Shakunpankhi - 35 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | शाकुनपाॅंखी - 35 - बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा

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शाकुनपाॅंखी - 35 - बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा

51. बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा

बिहार में तुर्कों की विजय हुई तो अनेक ज्योतिषी पंडित, बंगभूमि की ओर प्रस्थान कर गए। अफगानी नजूमी, रम्माल, और दरवेश भी तुर्कों का विरुद बखानते घूमते । बहुत से सूफी भी इस्लाम के पक्ष में वातावरण बनाने के प्रयत्न में समाज में पैठ बनाते । तुर्क शासक उन्हें प्रश्रय देते, उनसे भेदिए का भी काम लेते।
सेन वंश के लक्ष्मण सेन जिनकी अभिरुचि साहित्य में अधिक थी, बंगभूमि में शासन कर रहे थे। किसी समय उन्होंने बिहार के अनेक शासकों को करद बनाते हुए काशी और प्रयाग तक अपना दबदबा बनाया था। पर अब वे अस्सी पार कर रहे हैं। अनेक करद शासक स्वतंत्र हो चुके हैं। बिहार में तुर्की घोड़े दौड़ रहे हैं। लक्ष्मण सेन का विरुद बखानने वालों का अभाव न था। चारणों को वह लाखों देकर सम्मानित करते। उसके सम्बन्ध में अनेक किंवदंतियाँ हवा में तैरतीं। भाट बताते कि उसका जन्म शुभ मुहूर्त में हुआ। जन्म के समय पण्डितों ने उसकी मां को बताया कि शुभ मुहूर्त्त दो धण्टे बाद है जिसमें जन्म होने पर बालक चक्रवर्ती होगा। माँ की इच्छानुसार उन्हें दो घण्टे तक उलटा कर दिया गया। शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा में माँ ने भयंकर वेदना सहकर भी बालक को अपने पेट से बाहर नहीं आने दिया। शुभ मुहूर्त आते ही उन्हें उतारा गया। तत्काल बालक बाहर आ गया पर माँ प्रसव वेदना में चल बसी ।
कवियों, साहित्यकारों का वह सम्मान करता। उसने स्वयं अपने पिता के अधूरे ग्रन्थ 'अद्भुत सागर' को पूरा किया था। उसके यहाँ 'गीत गोविन्द' के रचयिता जयदेव, 'पवन दूत' के रचयिता धोयिक, आर्या सप्तशती के लेखक गोवर्धन, उमापति एवं चरण पंचरत्न कहे जाते थे।
‌ एक दिन ज्योतिषियों का एक बड़ा दल राजा से मिला। उसमें एक रम्माल भी था। भेदिए बिहार में तुर्कों के आक्रमण की सूचना दे चुके थे। ज्योतिषियों ने भी बिहार पतन की बात बताई। राज प्रासाद में ज्योतिषियों का सम्मान किया जाता। एक दूर देश के रम्माल की उपस्थिति ने लक्ष्मण सेन की उत्सुकता बढ़ा दी। उन्होंने अपने भविष्य के बारे में पूछा। रम्माल ने राजा की प्रशंसा की। उनकी न्यायप्रियता, दानशीलता का बखान कर रुक गया।
'आपने हमारे राज्य के भविष्य के बारे में अभी कुछ नहीं बताया।' रम्माल मुस्करा कर रह गया। राजा भी मुस्कराया।
'राजा पर दुष्ट ग्रहों की छाया है।' एक ज्योतिषी ने कहा । 'इसीलिए कुछ कहते कष्ट होता है।' राजा कुछ चिन्तित हो उठा।
'राजन, तुर्कों का आगमन होने पर नदिया का पतन निश्चित हैं।' एक ज्योतिषी ने उंगलियाँ गिनते हुए बताया।
"क्या ? सेन राज्य का पतन हो जाएगा!' लक्ष्मण सेन की त्योंरियाँ चढ़ गईं। 'शास्त्र यही कह रहे है।' ज्योतिषी ने श्लोक पढ़ते हुए अपनी बात कही। ज्योतिषियों एवं रम्माल को उपहार देकर विदा किया। पर राजा को चैन कहाँ? सैंकड़ों वर्षों में पल्लवित राज्य का पतन हो जाएगा? जिसके नाम से राजन्य काँप उठते थे उसका पतन ! वह सोचता रहा। महामात्य से मंत्रणा की। बिहार पतन से महामात्य भी चिन्तित थे । तुकों के पास अच्छे घोड़े हैं। कवचधारी अश्वारोही हैं। उनसे टक्कर लेना सरल नहीं है। वे भी सोचते ।
जनता में तुर्कों का आतंक व्याप्त है। हर कोई यही सोचता, 'तुर्क कब आ जाएँ, क्या पता?'
'राजा वृद्ध हैं, क्या सुरक्षा दे सकेंगे?" चौराहे पर एक ने कहा ।
"अपनी सुरक्षा कर लें, यही बहुत है। हम लोगों की सुरक्षा कैसे कर सकेंगे?" दूसरे ने जोड़ा।
'मैं तो नदिया कल ही छोड़ रहा हूँ । पूर्व की ओर चला जाता हूँ पद्मा के उस पार ।' एड़ी चटकाते हुए कहकर चला गया। मैं कामरूप की ओर चला जाऊँगा। यहाँ रहकर सिर कौन कटाए ?" दूसरे ने अपनी बात पूरी की।
'कैसा समय आ गया है भैये? कोई भी सुरक्षित नहीं है यहाँ, न राजा, न प्रजा । देश छोड़ना क्या अच्छा लगता है ? बना बनाया घर छोड़कर भागना। नई जगह नए संकट ।' एक की पीड़ा उभर आई।
'मेरे पास तो एक झोपड़ी है। भागना ही पड़ा तो कहीं भी एक झोपड़ी बना लूँगा।' एक दुबले से आदमी ने दाढ़ी खुजलाते हुए कहा ।
'पर वणिक कहाँ जाएंगे?" एक ने उंगली नचाते हुए कहा ।
'अरे, उनके पास द्रव्य है, सम्पर्क है, जहाँ चाहें चले जाएँ। कष्ट तो उन्हें होगा जिनके पास द्रव्य का अभाव है।' एक व्यक्ति ने अपना विचार रखा। 'ठीक कहते हो भाई । मुझे तो बेटी के विवाह की चिन्ता है । अब यह नया संकट अपनी व्यथा को एक ने शब्द दिया।
राजा की चिन्ता कम नहीं हुई। उसने अपने पुरोहित और ज्योतिषियों को बुलाया। मंत्रणा का लम्बा दौर चला। 'क्या उस व्यक्ति की कोई पहचान भी है जो नदिया पर कब्जा करेगा।' 'हाँ है', एक ज्योतिषी ने कहा । 'उसके दोनों हाथ पैरों के टखनों तक पहुँचते होंगे। आजानु बाहु होगा ।'
लक्ष्मण सेन ने अपने गुप्तचरों को दौड़ाया यह पता करने के लिए कि क्या बख्तियार आजानुबाहु है । राजा को ज्योतिषियों पर कुछ ज्यादा ही विश्वास पैदा हो गया। बख्तियार का आतंक भी बढ़ा। जिसने भी सुना, नदिया छोड़ने की योजना बनाने लगा। धीरे धीरे राजधानी खाली होने लगी। राजा ने ज्योतिषियों को फिर इकट्ठा किया। 'नदिया पर संकट है तो आपके शास्त्र उसका निदान भी बताते होंगे?' राजा ने जिज्ञासा प्रकट की। 'संकट है, तो समाधान भी है', एक ज्योतिषी ने कहा । अन्य ज्योतिषियों ने भी समर्थन किया। ज्योतिषियों ने यज्ञ करने का सुझाव दिया। राजा ने तुरन्त स्वीकार कर लिया। शुभ मुहूर्त में यज्ञ प्रारंभ हुआ। ऋत्विजों ने अपना काम शुरू किया। राजा भी आश्वस्त हुए ।
'महाराज यज्ञ करवा रहे हैं। संकट टल जाएगा।' चौराहों, वीथियों में चर्चा होने लगी। जो अपना बिस्तर बांध चुके थे, उसमें से कुछ रुक गए।
'यज्ञ करने से क्या बख्तियार आक्रमण नहीं करेगा?' एक ने चौराहे पर पूछ लिया। बहस शुरू हो गई। कुछ विपक्ष में अपना विचार प्रकट करने लगे। 'राजा को राज्य की सुरक्षा के लिए सन्नद्ध होना चाहिए पर वे यज्ञ करवा रहे हैं। इससे कुछ नहीं होगा। सभी मारे जाएंगे।' एक व्यक्ति ने जोर देकर कहा ।
'तेरा कथन संगत है। राजा सठिया गया है। ज्योतिषियों को मैं क्या कहूँ? ओदन्तपुरी जली तब ज्योतिषी कहाँ थे? सब मारे गए। महामात्य क्या कर रहे हैं? उन्हें तो कोई सार्थक उपाय करना चाहिए।' एक व्यक्ति अपनी खीझ व्यक्त करता रहा। 'राजा की शक्ति को कम न आँको हमारे ही राजा ने पुरी, वाराणसी और प्रयाग में विजय स्तम्भ बनवाया। राजा कापुरुष नहीं है। यज्ञ करवा रहे हैं पर वे युद्ध की तैयारी में पीछे नहीं रहेंगे। जबसे मिथिला का पतन हुआ है, महाराज चिन्तित हो उठे हैं। अकर्मण्य नहीं हैं वे । तुर्कों द्वारा फैलाई भ्रांतियों से बचो। रम्माल और सूफी तो तुर्कों के ध्वजवाहक हैं भैये ।' एक व्यक्ति समझाता रहा ।
एक रम्माल बख्तियार के दरबार में हाज़िर हुआ ।
'काम हो गया न?' बख्तियार ने पूछा ।
'हाँ, हुजूर । राजा के ज्योतिषी सोने, चांदी के गुलाम है।' रम्माल ने उत्तर दिया।
'राजा के सिपहसालार और उनकी अवाम सभी हुजूर से खौफ खाए हुए हैं, दहशत के साए में जी रहे हैं लोग।' 'तो फतह कर आए। अवाम, सिपहसालारों में दहशत पैदा करने का फायदा सभी नहीं जानते ।'
'आप जैसा दानिशमंद ही इसे समझता है।'
'मैं बिल्कुल नख्वांदा हूँ भाई। यह तो बताओ राजा लछमन क्या कर रहा है? कोई तैयारी? उसका वज़ीर कैसा है?" 'हुजूर क्या बताऊँ? राजा और उसके कारिन्दे हवन कर रहे हैं। पूजा करने से वे सोचते हैं, तुर्की हमला टल जाएगा। राजा बूढ़ा हो चुका है। उसकी पुरानी फ़ज़ा अब बिल्कुल नहीं है।'
'हमला तभी टल सकता है जब वे बख्तियार की क़दमबोसी करें। खल्जी सवारों को सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात से लाद दें।'
'हो सकता है कर ही दें, हुजूर ।'
'मुमकिन नहीं होगा यह । राजा लछमन की बहादुरी के किस्से सुने जाते हैं । उसको फ़ौज इकट्ठी करने का मौका देना ठीक नहीं हैं।'
'बज़ा फर्मा रहे है हुजूर ।'
रस्माल को इनाम देकर बख्तियार ने भाइयों -निजामुद्दीन और शमसुद्दीन को बुलाया । 'घुड़सवारों को तैयार करो। एक ऐसे राजा को हमें शिकस्त देनी है जो बिहार ही नहीं अपनी इन जागीरों तक धावा मारता था । उम्र जरूर उसकी ज्यादा हो गई है पर बूढ़ा शेर भी शेर ही होता है ।' बख्तियार बताता गया। 'अभी वह पूजा पाठ करा रहा है, यही मौका है उस पर हमला करने का। गर उसे फौज इकट्ठा करने का मौका मिला तो उसे शिकस्त देना आसान नहीं होगा।'
'घुड़सवारों का हौसला बलन्द है । इन्शा अल्लाह फ़तह हमारी होगी।' दोनों भाइयों के चेहरे दमक उठे ।
'ठीक है, कल फ़जिर की नमाज़ के बाद हम कूच करेंगे। तैयारी कराओ।' बख्तियार ने दाढ़ी पर हाथ फेरा।



52. तैयारी करो

'राजमाता, महाराज को अनुमति दीजिए। हमें कालिंजर को अपने अधिकार में लेना ही है। हमने पूरी तैयारी कर ली है।' रावत उत्साह से फड़फड़ा रहे थे। ‘मुझे भी पता चले कि तैयारियाँ क्या हुई हैं?” राजमाता मुस्करा उठीं । महामात्य अजयदेव ने कहना प्रारंभ किया। 'राजमाता, हमने रणनीति में परिवर्तन किया है। एक पूरी सेना वनवासियों की तैयार की है। वे वनों, पहाड़ियों में छिपकर तीर चलाते हैं। पर तीर चलाने वाला अदृश्य ही रहता है।'
'मैदान में सैनिक अदृश्य कैसे रहेंगे?"
'इसीलिए हम लोग मैदान में नहीं, पहाड़ी की तलहटी में युद्ध करने का मन बना चुके हैं ।'
'यदि विपक्षी मैदान में ही अपना मोर्चा लगाए तो...।'
'उसका भी निदान सोच लिया गया है।'
"क्या?"
‘यदि तुर्क सेनाएँ मैदानी क्षेत्र में अपना मोर्चा लगाती हैं तो हमारी सेना के कुछ दल उनसे टक्कर लेने के लिए जाएंगे पर वे युद्ध करते हुए पहाड़ी की ओर बढ़ते जाएँगे । उनका पीछा करते हुए तुर्क सेना को आना ही पड़ेगा ।'
'युक्ति तो ठीक लगती है पर इसकी जाँच तो बाद में ही हो सकेगी।'
'राजमाता, यही उपयुक्त अवसर है।'
'अभी त्रैलोक्य अल्हड़ है।' राजमाता के मुख से जैसे ही यह वाक्य निकला त्रैलोक्य ने आकर माँ के चरण स्पर्श करते हुए कहा, 'माँ, अब मैं युद्ध करने के लिए सक्षम हुँ । बारह वर्ष के उदयसिंह यदि पिता का प्रतिशोध ले सकते हैं, अठारह वर्षीय मुहम्मद बिन क़ासिम दाहिर को हरा सकता है तो मैं.....। कहते हुए त्रैलोक्य रुक गया । यदि सबकी यही इच्छा है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है? पर तैयारी ऐसी हो कि हम कालिंजर को अपने अधिकार में कर सकें।'
'अपनी ओर से कोई चूक नहीं होगी । यदि तुर्क फतह के लिए युद्ध करते हैं तो हम भी विजय का लक्ष्य बनाकर युद्ध करने जा रहे हैं। तुर्क सेनाएँ चंदेलों की शक्ति भी देखेंगी और रणनीतिक कुशलता भी।' राजमाता मृणालदे का मंत्रणा कक्ष उत्साह के रंग में नहा उठा।
'हम अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। कालिंजर के नीलकंठ मंदिर की घंटिया हमारा आह्वान कर रही है माँ ।' त्रैलोक्य की आवाज़ टुनक उठी। 'तैयारी करो। मैं भी देखती हूँ। कहकर राजमाता उठ पड़ीं। त्रैलोक्य, अजय देव और रावत पाथेय भी उठे।