साथ साथ काफी को चुखस्कियां भी लेने लगा - कनखियों से फिरोजा की ओर देखता जाता था जो अब चिन्तित नजर आने लगी थी- कर वह टोकते ही जा रहा था कि खुद फिरोजा ही बोल पड़ी।

"क्या नीलम हाउस दुबारा हमारे हाथों में नहीं आ सकता केप्टन?"

"हाथ आने का क्या सवाल है-वह तो तुम्हारा है ही--- जाकर उसमें रहो।"

'और फिर मर जाओ...." फिरोजा ने कटु स्वर में कहा । "मौत इतनी आसान नहीं है...." हमीद ने कहा कानून आप की सहायता और रक्षा करेगा - मगर एक शर्त पर... "

"कौन सी शर्त ?"

"आप कानून को धोखा देने की कोशिश नहीं करेंगी―"

"यह आप क्या कह रहे हैं कैटन कानून को धोखा देना तो बहुत दूर की बात है—हम तो ऐसा सोचने का भी साहस नहीं कर सकते।"

"सुनो मिस फिरोजा !" हमीद ने अपनी आवाज को दृढ़ बनाते हुये कहा, "कानून के रक्षकों से कोई बात गुप्त रखना भी कानून को धोखा देना होता है।"

'मैंने तो कोई बात नहीं छिपाई।"

"तुम गलत कह रही हो -" हमीद ने कहा "तुमने यह क्यों नहीं बताया था कि अर्जुन पूरा वाले मकान में तुम्हारे साथ एक लड़की मिस रोमा और कार्टन श्रोड नाम का एक आदमी भी रहता है !"

एक क्षरण के लिये फिरोजा का चेहरा श्वेत पड़ गया— फिर उसने हकलाते हुये कहा ।

"आपको क...क कैसे मालूम हुआ?"

"हमसे कोई बात छिपी नहीं रह सकती..." हमीद ने कहा "वह दोनों इस समय कहां है?'

"यह में नहीं बता सकती।”

"क्यों ?" हमीद उसे घूरने लगा।

"असल बात यह है कि हम उन दोनों को जानते ही नहीं - लन्दन और न्यूयार्क में हम दोनों की बस कार्टन से एक सरसरी मुलाकात हुई थी— फिर डैडी की मृत्यु का समाचार पाकर हम यहां आये तो एक दिन हमें कार्टन दिखाई पड़ा। रोमा और कार्टन कभी कभी हमारे यहाँ घन्टे आधे घन्टे के लिये अवश्य आते थे और फिर चले जात थे—मगर इधर कुछ दिनों से दोनों में से एक भी नजर नहीं आया।

"दोनों साथ साथ आते थे या अलग अलग ?" हमीद ने पूछा ।

"कभी माथ साथ और कभी अलग अल -"

"आप या शापूर उन पर किसी प्रकार का सन्देह नहीं करते?"

'करते तो है मगर..."

"मगर क्या ?" हमीद फिर उसे घूरने लगा ।

"हमें उनसे डर लगता है-"

"क्यों ?"

"हमें वह दोनो ही बहुत खतरनाक मालूम होते हैं।"

"देखिये ! आप फिर कुछ छिपा रही हैं—अगर अपनी रक्षा चाहती है तो कानून की सहायता कीजिये- "

हम तो यह सोच कर कार्टन से डरते हैं कि डैडी जैसा आदमी भी कार्टन से डरता था।"

"क्या इससे पहले भी कार्टन यहां आ चुका था ?" हमीद ने पूछा ।

"कई बार आया था। एक बार तो उस समय आया था जब डैडी साधारण हैसियत के आदमी थे। उस समय कार्टन के साथ कोई और भी गया था। डैडी का कहना था कि उनकी प्रगति में कार्टन का बहुत बड़ा हाथ था ।"

हमीद ने अर्थ पूर्ण ढंग से सर हिलाया, फिर पूछा ।

"विवरण बता सकती हो— मतलब यह कि कार्टन ने तुम्हारे डैडी की क्या सहायता की थी—उस साथ जो आदमी आया था उसका नाम क्या था?"

डैडी से पूछने का साहस तो नहीं हुआ था मगर कार्टन से अवश्य पूछा था--उसने बताने से इन्कार कर दिया था। "तुम्हारे डैडी ने जो कागज भेजे थे वह तुमने कार्टन ही को दिये थे न?"

"जी हाँ।"

"नूरा के बारे तुम भाई बहन की क्या धारणा है ?"

"वह हमारी बहुत ही बफादार साबित हुई?"

"वह कभी तुमसे इस आर्लेक्चनू में मिलती है?"

"आज उसने सात बजे मिलने का वादा किया था- -मगर दिखाई नहीं दी ।"

"तुम तो खुद ही एक घन्टा बाद आई थीं फिर उसे क्यों दोष रे रही हो-?" हमीद ने कहा, फिर पूछा, "क्या वह भी रोमा और कार्टर को जानती है ?"

"मैंने कार्टन के बारे में उससे कभी किसी प्रकार की बात नहीं की मगर मेरा विचार है कि वह कार्टन को अवश्य जानती है।" हमीद कुछ देर खामोश रहा, फिर पूछ।

"हाँ, वह बात तो रही गई।"

"कौन सी बात?" फिरोजा ने कहा ।

"तुम मुझसे कुछ बात कहना चाहती थीं— क्या वह बात कह चुकी?" फिरोजा ने लम्बी साँस खींची— कुछ क्षण तक शून्य में घूरती रही, फिर हमीद की ओर देखती हुई धीरे धीरे कहने लगी।

“मैं सदैव यही समझती रही थी कि मैं अत्यन्त कुरूपा हूँ इसलिये कोई भी मेरी ओर आकृष्ट नही हो सकता लेकिन उस दिन चौंक पडी जिस दिन एक व्यक्ति ने मुझसे प्रेम प्रदर्शन किया- मैं अपने भाग्य पर खिल उठी- -मगर बाद में मालूम हुआ कि वह प्रेम प्रदर्शन मुझे ब्लैकमेल करने के लिये किया गया था और अब में उस ब्लेक मेलर के चक्कर में बुरी तरह फंस गई हूँ । यदि प्रश्न पैसों का होता तो मैं आपसे न कहती- मेरी बदनामी का सवाल होता तब भी बदनामी सहन कर लेती मगर आपसे न कहती--मगर ब्लेक मेलर की मांग बहुत ही सख्त और भयानक है।"

"माँगा क्या है ?" हमीद ने पूछा ।

"अपने भाई शापूर का कत्ल- "

"क्या तुम्हें ब्लैकमेल करने वाला खुद शापूर को कत्ल नहीं कर सकता?"

"किसी को कत्ल करना वैसे ही बहुत कठिन होता है- फिरोज ने कहा "ओर शापूर का कत्ल करना तो बहुत ही कठिन है—इसलिये कि वह हर समय चौकन्ना रहता है— और उसने अपनी रक्षा की जो व्यवस्था कर रखी है उसके समक्ष उस पर हाथ डालना असम्भव ही है- शापूर का तो वही कत्ल कर सकता है जो उसका विश्वास पात्र भी है। और उसके निकट रहता भी हो समझ गये न आप !"

"वह ब्लेकमेलर कौन है ?" हमीद ने पूछा ।

"न मैंने उसे देखा है और न उसका नाम हो जानती हूँ-" फिरोजा ने कहा।

"हाँय" हमीद ने आँखें फाड़ते हुये कहा "तो फिर वह प्रेम प्रदर्शन और वह तस्वीरें प्रकट है कि तस्वीरों के आधार पर ही तुम्हें ब्लेकमेल किया जा रहा होगा।"

"तस्वीरों के चक्कर में न पड़िये-" फिरोजा ने दोनो हाथों से अपना मुँह छिपाते हुये कहा "आप विश्वास कीजिये कि न तो मैंने उसका चेहरा देखा है और न उसका नाम ही जानती हूँ..."

"तो फिर तुम्हीं बताओ कि मैं तुम्हारी सहायता कैसे कर सकता हूँ..." हमीद ने कहा ।

"आज रात में उसने मुझे नीलम हाउस में बुलाया है—मगर ग्यारह् बजे रात में..." उसी समय काउन्टर क्लर्क की आवाज सुनाई पड़ी। वह माइक में बोल रहा था ।

"कैप्टन हमीद- प्लीज योर काल।"

"अभी आया..." हमीद ने फिरोजा से कहा और उठकर झपटता हुआ काउन्टर पर पहुँचा— रिसीवर कान से लगाया तो दूसरी ओर से कासिम की आवाज सुनाई पड़ी।

"काउन है-।"

"तुम्हारा बाप- -" हमीद ने माउथ पीस में कहा

"अगे बाप गे—यह किया हो गया।"

इसके बाद आवाज नहीं आई। हमीद ने दो तीन बार "हलो-हलो" कहा मगर जब दूसरी और से आवाज नहीं आई तो वह सोचने लगा कि आखिर कासिम को यह कैसे मालूम हुआ कि वह इस समय आर्लेक्वनू में है---और फिर यदि किसी प्रकार मालूम भी हो गया तो इस समय उसे फोन करने की क्या अवश्यकता हुई? उस ने क्रेडल पर रिसीवर रखकर अपनी ओर से कनेक्ट किया और फिर उनके घर के नम्बर डायल करने के लिये क्रेडिल से रिसीवर उठाने ही जा रहा था कि घन्टी बज उठी और उसने जल्दी से रिसीवर उठाकर माउथ पीस में कहा।

'हेलो-!"

"जरा हमीद भाई—" दूसरी ओर से कासिम ही की आवाज आई मगर शायद उसे खाँसी आ गई थी इसलिये वह आगे कुछ नहीं कह सका था।

"मैं हमीद ही बोल रहा हूँ..." हमीद ने गम्भीरता के साथ कहा "क्या बात है कासिम?"

"बात सात कुछ नहीं है बस तुम आ जाओ..."

"अबे तेरा दिमाग खराब हुआ है क्या..." हमीद ने भल्ला कर कहा । "अबे-खुद तुम्हारा दिमाग खराब है- हाँ नाहीं तो जब देखा।" एक क्षण के लिये आवाज बन्द हो गई और फिर उसने जो कुछ कहा उससे यही साबित हुआ था कि किसी ने समझाया है। अब कह रहा रहा था "माफ करना हमीद भाई। मैं यह बताना तो भूल ही गया था कि तुमको कहां आना है सुना पियारे भाई | रेक्सन स्ट्रीट के चोथे मकान में आ जाओ"

हमीद के कान खड़े हो गये। उसे विश्वास हो गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है वर्ना भला कासिम का रेक्सन स्ट्रीट के किसी मकान में मौजूद रहना क्या अर्थ रख सकता है-फिर भी उसने कोमल स्वर में कहा।

"बात क्या है कासिम क्यों आ जाऊँ?"

"आ जाओ तब बताऊँगा बड़ा मजा आयेगा हमीद भाई ...कियू - अब तो ठीक है ना?"

हमीद समझ गया कि अन्तिम वाक्य किसी दूसरे को सम्बोधित करके कहा गया था ।

उसने रीसीवर रख दिया—कुछ क्षण तक सोचता रहा, फिर अपनी मेज पर आकर फिरोजा से पूछा।

"तो तुम उस आदमी से मिलने ग्यारह बजे रात में नीलम हाउस जाओगी।

"जाना ही पड़ेगा— अगर नहीं जाऊँगी तो वह मुझे मौत के मुँह में झोंक देगा- ऐसी मोत जिसमें आदमी जिन्दा रहने के बाद भी मुर्दों से बदतर हो जाता है-" फिराजा ने रखकर कहा।

"ठीक है भी तुम्हारे साथ रहूँगा-" हमीद ने कहा ।

"तो फिर बोलिये अभी तो नौ बजे हैं। साढ़े दस बजे यहाँ से उठा जायेगा।" "नहीं-मैं इस समय एक आवश्यक काम से जा रहा हूँ और ठीक साढ़े ग्यारह बजे नीलम हाउस पहुँच जाऊँगा मगर तुम से मिलूंगा नही बल्कि छूप कर तुम दोनों की बातें सुनूगा और उन्हीं बातों से अनुमान लगाऊंगा कि वह आदमी कौन है-"बात समाप्त कर के वह पलटा ओर तेजी से सदर दरवाजे की ओर बढ़ गया।

*******

रेक्सन स्ट्रीट की चार नम्बर वाली कोठी  अंधेरे में लिप्टी हुई थी । कम्पाउन्ड में अन्धेरा था और कम्पाउन्ड का फाटक भी खुला हुआ था, मगर इमारत के अन्दर प्रकाश हो रहा था ।

एक कमरे में रोमा सोफे पर बैठी हुई थी। कासिम उसके समाने बैठा था और बार बार रोमा की ओर विचित्र नजरो से देखने लगता था । अचानक रोमा ने कहा ।

"तुम गधे हो ! तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया- "

"ही ही ही आपकी इनायत है वर्ना में किस लायख हूँ-" कासिम ने शर्माते  हुये कहा। फिर अचानक उसे ख्याल आ गया कि रोमा ने उसे “गधा” कहा था- फिर क्या था— नयने फुला कर बोला, "किया कहा—?"

"तुम फोन पर मुझसे क्यों बातें करने लगे थे- "

रोमा ने आंखें तरेर कर कहा "वह अवश्य समझ गया होगा कि तुम खुद उसे नहीं बुला रहे हो। बल्कि किसी के कहने पर बुला रहे हो-" कासिम रोमा के साथ जब से आया था तभी से उसे एक प्रकार की उलझन सी होने लगी थी। आरम्भ में  उसे रोमा बहुत अच्छी लगी थी और वह यह सोचकर हर्षित भीं था कि आज की रात भी शान्दार कटने वाली है- -मगर कुछ ही देर बाद उसकी खुशी समाप्त हो गई थी इसलिये कि रेक्सन स्ट्रीट की चौथी इमारत में उसके पहुँचने के बाद ही तीन आदमी और आये थे। और वह सोचने लगा का कि अब रोमा से एकान्त में बातें करने का उसे अवसर नहीं मिल सकेगा— मगर कुछ ही क्षण बाद जब वह आने वाले तीनों आदमी उठ कर कहीं चले गये थे तो वह फिर हर्षित हो उठा था।  उसने रोमा से महूबत की बातें आरम्भ कर दी थीं— मगर उस महूबत की बातों के उत्तर में रोमा का शान्दार और भरपूर थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा था। दूसरी दशा में कासिम उस थपड़ से आनन्दित हुआ होता मगर उस थप्पड़ से तो उसे चोट लगी थी। ऐसी चोट कि उसे काफी देर तक अपना गाल सहलाना पड़ा था और फिर कासिम इतना मुर्ख भी नहीं था कि मुहब्बत की धूल धप और क्रोध के थप्पड़ में अन्तर न महसूस करता — उसके नथने फूलने पंचकने लये थे। वह कुछ कहने और करने ही वाला था कि रोमा ने प्रेम पूर्ण बातों से उसे फिर बहला फुसला लिया था— फिर जब उसने देखा था कि कासिम फिर अपने पहले वाले मूड मे आ गया है तो उसने हमीद की बातें आरम्भ कर दीं। आरम्भ कासिम भी हमीद के बारे में उससे बातें करता रहा था मगर जब उसने यह देखा कि रोमा न केवल हमीद ही के बारे में बातें कर रही है बल्कि उसे यहां बुलाने की जिद भी कर रही है तो वह फिर हत्थे से उखड़ गया था और झल्ला कर कहा था।