mere Ander koi hai in Hindi Horror Stories by DINESH DIVAKAR books and stories PDF | मेरे अंदर कोई हैं

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मेरे अंदर कोई हैं

आज मैं आप सभी से वो बात शेयर करना चाहता हूं जिसे मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताई, कभी कभी मेरे शरीर में अजीब सी हरकतें होने लगती ये सब तब शुरू हुआ जब मुझे लगा मेरे शरीर में अकेला नहीं हूं मेरे साथ कोई और भी है.....

बोर्ड परीक्षाएं जैसे ही खत्म हुई मैंने अपना बैग बिस्तर पर फैंक दिया और बाइक उठाकर मैदान में पहुंच गया, वहां मेरे दोस्त पहले से ही मेरा इंतजार कर रहे थे।

मैं अपना बैट घुमाते हुए उनके पास गया तो उसमें से मेरा एक दोस्त अमर बोला "आखिरकार आज पीछा छूटा उस जेल (स्कूल) से आज के बाद हम आजाद हैं कोई रोक टोक नहीं क्यो ज्ञान ?

ओह मैंने तो अपना नाम ही नहीं बताया, मेरा नाम है ज्ञान। नटखट बदमाश प्यारा शैतान, इतना बड़ा हो गया है लेकिन इसकी बदमाशी खत्म नहीं होती ये मेरे घर वालों का कहना है लेकिन मैं कहता हूं चाहें बच्चा हो या जवान जीवन में मस्ती होनी चाहिए क्योंकि दिल तो बच्चा है जी।

मैंने उसकी बातों में हा में सर हिलाया तभी मेरा लंगोटिया यार गोपाल बोला " तो आज तुमने फायनली उससे अपने दिल की बात बता ही दी क्या बोली वो"

मैं थोडा उदास हो गया मुझे देखकर गोपाल बोला " अबे नौटंकी नाटक करना बंद कर मैंने देखा है तु कैसे खुशी से झूम रहा था, बाप से शान पट्टी करता है "

मैं मुस्कुराते हुए बोला "तो फोदरी के पुछ क्यो रहा है तुझे तो सब पता चल जाता है"

गोपाल " देख अगर मैं शुरू हो गया तो तु गाली देना भुल जाएगा"

ज्ञान यानी मैं " अच्छा ठीक है बताता हूं वो मान गई मेरी जानु ने हां कर दिया अब तो तेरा भाई भंडारा करवाएगा।"

गोपाल "शुकर है इस गधे को आखिरकार घोड़ी चढ़ने का मौका मिल ही गया।"

थोड़ी देर ऐसी ही बातचीत होती रही फिर मैच शुरू हो गया वैसे बता दूं रियल लाइफ में मेरा क्रिकेट से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है क्योंकि वो मेरे दिल में आता है दिमाग में नहीं, अब ये मत कहना दिमाग होगा तक समझ में आएगा ना, बता दूं दिमाग कुट कुट कर भरा हुआ है तेरे भाई में।

क्रिकेट खेलते खेलते शाम हो गई लेकिन परीक्षाएं खत्म होने की खुशी में समय का पता ही नहीं चला। सुर्य देव अपने घर जा चुके थे और रात का अंधेरा धीरे धीरे बढ़ने लगा था हम बातचीत करते हुए पैदल ही वापस आ रहें थे बाइक को मेरे भाई ने जरूरी काम से ले गया था शाम को। हम बातों में मशगूल थे कि तभी हमारी नजर उस पर पड़ी जिसे देखकर हमारे मुंह में पानी आ गया लेकिन वो लड़की नहीं थी घनघोर सिंगल वो था एक बड़े आम का पेड़ जिस पर बड़े बड़े रसीले आम लगें हुए थे।

हम उस पेड़ की तरफ बढ़ने लगे तभी अमर ने हमें रोका "रूको दोस्तों हमें उस जगह नहीं जाना चाहिए क्योंकि वो जगह पहले एक कब्रिस्तान हुआ करता था लेकिन अब उसे तोड़कर बांध बनाया जा रहा है।

उसकी बातों को सुनकर हम हंस पड़े, मैं हंसते हुए बोला "अरे यार तुम भी कब की बात लेकर बैठे हो वो बाबा आदम के जमाने की बात है अब चल चुपचाप।

अरे जरा उस मासूम आम को देख बेचारे की क्या गलती है की उसे तुम खाना नहीं चाहते बेचारा जमीन पर गिरा हुआ रो रहा है। यह कहकर हम सब हंसने लगे।

उसकी बातों को अनसुना कर हम पांचों उस आम के पेड़ के पास पहुंचे गोपाल और दो दोस्त तो झट से पेड़ पर चढ़ गए लेकिन मैं नहीं चढ़ पाया। मैं इधर उधर छोटे छोटे पत्थरों को इकट्ठा करने लगा जिससे मैं आम तोड सकूं, कुछ पत्थर इकट्ठा करते हुए मेरे हाथ एक पत्थर पर अटक गए वह जमीन से चिपका हुआ था मैंने उसे जोर से खिंच कर बाहर निकाला।

मुझे आभास हुआ कि वह पत्थर नहीं है मैंने उसमें से मिट्टी हटाई तो देखा वो एक हीरा था जिसके उपर मिट्टी चिपक गई थी मैंने उसे झट से अपने पाकेट के हवाले कर दिया।

थोड़ी देर बाद हम आम खाते हुए वापस लौट रहे थे कि मुझे लगा कोई हमें देख रहा है मैं पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नहीं था मैंने अपना वहम समझकर दोस्तों के साथ आगे बढ़ चला।

मैं घर पहुंचा और हाथ मुंह धोकर टीवी के सामने बैठ गया तो पापा भी आकर मेरे बगल वाले सोफे पर बैठ गए और मुझसे बोले - तो बरखूरदार कैसा रहा पेपर ?

मैं थोडा तहजीब से बोला - ठीक था पापाजी

पापा फिर बोलें - तो अब आगे कौन सा कोर्स करना चाहते हो ?

मैं असमंजस में पड़ गया - पापाजी वो ... मैंने अभी तक कुछ सोचा नहीं !

पापा कुछ बोलते इससे पहले मां बोल पड़ी - आप भी क्या पुछ रहें हैं बच्चे से अभी अभी तो पेपर खत्म हुआ है अभी थोड़े दिन खेलने कूदने दीजिए।

पापा बोलें- ठीक है बाबा जैसे तुम मां बेटे की मर्जी

कुछ देर बाद मैं अपने कमरे में आ गया मेरे सर में थोड़ा दर्द हो रहा था मैंने थकान की वजह से होगा करके ध्यान नहीं दिया और सो गया अगले दिन भी सर मैं थोडा थोडा दर्द था मां पापा अपने काम में व्यस्त थे तो मैंने उन्हें परेशान करना ठीक नहीं समझा सोचा अपने आप ठीक हो जाएगा।

लेकिन समय के साथ सर दर्द और बढ़ने लगा और साथ में कमर दर्द ही होने लगा जैसे मेरे कमर के हड्डी में कोई दबाव डाल रहा हों। मैंने ये बात मा और पापा को बताई।

मां - बेटा तुमने ये बात हमें पहले क्यो नही बताई

मैं - मां वो आप लोग अपने अपने काम में व्यस्त थे तो मैंने आपकों परेशान करना ठीक नहीं समझा।

पापा - गलत बात ज्ञान जब कोई भी बात हो तो तुरंत हमें बताना चाहिए समझ ग‌ए।

मैं - जी पापा

मां - शायद थकान और टेंशन की वजह से होगा मैं तुम्हारे सर पर टंडा तेल लगा देती हुं इससे तुम्हें आराम मिलेगा।

मैं मा के पास बैठ गया उन्होंने मेरे सर पर टंडा तेल लगाया जिससे मुझे काफी अच्छा लगा मैं बिस्तर पर जाकर सो गया लेकिन सुबह फिर वहीं हाल मेरा सिर दर्द जाने का नाम ही नहीं ले रहा था।

पापा ने कुछ सोचते हुए बोला - चलो अस्पताल चलते हैं अब डाक्टर चेक करके बताएंगे तुम्हें क्या हुआ है

मैं और पापा डाक्टर के पास जाते हैं सारी समस्याएं डाक्टर को बताने के बाद वे टेस्ट करते हैं लेकिन रिपोर्ट में सब नार्मल था वो बोले - रिपोर्ट तो बिल्कुल नार्मल है फिर भी मैं कुछ दवाइयां दे रहा हूं खा कर देखना आराम मिलेगा।

हम घर चलें आए और कुछ दिन तक उन गोलियों को खाकर देखने लगें लेकिन उससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ तब मां बेटे बोली - सुनिए जी हमें ज्ञान को किसी वैद्य के पास ले जाना चाहिए क्या पता वो हमारे बेटे को ठीक कर दें

पापा - हां यह भी करके देख लेते हैं

हम वैद्य के पास जाते हैं वे हमें कुछ औषधि देते है फिर कुछ दिन तक उन औषधियों को खा कर देखा लेकिन रिजल्ट वही था मां पापा दोनों परेशान हो गए, तब पापा के दोस्त ने सलाह दिया की चश्मा पहना कर देखो इस उम्र के लड़कों को ऐसी परेशानी होती ही है

पापा ने कल बड़े अस्पताल ले जाने को बोला और मेरे पास बैठ ग‌ए और मेरे सर पर टंडा तेल लगाकर सर का मालिश करने लगें और फिर कमर का भी, मुझे उससे काफी आराम मिला मुझे पता ही नहीं चला मैं कब सो गया।

सुबह हम अस्पताल गए चश्मा बनवाया साथ ही सर का सिटी स्कैन भी करवाया जिससे पता चल सके कोई और परेशानी तो नहीं कुछ दिन चश्मा पहना उससे बस थोड़ा थोडा आराम मिला तभी मुझे याद आया उस मणी की, इस सर दर्द में मैं तो भुल ही गया था मैं उसे पकड़ कर घर से दूर एक खाली जगह में जाकर बैठ गया और उस मणी को देखने लगा।

वह काफी महंगी लग रहा था मैं सोचता रहा कि इस मणी के बारे में मां पापा को बताया जाए तभी वहां से एक तांत्रिक गुजरा जिससे हड़बड़ाहट में मेरे हाथ में मणी छूटकर उस तांत्रिक के पैरों में जाकर रूक गई, इससे वह तांत्रिक भी वहीं रूक गया और उस मणी को लेकर मेरे पास आया और बोला - बच्चे ये मणी तुम्हारे पास कैसे आई

मैं थोडा घबराते हुए बोला - जी यह मेरा हैं ये...

वह तांत्रिक मेरे बातों को अनसुना करके कुछ मंत्र पढ़ने लगा और एक भभुत मेरे उपर छिड़क गया और फिर बोला - लड़के तुमने कितनी बड़ी गलती किया है तुम्हें अहसास नहीं है तुमने उसे अपने घर में जगह दे दिया है

मैं उनकी बातों को समझ नहीं पाया - आप क्या बोल रहे हैं

वे बोले - जब से ये मणी तुम्हें मिली है तब से तुम्हारे सर और कमर में दर्द होने लगा है जो निरंतर बढ़ रहा है

मैं हैरान सा बोला - हां लेकिन आपको कैसे पता चला

वह तांत्रिक बोला - क्योंकि यही मेरा काम है अब ध्यान से सुनो इस सब का कारण है यह मणी यह मणी एक चोर का है जो अब मर चुका है दरअसल बहुत साल पहले जब कल्लू नाम का चोर राजा के महल से एक किमती हीरे को चुरा लिया जब उसे पकड़ा गया तो उसने वह मणि अपने पेट के अंदर बड़ी चालाकी से छुपा लिया और जब राजा को वो मणि नहीं मिला तो उसने गुस्से में उस चोर को जिंदा दफना दिया। ये मणि उसी चोर का है जो तुम्हें उस पुराने शमशान में मिला है इसे छुते ही वह आत्मा तुम्हारे शरीर में घुस गई ताकि वो फिर से जिवित हो सकें।

यह सुनकर मैं डर गया - फिर से जिवित हो सकें वो कैसे मुमकिन है

वह तांत्रिक बोला - वो तुम्हारे शरीर में रहकर तुम्हारे आत्मा को नष्ट कर रहा है क्योंकि एक शरीर में केवल एक ही आत्मा का वास हो सकता है वो तुम्हारे आत्मा को खत्म कर तुम्हारे शरीर को पाना चाहता है आज अमावस्या की रात हैं वो तुम्हारी आत्मा को आज रात खत्म कर देगा और वो फिर से जिवित हो जाएगा।

मैं रोते हुए उस तांत्रिक के पैरों में गिर पड़ा - मुझे माफ कर दिजिए बाबा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई कृपया मुझे उस आत्मा से बचा लिजिए।

वे सुनकर वे बोले - अभी जो मैंने मंत्र पढ़कर भभुत तुम्हारे उपर छिड़का इससे वह हमारी बातों को सुन नहीं पाएगा लेकिन उसे इस बात शक जरूर होगा। इस आत्मा से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है इस मणि को तुमने जहां से लाया है वहीं वापस रखना है और मैं जो मंत्र बोलूंगा उसे बोलना होगा उससे तुम उससे वह आत्मा तुम्हारे शरीर से बाहर निकल जाएगी़।

आज रात को इस मणि को उस शमशान में लेकर जाना और उस मणि को वहां पर रखकर उस मंत्र को सात बार बोलना इससे वह आत्मा तुम्हारे शरीर से बाहर निकल जाएगी।

मैंने वो मंत्र याद कर लिए और उनका आशीर्वाद लेकर वहां से जाने लगा तब वो तांत्रिक फिर बोला - ध्यान रहें वो आत्मा तुम्हें इतनी आसानी से उस शमशान में जाने नहीं देगी लेकिन ये याद रखना वह तुम्हारे शरीर में है इसलिए जितना तुम उससे डरोगे उतना ही वह तुम्हें डराएगा।

मैं घर आ गया, रात होने को आई मैं घर पे किसी को बिना बताए उस शमशान की ओर निकल पड़ा मेरे पुरे शरीर में अजीब सा दर्द होने लगा था। अमावस की काली रात में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मैं अपने साथ एक बड़ा टार्च पकड़ा हुआ था।

रात में पक्षियों की आवाज चारों ओर गुंज रही थी तभी मुझे एक साया दिखाई दिया मैं डर गया तभी मुझे काफी कमजोरी महसूस होने लगी लेकिन मैं आगे बढ़ता रहा तभी मेरे अंदर से एक भयानक आवाज आई जिसे सुनकर मैं पुरी तरह से डर गया - तुम ये क्या कर रहे हों बच्चे वापस अपने घर चलों मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा।

डर के मारे मेरे मुंह से कुछ शब्द ही नहीं मैं बस उस आम के पेड़ से कुछ कदम दूर था तभी मेरे पैर अपने आप पिछे मुड ग‌ए और मैं वापस जाने लगा मैं और डर गया मेरे शरीर पर अब मेरा कोई नियंत्रण नहीं है।

वह साया हंसते हुए बोला - अब मैं फिर से जिवित हो जाउंगा हां हां हां

मैं बेबस हो उसकी बात सुनता रहा तभी मुझे उस तांत्रिक बाबा की बात याद आई कि तुम जितना उससे डरोगे वह तुम्हें उतना ही डराएगा।

मैंने भगवान का नाम लिया और हनुमान चालीसा पढ़ने लगा तब मैं फिर पिछे मुड ग‌या और आम के पेड़ की तरफ जाने लगा अब मेरे शरीर पर मेरा नियंत्रण बन रहा था ये देखकर वो साया बोला - ये क्या कर रहे हों बच्चे बंद करों उस मंत्र का जाप करना बंद करों

ये सुनकर मैं और जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा और दौड़ते हुए उस जगह पर पहुंच गया जहां से मुझे वो हीरा मिला था मैंने वो हीरा वहीं रख दिया और सात बार उस मंत्र का जाप करने लगा तभी मुझे एक झटका लगा और मैं जमीन पर गिर पड़ा मैंने देखा मेरे शरीर से एक साया बाहर निकल कर उस मणि में घुस गया।

मैंने राहत की सांस ली और एक बड़ा गड्ढा खोद कर उस मणि को उसमें डाल कर दिया और तेजी से उस शमशान में बाहर निकल आया मैंने मन ही मन उस तांत्रिक बाबा को प्रणाम किया और धन्यवाद दिया।

और घर की ओर जाने लगा तभी मुझे एक आवाज आई इधर उधर देखा तो छत पर एक लड़की खड़ी थी मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई वो मेरी राम प्यारी थी मैं छत से होता हुआ उसके पास जा पहुंचा।

वो बोली - कोई देख लेगा जाओ यहां से

मैं बोला - ऐसे नहीं जाउंगा पहले एक किस दो

वो बोली - नहीं

मैं - तो फिर मैं नहीं जाने वाला ।

तभी मेरे होंठों पर एक चुम्बन हुआ मैंने प्यार से उसकी ओर देखा और निचे उतर कर घर चला गया।

आज इस घटना को 20 साल हो गए आज के बाद मैं कभी उस शमशान की ओर नहीं जाता और जब भी वो साया याद आता है मैं मर से कांप उठता हूं सोचता हूं अगर वो तांत्रिक बाबा नहीं मिलते तो वो मेरे आत्मा को मार कर खुद मेरे शरीर पर राज करता।

®®® DINESH DIVAKAR "STRANGER"

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