The Author Daanu Follow Current Read वो पहली बारिश - भाग 34 By Daanu Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Coaching Wala Pyaar When I started writing this story, I had two different endin... ALL ARE EQUAL IN THE WORLD All are equal before the law and in the world.All members ar... Uncle Sunil's Diaries: The Story Behind World Thickshake Day Thickshake Diaries: The Story Behind World Thickshake Day: W... How Shrink Wrapping Enhances Product Shelf Life In today’s competitive market, ensuring product longevity an... Split Personality - 71 Split Personality A romantic, paranormal and psychological t... 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पीछे मुड़ कर ध्रुव की तरफ देखती है। ध्रुव और सुनील भी कुछ ऐसी ही बातें कर रहे थे, जिससे ध्रुव थोड़ा परेशान सा लग रहा था। हालांकि उनकी आवाज़ इतनी धीरे थी की निया को पता नहीं लग रहा था की वो क्या बोल रहे है, पर ध्रुव की आवाज़ से निया अंदाजा लगा पा रही थी की कुछ तो गड़बड़ है। “सुनील.. आप मेरे घर पे, कैसे?” “मुझे नहीं पता कैसे.. वो तुम्हें देखना है।" “नहीं सुनील.. ये नहीं हो पाएगा।" “मैं पूछ नहीं रहा हो ध्रुव, मैं बता रहा हूँ।" “पर?” “जब चलना हो बता देना, मैं थोड़ी देर पहले जा कर चंचल का समान उसे दे आऊंगा, गाड़ी में रखा है।" सुनील की इन बातों के आगे ध्रुव कुछ नहीं बोल पाया और वापस अपने काम में लग गया। “चंचल.. मेरे कपड़े और समान..”, निया चंचल से समझने की उम्मीद करती हुई बोली। “कोई बात नहीं.. कैब कर लेंगे.. जहाँ से निकलते हुए जाना हो.. वहाँ से निकल के चले जाएंगे।", चंचल ने सामने से जवाब दिया। “ठीक है।", जब चंचल किसी भी बात से मानती नहीं दिख रही थी, तो निया ने हार के बोला। कुछ देर बाद वो चारों ऑफिस से निकले तो कैब करती हुई चंचल को निया बोली। "हम सुनील और ध्रुव के साथ कैब कर सकते है।" “क्या?”, चंचल ने हैरानी से पूछा। “हम पड़ोसी है.. ध्रुव और मैं..”, निया ने बताया। “फिर तो एक दम सही फैसला था मेरा।", चंचल ने धीरे से बोला और आगे चलते सुनील को कॉल की। “हाँ..” “हम भी तुम लोगों के साथ चलेंगे..” “क्या.. क्यों?” “निया का घर वहीं पास ही है, इसीलिए।" “ठीक है.. आजाओ पार्किंग में फिर।” निया और चंचल पार्किंग पहुंचे तो देखा की सुनील गाड़ी के अंदर बैठा था और ध्रुव बाहर खड़ा हुआ था। चंचल के वहाँ आते ही, आगे के गेट के पास खड़ा हुआ ध्रुव पीछे हट गया। “कहाँ??”, चंचल ने पूछा। “मै'म.. आप यहाँ बैठोगे ना?” “ताकि तुम्हें पीछे निया के साथ बैठने को मिल जाए.. नहीं.. बिल्कुल नहीं।" “नहीं.. बस इसीलिए की ये आपकी गाड़ी है।" “चुपचाप आगे बैठो..”, ये बोलते हुए चंचल ने पीछे का दरवाज़ा खोला और बैठ गई, साथ ही निया भी दूसरी तरफ से ध्रुव को एक टक देखते हुए वहाँ बैठ गई। “मुझे अभी निया ने बताया की ये लोग यहीं रहते है.. मुझे लगता है, की फिर ये गाड़ी हमारे पास रहनी चाहिए।", सुनील के गाड़ी चलाते ही पीछे बैठी चंचल बोली। “यार.. एक एक दिन करके रख लेंगे ना.. ध्रुव बस में ऑफिस आता है।" “नहीं.. तुम्हें और ध्रुव को छोड़ के ये मैं लेकर जा रही हूँ.. 5 मिनट के रास्ते के लिए क्या करोगे इसका?” “चलो उतर के बाद करते है।", सुनील ने बात वहीं खत्म करते हुए बोला। वो लोग जब उनकी सोसाइटी पहुँच गए.. तो चंचल ने निया को समान लेने को कहा, ध्रुव को वहीं रुकने को, और खुद थोड़ी दूर खड़े होकर सुनील से बात करने लग गई। निया फटाफट से समान लेकर आई, तो चंचल बोली। “चलो बैठो.. आज ये गाड़ी हमारी है।" वो दोनों बैठ कर चंचल और सुनील के घर चल दिए। ध्रुव और निया की तरह चंचल और सुनील भी किराये के घर में ही रहते है, बस फर्क था तो सोसाइटी की जगह का। चारों ओर चकचौंद की बीचों बीच बसी उस बड़ी पर थोड़ी पुरानी सी सोसाइटी में चंचल और सुनील का दो कमरे का फ्लैट था। सोसाइटी चाहे बाहर से कितनी भी पुरानी लग रही हो, पर अंदर से घर को इतने अच्छे से सजा रखा था की कोई भी बाहर दिखे नज़ारे को भूल ही जाए। हॉल मे दीवार के पैंट के साथ जाते हुए नीले सोफ़ा, मोडा और एक टेबल पड़े थे, तो वहीं दीवारों पे कुछ सिनरी और चंचल और सुनील की मुस्कराती हुई तस्वीरे। उन तस्वीरों में चंचल और सुनील को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था, की वो लगभग 5-6 साल तो पुरानी होंगी ही, जब चंचल और सुनील भी ध्रुव और निया जितनी उम्र के होंगे। “क्या हुआ?”, निया को घर के दरवाजे से हल्का सा दूर रुका पा कर ही चंचल बोली। “कुछ नहीं.. आपका घर बहुत सुंदर है।" “ओह.. मुझे ये बोल कर कुछ फायदा नहीं है।", चंचल ने आगे से जवाब दिया। “हह?” “कुछ नहीं.. तुम क्या खाओगी?” "जो आप खाओगे वहीं खा लूंगी।" “सुबह के टिंडे पड़े है, मैं तो वहीं खाने का सोच रही हूँ। तुम्हारे लिए क्या मंगाऊ?” “अगर इतने है की दो जने को हो जाए, तो मैं भी वहीं खा लूँगी।" “पक्का??” “हाँ..” चंचल और निया कपड़े बदल कर रसोई में खाना बनाने में लग जाती है। वहीं दूसरी और सुनील ध्रुव से पूछता है। “तुम्हारे यहाँ मेहमानों से खाना पूछने का रिवाज़ नहीं है क्या?” “बिन बुलाए मेहमानों से पूछने का नहीं है।", आगे से ध्रुव जवाब देता है। “तुम लगता है, भूल गए की मैं कौन हूँ।", सुनील की बस इतना बोलने की देर थी की ध्रुव आँख बंद करते हुए, सुनील के पास गया, और बोला। “क्या खाओगे आप बताइए, की क्या ऑर्डर करू?” “अब सुधरे ना.. दिखाओ ज़रा क्या क्या मिलता है।", सुनील ध्रुव के फोन की ओर इशारा करते हुए बोला। कुछ देर बाद सुनील और चंचल जब सोने चले गए तो निया ने ध्रुव को मैसेज किया। “ओए..” अपने ही घर में हॉल में शरण लिए ध्रुव ने ये मैसेज पढ़ते ही निया को फोन कर दिया। “तो कैसा लग रहा है फिर वहाँ?” “जैसा तुम्हें लग रहा है सुनील के साथ..” “हाहा.. समझ गया मैं।" “यार.. वैसे क्या हो गया इन दोनों को, तुम्हें पता है, चंचल ने आज पूरा दिन मुझे अकेले नहीं छोड़ा।" “और सुनील ने मुझे। पता नहीं टीम के किए हुए काम के नाम पे क्या क्या करा रहे है।" “हाँ यार.. अभी और आगे क्या क्या करना पड़ेगा ये भी नहीं पता..”, निया बोल ही रही होती है, की इतने उसे कमरे से बाहर से आवाज़ आती है। “निया.. निया.. ” ‹ Previous Chapterवो पहली बारिश - भाग 33 › Next Chapter वो पहली बारिश - भाग 35 Download Our App