Chirag ka Zahar - 13 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 13

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चिराग का ज़हर - 13

(13)

"नाहीं— मैं उसे फोन नाहीं करूंगा वह माला यहां आयेगी ही हमेशा की तरह यहां भी घपला कर देगा।" "इसी की सजा तो मैं हमीद को देना चाहती हूँ–" रोमा ने कहा था। "मैं उससे यही तो पूछूंगी कि तुम डियर कासिम के मामलों में क्यों घपला करते रहते हो उसे फोन करके बुलाओ।"

मगर जब कासिम किसी प्रकार फोन करने पर तैयार नहीं हुआ तो वही तीनों फिर कमरे में आ गये थे जो पहले आये थे—मगर इस बार उन तीनों के हाथों में रिवाल्वर थे और तीनों की नालें उसी की ओर उठी हुई थीं— उन तीनों के रंग भी अच्छे नजर नहीं आ रहे थे इसलिये कासिम ने यही उचित समझा था कि हमीद को फोन मगर अब उसका मूड बिल्कुल ही खराब हो गया था। उसने उठते हुये कहा। "अब मैं जाऊँगा देखता हूँ काउन साला मुझे रोकता है ।"

"अरे अरे" रोमा ने उठकर उसका हाथ पकड़ते हुये कहा, "यह क्या प्यारे कासिम खड़े क्यों हो गये, बैठो।"

"अमे मियाओ" कासिम ने अपना हाथ छुडाते हुये कहा "ठेगे पर गई तुम। इत्ती देर से पियारे पियारे कर रही हो मगर कुश होता नाहीं ।"

"क्या होना चाहिये-बताओ।"

"अरे वही—पियार और महूबत की बातें..." कासिम ने कहा। और फिर लजा कर दांतों तले अंगुली दबा ली। इतने में वही तीनों फिर आ गये जो कासिम के फोन करने के बाद कमरे से निकल गये थे।

"खाने मनहूस फिर आ गये- " कासिम ने कहा। उनमें जो देशी था उसने कासिम को घूरा मगर कुछ बोला नहीं । शेष दोनों विदेशियों में से एक कह रहा था ।

"सब गड़बड़ हो गया-"

"क्यों क्या हुआ?” रोमा ने घबड़ा कर पूछा ।

"तुमने फोन के बाद मुझे इसलिये आर्लेक्चनू भेजा था कि मैं वहीं से हमीद के पीछे लगा हुआ यहाँ तक आऊँ मगर हमीद आलेक्चनू से उठ सीधा अपने घर गया था। उसके प्रन्द्रह मिनिट बाद विनोद भी कहीं

बाहर से घर आया था। फिर दोनों एक ही गाड़ी पर बैठकर कोतवाली गये थे। मैं उन्हें कोतवाली में छोड़कर आ रहा हूँ।"

"ओह रोमा ने ठण्डो सांस खीचकर कहा, कुछ क्षण तक सोता रही फिर तीनों के बाहर जाने का संकेत करती हुई कासिम के कन्धे पर हाथ रखकर वह प्यार से बोली।

"तुम बैठे रहो डियर! मैं अभी आता हूँ ...'

फिर बाहर निकल कर उसने अपने सदियों से कहा। "हम लोगों को यह इमारत इसी समय छोड़ देनी चाहिये।"

"अर्थात यह प्लान फेल" एक विदेशी ने कहा ।

"किसी अभियान की सफलता तक पहुँचने के लिये सैकड़ों प्लान बनते हैं और फेल हो जाते हैं इसलिए इस प्लान के फेल हो जाने पर हमें दु:खी होने और चिन्ता करने की आवश्यक नहीं..." रोमा ने कहा ।

"उस मोटे का क्या होगा ?"

"घबड़ा कर खुद ही चला जायेगा या...फिर हमीद या विनोद उसे यहां से ले जायेंगे ।"

"मगर मोटे ने तुम्हें पहचान लिया है" देशी ने कहा'।

"पहचानने के लिये तो हमीद भी मुझे पहचान गया है- " रोमा ने बड़ी लापरवाही से कहा "बस यह अच्छा है कि तुम तीनों मेकअप में हो--- आओ चलें।

चारों इमारत से बाहर निकल कर कासिम की गाडी पर बैठ गये और फिर उसे स्टार्ट करके चल दिये । चौराहे के निकट पहुँच कर उन्होंने गाड़ी एक ओर के फुटपाथ से लगा कर खड़ी कर दी और उतर कर एक टैक्सी मे बैठ गये और एक ओर चल दिये।

*****

इधर कासिम ऊँघने लगा था। उसे इसका पता नहीं चल सका कि हमीद कब कमरे में दाखिल हुआ चौंका तो उस समय जब हमीद ने उसके कन्धे पर हाथ रख कर उसे आवाज दी ।

"कासिम !"

"किया है—?" कासिम गला फाड़कर चिल्लाता हुआ खड़ा हो गया।

"यहाँ कैसे ?" हमीद ने पूछा।

"मैं पूछता हूँ कि तूने यहां काहे..." कासिम ने कहा फिर झल्लाकर बोला “जहाँ देखो मरने चले आते हैं-नाम लिया और साली मुसिबत आई - यह मेरा कम्बख्ती है कि मुँह से साला तुम्हारा नाम निकल बाता है. "मैं कहता हूँ कि तुमने मुझे बुलाया क्यों था ?" हमीद ने क्रोध दबाते हुये पूछा ।

'मैंने नाहीं बुलाया था।"

"अबे लमढग... वह टेलीफोन ?"

"तुम खुद लमढग... बल्कि तुम्हारा बाप भी लमढग---हाँ नाहीं तो---जरा जबान संभाल कर---समझे ?"

"चलो यही सही--- मगर वह फोन...?"

"अबे तो जिसने बुलाया था उससे पूछो-"

"किसने बुलाया था?" हमीद ने दिमाग ठण्डा रखने की कोशिश करते हुये कहा,

"वहा कट्टो बेगम और काउन" कासिम ने जल्ला कर कहा "साली वाले पत्थर बेगम है----थप्पड मारती है। अल्ला करे साली के हाथ टुट जायें।"

"कहां है वह?"

"बाहर कहीं होगी। उसके साथ वह तीनों साले मनहूस भी हैं।" हमोद ने सोचा कि अब इस मोटे से बहस कौन करे... क्यों न कोठी की तलाशी ली जाये। इसलिये वह उस कमरे से बाहर निकल आया और एक एक कमरा देखने लगा। वह रिहायशी कोठी थी और यहां जिदगी की जरूरतों का हर सामान नजर आ रहा था। उसने पूरी कोठी छान मारी, मगर उसे कोई नजर नहीं आया। न वह कट्टो बेगम दिखाई दी और न तीनों साले वह मनहूस। पूरा कोठी वीरान पड़ी हुई थी।

कोठी के चारो तरफ पुलिस के जवान बहुत चौकन्ने नजर आ रहे थे।

कासिम का टेलीफोन रिसीव करने के बाद हमीद उसके अन्तिम वाक्य  "अब ठीख है ना" पर चौंक पड़ा था और उसे पूरा विश्वास हो गया था कि कासिम अनजाने में किसी चक्कर में फँस गया है उसे यह बात कैसे मालूम होती कि वह आर्लेक्चनू में है? किसी ने उसे आर्लेक्चनू का पता बता कर जबरदस्ती उससे फोन कराया है—अपने इसी विचार के अन्तर्गत वह रेक्सन स्ट्रीट पर पहुँचने के बजाय सीधे घर गया था, ताकि विनोद को पूरी बात बता कर उससे परामर्श ले — मगर संयोग से उस समय विनोद घर पर नहीं था- विनोद से परामर्श लेना इसलिये आवश्यक था कि रेक्सन स्ट्रीट की चार नम्बर वाली इमारत उसके लिये अपरिचित नहीं थीं ! उसमें एक देश के दूतावास का एक जिम्मेदार आफिसर रहता था और उसी आफिसर के सम्बन्ध में छानबीन करते हुये विनोद ने लन्दन और न्यू यार्क की यात्रा की थी।

जब विनोद घर पर नहीं मिला था तो उसने आफिस फोन किया था। इस समय विनोद के आफिस में रहने का कोई प्रश्न ही नहीं था- मगर आफिस से जो उत्तर मिला था वह आश्चर्य जनक ही था। उत्तर में केवल एक टेलीफोन नम्बर बताते हुये कहा गया था कि कर्नल विनोद उस नम्बर पर मिल जायेंगे और जब हमीद ने वह नम्बर रिंग किया था तो सचमुच विनोद से मुलाकात हो गई थी और उसने विनोद से केवल इतना ही कहा था कि जितनी जल्द हो सके घर पहुँच जाइये। एक गम्भीर मामला सामने आ गया है।

इसके दस ही बारह मिनिट बाद विनोद अपने कोठी पर पहुँच गया था--और हमीद से पूरी रिपोर्ट सुन कर कहा था।

“आओ—पहले कोतवाली चलते हैं । उसके बाद तुम रेक्सन स्ट्रीट, वाली इमारत से हो कर नीलम हाउस चले जाना नीलम हाउस जाने का तो तुम्हारा प्रोग्राम है ही।"

“देखा जायेगा – मगर आप ?" हमीद ने पूछा था ।

"कब तक अंगुलियां पकड़ कर चलते रहोगे – जो कुछ करना है अकेले करो । मैं कोतवाली से तुम्हारे साथ रेक्सन स्ट्रीट तक अवश्य चलूँगा- मगर तुम्हें वहाँ उतार कर अपना रास्ता लूंगा-।

"इसका अर्थ यह हुआ कि मैं अपनी मोटर सायकिल ले लू ?" हमीद ने पूछा था।

"यहाँ से मेरी गाड़ी पर कोतवाली चलो---वहां से मैं तुम्हें मोटर सायकिल दिलवा दूंगा।"

इन बातों के बाद दोनों विनोद की गाडी पर कोतवाली पहुँचे और फिर वहाँ से हमीद मोटर सायकिल से और विनोद अपनी गाड़ी से रेक्सन स्ट्रीट की इमारत नम्बर चार तक आये थे। विनोद सचमुच उसे छोड़ कर चला गया था और हमीद कम्पाउन्ड के फाटक के बाहर ही मोटर सायकिल खड़ी करके कम्पाउन्ड में दाखिल हो गया था और फिर उस कमरे में पहुँचा था जिसमें कासिम मौजूद था ।

और अब उसी हमीद की खोपड़ी कलावाजी खा रही थी ।

दूतावास के उस आफिसर का नाम रेमन्ड था। कोठी की तलाशी लेने के बाद उसे इसका अनुमान तो हो गया था कि वह इमारत में अकेला रहता है—मगर नौकर चाकर तो होने ही चाहिये थे और कोठी में कोई भी नजर नहीं आया था— आखिर नौकर कहाँ गये।

और फिर अचानक उसे याद आया कि उस आफिसर की अनुपस्थिति बिना तलाशी के वारन्ट के उसका इस प्रकार इमारत में घूमना फिरना जानबूझ कर मुसीबतों को दावत देना है... उस आफिसर की साधारण रिपोर्ट भी इस सीमा तक भयानक हो सकती थी कि उसकी नौकरी पर बन जाती। अतः वह झपटता हुआ फिर उसी कमरे की ओर बढ़ा जिसमें कासिम को छोड़ कर गया था । कासिम अभी उसी प्रकार खड़ा आँखें फाड़ कर दीवारों और छत को देख रहा था।

"चलो डफर कहीं के- -" हमीद ने झल्ला कर कहा और उसका हाथ पकड़ कर घसीटते हुये बोला "तुम्हारी वजह से हमेशा कोई न कोई मुसीबत ही आती है।"

कासिम इस सीमा तक उक्ताहट का शिकार हो चुका था कि हमीद इस प्रकार घसीटने पर उसने कोई आपत्ति नहीं की—मगर जब कम्पाउन्ड में उसे अपनी कार नजर नहीं आई तो उसने बाकायदा दोनों हाथों से अपनी जाँधें पीट पीट कर चिल्लाना आरम्भ कर दिया।

"होश में आ जाओगे प्यारे" हमीद ने कहा ।

"अमे जियाओ - किया मैं कोई लड़की हूँ तुम खुद पियारे"

"मैं यह कह रहा हूँ कि तुम्हारी गाड़ी बाहर खड़ी है-" हमीद ने कहा।

"बेकूफ बनाते हो मैंने यहां खड़ी की थी तो फिर बाहर कहाँ से पहुँच गई ?"

"यह तो मैं नहीं जानता... बाहर चलकर खुद ही देख लो -" हमीद ने कहा।

"चलो " कासिम ने कहा और लुढ़कता हुआ फाटक की ओर चढ़ा।

कार बाहर तो थी नहीं कि कासिम को दिखाई देती । हमीद ने तो उसे जल्द से जल्द कम्पाउन्ड से बाहर निकालने के लिये यह झूठ बोला था।

"कहाँ है मेरी कार ?" कासिम इधर उधर देखता हुआ चिंघाड़ा ।

"अभी तलाश करता हूँ।" हमीद ने कहा, "अबे ऐ झूठे की ओलाद !" कासिम ने आँखें निकाल कर कहा "तुमने कहा था कि बाहर खड़ी है-"

"जब कहा था तो थी अब नहीं है तो मैं क्या करू" हमीद ने कहा।

'तो फिर में कोठी में जाता हूँ..." कासिम ने कहा । "क्या वह सुई है जो तुम उसे कोठी में तलाश करोगे?" हमीद ने आंखें निकाल कर कहा “सुई ही है किसी कमरे में खड़ी होगी" कासिम ने कहा।

“बेवकूफी न करो कासिम " हमीद ने कहा, "में सिपाहीयों से कह देता हूँ वह तुम्हारी गाडी तलाश कर देंगे। बस जल्द से जल्द यहाँ से छूट निकलो... हम लोग खतरे में है प्यारे।"

"खतरे की तो ऐसी की तैसी मेरी कार-"

"तुम्हारी कार वह कट्टो बेगम और थप्पड़ जान लेकर चम्पत हो गई ।"

"मार डालूगा साली को।" कासिम ने हवा में घुसा लहराया ।

"क्या नाम था उसका !" हमीद ने पूछा। "नाम तो साली का बड़ा वाहियात था गोमा-"

यह नाम बिजली के समान हमीद के दिमाग में लहराया। उसने संशोधन करते हुये कहा।

"गोमा नहीं- रोमा―"

"होगा खाला कुण—तुम्हारी तो हर जगह जासूसी निकल आती है।"

पुलिस के जवान जो उसे देखकर इकत्रित हो गये थे, उन्हें हमीद ने विदा किया फिर कासिम से बोला ।

"उसके साथ जो तीन आदमी थे उनके क्या नाम हैं !"

"मैं किसी साले का नाम नाहीं जानता ।"

"तीनों विदेशी थे..!"

"दो थे— एक साला देशी था मगर वह भी अंग्रेजी की दुम बद रहा था।"

दूसरे ही क्षण दोनों एक कार की हेड लाइट्स में नहा गये और फिर वह जाने वाली कार उनको बगल से होती हुई कोठी के कम्पाउन्ड में दाखिल हो गई। हमीद ने इतना तो देख लिया था कि कार की ड्राइविंग सीट पर एक विदेशी बैठा हुआ था और उसकी बगल में एक दूसरा आदमी बैठा था। पिछली सीट पर एक औरत थी और एक मर्द था-मगर चारों में से किसी का भी चेहरा साफ नहीं दिखाई दिया था। उसने कासिम से पूछा।

"कार में बैठे हुये लोगों में से किसी को तुमने पहचाना?"

"किस को..." कासिम ने कहा “काउन सी कार..?"

हमीद ने सोचा कि अब कासिम से कुछ पूछना ही बेकार है इस लिये उसने मोटर सायकिल के केरियर की ओर संकेत करते हुये कहा।

"चलो बैठो-।"

कासिम के बैठने के बाद हमीद ने मोटर सायकिल का इन्जिन स्टार्ट ही करना चाहा था कि कम्पाउन्ड में एक आवाज उभरी । कोई कह रहा था ।