Ek Ruh ki Aatmkatha - 19 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 19

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एक रूह की आत्मकथा - 19

मेरी बेटी अमृता और समर के बेटे अमन के बीच दोस्ती बढ़ती जा रही है।एक ही बोर्डिंग स्कूल में होने के कारण उन्हें मिलने- जुलने का भी अवसर मिल जाता है।हालांकि अमन का यह आखिरी साल है।वह इस वर्ष बारहवीं पास कर लेगा।अमृता अभी दसवीं हैं।समर की बेटी निर्मला भी उसकी क्लासमेंट है।समर अपने पिता की तरह ही बहुत स्मार्ट है।निर्मला उसकी अपेक्षा सीधी -सादी है। अमृता तो सचमुच अमृत है ।मरते हुए को भी देख ले तो वह जी उठे।

लीला से मुलाकात के बाद मेरी सोच की दिशा थोड़ी बदली है।अभी तक मैं सिर्फ अपने और समर के बारे में सोच रही थी ।अब हम- दोनों के बच्चे हमारे बीच आ खड़े हुए हैं।समर का नहीं जानती कि वह इस विषय ने क्या सोच रहा है ,पर मैं चिंतित हूँ।समर से अपनी अंतरंगता मुझे खत्म करनी ही होगी।


क्या समर और मैं पहले की तरह सिर्फ दोस्त नहीं रह सकते?एक सम्मान-जनक दूरी बनाकर रिश्ता नहीं बना सकते?प्रेमी- प्रेमिका,पति -पत्नी से अलग- सा एक रिश्ता।ऐसा रिश्ता ,जिसमें मन तो जुड़ा हो,पर तन से दूरी हो।


क्यों नहीं हो सकता?समर से मैं बात करूँगी। समर बहुत सुलझा हुआ इंसान है।मेरी बात वह जरूर समझ जाएगा।


पर मेरी सारी की सारी सोच धरी रह गई।समर ने आते ही मुझे गोद में उठा लिया और चूमते हुए ही बेडरूम की तरफ चला।मेरे भीतर भक से एक आग जल उठी।बिस्तर पर दोनों एक -दूसरे से यूँ लिपटे जैसे दोनों के शरीर एक ही हों।प्यार करने में समर का कोई जवाब नहीं।उसका हर स्पर्श मेरी देह की हर गांठ को खोल देता है।पूरे शरीर में जैसे मीठा -सा जहर से फैल जाता है। समर अपने होंठों से उस जहर को खींचता है।अपने हाथों से उसे निचोड़ता है।जब तक सारा जहर निकल नहीं जाता मुझे छोड़ता नहीं।जहर निकल जाने के बाद मैं अनोखे सुख का अनुभव करती हूँ।ऐसा सुख जिसके लिए सारी दुनिया कुर्बान की जा सकती है।जहर निकालने की मशक्कत से निढाल हो चुके समर के सीने पर सिर रखकर मैं उसे चूम लेती हूँ।फिर मैं उसमें आग भरती हूँ और उस पर बदली- सी बरस जाती हूँ।


कौन कहता है कि सेक्स में सुख नहीं ...संतोष नहीं!स्त्री पुरूष की देह का एक होना उनके रिश्ते की स्वाभाविक परिणिति है।ईश्वर ने दोनों के शरीर को एक -दूसरे के लिए ही बनाया है।स्त्री देह की गहराई और ऊंचाई पुरूष देह की ऊंचाई और गहराई में इस तरह समाहित हो जाती है जैसे किसी शिल्पकार ने दो अलग -अलग आकृतियां बनाकर एक- दूसरे से जोड़ दीं हों।दोनों हिस्से मिलकर ही पूर्ण होते हैं...मिलकर ही सुख पाते हैं।


मुझे अब जाकर स्त्री -पुरुष सम्बन्ध के रहस्यों का पता चला है। स्त्री पुरुष के बीच अगर सामंजस्य और सहयोग -भाव न हो।एक -दूसरे के प्रति समर्पण और प्रेम न हो तो ,वे उस चरम सुख तक नहीं पहुंच सकते ,जिसे ब्रह्मानंद भी कहते हैं।वैसे तो हर पति- पत्नी शारीरिक रूप से निकट होते हैं पर सबको ये सुख उस पूर्णता से नहीं मिल पाता।कारण बचपन से ही इस घुट्टी का पिलाया जाना है कि देह -सम्बन्ध एक गर्हित कर्म है।इस कर्म को पति -पत्नी भी सिर्फ सन्तान की उत्तपत्ति के लिए करें,निजी सुख के लिए नहीं ।


जबकि सेक्स अपने आप में गलत नहीं है |यह कुदरत का दिया अनुपम वरदान है |किसी भी धर्म में सेक्स को गलत नहीं माना गया क्योंकि यह सृजन का आधार है |जिस संबंध से एक शिशु जन्म लेता है,वह पाप हो ही नहीं सकता |अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक है,पर मनुष्य ने किसी भी चीज को स्वाभाविक रहने कहाँ दिया है ?उसने सेक्स जैसी सुंदर भावना को विकृति बना दिया है |सेक्स यदि विकृति होता तो आदिकाल से अब तक मनुष्य को बांधे नहीं रहता |सेक्स स्वतंत्र होता है |वह बंधन नहीं मानता पर इतना स्वच्छन्द भी नहीं होता कि सारी मानवता को ताक पर रख दे |वह हिंसक पशु भी नहीं होता |उसमें कोमलता,उदारता व प्रेम समाहित होता है|वह अपने साथी को कष्ट पहुँचकर नहीं ,उसके सहयोग से सुख प्राप्त करता है |इसीलिए सेक्स शिक्षा जरूरी है ।सेक्स शिक्षा से सेक्स के मनोवैज्ञानिक पहलू को समझा जा सकता है ,वरना सेक्स का सेंसेक्स कभी भी इतना गिर जाएगा कि स्त्री- पुरूष के बीच का स्वाभविक प्रेम ही खत्म हो जाएगा |


समर से मेरा सम्बन्ध स्वस्थ,सुंदर और आनंदकारी है पर यह समाज की नजरों में गलत है।मुझ पर यह मानसिक दबाव डाला जा रहा है कि मैं इस रिश्ते से पीछे हट जाऊँ पर मैं भी क्या करूँ?समर के करीब आते ही मैं अपना होश खो बैठती हूँ। ना ..ना करते हुए भी उसकी बाहों में सिमटती जाती हूँ।मैं खुद चाहती हूं ...दिल ,दिमाग, देह सबसे चाहती हूं कि समर मुझसे दूर न जाए।ईश्वर ने जो सुख मेरी झोली में खुद डाला है,उसकी अवमानना में नहीं करना चाहती।भविष्य में मेरा कुछ भी हो,वर्तमान को मैं नष्ट नहीं करना चाहती।लोग तानें दें ,मुझे बुरा -भला कहें।रिश्तेदार टीका- टिप्पड़ी करें,मुझसे रिश्ता तोड़ लें।मेरी बला से।मेरी बेटी जरूर मुझे समझेगी।


रहा समर की पत्नी और उसका बेटा तो वो जो चाहें कर-करवा लें।


अधिक से अधिक क्या होगा,मुझे मार दिया जाएगा।समर के लिए मैं मरने के लिए भी तैयार हूं।


समर से मेरा रिश्ता पाप नहीं है ...अनैतिक नहीं है और न ही प्रायोजित है।यह एक- दूसरे के सानिध्य से उत्तपन्न सहज- स्वाभाविक रिश्ता है।हम दोनों एक -दूसरे को समझते हैं। एक -दूसरे को शिद्दत से चाहते हैं। किसी को धोखा नहीं दे रहे।किसी को छल नहीं रहे।अशेष के रहते मैंने किसी भी पराए पुरुष को नहीं देखा।समर और लीला के बीच पहले से ही दूरी थी।मैंने उनका घर नहीं तोड़ा।वह तो पहले से ही टूटा हुआ था।मैंने तो भटकते हुए समर को संभाला ही है। समर यूँ ही तो मुझ तक आकर नहीं ठहर गया है।कुछ तो मुझमें ऐसा होगा,जिसने उसे बांध लिया होगा।लीला और समर के बीच दूरी की वजह क्या थी,मैं नहीं जानती,पर कहीं तो कोई चूक दोनों से ही हुई होगी।
लीला मुझसे भी ज्यादा सुंदर है .... पढ़ी -लिखी है।समर से उसका प्रेम-विवाह हुआ है।दोनों के दो प्यारे बच्चे भी हैं।वर्षों साथ-साथ कॉलेज लाइफ और गृहस्थ लाइफ जीए हैं, फिर भी उनमें सामंजस्य नहीं...प्यार नहीं...विश्वास नहीं ।
मेरा और समर का साथ तो कुछ ही समय पूर्व का है और वो भी औपचारिक ज्यादा रहा है ,फिर भी हम दोनों एक -दूसरे को समझते हैं।हममें प्यार और विश्वास का रिश्ता है।
हम रश्मो -किस्मों से नहीं बंधे हैं, फिर भी हमारे तन -मन एक हैं।हम एक- दूसरे के लिए जान भी दे सकते हैं।