Jahan Chah Ho Raah Mil Hi Jaati Hai - Part - 9 - last part in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 9 - अंतिम भाग

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जहाँ चाह हो राह मिल ही जाती है - भाग - 9 - अंतिम भाग

गुर्गे कुछ समझ पाते उससे पहले ही नीलू का हाथ पकड़ कर शक्ति सिंह ने उससे कहा, "चलो बेटा घर चलते हैं।"

"नहीं पापा, मैं अब घर कभी नहीं आऊंगी।"

"क्या बोल रही हो नीलू? क्या हुआ बेटा तुम को?"

"पापा मैं यहाँ की लड़कियों से मिली हूँ, जब तक आप उन्हें आज़ाद नहीं करेंगे, मैं भी यहाँ पर ही रहूंगी। पापा आपने मुझे इतने अच्छे संस्कार दिए हैं, फिर आप इन लड़कियों के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं।"

"बेटा मैंने आज तक किसी लड़की को नहीं छुआ है।"

"जानती हूँ पापा, मुझे अंदर सब कुछ मालूम हो गया है लेकिन आप नहीं, दूसरे मर्द तो होते है ना। किसी की मज़बूरी का फायदा उठाना भी तो गुनाह है। किसी की बेटी को पाप के दलदल में भेजना भी तो गुनाह है ना। जब आप इस पाप के दलदल को चलाते हैं, तो मुझे उसी पाप के दलदल में जाते देखकर आप क्यों इतने विचलित हो गए? यदि मैं आपका हाथ ऊपर ना करती तो आप आज किसी की हत्या तक कर देते। ऐसा क्यों पापा? दूसरे की बेटियों के लिए आपके दिल में सम्मान क्यों नहीं है? पापा मैं आप पर बहुत गर्व करती थी लेकिन आज मैं शर्मिंदा हूँ। मैं आपके पापों का प्रायश्चित करूंगी, मैं अब इन सभी किसी न किसी की बेटियों को आज़ाद किए बिना यहाँ से कहीं नहीं जाऊंगी।"

अपनी बेटी की नज़रों में स्वयं को गिरता हुआ देखकर शक्ति सिंह रोने लगा, "नीलू बेटा जैसा तुम चाहोगी बिल्कुल वैसा ही होगा, तुम बस घर चलो। मुझे एक मौका दो बेटा, मैं तुम्हें अच्छा पापा और एक नेक इंसान बनकर दिखाऊंगा।"

"नहीं पापा पहले यह सब ठीक करना होगा, तभी मैं वापस लौटूंगी।"

"इस जगह पर तुम्हारा रहना ठीक नहीं है बेटा," शक्ति ने कहा।

नीलू ने कहा, "पापा गली के उस तरफ़ हीरा लाल अंकल का घर है। मैं वहाँ जा रही हूँ, आपको भी वहाँ मेरे साथ आना होगा।"

शक्ति तुरंत ही मान गया और वह दोनों हीरा लाल के घर पहुँच गए। नीलू को देखते ही हीरा लाल ने उसे गले से लगाया, नीलू ने उनके पैर छुए। हीरा लाल ने उसे आशीर्वाद देते हुए शक्ति को बुलाया। शक्ति कुछ भी न कह सका किंतु सब कुछ समझ गया। वह हाथ जोड़ कर हीरा लाल के आगे सर झुका कर खड़ा हो गया।

हीरा लाल ने उसे हाथ पकड़ कर बिठाया और कहा, सुबह का भूला शाम को घर आए, पापों का प्रायश्चित कर ले तो भगवान भी उसे माफ़ कर देते हैं। चलो हम सब मिलकर उस इमारत को जो अब तक नर्क थी स्वर्ग बनाते हैं।

तीनों ने आपस में सलाह करके दूसरे दिन सुबह ही एक बड़ा बोर्ड बनवाया जिस पर लिखा था "महिला गृह उद्योग,” शक्ति, नीलू और हीरा लाल ने मिलकर उस पुरानी इमारत को नई इमारत में एक कुटीर उद्योग कारखाने में तब्दील कर दिया। वहाँ पर छोटे-छोटे कई कमरे बनवा दिए और हर कमरे में कुछ ना कुछ काम जैसे सिलाई, बुनाई, पापड़, अचार आदि कई तरह के लघु उद्योग शुरू करवा दिए। वहाँ की सभी लड़कियों ने कुछ ना कुछ काम सीख लिया। इस तरह एक असंभव, जिसकी कभी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, वह संभव कर दिखाया।

अब नीलू भी अपने पिता के साथ अपने घर चली गई और हर रोज़ वहाँ आकर सभी को कुछ ना कुछ अच्छी बातें सिखा कर जाती थी। वह अपने पिता से बेहद प्यार करती थी।

हीरा लाल जी के साथ भी उसके पारिवारिक सम्बंध बन गए थे। अब समाज सुधारक के रूप में हीरा लाल अकेले नहीं नीलू और शक्ति सिंह भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करते थे। जहाँ चाह होती है राह मिल ही जाती है।

उस इमारत में काम करने वाली लड़कियाँ अब बहुत ख़ुश थीं। इसके बाद वह आपस में बात कर रही थीं कि काश हमारे देश की ऐसी लड़कियों को भी कोई हीरा लाल और नीलू जैसे फरिश्ते मिल जाएँ तो न जाने कितनी ही लड़कियाँ अपनी ज़िंदगी संवार लें।

अब तो विजया के ऊपर भी कोई रोक टोक नहीं थी वह भी जब मन करे वहाँ आती-जाती रहती थी।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त