Bhuli Bisri Khatti Meethi Yaade - 27 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 27

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

Categories
Share

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 27

शादी के बाद
एक दिन शाम को भार आया तो देखा पत्नी
अब यहां आगे बढ़ने से पहले पत्नी का नाम बताना जरूरी है।उसका नाम इंद्रा है लेकिन एक दूसरा नाम जो स्कूल में या सर्टिफिकेट में नही है।वह उसका घरेलू नाम है,गगन और प्यार से उसके मम्मी पापा उसे गगगो नाम से बुलाते थे।और मैने भी ऐसा ही किया।
"क्या देख रही हो?"मैं कमरे से बाहर आया तो मैंने उसे ढूंढते हुए देखकर कहा।
"खाना बनाना है।लकड़ी नही मिल रही चूल्हा जलाने के लिए।"
पहले भी शायद बता चुका हूँ।उन दिनों गांव में चूल्हा और शहरों में अंगीठी पर खाना बनता था।स्टोव आदि भी प्रयोग में लाये जाते थे।हमारे यहाँ गांव में खाना चूल्हे पर बनता और चाय के लिए स्टोव काम आता था।
"तुम क्यो बना रही हो।माँ आ जायेगी वह बना लेगी।"
यह बात तब की है जब में पत्नी के साथ खान भांकरी गया और दो दिन बाद वापस लौट आया था।
"माताजी का पता नही कहा गयी है और अभी रात हो जाएगी।सब खाने के लिए कहेंगे।"
और मैंने पत्नी को बताया लकड़ी कहा रखी रहती है।फिर चूल्हा जलाने में उसकी सहायता करने लगा तो वह बोली,"आप रहने दो सब क्या कहेंगे।"
उन दिनों मैं और गणेश ताऊजी का परिवार पुश्तेनी मकान में ही रहते थे।आंगन में ही दो चूल्हे थे।वही पर बैठकर सब खाना खाते थे।
"तुम चिंता मत करो।"
वह नई थी।डरती रही और मुझसे मना करती रही।पर मैने पत्नी की बराबर मदद की थी।मेरा परिवार बड़ा था।बहन और भाई सब मेरे से छोटे थे।शादी हुई तब मेरी उम्र ही 23 साल थी और पत्नी की 21।मेरे परिवार का पूरा भार या जिम्मेदारी जो मुझ पर थी।उस पर भी आ गयी थी।
फिर आगे बढ़ने से पहले।
जैसा मैं पहले बता चुका।सबसे पहला काम मैने पैर नही छुआये।हमारे यहाँ पति के पैर छूने की परंपरा है।जब पति पत्नी बराबर है तो वह पैर क्यो छुए।
दूसरे मैने उस दिन से ही घर खर्च उसे सौंप दिया।हर महीने वेतन मिलता और मैं उसे दे देता।कैसे खर्च करना है।क्या मंगाना है।वह जाने।परिवार खानदान में रिश्ते कैसे निभाने है।यह भी उस पर है।चाहे जिस से बात करे।मतलब हम पति पत्नी एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास करते है।मैं अपने काम उस पर नही छोड़ता बल्कि बराबर उसकी साहयता करता हूँ।
शादी होकर आयी तब वह बहुत सुंदर थी।आंख,कान,नाक पैर हर अंग से सुंदरता टपकती थी।और उसकी सुंदरता ने मेरे दिल मे और बदन की खुश्बू ने मेरे जेहन मे जगह बना ली थी।गुस्से बाज है और जब गुस्सा आता है तब आज भी।
"यह तुम आप आप क्यो करती हो?"
जब वह आयी तब बात करते हुए मेरे लिए आप सम्बोधन का प्रयोग करती थी।
"फिर क्या कह?"
"जब मैं तुम्हे नाम से बुलाता हूँ ,तो तुम भी मेरा नाम लिया करो।'
"नही"
"ठीक है।फिर मैं तुम कहता हूँ तो तुम भी तुम ही कहोगी।"
और काफी दिनों बाद मैं उसकी यह आदत छुड़ा पाया था।
शादी के बाद मैं करीब पंद्रह दिन पत्नी के साथ गांव में रहा था और हम एक दूसरे के करीब आ गए।
फिर से कुछ छूट रहा है।
शादी के बाद मैं पहली बार ससुराल गया।तब मेरे दूसरे नम्बर के साले बोले,"पिक्चर देखने चलते है।"

"