Achhut Kanya - Part 8 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अछूत कन्या - भाग ८  

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अछूत कन्या - भाग ८  

कार वाली मैडम के मुँह से यह सुनते ही नर्मदा ने कहा, “माली का काम…,” इतना बोल कर नर्मदा कुछ सोचने लगी फिर बोली, “सीख जायेंगे मैडम आप जैसा बताएंगी वैसा कर लेंगे। आप हमें एक बार मौका तो दीजिए। यदि हमारा काम पसंद नहीं आए तो हमें मना कर देना।”

“ठीक है नर्मदा तो कल ही तुम अपना सामान लेकर आ जाओ। तुम्हारे पति का क्या नाम है?”

“जी उनका नाम सागर है।” 

“…और इस प्यारी-सी बच्ची का नाम?”

नर्मदा कुछ बोले उससे पहले गंगा बोली, “आंटी मेरा नाम गंगा है।” 

सागर ने अरुणा और उसके पति सौरभ को नमस्ते किया।

अरुणा ने कहा, “आओ सागर कार में बैठो, तुम्हें हमारा घर दिखा देते हैं। कल सामान लेकर आ जाना।”

उसके बाद अगले दिन नर्मदा और सागर अपना थोड़ा बहुत जो भी सामान था उसे लेकर अरुणा के घर पहुँचे। बहुत बड़ा मकान था उन लोगों का। बड़ा-सा बगीचा था और बगीचे के किनारे दो पक्के कमरे थे, एक किचन और एक बेडरूम। गंगा बगीचा और अपना घर देख कर खुश थी।

नर्मदा ने अरुणा से पूछा, “मैडम जी मेरे पति बगीचे का काम करने के बाद उनके काम पर जा सकते हैं क्या?”

“देखो नर्मदा बगीचे का काम ख़त्म करने के बाद सागर जो चाहे कर सकता है। हमारी तरफ़ से कोई रोक-टोक नहीं है। हाँ हम कभी कुछ सामान मंगवायें यदि तो लाकर देना पड़ेगा।”

धीरे-धीरे नर्मदा ने अरुणा के घर का पूरा काम सीख लिया। वह बहुत ही मन लगाकर ईमानदारी के साथ काम कर रही थी। अरुणा और उसका परिवार भी खुश था। सागर ने भी धीरे-धीरे बगीचे का काम सीख लिया। बगीचे का काम ख़त्म करके सागर अपने काम पर भी चला जाता था। उनके दिन अच्छी तरह गुजर रहे थे। ना पानी लाने का झंझट था ना जात बिरादरी की कोई तकलीफ़। बस कमी थी और दुःख था तो वह यमुना के लिए ही था।

हर रोज़ सुबह छः बजे आने वाली नर्मदा आज आठ बजे तक काम पर नहीं आई तो अरुणा ने सोचा पता नहीं क्या हो गया है जाकर देख कर आती हूँ। 

अरुणा ने बाहर आकर उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया। आवाज़ सुनते ही नर्मदा ने दरवाज़ा खोला तो देखा सामने अरुणा खड़ी थी।

“अरे मैडम जी सॉरी, देखो ना गंगा का शरीर बुखार से तप रहा है। मैं उसके सर पर ठंडे पानी की पट्टी रख रही थी इसीलिए मैं आ ना पाई।”

अरुणा ने गंगा को हाथ लगाते हुए कहा, “अरे नर्मदा ऐसा कुछ हो तो तुरंत ही बता दिया करो। मैं दवाई दे देती हूँ। सागर कहाँ है?”

“जी वह बगीचे में काम कर रहे हैं।”

नर्मदा ने सागर को आवाज़ लगाते हुए कहा, “सागर मैडम जी बुला रही हैं।”

सागर ने आते हुए कहा, “जी मैडम”

“सागर चलो मैं तुम्हें कुछ दवाई दे देती हूँ। गंगा को खिला देना फिर भी बुखार नहीं उतरा तो शाम को हम उसे डॉक्टर को दिखा देंगे।”

सागर ने कहा, “मैडम जी इसे तो हर एक दो महीने में ऐसे ही बुखार…”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक  

क्रमशः