Ek Ruh ki Aatmkatha - 22 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 22

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एक रूह की आत्मकथा - 22

रेहाना एक स्त्री थी,कोई पेड़ नहीं |उसके जीवन में रमेश के आने की वजह से जो तूफान आया उसने सब कुछ बदल डाला |उसके शौहर अनीस उसकी जिंदगी से चले गए|उनके जाने का कारण सिर्फ वही जानती थी| उसने उनसे यह सच बता दिया था कि उसके मन ने किसी और को स्वीकार कर लिया है|उनका पुरूष अहं यह स्वीकार न कर सका|उन्हें एक बार भी नहीं लगा कि इसके जिम्मेदार वे भी थे|उन्होंने उसके प्रेम को लस्ट बताया|शरीर की भूख बताया|वे भूल गए कि जब वे खुद जीते -जागते शरीर के रूप में उसके पास मौजूद थे फिर वह कौन- सी रिक्ति थी ,कौन -सी भूख-प्यास थी जिसने उसे रमेश से बांध दिया था ?वह खुद हैरान थी... परेशान थी कि कैसे ,कब, क्योंकर यह सब हो गया पर हो गया तो वह उन्हें कैसे धोखा देती ?वह उन स्त्रियों में नहीं थी ,जो एक साथ दो नावों में सवार होकर जीवन गुजार लेती हैं|उसका प्रेम अगर गुनाह कहा जा रहा था,तो वह उसकी सजा भी भुगतने को तैयार थी|सजा मिली भी|जब अनीस के जाने से पहले ही रमेश एक झटके से उससे दूर हो गया |फिर उसके जीवन के दोनों पुरूषों ने अपनी अलग दुनिया बसा ली और वह अहल्या बनकर रह गयी| करीब आठ वर्ष बाद रमेश का फोन आया था| नंबर बदला हुआ था इसलिए रेहाना ने फोन उठा लिया|रमेश की आवाज सुनकर वह चौक पड़ी| जी चाहा फोन काट दे,पर काट न सकी|रमेश ने उससे कहा –‘मेरी याद नहीं आती ..भूल गयी क्या ?मैं तो एक पल के लिए भी तुम्हें नहीं भूल पाया |रेहाना को आश्चर्य हुआ कि इतने वर्षों बाद भी रमेश ऐसे बात कर रहा है ,जैसे कुछ हुआ ही न हो|उसके कारण कितना कुछ बदल गया |वह कितनी अकेली हो गयी ..क्या-क्या नहीं झेलती रही? उसने एक बार भी उसकी कोई खोज-खबर नहीं ली| आज एकाएक उसका प्रेम कैसे जाग गया? रमेश के बारे में उसे बराबर खबर मिलती रही थी |उसकी हिन्दू लड़की से शादी..फिर बच्चे..और उसके बाद भी एक लड़की से उसके खास ताल्लुकात.. !पर इन खबरों को पाकर भी वह विचलित नहीं हुई थी,जबकि उसे होना चाहिए था|तब उसे लगा था कि वह उसके जीवन से ही नहीं निकला था,बल्कि दिल से भी निकल चुका था|फिर क्या फर्क पड़ता था कि वह क्या कर रहा है?हाँ कभी-कभी कसक जरूर होती थी कि ऐसे आदमी के लिए उसने अपना सब -कुछ दांव पर लगा दिया था|वह भी एक दिन था जब वह उसके इतने करीब था कि उसके बिना उसे अपना जीवन असंभव लगता था|उसने भी तो उससे जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था|कहा था कि कहीं और विवाह नहीं करेगा| उसी के कारण तो वह अपने अनीस से अलग हुई थी|अनीस उससे इसलिए नाराज हो गया था कि उसने रमेश से अपने लगाव की बात बता दी थी|वह उससे गुनाह के रिश्ते रखना चाहता था।अनीस भी उनके रिश्ते को गुनाह समझते थे,पर उसने तो गुनाह नहीं प्रेम किया था| आज तक वह नहीं समझ पाई है कि वह उससे क्यों प्रेम करने लगी थी ?वह मोहब्बत थी कि देह की भूख! बरसों से खाली पड़े मन को भरने की चाह थी कि एकरस जीवन की ऊब|दुखों से निजात का उपाय था कि शौहर के प्रति क्रोध|भाग्य से लड़ने की कोशिश थी या फिर इन सबका मिला-जुला कोलाज !पता नहीं पर यह तो सच ही था कि वह प्रेम में पड़ गयी थी|कितनी मुहताज हो गयी थी उन दिनों वह रमेश की|एक दिन भी उसका फोन नहीं आता तो वह जल बिन मछली की तरह तड़पने लगती थी |पूरी रात जागती रह जाती|अनीस का स्पर्श उसे सर्प-दंश के समान लगता|एक ही बिस्तर पर दोनों अलग रहते|वह रमेश के ख्यालों में खोई रहती और अनीस भी न जाने क्या सोचते जागते रहते|उन्हें शक तो बहुत पहले ही हो गया था ,पर जाने क्यों चुप थे ? पर एक दिन उसे करवटें बदलते देख पूछ पड़े –"क्या तुम किसी से प्रेम करने लगी हो ?"
वह उठकर बैठ गयी तो उन्होंने उसे कंधों से पकड़कर झकझोर डाला –"बताओ ,वह रमेश ही है न ! जरूर वही होगा|अपने मित्र की पत्नी पर ही हाथ साफ कर गया साला !मैं उसे छोडूँगा नहीं|सारे मीडिया के सामने उसे नंगा कर दूँगा|तुम्हें गवाही देनी होगी|बताना होगा कि उसने किस तरह तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काया,तुम्हारा इस्तेमाल किया।"
वह कुछ नहीं बोली तो कहने लगे –"उसने तुम्हें स्पर्श तो जरूर किया होगा|बोलो,कहाँ-कहाँ और कैसे स्पर्श किया था ?"
वह रोने लगी तो वे थोड़े नम्र हुए ,फिर कहने लगे –"देखो मैं समझ रहा हूँ कि तुम्हारे मन में उसके लिए कोमल भावनाएँ हैं पर वह अच्छा आदमी नहीं है|उसका उद्देश्य बस एक बार तुम्हें प्राप्त करना मात्र है ताकि वह खुद अपनी पीठ ठोक सके |मैं उसके साथ काम करता हूँ उसके नस-नस से वाकिफ हूँ |वह आफिस में मेरी बराबरी नहीं कर पाया तो तुम्हें गुमराह कर दिया ताकि मुझे नीचा दिखा सके|तुम्हें उसने मुहरा बनाया है सिर्फ मुहरा |वह मेरी प्रतिभा से जलता है|"
अनीस की बात में हो सकता है कोई सच्चाई रही हो,पर रेहाना को उस वक्त रमेश से कोई शिकायत नहीं थी| वह खुद उसके साथ रहना चाहती थी|अपना धर्म तक बदलने को तैयार थी |जाने कैसा दीवानापन था वह ? अनीस से उसे सहानुभूति थी,पर वह यह भी जानती थी कि दोनों के बीच रमेश के आने का कारण वही खाली जगह थी,जिसे अनीस ने खुद बनाई थी|उसे मादा से अधिक उन्होंने समझा ही कहाँ था?रमेश ने तो बस उस खाली जगह को भरा था|उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था|उन्हें क्या कहे ?बस रोती रही| वे फिर समझाने लगे –"तुम समझती क्यों नहीं ?तुम लोगों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ भी गयी हों तो मुझे बताओ !मैं कुछ नहीं कहूँगा,पर जान लो वह मेरी तरह उदार नहीं है|अगर तुम लोगों का संबंध खुला तो वह तुरत पल्ला झाड़ लेगा|तुम ज़ोर दोगी तो तुम्हें ही बदचलन कह देगा| वह गंदा आदमी है|कुछ दिन पहले वह एक बदनाम नेताईन के घर रात-भर रहा और सुबह आफिस में नेताइन के ढीले पड़ गए अंगों का उपहास उड़ाता रहा| अपने एक और मुस्लिम मित्र की पत्नी के भी वह करीब है |वह जहाँ भी फांक देखता है,वहीं घुस जाता है|वह अविवाहित है सुंदर है ...युवा है |ऊपर से उसे लच्छेदार बातें करनी आती है |बेवकूफ औरतें उसके चक्कर में फंस जाती हैं ,पर वह किसी का नहीं| बस मुफ्त में मजे लेता है,टाईम पास करता है| तुम क्यों ऐसे आदमी को लेकर गंभीर हो? क्यों उसको अपने हृदय का रक्त पिला रही हो ?भूल जाओ उसे, झटक दो झटके से|फोन आए तो मत उठाओ या कसकर डांट दो ।रमेश के बारे में ये बातें रेहाना को अच्छी नहीं लग रही थीं|वह सोच रही थी कि रमेश कैसा भी हो वह उससे प्यार करती है|वह इतना बुरा नहीं हो सकता,जितना ये बता रहे हैं|रमेश से उसका रिश्ता यूं ही एक दिन में नहीं शुरू हो गया था |वर्षों लगे थे इसे जड़ जमाने में |इस रिश्ते की जड़ों में अपनापन था,सहानुभूति थी,पर वासना का नामोनिशान न था|फिर रमेश के बारे में ये अब क्यों बता रहे हैं ?पहले तो वह इनके लिए बहुत अच्छा था|उसकी प्रशंसा सुनकर ही वह उसे देखने को लालायित हो गयी थी|वे उसे लेकर घर आए थे फिर धीरे-धीरे वह उनके हर दुख-सुख में शामिल हो गया था,विशेषकर उसके|रमेश को बुरा लगता था कि वे आफिस में उसके बारे में सम्मानजनक ढंग से बात नहीं करते हैं|कहीं भी उसका अपमान कर देते हैं|वह उसकी सुंदरता से ज्यादा उसके मासूम भोलेपन से प्रभावित था| उससे बच्ची समझकर लाड़ करता|उसका ध्यान रखता|उसे परेशान देखकर तड़प उठता|उन दिनों अनीस की हरकतों से वह दुखी थी|अपने को असहाय और अकेला महसूस करती थी|वह तन से ज्यादा मन का अकेलापन था,जो धीरे -धीरे उसे खाने लगा था|फिर रमेश ने उसके अकेलेपन को भर दिया|अनीस के बारे में रमेश ने भी कई बातें बताईं थीं,पर तब उसने उसे डांट दिया था|विश्वास ही नहीं था कि प्रगतिशील विचारधारा वाले अनीस ऐसा भी कर सकते हैं पर बाद में उसे खुद सबूत मिलता गया |तब उसे लगा कि रमेश उसे अनीस के खिलाफ भड़का नहीं रहा,बल्कि उसके लिए चिंतित है|