UJALE KI OR ---SANSMRAN in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ---संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण

स्नेही साथियों 

नमस्कार 

    कैसी-कैसी राहों पर होकर गुजरता है जीवन ! जब हम क्भू सोचते हैं कि अरे !

ऐसा हुआ ? तब कभी विश्वास होता भी है तब भी  कभी हम विचलित हो जाते हैं | 

घटना चाहे खुद के साथ हो अथवा अपने किसी परिचित के साथ ,सब पर ही उसका प्रभाव पड़ता है |

यह बड़ा स्वाभाविक है|    

दोस्तों !प्रश्न यह है कि क्या विचलित होने से कुछ होगता है ?

क्या हम पिछले दिनों में  जाकर फिर से कुछ कर सकते हैं ? 

क्या हम पैनिक होकर कुछ सकारात्मक हो सकते हैं ? 

नहीं न ?

कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि हमारे मन में बेचैनी और खलबलाहट हो जाती है | 

हम सही ढंग से सोच नहीं पाते और इसीलिए कोई सही निर्णय नहीं ले पाते हैं | 

कोई भी परिस्थिति क्यों न हो ,सबसे पहले हमें शांत चित्त से सोचना बहुत आवश्यक होता है | 

'पैनिक' होने से हम और कई परेशानियाँ बढ़ा लेते हैं | 

किसी ने एक बार एक घटना सुनाई थी ,वही आप सबसे साझा करती हूँ | 

उत्तर प्रदेश में किसी घर में लड़की का विवाह हुआ | घर की मालकिन अर्थात लड़की कि माँ बीमार थीं | 

इधर बारात दरवाज़े पर आई उधर माँ का प्राणांत हो गया | अब क्या किया जाए ? 

घर के बुज़ुर्गों ने आपस में सलाह की कि विवाह की रस्में पूरी हो जाएँ ,तब कुछ सोचा जाएगा |  

गुमसुम होकर सबने विवाह कि  सारी रस्में पूरी कर दीं | 

सुबह लड़की कि बिदाई होनी थी | स्वाभाविक था कि वह माँ से मिलना चाहती | 

उसे बताया गया कि डॉक्टर ने उन्हें किसी से मिलने को माना किया है | लड़की मन मसोसकर विदा हो गई | 

विदाई के बाद निर्जीव शरीर के सारे क्रियाकर्म किए गए | 

वह स्थिति ऐसी थी कि यदि लड़की को पता चलता तो वह अपनी माँ को छोड़कर न जा पाती | 

परिवार के कुछ बुज़ुर्गों की सहनशीलता और  बुद्धि ने उस दिन सब काम पूरे कर दिए | 

मित्रों ! यह जीवन की वास्तविकता है कि अभी उजाला तो घड़ी भर  में अंधियारा छा  जाता है |

सचेत रहकर सही निर्णय लेने से ही सब काम ठीक प्रकार से पूरे हो सकते हैं | 

जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ बहुत बार आती ही रहती हैं जिनमें हमें सचेत रहकर आगे बढ़ना होता है | 

इसी प्रकार एक बार एक और विवाह में ऐसा हुआ था लड़की की विदाई हो गई ,वहाँ उसकी सास की मृत्यु हो गई | 

वहाँ के लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि लड़की का पैर उस परिवार के लिए खराब है | लोग उस लड़की पर लांछन लगाने लगे | 

अब ,दोनों घटनाओं में न तो लड़की का कसूर  था और न ही लड़के का फिर यदि कोई समझदार मनुष्य किसी प्रकार एक सही निर्णय ले पाता है तो 

बेकार की चर्चाएँ बंद हो सकती हैं अन्यथा समाज में किसी किसी की दृष्टि केवल नकारात्मकता की ओर ही होती है जिससे कुछ भी लाभ नहीं होता | 

केवल हानि और हानि होती है |  

अगली बार किसी और विषय पर चर्चा करते हैं | 

सस्नेह 

आपकी मित्र 

डॉ . प्रणव भारती