एक बच्चा और उसके मम्मी-पापा पहाड़ों मे एक छोटे से गाँव मे रहते थे। क्योंकि उनके गाँव में कोई स्कूल नहीं था इसलिए जब बच्चा 3 साल का हो गया तो उसे पढ़ाने के लिए उसके मम्मी-पापा उसे लेकर पास के एक शहर में आकर रहने लगे। उसके परिवार के पास बहुत पैसे नहीं थे इसलिए बच्चे के पापा ने एक छोटी सी नौकरी ढूँढी और शहर में एक छोटा सा कमरा किराये पर लिया ताकि वो शहर मे रह सकें और अपने बच्चे को पढ़ा सकें। बच्चे का दाखिला भी पास के ही एक छोटे से स्कूल मे कराया गया, जो उसके घर से थोड़ा ही दूर था। स्कूल छोड़ने उसके पापा साइकिल से जाते और स्कूल से लेने उसकी माँ। स्कूल जाना उसे भी सारे बच्चों की तरह कुछ खास पसंद नहीं था। पर स्कूल मे एक मैडम थीं, जो उसे बहुत प्यार करती थीं। वो जब भी घर की याद करके रोता तो वो उसे बहलाने के लिए टॉफी दे देती। वही मैडम, उससे मजे लेने के लिए उसकी सुंदर सी सफेद बालों बाली कैप ले लेती, जो वो स्कूल पहन कर आता था। जिससे वो मुह लटका कर बैठ जाता। फिर मैडम उसे गालों पर चुम्मी देकर उसकी कैप उसे बापस पहना देतीं । जिससे वो बहुत खुश हो जाता। धीरे-धीरे उसे स्कूल अच्छा लगने लगा। अब जिस दिन उसकी मैडम उसकी कैप लेना भूल जाती तो वो खुद ही अपनी कैप उन्हें हंस कर दे देता क्योंकि वो भी मैडम से घुल-मिल गया था उसे मैडम का चुम्मी देकर उसकी कैप लौटाना अच्छा लगता था। अब वो सारे बच्चों के साथ मिल कर मस्ती करता, पढ़ाई करता और फिर घर चल जाता।
वो जहां रहता था, उसके पास ही कृष्ण भगवान का एक मंदिर था। शाम को कभी-कभी उसके मम्मी-पापा भगवान के दर्शन करने उसे लेकर वहाँ चले जाते थे। मंदिर मे शाम को आरती के बाद भजन का कार्यक्रम होता था। बच्चे ने भी सुन-सुन कर कुछ भजन याद कर लिए। जब वो स्कूल जाता तो मैडम को भी भजन सुनता। मैडम को उसकी मीठी सी आवाज मे भजन बड़े अच्छे लगते और वो उसे प्रोत्साहित करने के लिए रोज एक टॉफी देतीं। धीरे-धीरे दो साल बीत गए और बच्चा भी अगली क्लास में चल गया।
इधर उसके पापा, जो एक छोटी सी नौकरी करते थे उससे उनका घर का खर्च और बच्चे के स्कूल की फीस भरना भारी हो रहा था। उसके पिता ने दूसरी नौकरी तलाश करने की बहुत कोशिश की, पर वो ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था इसलिए उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी। उसकी माँ भी गाँव की ही थी, पर वो बी.ए. तक पढ़ी थी, इसलिए घर का खर्च चलाने के लिए माँ ने घर पर ही कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया जिससे उनका घर और स्कूल दोनों का खर्च चलने लगा।
थोड़े दिनों बाद शहर के एक सरकारी अस्पताल में उसके दूसरे भाई का जन्म हुआ। बच्चे के जन्म से खर्चे फिर बढ़ने लगे और बच्चा छोटा होने के कारण बच्चे की माँ ट्यूशन भी नहीं पढ़ा सकती थी। फिर पहले की तरह खर्चे बढ़ने के कारण उनका शहर मे रहना मुश्किल होने लगा। उन्हें लगा कि अब वो शहर मे और अधिक दिन नहीं रह पाएंगे। उन्हे अपने गाँव बापस जाना पड़ेगा। इसी उथल-पुथल में भगवान को याद करते हुए मन बहलाने के लिए हमेशा की तरह पिता ने बेटे से बोला कि चलो मंदिर होकर आते है। माँ की तबियत खराब होने और बच्चे के छोटे होने के कारण उन दोनों को घर पर ही छोड़कर पापा और बेटा दोनों मंदिर चले गए। मंदिर में जो पंडित जी और उनकी मंडली नियमित भजन गाते थे, वो किसी भागवत कथा में संकीर्तन के लिए गए हुए थे। इस कारण मंदिर में भजन का कार्यक्रम भी नहीं हो पा रहा था। मंदिर मे बहुत थोड़े से ही भक्त थे। भगवान के दर्शन कर बच्चे के पिता भगवान से प्रार्थना करने लगे, हे भगवान, मैं ये सोचकर शहर आया था कि मैं तो ज्यादा नहीं पढ़ पाया पर अपने बच्चे को जरूर पढ़ाऊँगा, ताकि जीवन मे मेरी तरह उसे ठोकरें ना कहानी पड़ें। पर अब लगता है कि वो भी मेरी तरह ही लाचार और बिना पढे ही रह जाएगा।
बच्चा और उसके पिता आरती के बाद जब प्रसाद लेने पंडित जी के पास गये तो बच्चे ने उत्सुकता से पंडित जी से पूछा, आज मंदिर मे इतने कम लोग क्यू हैं और भजन वाले पंडित जी भी नहीं दिख रहे। आज भजन-कीर्तन नहीं होंगे क्या? उन्होंने छोटे बालक की जिज्ञासा शांत करने के लिए भीड़ कम होने और भजन-कीर्तन ना होने का कारण बताया तो बच्चा बोला कि मुझे तो कृष्ण भगवान के भजन आते हैं। मैं आपको सुनाऊ। पंडित जी ने सोचा तो बच्चा जिद कर रहा है तो उसका मन रखने के लिए उससे बोला, अच्छा तो सुनाओ एक भजन। और माइक उसकी तरफ बढ़ा दिया। बच्चे ने अपनी मीठी आवाज मे एक प्यार सा कृष्ण भजन गाना शुरू किया। उसकी आवाज सुनकर मंदिर के आस-पास के सभी भक्त और उसके स्कूल की मैडम जो उसे दो साल पहले पढ़ाती थीं, मंदिर के पास ही रहती थीं, उसकी मधुर आवाज सुनकर मंदिर मे आकर उसके आस-पास खड़े हो गए और उसके भजन को ध्यान से सुनने लगे, मैडम ने उसे पहचान लिया। उसकी आवाज मे इतनी मिठास थी कि उसने सबका मन मोह लिया। सभी वहीं बैठ गए और उसके साथ ही कृष्ण भजन गाने लगे। लोगों ने और भजन गाने की फरमाइश की। बच्चे ने 3-4 भजन गाए और सबका मन मोह लिया। सभी ने छोटे से बच्चे की इन प्रस्तुतियों को सुनकर उसे खूब सराहा और आशीर्वाद दिया। साथ ही हमेशा की तरह कुछ पैसे भेंट स्वरूप पूजा की थाली में रख दिए। सभी खुशी-खुशी मंदिर से विदा हुए। पंडितजी ने भजन समाप्त होने के बाद बच्चे और उसके पिता को इशारा करके अपने पास बुलाकर उस बच्चे से कहा, तुम तो बहुत अच्छा गाते हो, तुम्हें इतने सारे भजन कैसे याद हैं । तो बच्चे ने उत्तर दिया कि मैं अपने मम्मी-पापा के साथ मंदिर मे अक्सर आता हूँ तभी मैंने यही पर सुनकर ये भजन याद किए हैं। मुझे भजन बहुत अच्छे लगते है, मैं अपने स्कूल की मैडम को भी ये भजन सुनाता था। मैडम भी पास ही खड़ी ये सब सुन रहीं थी। मैडम ने बच्चे की बात की पुष्टि करते हुए बच्चे को गोद मे उठा लिया और उसके गालों को चूम लिया। पंडित जी ने भी प्रसन्न होकर बच्चे के पिता से कहा, आपका बेटा बहुत ही सुंदर भजन गाता है, इसे आप रोज मंदिर लाया करो। जब तक हमारी मंडली बापस नहीं आती, हम सब इसके साथ ही मिलकर भजन-कीर्तन का कार्यक्रम करेंगे और मंडली के आने पर इसे भी उसका हिस्सा बना लेंगे। मंदिर में चले आ रहे नियम के अनुसार भजन मंडली ही भजन मे आई भेंटो की हकदार होती है, इसलिए जो भेंट पूजा में प्राप्त होंगी उनका हकदार ये बच्चा भी होगा। ये सुनकर बच्चे के पिता की आंखों में आँसू भर आए। उसे भी पता नहीं था कि उसका बेटा इतना सुंदर भजन गाता है। बेटे के भजन ने उसके परिवार पर आई आर्थिक और मानसिक विपत्ति को दूर कर दिया। जिसे लेकर वह भगवान के मंदिर मे प्रार्थना करने आया था। दोनों ने पंडित जी के चरण स्पर्श किए और दोनों प्रसाद लेकर घर बापस आ गए। ये सारी कहानी बच्चे के पिता ने माँ को सुनाई। माँ ने अपने बच्चे को अपने आँचल में छुपा लिया और फूट- फूट कर रोने लगी।
जब हम किसी कार्य को निस्वार्थ भाव से करते हैं तो भगवान भी हमें बिना दिखाई दिए ही हमारी मदद किसी ना किसी रूप मे अवश्य करते है। जैसे कि इस परिवार की की।
“बोलो कन्हैया लाल की जय”