My words my identity - 17 in Hindi Poems by Shruti Sharma books and stories PDF | मेरे शब्द मेरी पहचान - 17

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मेरे शब्द मेरी पहचान - 17

---- मेरा भारत मेरा हिन्दुस्तान ----

* जनाब ये वो भारत है जिसने गुलामी की बेड़ियों में नजाने कितने वर्ष बिताए थे ,
लौ बुझ न जाए कहीं आजादी की इसलिये कितने घरों ने अपने चिराग बुझाए थे ,
कितने झूले फाँसी पर इसका कोई हिसाब नहीं
जिन्होंने देकर बलिदान लिख डाली यशगाथा जनाब उन्हीं पर कोई किताब नहीं ,
ताउम्र दबे रहेंगे बोझ तले शहीद इतना कर्ज़ दे गए हैं
तिरंगा रखना खुद से ऊँचा बस इतना फर्ज दे गए हैं ,
भारतीय सेना के होते कोई इसकी तरफ आँख उठा कर भी देखे
बताओ इतना किसी में दम है क्या
जनाब नसीब समझो अपना
हिन्दुस्तान में जन्मे हो किसी रहमत से कम है क्या । । ।

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---- किसी रहमत से कम है क्या ----

* ले रहे हैं चैन की साँस इसलिये कृतघ्नता के मारे हैं
सरहद पार जाके देखो लोग हर साँस के लिए कर्रा रहें हैं ,
कितना अन्तर है देशों में एक इस ओर तो दूसरा उस पार है
एक शरणागत वत्सल तो दूसरा लड़ने को तैयार है ,
एक लड़ रहा है विस्तारवाद के नाम के लिए
तो वहीँ दूसरा मर रहा है अपने हिन्दुस्तान की शान के लिए ,
एक आतंकवाद तो दूसरा प्यार और एकता का प्रतीक है
कोई जलेबी सी बात नहीं सब कुछ सटीक है ,
लोग सब कुछ पाकर भी खुश नहीं
मैं कृतार्थ हो गयी भारत माता की शरण पाकर अब और किसी का दुख नहीं ,
आँख उठा के देखे मेरी भारत माता को
स्पष्ट शब्दों में बता दो
इतना किसी में दम है क्या ,
जनाब नसीब समझो अपना
हिन्दुस्तान मैं जन्मे हैं किसी रहमत से कम है क्या।।।

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---- ये भारत हमने जीता था ----


* हुकूमत हुई, शासन हुआ, जुल्म अत्याचार सब सहना सीखा था ,
मुल्क हमारा आज़ाद हो इसलिए मर मर कर जीना सीखा था ,
खून खौल उठता है वो पल याद करके
अब क्या ही कहें जनाब वो मंजर ही कुछ ऐसा बीता था ।


* कितनों ने गोली खाई और कितनों ने लाश बिछाई कितनों का शव फाँसी पर लटका था ,
दशा देख ऐसी आँसू रोके नहीं रुक रहे थे पर दिल तो आज़ादी पर अटका था ,
धूल चटानी थी फिरंगियों को मगर हाथों को बेड़ियों ने और दिलों को खौफ ने जीता था ,
अब क्या ही कहें जनाब वो मंजर ही कुछ ऐसा बीता था ।


* धूल कटवाकर तो भगा दिया उन फिरंगियों को,
मगर पलड़ा भारी था दुखों का अब भी यहाँ जिसे मौत ने खींचा था ,
अब उस बंजर जमीन को जनाब शहीदों के रक्त से सींचा था ,
ज़मीन कम पड़ गयी थी लाशों के मुकाबले
अब क्या ही कहें जनाब वो मंजर ही कुछ ऐसा बीता था ,
हार कर अपनों को यहाँ ये भारत हमनें जीता था । । ।

✍🏻 -श्रुति शर्मा

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