Namrata - 1 in Hindi Motivational Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | नंदिनी (भाग -1)

Featured Books
  • તલાશ 3 - ભાગ 39

    ડિસ્ક્લેમર: આ એક કાલ્પનિક વાર્તા છે. તથા તમામ પાત્રો અને તેમ...

  • પરિવાર

    પરિવાર    "अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां...

  • જીવન પથ - ભાગ 15

    જીવન પથ-રાકેશ ઠક્કરભાગ-૧૫ ગતાંકથી આગળભાગ-૨ ઉત્થાનને યોગ્ય રી...

  • ગર્ભપાત - 5

    ગર્ભપાત - ૫(  ગર્ભપાતની એક ઘટના ઉપરથી એક સ્ટોરી લખવાનું વિચા...

  • લવ યુ કચ્છ - અદભૂત પુસ્તક

    પુસ્તક સમીક્ષાપુસ્તકનું નામ : Love You કચ્છ- રણમાં રોમેન્ટીક...

Categories
Share

नंदिनी (भाग -1)

‘‘नंदिनी अच्छा हुआ कि तुम आ गईं. तुम बिलकुल सही समय पर आई हो,’’ नंदिनी को देखते ही तरंग की बांछें खिल गईं.

‘‘हम तो हमेशा सही समय पर ही आते हैं जीजाजी. पर यह तो बताइए कि अचानक ऐसा क्या काम आन पड़ा?’’

‘‘कल खुशी के स्कूल में बच्चों के मातापिता को आमंत्रित किया गया है. मैं तो जा नहीं सकता. कल मुख्यालय से पूरी टीम आ रही है निरीक्षण करने. अपनी दीदी नम्रता को तो तुम जानती ही हो. 2-4 लोगों को देखते ही घिग्घी बंध जाती है. यदि कल तुम खुशी के स्कूल चली जाओ तो बड़ी कृपा होगी,’’ तरंग ने बड़े ही नाटकीय स्वर में कहा.

फिल्म देखना चाह रहा था और इतना मनमोहक साथ मिल जाए तो कहना ही क्या,’’ तरंग बड़ी अदा से मुसकराया.


‘‘चलो, खुशी की समस्या तो सुलझ गई. क्यों खुशी, अब तो खुश हो?’’ तरंग ने अपनी बेटी की सहमति चाही.


‘‘नहीं, मैं खुश नहीं हूं, मैं तो बहुत दुखी हूं. मेरे स्कूल में जब मेरे सभी साथियों के साथ उन के मम्मीपापा आएंगे तब मैं अपनी नंदिनी मौसी के साथ पहुंचूंगी,’’ खुशी रोंआसी हो उठी.


‘‘चिंता मत करो खुशी बेटी. मैं तुम्हारे स्कूल में ऐसा समां बाधूंगी कि तुम्हारे सब गिलेशिकवे दूर हो जाएंगे,’’ नंदिनी ने खुशी को गोद में लेने का यत्न करते हुए कहा.


‘‘मुझे नहीं चाहिए आप का समांवमां. अगर मेरे मम्मीपापा मेरे साथ नहीं जा सकते तो मैं कल स्कूल ही नहीं जाऊंगी,’’ खुशी पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई.


‘‘तुम ने बहुत सिर चढ़ा लिया है अपनी लाडली को. घर आए मेहमान से कैसे व्यवहार करना चाहिए, यह तक नहीं सिखाया उसे,’’ तरंग नम्रता पर बरस पड़ा.

लिया.


‘‘आज से इस का खानापीना बंद. 2 दिन भूखी रहेगी तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी,’’ तरंग लौट कर सोफे पर पसरते हुए बोला.


‘‘क्यों इतना क्रोध करते हो जीजाजी? खुशी तो 5 वर्ष की नन्ही सी बच्ची है. वह क्या समझे तुम्हारी दुनियादारी. जो मन में आया बोल दिया. चलो अब मुसकरा भी दो जीजाजी. क्रोध में तुम जरा भी अच्छे नहीं लगते,’’ नंदिनी बड़े लाड़ से बोली तो नम्रता भड़क उठी.


‘‘नंदिनी, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं. इस समय तुम जाओ. हमें अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को स्वयं सुलझाने दो,’’ वह बोली.


‘‘दीदी तुम भी… मैं तो तुम्हारे लिए ही चली आती हूं. आज भी औफिस से सीधी यहां चली आई. तुम तो जब भी मिलती हो यही रोना रोती हो कि तरंग तुम से दुर्व्यवहार करते हैं. तुम्हारा खयाल नहीं रखते. मुझे लगा मेरे आने से तुम्हें राहत मिलेगी. नहीं तो मुझे क्या पड़ी है यहां आ कर अपना अपमान करवाने की?’’ नंदिनी ने पलटवार किया.


‘‘नम्रता, नंदिनी से क्षमा मांगो. घर आए मेहमान से क्या इसी तरह व्यवहार किया जाता है?’’ नम्रता कुछ बोल पाती उस से पहले ही तरंग ने फरमान सुना दिया.


नम्रता तरंग की बात सुन कर प्रस्तर मूर्ति की भांति खड़ी रही. न उस ने तरंग की बात का उत्तर दिया न ही माफी मांगी.


‘‘तुम ने सुना नहीं? नंदिनी से क्षमा मांगने को कहा था मैं ने,’’ तरंग चीखा.


‘‘मेरे लिए यह संभव नहीं है तरंग,’’ नम्रता ने उत्तर दिया और खुशी को गोद में उठा कर अंदर चली गई.