EXPRESSION - 4 in Hindi Poems by ADRIL books and stories PDF | अभिव्यक्ति.. - 4

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अभिव्यक्ति.. - 4

में नहीं चाहती,...   

 

सीता जैसी महान बनकर, में जीना नहीं चाहती

फसल की तरह धरती से में पैदा होना नहीं चाहती

 

औरत हू में बेबस नहीं, सिर झुकाना नहीं चाहती 

कुर्बान होकर राजमहलका,  ताज बनना नहीं चाहती 

 

बेइंसाफी देखकर में, चूप रहेना नहीं चाहती 

दिया वचन जो ससुरने में, उसे निभाना नहीं चाहती

 

राजा है तो क्या हुआ में हिस्सेदारी नहीं चाहती

अपने पतिसे जुदा होकरके मै जीना नहीं चाहती   

 

किसी और के प्रतिशोध से बंदी होना नहीं चाहती 

बेवजह में महासंग्राम की वजह बनना नहीं चाहती 

 

महल नहीं तो ना सही, जंगल मे कुटिया नहीं चाहती   

बेघर होकर बच्चो को में जन्म देना नहीं चाहती 

 

क्यूकी 

जमाने को प्रमाण देकर, में सती बनना नहीं चाहती 

इस दहेर में बिना राम के, में जीना नहीं चाहती 

 

~~~~~~~ 

 

तेरी आँखे,... 

 

बिना बोले सब कहे दे खंजर सा वार करती है... 

विरासत में मिली आँखे दिलको बेताब करती है

शाम ढले तो आँखे तेरी चिराग जैसी लगती है... 

सुबह होते ही वोही आँखे सुनहरा जाम लगती है.. 

कभी सितारा कभी चमकता चाँद हमको लगती है... 

पलके गिरालो अपनी तो वो खूबसूरत शाम लगती है..

बेहाल दिलको घायल करदे, गज़ब का हूनर रखती है... 

शहेनशाह सब नीलाम करदे नजरो में पयाम रखती है

बारूत बनकर बरबाद करदे वो आवाज करती है... 

लुट जाए कुछ कर ना पाए वैसे नाकाम करती है..

 

~~~~~ 

 

क्या जरुरी है,...   

 

हमे लगा मोहोब्बतमे सिर्फ जज्बात जरुरी है,

समज आया की रिश्तों के नाम भी तो जरूरी है,

 

तस्वीरें देख कर जिनकी लगे थे खुश जमानेमें

खरोंचे है छिपी उनकी वो देखना भी जरुरी है,.. 

 

करीब आके, गले मिलके, पलक अपनी भिगोते थे   

बिछड़कर कितना रोते है, ये देखना भी जरुरी है 

  

छोडनेसे जो डरते थे थामा हुआ मेरा आँचल, 

नया दामन ये किसका है, ये जांचना भी जरुरी है 

 

खनक जाएगी गर पायल, तो याद आएँगे हम शायद 

निशां अपने मिटाए क्या ? निगाह रखना जरुरी है

 

भंवर बनकर वो बहेते थे, इन आँखों के समंदर में

किनारा कर लिया है क्यों, समझना भी जरुरी है

 

बरसती शाम को जब वो, किया करते थे मनमानी

बे-ईमानी इरादो में, मान लेना जरुरी है

 

वाकिफ हो गया मौसम, खिजाओ का - बहारोका,    

कि - तनहा रात का आलम सिख लेना जरुरी है 

 

~~~~~~~ 

 

तेरी तासीर,.. 

 

बर्फीली रातमें तेरा, अचानक रू-ब-रू आना

निगाहों के इशारो से, हाल-ए-दिल सुना जाना

कि - सिर से पांव तक मुझको, दो आँखों से ही खा जाना

तेरी तासीर से मेरा, इरादों से भटक जाना,.. 

 

मुरादों में, वो लम्होकी की, फरिश्तों का तरस जाना 

कि - आईनेमें चूनर का हाल, दिखला कर ये फरमाना   

बिखरती चांदनी के साथ, लिपटने को तरस जाना,

तेरी तासीर से मेरा, इरादों से भटक जाना,.. 

 

इस तरह मोहोब्बत में, तेरा निलाम हो जाना 

तुम्हारा आखिरी बोली में, मेरे नाम हो जाना 

कि - गहरी नींद में हो हम, जबीं पर होंठ रख जाना

तेरी तासीर से मेरा, इरादों से भटक जाना,.. 

 

हवा गुजर न पाए यु, मेरी बाँहों में छूप जाना,                 

ये सावन साठ ही दिन है, कहकर तू बरस जाना,

कि - खुशबू घोलकर अपनी, मुझमें तू बिखर जाना 

तेरी तासीर से मेरा, इरादों से भटक जाना,.. 

 

~~~~~~~ 

 

कुछ था,.. 

 

कुछ था जो सिर्फ तुझे दिखता था,

कुछ था जो मुझे नहीं पता था,

कुछ मेरा बिखर रहा था, 

जिसे तू संवार रहा था. 

कुछ था, जिसके लिए तरस रही थी, 

कुछ था जिसके लिए में लड़ रही थी,

कुछ था शिकायत कर रही थी 

कुछ था, वकालत रही थी 

कुछ था जिसे पाने को मर रही थी 

कुछ था जो खोने से डर रही थी 

कुछ था जो रूह में बो रहा था 

कुछ था जो जिस्म से खो रहा था