Kilkari- Part 1   in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | किलकारी - भाग १

Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

किलकारी - भाग १

अदिति और विजय के विवाह को नौ वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अब तक भी घर में बच्चों की किलकारियाँ नहीं गूँजी थीं। विजय के माता-पिता तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे कि वे कब दादा-दादी बनेंगे। अदिति और विजय ने क्या-क्या नहीं किया। शहर के बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया। मंदिरों में जाकर माथा टेका लेकिन भगवान उनकी पुकार सुन ही नहीं रहा था। इसी तरह एक वर्ष और गुजर गया। धीरे-धीरे निराशा उनके जीवन में गृह प्रवेश करने लगी। अड़ोस-पड़ोस के छोटे-छोटे बच्चों को देखकर अदिति का मन भी ललचा जाता। कोई उसे भी माँ कह कर बुलाए, कोई उसकी गोदी में आकर लिपट जाए। वह भी अपने आँचल में लेकर किसी नन्हे को दूध पिलाए। अदिति उदास रहने लगी जो विजय महसूस कर रहा था और उसकी उदासी का कारण भी वह जानता ही था।

विजय सोच रहा था कि अदिति को संभालना होगा। यदि अभी भी उसे बच्चे की ख़ुशी नहीं मिली तो वह मानसिक तौर से बीमार हो जाएगी। रात भर विजय सो ना पाया यह सोचते हुए कि क्या करूँ? वह तो अपना दुःख सहन कर लेता था लेकिन अदिति नहीं कर पा रही थी। तभी लेटे-लेटे विजय के मन में विचार आया क्यों ना वे लोग किसी बच्चे को गोद ले लें।

अदिति से पूछने से पहले वह उठकर अपने पापा मम्मी के कमरे में गया और आवाज़ लगाई, "माँ उठो ना!"

विजय को अपने कमरे में इस वक़्त देखकर विमला घबरा गई। घबराई हुई आवाज़ में उसने पूछा, "क्या हुआ विजय, सब ठीक तो है ना?"

तब विजय ने कहा, "माँ मुझे आप लोगों से बहुत ही ख़ास मसले पर चर्चा करनी है। पापा को भी उठाओ।"

उसके पापा दीपक तो जाग ही रहे थे। यह सुनते ही वह उठ कर बैठ गए और उन्होंने कहा, "बोलो विजय क्या बात करना चाहते हो?"

"अदिति अभी सो रही है। मैं उसकी गैर हाज़िरी में यह बात करना चाहता हूँ।"

"हाँ बोलो विजय।"

"पापा हमारी शादी को दस साल पूरे होने को आ गए परंतु हम अभी तक आप लोगों को दादा-दादी बनने का सौभाग्य ना दे पाए। सब कुछ करके अब हम हार गए हैं। मैं तो फिर भी ऐसे ही जी लूँगा लेकिन मुझे अदिति की चिंता रहती है। उसका उदास चेहरा देखकर मैं भी दुःखी हो जाता हूँ। मुझे डर लगता है ऐसे में कहीं उसे मानसिक बीमारियाँ ना घेर लें। मैं चाहता हूँ कि अब हमें कोई बच्चा गोद ले लेना चाहिए, यदि आप दोनों इस बात से सहमत हों, आपको कोई एतराज ना हो। तब तो मैं अदिति से भी बात कर सकता हूँ।"

विमला ने पूछा, "विजय बेटा क्या अब कोई उम्मीद बाक़ी नहीं है?"

"नहीं माँ आपको क्या लगता है नौ साल का लंबा समय बीत गया। क्या अब भी आपको उम्मीद लगती है? अब तक यदि होना होता तो हो जाता। अब और ज़्यादा समय तक रास्ता देखना मुझे ठीक नहीं लगता।"

दीपक ने कहा, "मुझे तो इसमें कोई एतराज नहीं है बल्कि अच्छा ही है। वैसे भी हमारे देश में कितने ऐसे बच्चे हैं जो बेचारे अनाथाश्रम में रहते हैं। जिनके मां-बाप या तो उन्हें छोड़ देते हैं या बेचारे ख़ुद ही दुनिया छोड़ जाते हैं। ऐसे बच्चों में से यदि किसी एक को भी हमारा प्यार, हमारा साथ मिलता है, तो हमारे लिए यह बहुत ही ख़ुशी की बात है। क्या कहती हो विमला?"

"ऐसे तो मुझे भी कोई एतराज नहीं है। मैं तो सिर्फ़ यह पूछ रही थी कि क्या अब कोई उम्मीद की गुंजाइश नहीं?"

"विमला चलो माना, यदि हमारे घर भगवान बच्चा दे भी देते हैं तो भी क्या हुआ हमारे दो बच्चे हो जाएँगे। अब जब मन में आ ही गया है तो इस काम में हमें देरी नहीं करनी चाहिए।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः