UJALE KI OR --SANSMRAN in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ---संस्मरण

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर---संस्मरण 

-----------------------

सभी मित्रों को 

स्नेहिल नमस्कार

 

        कई बार बड़े अजीब से सवाल हमारे सामने आ खड़े होते हैं और हमें आश्चर्य के साथ पीड़ा भी देते हैं | 

सबसे पहला प्रश्न तो यह उठता है कि हम मनुष्य मनुष्य में कैसे इतना भेदभाव कर सकते हैं ? 

कोई सुंदर है अथवा असुंदर मनुष्य तो है ,उसको भी तन और मन से उतनी ही पीड़ा होती है जितनी कि हमें | 

हम भूल ही जाते हैं और हमें केवल अपनी ही पीड़ा दिखाई देती है | मित्रों ! कुछ बातें तो हमें सोचनी ही होंगी | 

मेरे मन में बहुत से ऐसे प्रश्नों की पंक्ति लगी है ,मुझे लगता है कि उनको एक-एक करके अपने प्रबुद्ध पाठक -मित्रों के समक्ष रखना ज़रूरी है | 

        आज महिला से संबंधित एक बात रखती हूँ जो मन को कचोटती है और इस इच्छा  के साथ कि केवल महिलाएँ ही नहीं ,मेरे पुरुष पाठक मित्र भी 

मुझ तक अपनी प्र्तिक्रिया पहुंचाएँ तब कुछ बात आगे बने | 

     मित्रो ! यह शाश्वत सत्य है कि महिला अपनी खूबसूरती के प्रति बहुत एलर्ट रहती है | कोई हर्ज़ भी नहीं |

महिला हो अथवा पुरुष ,सभी सुंदर ,प्यारा ,प्रेज़ेंटेबल दिखना चाहते हैं | 

जब प्रकृति  ने हमें सुंदर बनाया है तो हम उसका सम्मान क्यों न करें ? अपनी सुंदरता को संभालकर क्यों न रखें ? 

सबको सुंदर ,प्यारा दिखने का अधिकार है | मुझे पीड़ा किसी और बात की है ,वह यह कि स्त्री हो अथवा पुरुष सब उस तरह खुद को रखने के अधिकारी हैं जैसा उनका मन करे | 

बात यहाँ तकलीफ़ देती है जब स्त्री को केवल पुरुष के लिए अपने आपको 'प्रेज़ेंटेबल'बनाकर रखना होता है ! 

हो सकता है वह अपने प्रेमी या पति के अनुसार अपने को सजाने में 'कम्फ़र्टेबल' महसूस न करे | तो वह अपने अनुसार क्यों नहीं रह सकती ? 

वह मोटी है अथवा पतली ,वह जैसी भी है प्यारी क्यों नहीं लग सकती ? उसे दूसरों की नज़र में सुंदर ,मोहक दिखने के लिए क्यों अपने आपको बाध्य करना पड़ता है ? 

      काफ़ी दिन पूर्व कहीं एक लेख पढ़ा था जिसमें स्त्रियाँ अपने को सुंदर दिखाने के लिए अपने ऊपर अत्याचार करने के लिए बाध्य थीं | 

नब्बे की शुरुआत में राजकुमारी डायना  ने पहली बार अपनी बीमारी पर बात की थी | पारदर्शी नीली ,खूबसूरत आँखों वाली डायना ने स्वीकार किया था कि उन्हें भूख लगती थी 

लेकिन वे इस बात से डरती थीं कि कहीं उनकी बाहों या कमर पर चर्बी न चढ़ जाए | वह डरती थीं कि कहीं प्रिंस चार्ल्स उन्हें छोड़ न दें | 

डर ने उन्हें बीमार बना दिया था | बार्किंघम पैलेस की शाही टेबल पर बैठकर वे खाना तो खातीं लेकिन बाद में बाथरूम में जाकर मुँह में ऊंगली डालकर उसे उगल आतीं | 

    दुनिया की सबसे हसीन राजकुमारियों में से डायना 'बुलिमिया नर्वोसा' नामक बीमारी की शिकार हो गईं थीं | 

वे मोटापे से ऐसे डरती थीं जैसे कोई बच्चा अपना सबसे प्यारा खिलौना छिन जाने के भय से आशंकित रहे | 

औरतों की एकमात्र पूंजी दुबला-पतला और काँच जैसा शरीर ही औरतों की एकमात्र पूँजी होती थी | 

इस पूंजी को संभालने में डायना ने खुद को बीमार बना दिया था |

1993 में डायना ने भीगी पलकों से स्वीकार किया कि उसकी स्थिति उस भेड़ के समान थी जो किसी कसाई  की गिरफ्त में चटपटा रही हो 

कि किसी भी क्षण उसकी बलि दी जा सकती है | 

मित्रों ! यह जानकर मैं बहुत असहनीय पीड़ा से गुज़री | 

आज की स्थिति में होने वाली बहुत सी घटनाओं के बारे में जानकर भी मन हुआ कि एक-एक करके अपने 

मन में उठने वाले प्रश्नों को आप सबसे साझा करूँ | 

चिंतन करिए ,अगले लेख में फिर किसी ऐसे ही विषय को लेकर आती हूँ | 

तू ,तू है ,कोई माटी का पुतला तो नहीं ,

खुद की ज़िंदगी जी बिना किसी परवाह के !!

 

सस्नेह,आप सबकी मित्र  

डॉ प्रणव भारती