Aakhiri Mazil - 1 in Hindi Short Stories by Suresh Chaudhary books and stories PDF | आखरी मंजिल - भाग 1

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आखरी मंजिल - भाग 1

बस से उतर कर बाहर रिक्शे स्टैंड तक का सफर ऐसा लगा, जैसे एक हजार मीटर पैदल चलकर आया।
,, भाई यहां कोई वृद्ध आश्रम है क्या,,। एक बुजुर्ग रिक्शे वाले से पूछा।
,, जी एक नही, दस ऐसे आश्रम है यहां, लेकीन सभी मे रहने के लिए कुछ न कुछ काम जरूर करना पड़ता है, अब आप बताईए कौन से आश्रम में ले कर चलूं,,। बुजुर्ग रिक्शे वाले ने कहा
,, भाई जो भी आश्रम सबसे ठीक हो,,।
,, ठीक है बैठिए, दस रूपये लगेंगे,,। यह सुन कर मैंने रिक्शे में बैठने का प्रयास किया, लेकीन रिक्शे में चढ़ नही पाया, ऐसा लगा जैसे अभी गिर जाऊंगा। मेरी हालत देख कर रिक्शे वाले ने मेरी मदद की और मैं रिक्शे की सक्त सीट पर बैठ गया।
,, कहां से आए हो बाबू जी,,,। रिक्शे वाले ने पहला पैडल मारने के साथ साथ बोलना शुरू किया। लेकीन बहु के शब्द मेरे कानों में गूंजने लगे,, दीपक तुम तो जानते हो कि हमारा फ्लैट बहुत ही छोटा है, इसमें या तो तुम्हारे पिता जी रहेंगे या फिर हम, मैं अब और सहन नहीं कर सकती,,।
,, अरे धीरे बोलो सुमन, पिता जी सुन लेंगे,,।
,, सुन लेंगे तो क्या पहाड़ टूट पड़ेगा या आसमान और वैसे भी मैं जो कुछ भी कह रही हूं उन्हें सुनाने के लिए ही तो कह रही हूं, अगर मर जाते तो हमारा पीछा छूट जाता,,।
,, सुमन तुम तो जानती हो कि यह फ्लैट भी हमने पापा का पुश्तैनी मकान बैच कर ही लिया था,,।
,, तो कौनसा अहसान कर दिया, अरे तुम्हारे पिता जी क्या उस मकान को छाती पर रख कर ले जाते, अपनी औलाद के लिए सब करते हैं इन्होंने कोई अनोखा काम नहीं कर दीया,,,।
,, सुमन धीरे धीरे बोलो, मैं एक दो दिन में कोई बहाना बनाकर पिता जी को किसी वृद्ध आश्रम में छोड़ आऊंगा,,। मेरा दिल चित्कार उठा और मैं आज सुबह ही चार बजे उठ कर थैले में दो जोड़ी कपड़े ले कर चल दिया।
,, लो, बाबू जी आश्रम आ गया,,। जेब में से दस रूपये निकाल कर रिक्शे वाले को दिए, रिक्शे वाले ने ही सहारा दे कर रिक्शे से उतारा।
थके हुए कदमों से धीरे धीरे आश्रम में प्रवेश किया।

,, मैनेजर साहब का ऑफिस,,। आश्रम के एक वर्कर से आधे अधूरे शब्दों में पूछा।
,, यह दाएं है,,। मैं धीरे धीरे ऑफिस तक
,, मुझे मैनेजर साहब से मिलना है,,। एक चेयर पर बैठे वयो वृद्ध से पूछा
,, आओ बड़े भाई बैठो,,। उन्होंने आदर से कहा। मैं उनके सामने वाली चेयर पर बैठे गया।
,, आप घूमने के लिए तो आए नही, मैं समझ गया कि आप भी हजारों की तरह अपनों के ठुकराए हुए हो,,।
,, जी नहीं मै अपनो को ठुकरा कर आया हूं,,। खुद को अंदर से सक्त करते हुए कहा मैंने।
,, बात एक ही है,, खैर इस वृद्ध आश्रम में दो तरह से रह सकते हैं, एक तो आश्रम में प्रति माह कुछ नॉमिनल पैसे दे कर या फिर आश्रम में ही कोई काम करके, अब आप शायद कुछ कहना चाहेंगे,,।
,, मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, और रही काम की, तो मैं जिस लायक हूं तैयार हूं,,,,।
,, आओ आपको आपका रूम दिखा दूं,,। और मैं यह सोच कर मैनेजर के साथ साथ हो लिया, जीने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।