Shakunpankhi - 39 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 39 - जीतेंगे हम

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शाकुनपाॅंखी - 39 - जीतेंगे हम

58. जीतेंगे हम

'जीतेंगे हम', रावत पाथे ने माथे का पसीना पोंछा 'नील कंठ महादेव की कृपा होगी तो निश्चय ही हमारी जीत होगी।' एक शबर नायक ने अपना धनुष टंकारा । वदवारी विषय का ककरादह। रावत पाथे ने चन्देल ध्वज फहरा दिया है। पर सैन्य व्यूह रचना एक दम भिन्न । सैनिक दिखते ही नहीं। इधर-उधर बिखरे हुए, जो दिखते हैं वे भी आमने-सामने युद्ध की अपेक्षा दाँव देकर छकाने की मनःस्थिति में युद्ध की रणनीति बदल जाएगी, ऐसा कोई सोचता नहीं था। शबर, भोजक, पुलिन्द भी साथ आ गए हैं चंदेलों के कवचधारी सैनिक नहीं हैं ये, पर तीव्रता और कलात्मकता में किसी से पीछे नहीं। 'ओम नमः शिवाय का उद्घोष। 'चंदेल सेना आगे बढ़ी। तुर्क सैनिक भी 'अल्लाहो अकबर' की गर्जना कर उठे। हजब बरुद्दीन हसन अर्नाल को कुतुबद्दीन ने कालिंजर, महोबा, खुजराहो का प्रभारी बनाया था। क्या वह कालिंजर को अपने अधिकार में रख सकेंगे? तुर्क सैन्य नायक चकित हैं। चन्देल जो युद्ध को खेल समझते थे। आज रणनीतिक कौशल से युक्त । तीर आ रहे हैं पर तीरन्दाज़ दिखते नहीं । बिल्कुल नई नीति । तुर्क सेना पर तीरों की मार यह क्या हो गया इन सैनिकों को ? सामने आने से कतराते हैं। तुर्क सैनिक आगे बढ़कर ललकारने लगे। चन्देल सैनिक अपनी रणनीति के अनुरूप लुका छिपी का खेल खेल रहे हैं। अजयदेव की ललकार का असर हुआ । त्रैलोक्य की सुरक्षा में सैनिकों का दल पृष्ठिका में युद्ध गति पकड़ गया। अश्वारोही तीरों की बौछार करने लगे। कोई सांग से वार कर रहा है तो कोई सिरोही से किसी का सिर भुट्टा सा उड़ा रहा है। दो प्रहर बीत चुके हैं। चन्देल, शबर, भोजक, पुलिन्द अपना दबाव बढ़ा रहे हैं। तुर्क सैनिकों में खलबली मच गई। वे कभी असफल होंगे, यह विचार ही नहीं आया था। पर ककरादह क्या उन्हें नया पाठ पढ़ाएगा? शाम होते होते तुर्क सेना पस्त हो चुकी । लाशों के अम्बार लग गए। तुर्क सेना में भगदड़ मची। रावत पाथे आगे बढ़े। तुर्क नायक भी सामने आ गया। रावत पाथे और तुर्क नायक एक दूसरे पर वार करने लगे। दोनों एक दूसरे को छका रहे थे। युद्ध कौशल की परीक्षा । फुर्ती, शक्ति और कुशलता का सामंजस्य । दोनों एक दूसरे पर वार करते और बचाते । उन्माद की स्थिति । तीरों को छोड़कर अब सांग ले लिया। रावत की सांग तुर्क नायक के पेट में बैठ गई, पर उसका वार भी रावत न बचा सके। उसका कुन्त रावत का गला बेध गया। दोनों गिरे और स्वर्ग सिधार गए। त्रैलोक्य ने रावत को गिरते देखा। वे शबरों के साथ आगे बढ़े। रावत का शव उठाकर शिविर में भेज दिया। बचे तुर्क सैनिक भागने लगे। जो सामने पड़े, वे मौत के घाट उतार दिए गए। त्रैलोक्य के नगाड़े बज उठे। शाम हुई। 'हर हर महादेव' की ध्वनि से आकाश गूँजा । 'मनियादेव की जय ।" चंद्रिका देवी की जय', जिधर देखिए उधर ही जय जयकार । चन्देल सैनिक नाच उठे। तुर्कों के शिविर उखड़ गए। चन्देल सेना कालिंजर की ओर उन्मुख । जब तक कालिंजर पर शंख नहीं बजते, अभियान अधूरा ही रहेगा। सेना हुंकारती चल पड़ी, 'हर हर महादेव' कालिंजर आज सुसज्जित किया गया है। जिसे देखिए वही 'ओउम् नमः शिवाय' का उच्चारण कर रहा है। महाराज त्रैलोक्य और राजमाता मृणालदे नील कंठ की आराधना कर रहे हैं। राजमाता की लटों में सफेदी झलक रही है। शुभ्र वसना राजमाता नील कंठ की अर्चना करते रो पड़ीं। त्रैलोक्य माँ को देखते रहे। रुद्र का अभिषेक कर राजमाता ने परिक्रमा की। वे सामने आकर बैठ गईं। 'हे देवों के देव, किस अपराध का दण्ड मिल रहा है हमें? आप सर्वज्ञ हैं। सृष्टि नियामक हैं। देखते हैं न? शंखों की ध्वनि का बन्द होना भी देखा होगा। अब तो कुछ करो शूलधर । बेटे ने विजय अवश्य पाई है पर बिना आपकी कृपा के 'सदाशिव' आप ही नहीं देखेंगे तो......।' राजमाता की आँखों से अश्रु टप टप गिरे। मंदिर के बाहर लोग 'महाराज की जय', 'राजमाता की जय' का उद्घोष करते रहे। महाराज त्रैलोक्य और राजमाता मृणालदे ने भूमिष्ठ हो आशीष माँगा। दोनों उठे और राजप्रसाद की ओर चल पड़े। पीछे पीछे सेवक एवं कर्मकर। कालिंजर में अतीव उत्साह । महामात्य अजयदेव आ चुके हैं। महाराज और राजमाता ने आकर आसन ग्रहण किया। सभी ने खड़े होकर महाराज और राजामाता का स्वागत किया, सेविकाओं ने पुष्पवर्षा की। कुल पुरोहित खड़े होकर मंगल पाठ करने लगे। समाप्ति पर महामात्य खड़े हुए। महाराज एवं राजमाता का अभिनन्दन करते हुए उन्होंने कहना शुरू किया, 'ककरादह युद्ध में नीलकंठ की अनुकम्पा और हमारे सैनिकों की रणनीतिक कुशलता से विजय मिली। तुर्क सेना के बचे लोग इस युद्ध को याद रखेंगे। जो अपनी पराजय की कल्पना नहीं करते थे, उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा। पर इस विजय वेला में हम उन वीरों का पुण्य स्मरण करते हैं जिन्होंने प्राण देकर इस विजय को संभव बनाया। हम श्रद्धा से विनत नीलकंठ से उनके लिए शान्ति की प्रार्थना करते हैं। जो पुण्य अर्जित कर चुके हैं, उनके परिवार के लिए महाराज की ओर से राजकीय अनुदान की व्यवस्था की गई है। उनके पाल्यों को सैन्य सेवा में उचित पद प्रदान किया जाएगा। सभा में उपस्थित लोगों ने करतल ध्वनि से महामात्य के इस कथन पर प्रसन्नता व्यक्त की। "इस युद्ध में परम वीर भारद्वाज गोत्रीय रावत पाथे का योगदान अप्रतिम था। आज वे हम लोगों का साथ छोड़कर पुण्यलाभ कर चुके हैं। महाराज ने उनके योग्य पुत्र रावत सामन्त को पारिमयुलि विषय में स्थित कठौहा ग्राम दान में दिया है।' पुनः करतल ध्वनि। सभी के मुखमण्डल पर प्रसन्नता की लहर महामात्य अपने आसन पर बैठ गए। कुल पुरोहित खड़े हुए। उन्होंने राजमाता की ओर देखा। नीलकंठ का अभिनंदन करते हुए उन्होंने कहा, 'महाराज के अथक प्रयास एवं कुशल नेतृत्व में आज यह दिन आया है जब हम कालिंजर दुर्ग में पुनः सभा कर रहे हैं। नेतृत्व एवं रणनीतिक कौशल बिना यह संभव नहीं था। इसीलिए मंत्रिपरिषद ने विचार विमर्श कर महाराज को 'कालिंजराधिपति' उपाधि से विभूषित करने का निर्णय लिया है। राजमाता से इसकी स्वीकृत मिल चुकी है। एक थाल में कुंकुम, चंदन लिए सेविका उपस्थित हुई।
कुल पुरोहित आगे बढ़े। सभा ने उद्घोष किया, 'कालिंजराधिपति महाराज त्रैलोक्य वर्मन की जय महाराज शतायु हों। राजमाता की जय' करतलध्वनि रुक नहीं रही थी। कुल पुरोहित ने टीका लगा हाथ उठाकर संकेत किया। 'कालिंजराधिपति महाराज त्रैलोक्य वर्मन से अपेक्षा करता हूँ कि महोत्सव और खर्जूर वाहक को भी अपनी छाया प्रदान करें। आप समर्थ हैं। आपको जन समर्थन प्राप्त है। शबर भोजक, पुलिन्द सभी आपके साथ हैं।' तालियाँ पुनः बज उठीं। कुल पुरोहित ने महाराज की ओर देखा महाराज ने राजमाता पर दृष्टि डाल कहा, 'यह पावन अवसर आज उपस्थित हुआ है। इसके लिए हमारे कितने ही शूरवीर अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं। उनके परिवार वालों ने जिस बलिदानी परम्परा का निर्वाह किया है हम उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं। धरती की सुरक्षा के लिए हमें हर क्षण अपने को सन्नद्ध रखना है। नीलकंठ महादेव की कृपा से हमने कालिंजर को अपने अधिकार में कर लिया है। इसके लिए रक्त की नदी बहानी पड़ी। आगे भी पड़ सकती है। इसे आप प्रारम्भ समझें। हमें महोबा, खर्जूरवाहक सहित अपनी एक एक सूत धरती वापस लेनी है।' सभाकक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। महाराज ने पुनः कहना आरम्भ किया, 'समय कठिन है। अनेक संकट झेलकर अपनी विजय को सुनिश्चित करना है। यह तभी हो सकेगा जब हम सब पूरी निष्ठा से इस कार्य में लगेंगे। हम आश्वस्त हैं। हमारे सहयोगी कठिन स्थितियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तत्पर हैं। हमारे जो योद्धा स्वर्ग सिधार गए, उनके बच्चे उनका स्थान लेने के लिए प्रसन्नतापूर्वक आ रहे हैं। यह शुभ लक्षण है। हमें पूरा विश्वास है कि हम उद्देश्य प्राप्ति में सफल होंगे। राजमाता का आशीष हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।' 'राजमाता की जय', 'कालिंजराधिपति की जय' का उद्घोष होता रहा। राजमाता ने कहा, 'आज मुझे प्रसन्नता हो रही है, आपके कार्य और संकल्प दोनों से। आपमें उत्साह और इच्छाशक्ति देखकर मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है। कालिंजर विजय ने हममें नई आशा का संचार किया है। केवल धरती बचाने की बात नहीं है यह हमें अपनी संस्कृति, परम्परा भी बचानी है। हमारी अस्मिता का प्रश्न है यह हमें प्रयास यही करना है कि हम अपनी धरती, अपनी संस्कृति को बचा सकें। हमारे कितने भाइयों को तलवार की नोक पर इस्लाम कबूल करना पड़ा है। वे भी दुःखी है। शेख सैयद पठान, उन्हें नीची दृष्टि से देखते हैं। शुक्रवार की नमाज़ में जरूर उन्हें शामिल होने का अवसर मिल जाता है पर उसके बाद? उन्हें भी भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। हमें अपने बीच समता एवं सौहार्द पैदा करना चाहिए जिससे हम तुर्कों का प्रतिरोध कर सकें। बिना समरसता पैदा किए हम संगठित नहीं हो सकते। महाराज अभी युवा हैं। अनुभवों से परिपक्व होना शेष है। आप सबका सहयोग ही उन्हें आगे बढ़ा सकेगा। मैं विश्वास करती हूँ कि लक्ष्य प्राप्ति में आप उन्हें पूरी सहायता करेंगे। नीलकंठ महादेव आपको दिशा दें।' राजमाता के आशीष के साथ ही सभा समाप्त हुई।