Achhut Kanya - Part 13 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग १३  

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अछूत कन्या - भाग १३  

कॉलेज के चौथे साल में एक दिन विवेक ने गंगा के सामने शादी का प्रस्ताव रखते हुए कहा, “गंगा आई लव यू, आई लव यू तो हम पिछले दो-ढाई साल से कह रहे हैं पर अब बारी है सच में एक हो जाने की। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ गंगा।”

गंगा विवेक के इस प्रस्ताव से बहुत खुश हो गई लेकिन फिर बिना कुछ बोले वह शांत ही रही। उसे अपनी अम्मा की बात याद आ गई। जब उसने नर्मदा को कहा था, “अम्मा मेरे कॉलेज में एक लड़का है, मैं उससे प्यार करती हूँ।”

“और वह…,” नर्मदा ने पूछा।

“हाँ अम्मा वह भी मुझसे बहुत प्यार करता है।”

तब नर्मदा ने एक ऐसा प्रश्न कर दिया था जो आज विवेक के शादी के प्रस्ताव रखते ही गंगा को याद आ गया।

नर्मदा का प्रश्न था, “गंगा बेटा क्या वह ऊँची जाति का है या…” 

तब गंगा ने कहा था, “अम्मा यहाँ शहर में ऐसा भेद-भाव नहीं है, छूत-अछूत कुछ नहीं होता। अम्मा आज तक हमारी इस बारे में कभी कोई बात नहीं हुई।” 

गंगा को शांत देखकर विवेक ने उसके हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा, “क्या हुआ गंगा? कहाँ खो गई?”

नर्मदा का पूछा वह प्रश्न आज गंगा के मन मस्तिष्क में हलचल मचा रहा था। उसे नर्मदा की वह बात भी याद आ रही थी जब उन्होंने कहा था, “गंगा इस जाति बिरादरी के कारण हम एक बार इतनी गहरी चोट खा चुके हैं, अपनी एक बेटी को खो चुके हैं; जिसका दर्द आज भी हमें चैन और सुकून से रहने नहीं देता। तुम्हारी ज़िन्दगी में हमारी जाति को लेकर कोई भूचाल ना आ जाए बेटा, बस इसलिए डर लगता है।”

यह सब याद आते ही गंगा ने सोचा उसे विवेक से आज खुल कर सारी बात कर लेना चाहिए। गंगा ने विवेक से कहा, “विवेक मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ। तुम्हें कुछ बताना चाहती हूँ।”

“क्या हुआ गंगा? मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कहा? बोलो तुम क्या कहना चाहती हो?”

“विवेक अब कुछ ही दिनों में हमारा कॉलेज ख़त्म हो जाएगा और हम एक दूसरे से अलग हो जाएंगे। अब यदि हमें साथ रहना है तो विवाह के विषय में तो सोचना ही होगा। विवेक तुम जानते हो मैं बहुत ही छोटी जाति से हूँ। मेरे पिताजी मोची का काम करते हैं। क्या तुम्हारा परिवार मुझे स्वीकार करेगा? क्या मोची वाली बात जानने के बाद तुम भी मुझे…”

“अरे-अरे गंगा तुम तो बोलती ही जा रही हो। मुझे भी कुछ बोलने का मौका दोगी या मन में पल रही इन ग़लत भ्रांतियों को यूँ ही हवा देती रहोगी। मेरे प्यार का स्टेशन तो बहुत दूर है गंगा। चलते-चलते पूरी उम्र बीत जाएगी पर वह स्टेशन आएगा ही नहीं।”

“मतलब क्या कहना चाहते हो तुम? हमारे प्यार का कभी कोई मुकाम आएगा ही नहीं? 

“अरे पगली मेरे कहने का मतलब यह है हमारा प्यार कभी भी ख़त्म होकर किसी जगह रुकने वाला नहीं है। वह तो अंतिम साँस तक यूँ ही बढ़ता ही रहेगा और उसके लिए हमारा विवाह भी तो ज़रूरी है ना। इसीलिए तो तुम्हारा हाथ मांग रहा हूँ।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः