Vo Pehli Baarish - 30 in Hindi Fiction Stories by Daanu books and stories PDF | वो पहली बारिश - भाग 30

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वो पहली बारिश - भाग 30

तय अनुसार वो चारों, पास ही के एक क्लब में पहुँचते है।

“चार लोगों के लिए एक टेबल चाहिए होगा।", कुनाल बाहर खड़े स्टाफ से पूछता है।

“जी सर..”, वो उन्हें अंदर जाने को कहता है।

वो चारों अंदर जाते है, तो वेटर उन्हें वहीं साइड में एक खाली टेबल पे बैठने को कह देता है।

उन्हीं की तरह साइडो में टेबल लिए काफी लोग बैठे थे, और अगर शिपी की माने तो अंधेरे अंधेरे वाली उस जगह में, जहाँ अभी सिर्फ एक हरी और एक गुलाबी लाइट जल रही थी, वहाँ कुछ देर में सामने पड़ी खाली जगह में सब नाचेंगे और कुछ और ऐसी ही लाइट ही चलेंगी।

ध्रुव जिसे ये सब बिल्कुल पसंद नहीं था.. वहीं कोने में चुप चाप बैठ कर सब सुन रहा था, और कुनाल और निया, जो पहली बार यहाँ आए थे.. पर अक्सर ऐसी जगहों पे जाते रहते थे, वो ध्यान से शिपी की बातें सुन रहे थे।

कुछ देर बाद भी जब ध्रुव आस पास में कुछ दिलचस्पी नहीं ले रहा है और पूरी तरह से अपने फोन में लगा हुआ था।

“ओए.. तुम्हें काम के अलावा कुछ पसंद नहीं क्या?”, निया ने साथ बैठे ध्रुव को टोकते हुए बोला।

“पसंद है.. बस ये जगह कुछ अच्छी नहीं लग रही।"

“अच्छा.. चलो फिर बाहर घूम के आते है कुछ देर।"

कुनाल और शिपी दोनों ही वॉशरॉम का कह कर बाहर गए हुए थे, तो निया और ध्रुव भी उठ के चले गए।

“वैसे क्या कर रहे थे तुम फोन में..”

“कुछ नहीं बस सुनील को कल के लिए कुछ डॉक्युमेंट्स भेज रहा था।", निया के हल्के से सवाल का ध्रुव ने भारी सा जवाब दिया।

“सच में.. तुम्हें सुनील अलग ही पसंद है।", निया ध्रुव की और देखते हुए बोल कर चल रही थी, और वो अपने से ज़रा से आगे खड़े खंबे और उसपे रखे गमले से टकराती ही, की ध्रुव ने उसका हाथ पकड़ कर हल्का सा अपनी और खिच लिया।

“ह.ह.”, ध्रुव से एक हाथ से भी कम के फासले पे खड़ी निया, उसकी आँखों में देख कर बोली।

“सर.. आप प्लीज हमारे रेस्टरों का फीडबैक देंगे क्या..”, इस आवाज़ ने उनका ध्यान भटका या कहे की सही जगह पे आया तो उन्होंने देखा की सामने चंचल और सुनील खड़े थे।

“सर.. हमारा रेस्टरों मैरीड और फॅमिली वाले लोगों को ज्यादा टारगेट कर रहा है, तो अगर आपको दिक्कत ना हो तो हम आपकी और आपकी वाइफ की एक फोटो लेना चाहते है। हमारे प्रमोशन के लिए।", रेस्टरों का कोई स्टाफ सुनील और चंचल से ये सब कह रहा था.. और वो दोनों एक टक निया और ध्रुव को देख रहे थे।
निया और ध्रुव भी जहाँ एक और सब सुन रहे थे, वहीं हैरानी से चंचल और सुनील को देख रहे थे।

“तुम दोनों..”, फोटो खिचवाने के बाद फ्री हुए चंचल और सुनील अभी कुछ बोल ही रहे होते है की पीछे से कुनाल आकार बोलता है।

“मैं जानता हूँ की तुम दोनों नए नए रीलैशन्शिप में आए हो, पर इसका ये मतलब थोड़ी है, की हाथ पकड़ कर कहीं भी भाग जाओगे।"

“तो तुम दोनों रीलैशन्शिप हो?”, चंचल ने कुनाल की बात खत्म होते ही बोला।

“और आप दोनों शादी शुदा हो?”, निया ने हैरानी से पूछा।

“वो हम.. कहीं चल कर आराम से बातें करते है। मुझे यकीन है, हमारे पास एक दूसरे को बताने के लिए काफी कुछ है।", सुनील ने बोला।

“हाँ.. कुनाल तू चल.. हम थोड़ी देर में तुझसे मिलते है।", ध्रुव ने ये बोला और सुनील, चंचल और निया को आगे चलने का इशारा किया।

वो सब आगे जाकर एक छोटे से कैफै में बैठ गए।
“हम तो खाना खा चुके है, पर तुम लोगों को कुछ खाना हो तो बताओ.. या फिर कहीं और चल कर खाना हो तो, कहीं और भी चल सकते है।", सुनील निया और ध्रुव से बोला। पर उसकी ये बातें सुन कर असहज हुई चंचल उन्हें धीरे से चुटकी काटते हुए बोली।
“तुम कुछ ज्यादा नहीं बोल रहे।"

“देखो, मैं ज्यादा नाटक नहीं कर सकता, तो मैं तुम्हें सच सच बताता हूँ.. हाँ, मैं और चंचल शादी शुदा है। पर मुझे नहीं लगता की इस बात से तुम्हें कोई भी फर्क पड़ेगा।"

“पर ऐसे कैसे? आप दोनों तो इतना लड़ते है?", निया ने सवाल किया।

“हाँ.. तो पति पत्नी का तो ये सबसे पसंदीदा काम होता है। तुमने कभी देखा नहीं।"

“पर फिर.. लोग तो कहते है, की आप दोनों लड़ते हो, क्योंकि आपकी वजह से चंचल को जॉब नहीं मिली थी।"

“वाओ.. क्या क्या कहते है लोग। ये सच है, की हम एक ही कंपनी में जाना चाहते थे.. ताकि सारा दिन काम करते हम दोनों, एक दूसरे को कुछ टाइम दे सके.. पर तुम्हारी ये चंचल मैडम ने पैसों के चक्कर में मुझे छोड़ दिया और फिर यहाँ आ गई। तुम्हें नहीं पता कितनी मुश्किलों से मैंने अपनी कंपनी में यहाँ आस पास भेजने की बात की थी, और फिर तो किस्मत थी, की हम यूँ एक साथ या गए। नहीं तो किसी को तो मेरी बिल्कुल परवाह ही नहीं थी।"

“तुम्हें नहीं लगता, की इतना कुछ बोलने की जरूरत नहीं थी तुम्हें।", चंचल ने टोका।

“इतनी दिनों बाद मुझे कहीं अपना मन हल्का करने को मिला है, तो आखिर क्यों ना करू?”

“एक काम करो.. तुम यहाँ बैठ कर अपना मन ही हल्का कर लो, जब हो जाए तो घर आ जाना। हम अपनी वो ऐनवर्सरी मना लेंगे, जो तुम्हें याद नहीं है।", चंचल हल्के गुस्से से बोली।

“एक तो साल में जीतने दिन नहीं होते, उससे ज्यादा तो तुम ऐनवर्सरी मनाती हो।", सुनील ने चंचल के गुस्से का जवाब चिड़ कर दिया।

“हाँ.. तो उन्हीं ऐनवर्सरी की वजह से कुछ बचा है हमारे रिश्ते में, नहीं तो तुम्हारे जैसे बोरिंग इंसान के साथ मेरा क्या ही होना था।"

“खुद सारा सारा दिन काम करने वाला इंसान ये बोल रहा है.. एक दिन बोल दो, की आज जल्दी चले, तो नहीं मुझे निया के साथ बैठ कर ये देखना है... वो करना है। सारे जहाँ का काम तुम ही तो कर रही हो।"

चंचल और सुनील की लड़ाई सुन कर, ध्रुव और निया आँखों ही आँखों में एक दूसरे को चलने का इशारा करते है।

वो दोनों टेबल से खिसक ही रहे होते है, की चंचल उन्हें देख लेती है।

“कहाँ.. कहाँ.. चल दिए दोनों?”

“कहीं नहीं.. बस ऑर्डर करके आए।", ध्रुव चंचल को जवाब देता है।

“जल्दी आओ.. क्यूंकि हमारे जवाब तो हो गए.. अब सवालों के जवाब की बारी तुम दोनों की है।"