Rab ki likhi jogi - 4 in Hindi Motivational Stories by Damini books and stories PDF | रब की लिखी जोगी - 4

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रब की लिखी जोगी - 4


अब तक आपने पढ़ा:-
वकीलों के बीच की गरमागर्मी के बीच समरीत ही होती है जो एक बड़े बुजुर्ग आदमी इंदर अनेजा की बेज्जती नहीं होने देती है। उनका सम्मान करती है।

अब आगे:-

ब्रेक समाप्त हो चुका है और सभी लोग कचहरी में इकट्ठा हो रहे है। इंदर अनेजा अपने वकील को समझाते हुए पहले ही पहुंच चुके है। और समरीत भी कोर्ट में अभी अभी दाखिल हुई है। अपनी जगह पर वो जा ही रही है कि खुद इंदर अनेजा उसके सामने अा जाते है।

इंदर:- बेटी तेरा लख लख शुक्रिया। तूने आज इस कचहरी में मेरा मान रखा। मेरे लिए लड़ी। आजकल की दुनिया में तो किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होता। पर तूने मेरी मदद की इसका मै एहसानमंद हूं।।

समरीत:- अंकल जी मैंने कोई एहसान नहीं किया । रब की नेमत से ही मैंने ये सब सीखा है कि बड़े बड़े ही होते है। और छोटो का काम है कि उनके बड़प्पन को भूलें ना और ना ही उनके बड़प्पन को कुचले। तो फिर आप ही दस्सो कि मै कैसे आपकी इज्जत को कुचलते हुए देख सकती हूं।

इंदर समरीत के सिर पर हाथ रख शाबाशी देते हुए:- तेरे संस्कार बड़े नेक है कुड़ी।


अब तक आपने पढ़ा:-

समरीत को इंदर तहे दिल से शुक्रिया करता है। मुकदमा अभी भी जारी है। देखते है कौन जीतता है??

अब आगे:-

जज साहब अपनी कुर्सी पर बैठकर:- आप सभी चश्मे गवाहों की दलीलें सुनकर मै ये फैसला लेता हूं कि जो जमीन पिछले कई सालो से जब्त थी अभी से उसे सरकार के अंदर लिया जाता है। मेरी और से एक ऑफिसर आपके पास भेजा जाएगा आप उसे अपने पॉइंट्स बता सकते है। और उसके रिव्यू के साथ ही मै अपना फैसला लूंगा। तब तक के लिए ये अदालत बर्खास्त की जाती है। The court is to be adjourned........

जज साहब के फैसले को सुनकर जहा बजाज के मन में जहां गुस्सा भर आया था तो इंदर की आशा टूटते हुए उनका मन दुख से भर आया था। जिन सपनों कि वो झड़ी लगाए बैठे थे वो जैसे फिर दूर होने लगे थे। देखते ही देखते फिर कोर्ट रूम खाली हो गया था। जीतू बजाज और उसके साथी जा चुके थे। जज जा चुके थे । बचे थे सिर्फ इंदर।

समरीत की बाहर जाते हुए नजर इंदर जी पर जा रही थी।

समरीत इंदर की और जाते हुए:- अंकल जी। आप बड़े परेशान लग रहे है। चिंता ना लो। रब सब ठीक रखेंगे। रब ने चाहा तो आपकी इच्छा भी पूरी हो जाएगी। रब के घर में देर है अंधेर नहीं।

इंदर:- ये तू क्या कह रही है कुड़ी। तू खुद गुरुद्वारे के लिए लड़ रही है और चाहती भी है कि रब मुझ पर मेहर करे।

समरीत हल्की सादगी से:- हां अंकल जी। रब तो सबके है। और आपका विचार भी गलत नहीं है। हॉस्पिटल बनाकर लोगों दी जान बचाने का पुण्य रब की सेवा ही है। और रब की सेवा से बड़ा मेवा और क्या हो सकता है।

इंदर:- तेरा परिवार बड़ा खुशकिस्मत है कि तुझ जैसी बेटी को उसने पाया है। किस परिवार से है तू?

समरीत थोड़ा दुख से :- रब ही मेरा परिवार है अंकल जी। और खुशकिस्मत मै हूं जो मैंने रब में अपना सब पाया। और किसी से नहीं..........

इंदर:- तेरे कहने का क्या मतलब है कुड़ी?

क्या समरीत बता पाएगी अपनी जिंदगी के सबसे बड़े दुख को इंदर के सामने! या ये बात रह जाएगी अधूरी। जाने अगले भाग में.............!!!!!???????