EXPRESSION - 2 in Hindi Poems by ADRIL books and stories PDF | अभिव्यक्ति.. - 2

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अभिव्यक्ति.. - 2

 

नजर..

कैसी नजर है तेरी, की मुझे नजर सी लग गयी,
नजर पड़ी जब उस नजर पे, तो नजर मेरी ये भर गयी

फिर मेरी नजर, उस नजर को, एक नजर तरस गयी
की किसी और नजर को उस नजर से देखने से डर गयी

नजर का कमाल तुम्हारी, एक नजर ही, कर गयी
की नजर नजर में बातें सारी नजर में ही बन गयी

नजर भरके देखा नजरको तो नज़र नजर से कहे गयी,
क्या खूब नजरसे मिली नजर, तेरी नजर कहेर कर गयी

नजर से जब नजर हटा दी, तो नजर शिकायत कर गयी
नजरसे दूर ना जाने को ये नज़र ज़िद पे अड़ गयी

 

~~~~~~~


ए खुदा...

एक ख्वाइश पूरी करदे मेरी इबादत के बगैर,
की वो आकर गले लगा ले, मुझे इजाजत के बगैर।


जन्नत पा जाऊ उसके इश्क़में विरासत के बगैर
शहेनशाह में बन जाऊ सियासत के बगैर

प्यार सिखला दू ज़माने को मिलावट के बगैर
नजरों से सुनाता रहू हर नग्म लिखावट के बगैर

मोहोब्बत से सारा जहान में बसा दू ईमारत के बगैर
हर शख्स के सीनेमे भर दू प्यार में ख़िलाफ़त के बगैर

बस - ए खुदा,
एक ख्वाइश पूरी करदे मेरी इबादत के बगैर,
की वो आकर गले लगा ले, मुझे इजाजत के बगैर।


~~~~~~~

 

कुछ तो हुआ था...

लोग मतलब से मिलते थे, हमें मिलने से मतलब था
निगाहों में लब्ज़ थे और उन लब्ज़ो में क़हर था बाते भी होती ना थी, पर खामोशियों में असर था,
आईनेमें देखे तो चहेरे अपने और एकदूजे का अक्स था
वैसे तो हम मिलो दूर थे मगर हमारे इतने करीब कोई ना था
जिन्दगीमे ना सही कुछ लम्हों में ही सही, - में उसकी वो मेरा था
भिगोया दिल गीले कागज सा हमने, न लिखा कुछ, न जलाया था
उन लम्हो के बदलेमे हमने, सजदे में खुदाके ये सिर भी झुकाया था
सच,
एक उम्र लग गयी ये समझने में, की हमारे बिच कुछ तो हुआ था....

 

~~~~~~~

 

मुझसे नहीं होती...

महफ़िल-ए-हस्त की रंगत जब गुलफ़ाम होती है
जमाना देख लेता है तहजीब नीलाम होती है,
आफत के शोलो की अब हिफाज़त नहीं होती
तेरा ये इश्क छिपानेकी ज़हमत मुझसे नहीं होती,..

बरसती रात में अपनी वजारत हार के रख दी
बिना ब्याहे अज्मद, गिरफ्त में प्यार से रख दी
तेरी छुअन की मिटटी से मैं फौलाद बन गयी
पर बारिश में ये खिड़की बंध अब मुझसे नहीं होती,..

पहलू में लिपटी कशिश संभाल के रख ली
महेकती सांसों की सौगात छिपा कर सांस में रख दी,
वो सर्द रातो में दीदार-ए-इश्क की तोहमत
ये बर्दाश्त करने की तपिश मुझसे नहीं होती,..

 

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कैसे कहे दू ?.. 

 

कैसे कह दूँ तू पास नहीं
आधे सच से तू ख़ास कहीं

ना झूठ ना बहाना कच्चा सा
तू सबकुछ मेरा सच्चा सा, 

साँसों में है तू, लहू मैं भी तू
आँखों में बसा है ज़हन में भी तू

सीने में धड़कते दिल की तरह 
जज़्बात है तू कोई  बहाना नहीं

कोई मुझसे पूछे कौन है तू ?
तो कहे दु सच है, ख़्वाब नहीं

एक साथी है सवाल नहीं
कोई भूली बिसरी याद नहीं

कहे दु की एक पहेली है ये
तु समझे तेरी औक़ाद नहीं

कोई मुझसे पूछे कौन है तू ?
केसे कहे दु तू ख़ास नहीं..????
केसे कहे दु तू ख़ास नहीं..????