Sabaa - 21 in Hindi Philosophy by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | सबा - 21

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सबा - 21

महिला आयोग के सदस्य दो भागों में बंट गए।
अध्यक्ष और एक सहयोगी का कहना था कि किसी वयस्क महिला पर इतनी निर्ममता से शारीरिक प्रहार नहीं किया जा सकता। अलबत्ता, महिला को इस तरह चोट पहुंचाना ही अपने आप में सही नहीं ठहराया जा सकता। इसे अपराध की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए।
लेकिन दूसरी ओर दो और सदस्यों का कहना था कि ये कोई हमला या आक्रमण नहीं है बल्कि लड़की के माता पिता द्वारा स्वयं ही उत्तेजना में उसे दिया गया दंड है जो कुछ ज्यादा सख्त हो गया है पर इसके पीछे परिवार के संस्कार ही हैं, न कि कोई दुर्भावना।
खबर के साथ - साथ बिजली की तस्वीर भी अख़बार में छपी थी जिसमें बिजली की मां बिजली पर हाथ उठाते हुए दिखाई दे रही थीं।
देखो तो चमकी को... तभी तो बिजली उसे फांदेबाज़ कहती थी। ये वीडियो तो उसी ने बनाया होगा! वरना पुलिस या प्रोफेशनल छायाकारों को क्या पड़ी कि इतनी लानत- मलामत के बाद बेचारी बिजली की फ़ोटो भी खींच लेंगे, गुमशुदा लड़की के घर लौट आने के बाद।
अख़बार में छपी खबर के आधार पर ही महिला आयोग द्वारा संज्ञान ले लिया गया। बल्कि अध्यक्षा ने तो बिजली की मां को डांट लगाते हुए ये कह कर धमका भी दिया कि जो बच्चे घर से भागते हैं उनके मामले में भी कुछ न कुछ दोष तो माता - पिता का होता ही है कि वो संतान का विश्वास नहीं जीत पाए।
लो, ये तो "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" वाला हिसाब हो गया। एक तो लड़की बिना बताए घर से भाग गई, जिसके सदमे में बेचारे बूढ़े मां- बाप रात भर हल्कान रहे और ऊपर से लड़की की पिटाई करने पर ये उसके हितैषी उसे बचाने वाले चले आए।
मां की गलती तो बस इतनी ही थी कि रात भर घर से गायब रहने के बाद जब बिजली डरी- सहमी सी घर में घुसी तो पिता के थोड़े क्रोध से पूछ कर ही उसे छोड़ देने के बाद मां आपा खो बैठी। उसने ताबड़तोड़ बिजली को मारना शुरू कर दिया। आम तौर पर होता तो यह है कि पिता कठोर सजा देते और मां उसे प्यार से समझाती। पर यहां पिता ने तो ज़्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन मां पर जैसे चंडी उतर आई।
मामला क्योंकि पुलिस रिपोर्ट तक पहुंचा हुआ था इसलिए बात अखबारों तक भी पहुंच गई।
- बिजली क्या अकेली आई?
- नहीं - नहीं, राजा ख़ुद उसे छोड़ कर गया यहां। बेचारा डर के मारे भीतर घर में नहीं आया, नुक्कड़ तक पहुंचा कर ही भाग गया।
- बिजली रात भर रही कहां?
... वहीं, राजा के गांव में!
- हे राम! राजा के साथ उसके घर में?
- और क्या!
- एक ही कमरे में?
- तो राजा कौन सा रईस खानदान का है कि बिजली के लिए अलग कोठी - चौबारे होते!
- छी छी छी...
- इसमें छी - छी करके नाक - मुंह सिकोड़ने की क्या बात है? एक ही कमरे में बाप मां भाई बहन... रहते नहीं क्या! वहीं भाई को राखी बांधने वाली बहन भी रहती है, मां- बाप के पांव छूने वाले भाई भी रहते हैं, तो क्या दोस्त - सहेली - मेहमान नहीं रह सकते?
- लेकिन लड़की? पराई लड़की?? बिनब्याही लड़की???
- क्यों, पहाड़ टूट पड़ेगा क्या? क्या बिनब्याहे लड़के नहीं रहते यार - दोस्त के घर?
... और भी न जाने क्या - क्या... लेकिन गनीमत यही थी कि इस सब वार्तालाप का इंद्राज किसी पुलिस रोजनामचे में नहीं हो रहा था, बल्कि बिजली की मां, चमकी और अड़ोसी - पड़ोसी देर रात तक अपने - अपने घर में अपने - अपने बिस्तर पर पड़े सोच रहे थे। नींद आई और सब ओझल!
सवेरा रोज़ जैसा ही धुला - धुला!