शुभ दीवाली
आ ही गयी दीवाली, आप सभी को इस वर्ष की और आपके जीवन में आने वाली हर दीवाली की ह्रदय से शुभकामनायें एवं बधाई. आप सभी का जीवन दीवाली के दीपक की रौशनी की तरह जगमगाता हुआ व्यतीत हो. इसी कामना के साथ अपना “शुभ दीवाली” का किस्सा शुरू करता हूँ.
हम एक छोटी सी कॉलोनी में रहते है, जो चारो तरफ से हरे-भरे खेतों से घिरी हुई है, जिसमे 40-45 परिवार रहते है और हमारी गली में हम 5-6 परिवार. अपने घर से दूर राजस्थान में ये परिवार ही हमारे अपने हैं ये सोच कर ही हम सभी त्यौहार साथ में मानते हैं, नाकि अपने अपने घर में. कोई गुजरात का है तो कोई मध्य प्रदेश का, कोई उत्तर प्रदेश का तो कोई बिहार का, बाकी यहीं राजस्थान के.
दीवाली के दिन उठते ही जितनी उमंग आपके और हमारे मन में होती है, उससे कहीं ज्यादा उत्साह हमारे छोटे छोटे बाल-गोपाल यानी हमारे बच्चों में होती है. ये आप भी जानते है क्यूँ. खूब सारे पटाके चलाने, माँ के हाथ से घर पर बनी मिठाइयाँ और नमकीन दोनों साथ में खाने और अपने दोस्तों साथियों के साथ खूब सारी मस्ती करने की. उठते ही दोनों भाई बहन ने दीवाली पर लाये गए पटाको का बटवारा शुरू कर दिया, ताकि शाम को मेरे तेरे की लड़ाई शुरू ना हो जाय. हमने तो ये नहीं सिखाया पर ये खुद ही पता नहीं कब सीख गए ये सब. उसके बाद स्नान इत्यादि से निवृत होकर कपडे निकालने लग गए, कि शाम को क्या पहना जायेगा. अभी की चिंता किसी को नहीं. दोनों का बस चलता तो दिन होने ही नहीं देते, सीधे दीवाली की रात ही होती. ये सब कर बाहर से उनके दोस्तों की आवाजे सुनकर दोनों गली में चले गए, ताकि यह पता चल सके कि कौन, क्या-क्या, कैसे-कैसे पटाके लाया है और सारे मिलकर किसके घर के सामने सारे पटाके फोड़ेंगें. कौन क्या पहनेगा, कौन कैसी रंगोली बनाएगा, किस किस के घर कौन-कौन सी लड़ी/झालर आई है.इधर घर में हम दोनों पति पत्नी आज क्या खाना बनेगा, पूजा का क्या समय है, ये सब चर्चा में लग गए. और फिर इसके बाद हमसे दूर रह रहे अपने बड़ों को फ़ोन कर दीवाली की राम-श्याम करने में व्यस्त हो गए. इसी दौरान मेरे एक राजस्थान के मित्र का दिल्ली से फोन आ गया , जो मेरे साथ कॉलेज में अपनी बुआ के पास रहकर उत्तर प्रदेश में पढ़ता था, जिसे मैंने १ दिन पहले फ़ोन किया था, पर ऑफिस से घर बापस आने के रास्ते में होने की बजह से उससे बात नहीं हो पायी थी. बड़े शहरों की व्यस्त जिंदगी, उससे मेरी बात लगभग 4-5 साल बाद हो रही थी. वो कई सालो से घर भी नहीं आया था. वह दिल्ली में ही नौकरी करता है और वही मकान भी बना लिया. क्युकि बात काफी समय बाद हुई थी तो पता ही नहीं चला की कब बात करते-करते दोपहर हो आई. उसके बाद घर की चादरें और मेजपोश बदले गए. ख़राब बल्ब बदल कर नए लगाये गए. दोपहर बाद मैं लड़ी/झालर लगाने छत पर चला गया. बच्चे बाहर से घर आ चुके थे. बेटी ने खुद से अपने हाथों में मेहँदी लगाईं और उसे रचाने के लिए चीनी का पानी और नीबू मिलाकर हाथों पर लगाने का नुस्का मैंने उसे अपनी शादी की यादों से निकाल कर बताया. दोनों भाई बहनों ने मिलकर फूलों की मालाओ से घर, दरवाजे और सीढ़ियों को सजा लिया, इतने में शाम हो गयी. बिटिया रानी घर के गेट के पास सुन्दर सी रंगोली बनाने में लगी थी. मैंने काम से निवृत होकर श्रीमती के आदेश पर पूजा के लिए फूल-माला एवं लक्ष्मी जी को प्रिय कमल का फूल लेने जाने के लिए प्रस्थान किया. जब तक मैं लौट कर आया तब तक रंगोली बन चुकी थी और बिटिया अपने मित्रों को वह रंगोली दिखाने में व्यस्त थी. घर आने के बाद सभी तैयार होने लगे, मैंने कुर्ता पाजाम, श्रीमती जी ने साड़ी और बच्चों ने अपनी पसंद के जो कपडे दोपहर में निकाले थे वो पहने. फिर पूजा की तैयारी की और मिटटी के लक्ष्मी गणेश जी को फूल माला से सजाया गया, खील खिलौने, मिठाई, रोली, चन्दन, धूप, दीप, अगरबत्ती इत्यादि पूजा के लिए रख कर तैयारी पूर्ण की. मंदिर में भी एक झालर लगाई जिससे भगवान भी जगमग हो उठे. दीप जलाकर पूजा प्रारम्भ की. गणेश जी की आरती उन्ही स्पीकर में लगाई गयी, जिनकी चर्चा इस किस्से की अंतिम कड़ी “दिवाली के बाद” में विस्तार से है. फिर लक्ष्मी जी की आरती लगाई. आरती लगते ही छोटे उस्ताद ने पीछे से काना-फूसी प्रारंभ कर दी. कितनी देर तक पूजा चलेगी. पूरी दीवाली यही करते रहेंगे क्या ? पटाके कब चलाएंगे, रात हो गयी है. सह सुन सब मंद मंद मुस्कुराते हुए आरती करने लगे. आरती होने के बाद 5 घी के और शेष तेल के दीपकों को प्रज्वलित कर घर के हर कोने कोने को रोशन किया गया. साथ ही आयी मोमबत्तियों को भी प्रज्वलित किया गया. घर जगमग हो उठा, इन सबका साथ घर के बाहर लगी लड़ी/झालर दे रही थी. आस-पास के लोग भी बाहर आकर दीप जला रहे थे, सभी ने एक दूसरे का अभिवादन करते हुए दिवाली की शुभकामनाएं दीं. फिर क्या सारे मोहल्ले के बच्चे और सारे पटाके घर के बाहर और शुरू हो गयी बच्चों की दीवाली धूम धड़ाके से. इस दीवाली पहली बार अहसास हुआ कि बच्चे बड़े हो गए. अपने आप ही पटाके चलाने लगे. तब तक परिवारों का एक दूसरे के घर आना-जाना शुरू हो गया, हमारे घर पर पास के लगभग 15-16 साल के २ बच्चे सबसे पहले पैर छूने और दीवाली की मिठाइयो एवं नमकीन का भोग लगाने आये. उसके बाद सिलसिला शुरू हो गया सभी परिवार एक एक करके आना शुरू हो गए. इसी बीच मैंने गोभी की डीप फ्राइड सब्जी बना ली , श्रीमती जी पूड़ी कचोडी पहले ही बना चुकी थीं. समय निकाल कर मैंने खाना खा लिया. बहुत भूख लगी थी. उधर सभी पधारे लोगों ने हमारे घर पर ही बनी शुद्ध एवं स्वादिष्ट बर्फी. २ तरह के लड्डू, गुलाबजामुन, रबड़ी, दही बड़े, 4 तरह की नमकीन का आनंद लिया और ढेर सारी बातें हुई. हमारे मोहल्ले में पाक कला में पारंगत और सबसे ज्यादा मिठाई नमकीन बनाने की शौकीन हमारी श्रीमती जी ही है. साथ ही उन्हें सभी को खिलाने का भी बड़ा शौक है. इसलिए सबसे पहले सभी हमें शुभकामनाये और बधाई देने आये. यूँ ही खाते पीते कब रात के 12 बजने को आये, पता ही नहीं चला, सबके जाने के बाद हम बच्चों को घर पर बैठाकर घर से निकले, सबसे पहले घर के सामने अंकल आंटी से आशीर्वाद लेने गए. उसके बाद खड़े-खड़े ही दो परिवारों के यहाँ गए. इसके बाद श्रीमती जी की सगी सहेली, जो उनके घर नहीं आने का उलाहना देकर गयीं थीं, के घर गए और जाते ही मैंने मजे के लिए कहा 'अब हम आपके घर २ दिन रहेंगे, आज और कल', आप समझ ही गए होंगें मैं ऐसा क्यों कह रहा था . ये सुनकर वो भी खुश हो गए. बस फिर सभी बैठ गए, मुझे घवराहट सी हो रही थी. इस कारण सामने रखे पकवानों और मिठाई का आनंद नहीं उठा पाया. फिर भी हम सब बात-चीत कर रहे थे. अंततः मैं घबराहट के कारण बाहर आ गया और घर आते-आते घबराहट का अंत एक उल्टी से हुआ. यही है उम्र का तकाज़ा, और इसी के साथ हमारी दीवाली का भी . सभी ने कपड़े बदले और चले सोने.
कहानी अभी भी बाकी है. पढ़िए अंतिम अंक “दीवाली के बाद” में..
मैं आपको आश्वस्त करता हूँ, यदि आपको मेरे पहले दो किस्से अच्छे लगे तो तीसरा भी आपको निराश नहीं करेगा. मिलते हैं तीसरे एवं आखरी अंक में...... शुभ दीवाली......