Sabaa - 32 in Hindi Philosophy by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सबा - 32

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सबा - 32

राजा लौट आया।
विदेश से लौटने के बाद उसने अपने मैनेजर साहब से कुछ दिन गांव में ही रहने की अनुमति मांगी। ऐसी अनुमति न मिलने का कोई कारण नहीं था।
लेकिन अब राजा वो न रहा था जो अपने गांव में रहने के दिनों में था। उसके मानस रंध्र खुल गए थे। उसके सोच के गलियारों के पलस्तर उखड़ गए थे।
वह जब भी सुबह - शाम यार दोस्तों के संग घूमने- फिरने के ख्याल से घर से निकलता तो ढेरों मंसूबे बांधता हुआ निकलता, दोस्तों को ये बताएगा, वो बताएगा, लेकिन उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह जाते। वह वैसा का वैसा भरा हुआ लौट आता। क्या बताए, किसे बताए?
केवल वहां से लाए छोटे - मोटे उपहार बांटने तक ही उसकी यात्रा का असर रहा। हां, उसके हाथ में धन की अच्छी आमद दोस्तों में कौतूहल ज़रूर पैदा करती थी।
राजा को ये होशियारी भी आ गई थी कि बंद मुट्ठी लाख की होती है और खुल गई तो ख़ाक की!
लेकिन जल्दी ही उसके सिर पर एक इम्तहान का बोझ आ पड़ा। नंदिनी के पिता ने उसके घरवालों से संपर्क साध कर अब जल्दी ही उन दोनों की शादी की तारीख निकालने के लिए दबाव बनाया।
राजा की सबसे बड़ी मुसीबत तो ये थी कि जिस महानगर में उसकी नौकरी थी, उसी में नंदिनी रहती थी, उसी में बिजली भी रहती थी।
राजा अच्छी तरह जानता था कि एक बार शादी हो जाने के बाद वह आसानी से नंदिनी को अपने गांव में लाकर घर वालों के पास नहीं छोड़ सकेगा। उसे किसी न किसी तरह नंदिनी को अपने साथ ही रखना पड़ेगा।
और नंदिनी के साथ रहते हुए वो अपने वचन को किस तरह निभाएगा इसकी कोई तैयारी उसने अब तक नहीं की थी।
सबसे पहले तो राजा को ये जानना था कि नंदिनी से होने वाले उसके नकली विवाह की असलियत कौन- कौन जानता था। क्या खुद नंदिनी को इस बारे में कुछ बताया गया था कि जिस लड़के से उसकी शादी बचपन में तय की गई थी उसने शादी से इंकार कर दिया है! और राजा वो लड़का नहीं, बल्कि उसी लड़के की ओर से रचे गए षड्यंत्र का एक दूसरा मोहरा है।
मन में ऐसा ख्याल आते ही राजा को कीर्तिमान की स्थिति पर अजीब सी दया आ गई। कीर्तिमान उसे किसी भी दृष्टि से षड्यंत्रकारी नज़र नहीं आता था।
लेकिन अजीब सी दया क्या होती है? राजा खुद अचंभित था और ये सोच नहीं पाता था कि कीर्तिमान नंदिनी के घरवालों के साथ कोई फरेब कर रहा है या फिर खुद कुदरत ने कीर्तिमान के साथ मज़ाक किया है। कीर्तिमान अपने जीवन की एक अहम समस्या को सुलझाने की दिशा में बढ़ रहा था या फिर उसे और उलझा कर खुद भी उसकी लपेट में आ जाने की गलती कर रहा था।
यदि ये कोई गलती भी हो तो कीर्तिमान तो परदेस में बैठा है इस आग की तपिश तो राजा पर ही आयेगी। ये ठीक है कि राजा को इसके मुआवजे के तौर पर भारी रकम मिली है। परंतु क्या एक सीधे- सादे युवा लड़के की तमाम जिंदगी का मोल ये रुपए ही बन जायेंगे? क्या उसका मन, उसकी इच्छाएं, उसकी उमंगें कोई अर्थ नहीं रखते?
रात को सोने के लिए राजा अकेला अपने घर की संकरी सी खुरदरी छत पर दरी बिछाकर लेटा तो उसके दिल में कुछ हलचल सी हुई। उसकी आंखों के सामने किसी फिल्मी पर्दे की तरह उस रात की तमाम हलचलें तैरने लगीं जब कीर्तिमान उसे हेलेना में लेकर गया था।
क्या दुनिया थी?
क्या ये कोई अय्याशी थी? या फिर लाचारी थी?
वहां का शानदार पांच सितारा माहौल इस तरह जगमगा रहा था मानो किसी स्वर्ग में अप्सराओं के बीच कीर्तिमान उसे लेकर आ गया हो।
चाहे राजा लड़कियों के लिबास में, लड़कियों की सी साज- सज्जा में वहां था, पर आख़िर था तो लड़का। सुंदर स्वस्थ युवा चढ़ती उम्र का एक नवयुवक।
क्या सोना और क्या जागना! एक- एक चीज़ राजा की आखों के सामने थिरक रही थी।
लेकिन... वहां एक अजीब सी उदासी जो पसरी हुई थी उसका सबब राजा को आज भी बेचैन किए हुए था।
क्या बिना भंवरों के गुंजन के खिलते फूलों की क्यारियों में कोई महक बसती है? वो जहां मुकम्मल सा क्यों नज़र नहीं आता था... क्या कमी थी!
उनींदा सा राजा यादों में डूब उतरा रहा था।