Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर - - -संस्मरण

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मित्रों को स्नेहिल

नमस्कार

अभी रक्षाबंधन का पावन पर्व गया है। स्मृति सामने आकर अपनी कहानी स्वयं सुनाने लगती है और हमें बहुत सी ऐसी घटनाओं से परिचित कराती है जिनसे हम परिचित नहीं होते,जिन्हें जानते ही नहीं।

ऐसी ही एक कहानी - - - नहीं, कहानी नहीं जीवन की वास्तविकता को जानने का प्रयास करते हैं।

वह अनोखा भाई':

(रक्षा बंधन पर आप सबके लिए) महादेवी वर्मा को जब ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तो एक साक्षात्कार के दौरान उनसे पूछा गया था, "आप इस एक लाख रुपये का क्या करेंगी?"

उनका उत्तर था,

"न तो मैं अब कोई कीमती साड़ियाँ पहनती हूँ, न कोई सिंगार-पटार कर सकती हूँ। ये लाख रुपये पहले मिल गए होते तो भाई को चिकित्सा और दवा के अभाव में यूँ न जाने देती।" कहते-कहते उनका दिल भर आया और आँखों में आँसुओं की नमी थिरकने लगी।

कौन था उनका वो 'भाई'?

हिंदी के युग-प्रवर्तक औघड़-फक्कड़-महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी के मुँहबोले भाई थे।

उनकी एक घटना से उनकी सरलता का ख़्याल आसानी से आ जाता है।

एक बार वे रक्षा-बंधन के दिन सुबह-सुबह जा पहुंचे अपनी लाडली बहन के घर और रिक्शा रुकवा कर चिल्लाकर द्वार से बोले,

"दीदी, जरा बारह रुपये तो लेकर आना।" महादेवी रुपये तो तत्काल ले आई, पर पूछा,

"यह तो बताओ भैय्या, यह सुबह-सुबह आज बारह रुपये की क्या जरूरत आन पड़ी?"

हालाँकि, 'दीदी' जानती थीं कि उनका यह दानवीर भाई रोज़ाना ही किसी न किसी को अपना सर्वस्व दान कर आ जाता है, पर आज तो रक्षा-बंधन है, आज क्यों? निराला जी सरलता से बोले,

"ये दुई रुपया तो इस रिक्शा वाले के लिए और दस रुपये तुम्हें देना है। आज राखी है ना! तुम्हें भी तो राखी बँधवाई के पैसे देने होंगे।"

ऐसे थे फक्कड़ निराला और ऐसी थी उनकी वह स्नेहमयी 'दीदी'।

भाई - बहन का यह पावन रिश्ता एक ऐसी रोशनी से भरा हुआ है जहाँ अंधकार की कोई जगह ही नहीं है।

गर्व है हमें मातृभाषा को समर्पित ऐसे निराले कवि भैया निराला जी और बहना कवयित्री महादेवी पर!

भाई बहन के सहज, सरल व निःस्वार्थ प्रेम की इस घटना से हम जीवन में संबंधों के वास्तविक प्रेम को समझ सकें, संबधों का सम्मान कर सकें।

यही आशा व विश्वास

सब प्रेम सहित आनंद में, सुख से सहज, सरल जीवन व्यतीत कर सकें, ऐसी शुभाकांक्षा----

 

स्नेहिल शुभकामनाएँ

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती