Rest of Life (Stories Part 23) in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | शेष जीवन (कहानियां पार्ट 23)

Featured Books
  • સુખં ક્ષણિકમ દુખં ક્ષણિકમ

    સુખં ક્ષણિકમ દુખં ક્ષણિકમ   यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुर...

  • અગનપંખી?

    સ્વર્ગના અમર બગીચાઓમાંથી, સુવર્ણ કિરણોના ઝૂંડ સાથે એક અગનપંખ...

  • નદીના બે કિનારા

    સાબરમતી નદીનો પ્રવાહ હંમેશની જેમ શાંત હતો, પણ રીનાના મનમાં એ...

  • તલાશ 3 - ભાગ 38

    ડિસ્ક્લેમર: આ એક કાલ્પનિક વાર્તા છે. તથા તમામ પાત્રો અને તેમ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 264

    ભાગવત રહસ્ય -૨૬૪ એ દૃશ્યની કલ્પના કરવા જેવી છે,હમણાં સુધી વૈ...

Categories
Share

शेष जीवन (कहानियां पार्ट 23)

जहाँ अनुपम रहेगा उसकी छाया वही रहेगी।सिर्फ मौत ही मुझे तुमसे जुदा कर सकती है।इसलिए मुझ से अलग होने का ख्याल मन से निकाल दो।जब तक जिंदा हूँ तुम्हारी हूँ और रहूंगी।"
अनुपम छाया की बात का जवाब देता उस्से पहले कंडक्टर आकर बोला,"कहा जाना है?'
"पटना के दो टिकट"कंडक्टर की बात का जवाब छाया ने दिया था।कंडक्टर टिकट काटकर अपनी सीट पर चला गया।।अनुपम रात में सोया नही था।इसलिये सीट पर बैठा बैठा ही सो गया।छाया भी उँगने लगी।
और दस बजे बस पटना पहुंच गई थी।छाया साये की तरह उसके साथ लगी थी।वह उससे पीछा छुड़ाना चाहता था पर नही छुड़ा पा रहा था।बस से उतरकर वह आरक्षण के लिए आया।और उसने दो टिकट देहरादून के खरीदे थे।टिकट लेकर वह वेटिंग रूम में आया।नहाने धोने के बाद वह प्लेटफॉर्म पर आए ट्रेन लग चुकी थी।वे अपनी सीट पर आकर बैठ गए।
सीट पर बैठते ही छाया ने अनुपम से पूछा,"आज तुम्हारा व्रत है?"
"नही"छाया की बात सुनकर अनुपम बोला,"तुम यह क्यो पूछ रही हो?"
"दोपहर हो गयी लेकिन तुमने कुछ खाया पिया नही।इसलिए मैंने सोचा तुम्हारा व्रत है और मुझे भी भूखा रहना पड़ेगा,"छाया अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोली,"जोर की भूख लग रही है।कुछ खाने के लिये ले आओ।"
"तुम्हे खिलाने पिलाने की जिम्मेदारी मुझ पर नही है।"
"कैसी बात कर रहे हो।पत्नी का पेट पति नही भरेगा तो कौन भरेगा?"
"कितनी बार कह चुका हूँ।मैं तुम्हारा पति नही हूँ।"अनुपम गुस्से में बोला था।
"प्लीज नाराज मत होओ।पहले कुछ खाने के लिए ले आओ।गुस्सा फिर कर लेना।"छाया ने प्यार से मनुहार की थी।अनुपम कसमसाता हुआ चला गया।कुछ देर बाद वह खाने का सामान और पानी लेकर लौटा था।
ट्रेन चल पड़ी।खाना खाने के बाद अनुपम ऊपर की बर्थ पर जाकर सो गया।छाया नीचे की बर्थ पर खिड़की के पास बैठी बाहर के दृश्य देखने लगी।
देहरादून पहुचने से पहले अनुपम ने फोन कर दिया था।उसे लेने के लिए जीप आ गयी थी।
अनुपम के साथ युवती को देखकर ड्राइवर ने सोचा।साहब ने शादी कर ली और उसने यह सूचना फोन से दे दी थी।अनुपम पहुंचा उससे पहले उसके बंगले के बाहर स्टाफ के लोग और उनके परिवार के लोग इकट्ठा थे।औरतो ने छाया का परम्परागत तरीके से स्वागत किया था।
अनुपम की शादी की खुशी में स्टाफ के लोगो ने पार्टी का आयोजन किया था जिसमे नाच गाने का प्रोग्राम भी था।
अनुपम नही चाहता था पार्टी हो।वह इस शादी को नही मानता था।लेकिन स्टाफ के लोगो को वह कैसे समझाये।कौन उसकी बात पर यकीन करेगा कि छाया उसकी पत्नी नही है।अगर वह कहेगा कि उसकी शादी जबरदस्ती की गई है।छाया को जबरदस्ती उसकी पत्नी बनाया गया है।ऐसा कहने पर लोग सवाल कर सकते है कि वह छाया को पत्नी नही मानता तो अपने साथ क्यो लेकर आया है?
इस प्रश्न का कोई जवाब उसके पास नही था।पार्टी देर रात तक चलती रही।पार्टी खत्म होने पर बेडरूम में पलँग पर लेटते हुए छाया बोली,"बहुत थक गई हूं।"
छाया को पलँग पर लेटा देखकर अनुपम सोफे पर लेट गया।
"वहा क्यो सो रहे हो।यहां आओ ना"
"मैं ठीक हूँ।"
"ऐसा कैसे हो सकता है।मैं आराम से सोऊ और तुम दुख पाओ।"
"मेरी चिंता करने वाली तुम कौन हो?"