Kaun hai khalnayak - 14  in Hindi Love Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | कौन है ख़लनायक - भाग १४ 

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कौन है ख़लनायक - भाग १४ 

प्रियांशु की आवाज़ सुनते ही रुपाली के हाथ-पाँव कांपने लगे।

"प्रियांशु तुम?"

"हाँ मैं…"

" तुमने ऐसा क्यों किया प्रियांशु? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? क्यों मेरी ज़िंदगी में तुमने ज़हर घोल दिया? क्यों मेरे जीवन को नरक बना दिया? मैंने तुम्हें जी जान से प्यार किया था। अपना सब कुछ तुम्हें दे दिया था। प्यार की ख़ातिर, विश्वास की ख़ातिर और तुमने विश्वासघात किया है मेरे साथ, आख़िर क्यों?"

"अरे-अरे बोलती ही जाओगी या कुछ सुनोगी भी। सुनो रुपाली तुम जितनी जिज्ञासु हो जानने के लिए मैं भी उतना ही आतुर हूँ तुम्हें वह बात बताने के लिए कि आख़िर मैंने ऐसा क्यों किया? तुम जल्दी से स्नेहमिलन पार्क में आ जाओ। मैं तुम्हें सब कुछ बताऊँगा, अभी फ़ोन पर कुछ भी मत पूछो।"

रुपाली तुरंत ही स्नेहमिलन पार्क में पहुँच गई। पार्क में घुसते ही उसने इधर उधर प्रियांशु को ढूँढा। एक बेंच के नज़दीक प्रियांशु उसे खड़ा हुआ दिखाई दिया। प्रियांशु को देखते ही वह लपक कर उसके पास गई। उसने जाते से प्रियांशु के दोनों कंधों को पकड़ कर ज़ोर से झकझोरते हुए कहा, "यह क्यों किया तुमने मेरे साथ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?"

रुपाली की आँखों से आग के गोले निकल रहे थे।

"बताता हूँ रुपाली इसीलिए तो बुलाया है तुम्हें यहाँ।"

उसने बेंच पर बैठे हुए एक युवक की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा, "इसे पहचानती हो रूपाली, कौन है यह?"

"कौन है प्रियांशु?"

"ध्यान से देखो शायद तुम्हें याद आ जाए। बिना बताए ही तुम्हें सब कुछ समझ में आ जाएगा। ध्यान से देखो रुपाली, तुम्हें पहचानने में थोड़ा वक़्त ज़रूर लग सकता है क्योंकि यह जैसा था अब वैसा नहीं रहा।"

"यह क्या बोल रहे हो प्रियांशु," रुपाली ध्यान से उस लड़के को देख रही थी।

उसने कहा, "हाँ मैं पहचान गई, मुझे सब याद आ रहा है। यह तो अंशुल है, सेंट जोसेफ स्कूल में मुझसे एक क्लास आगे दसवीं में था। लेकिन तुम मुझे यह सब क्यों दिखा रहे हो?"

"क्यों तुम्हें याद नहीं? आज से 8 साल 4 महीने और 2 दिन पहले की बात है। तुम नौवीं में थीं और यह दसवीं में था। वह तुम्हें बहुत प्यार करता था। यह बात मैं भी जानता था रुपाली। उसने मुझे बताया था और तुम्हें दिखाया भी था। मैं भी नौवीं क्लास में उसी स्कूल में ही था, मेरा सेक्शन तुमसे अलग था। अपने बेइंतहा प्यार की ख़ातिर ही तो वह तुम्हें देखता रहता था। तुम्हारे आगे पीछे घूमता रहता था। इसी पागलपन में उसने एक दिन तुम्हें अकेला देखकर तुम्हें किस कर के आई लव यू कहा था। तुमने उसका जवाब किस तरह से दिया था, याद है? काश तुमने उसके गाल पर एक तमाचा मार दिया होता। लेकिन नहीं तुमने जाकर सीधे स्कूल के सबसे स्ट्रिक्ट डेविड सर को वह बात बता दी। उतने पर भी तुम्हारा मन नहीं भरा तो तुमने प्रिंसिपल सर के पास भी शिकायत कर दी, याद आया रुपाली?"

रुपाली ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, "शुरू से हमारे घर में हमें सिखाया जाता है किसी को अपने शरीर को छूने नहीं देना मैंने तो इसीलिए…"

"…इसीलिए तुमने उसका जीवन ही बर्बाद कर डाला। जानती हो ना उसके बाद पूरी असेंबली में उसका नाम पुकारा गया और सबको बताया गया कि अंशुल की इस हरकत के लिए उसको स्कूल से निकाला जाता है ताकि इसके बाद कभी कोई स्कूल में इस तरह की ग़लती ना करे। असेंबली में सबके सामने उसे शर्मिंदा करके निकाल दिया गया। मैं वहीं पीछे लाइन में खड़े-खड़े अपने भाई की बेइज्ज़ती देख रहा था रुपाली।"

रुपाली ने हैरान होते हुए पूछा, "क्या अंशुल तुम्हारा भाई है प्रियांशु?"

"हाँ रुपाली यह मेरा भाई है। मेरी आँखों में आँसू थे, उस समय मैं कुछ नहीं कर पाया। तुम और तुम्हारी सहेलियाँ मुस्कुरा रही थीं, मानो तुमने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो। उस साल उसे और कहीं भी एडमिशन नहीं मिला। उसका साल तो बिगड़ा ही साथ में उसे ऐसा मानसिक आघात लगा कि वह कभी संभल ही नहीं पाया। स्कूल का सबसे इंटेलिजेंट लड़का था वह। उसकी बनी बनाई इज़्जत चली गई, प्यार चला गया, उज्ज्वल भविष्य चला गया। उसे दौरे पड़ने लगे, मैं हर पल उसके साथ था । उसे रातों में वही डरावने सपने दिखा करते थे कि उसे अपमानित करके स्कूल से निकाला जा रहा है। तुमने मेरे भाई की यह हालत कर दी रुपाली। उसके बाद वह ना आगे पढ़ पाया, ना बढ़ पाया और ना ही मर पाया। मैंने उसे हर पल मरते देखा है। उसने तो आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी लेकिन मैंने ही उसे बचा लिया। काश मर जाने दिया होता तो हर रोज़ अपने भाई को, अपने माँ बाप को, अपने पूरे परिवार को मरता हुआ नहीं देखता। यह तो अंजान है रुपाली, शायद तुम्हें पहचान भी नहीं पाएगा लेकिन मैं तुम्हारा वह चेहरा कभी नहीं भूल पाया। मुझे भी कितनी ही रातों में भयानक सपने आते रहे, मानो तुम तलवार लेकर मेरे भाई के पीछे भाग रही हो। ख़ैर छोड़ो तुम्हारी तो बात ही जाने दो रुपाली तुमने तो कभी किसी के प्यार की कद्र ही नहीं की। तुम तो तुम्हें दिलो जान से प्यार करने वाले अजय को भी नहीं समझ पाईं। उसे भी नहीं अपना पाईं, उसका भी दिल तोड़ दिया, जैसे तब अंशुल का तोड़ा था। वह तो मासूम था, उसका प्यार भी सच्चा था पर शायद तुम्हारे पास प्यार को समझने की शक्ति ही नहीं है। तुम्हारे पास वह दिल ही नहीं है रुपाली तुम तो ना तब प्यार को समझ पाईं और ना अब। "

रुपाली की आँखों से आँसू, बारिश की झड़ी की तरह लगातार बहते ही जा रहे थे। वह दंग थी, आश्चर्यचकित थी।

रुपाली ने कहा, "मुझे क्या पता था कि अंशुल के साथ इतना खराब व्यवहार किया जाएगा। मुझे लगा था थोड़ी बहुत डांट पड़ेगी बस। मैं ऐसा नहीं चाहती थी प्रियांशु कि अंशुल के साथ यह सब हो… लेकिन प्रियांशु उसने जो किया था वह भी तो ग़लत ही था ना?"

"बस करो रुपाली, सफाई मत दो। उस समय तुम्हारे चेहरे की वो मुस्कुराहट आज भी मेरी आँखों से नहीं जाती है। मैं तुम्हारी वही मुस्कुराहट छीन लेना चाहता था। इतने वर्षों से हर रोज़ अपने भाई को इस तरह देखकर मेरी बदला लेने की चाह और अधिक बढ़ती गई। मैंने अपने भाई का बदला पूरा किया। अब तुमसे जो बने वह कर लो। मैंने जो भी किया तुम्हारी मर्जी के साथ किया, बलात्कार नहीं किया। मेरे माँ-बाप तो इन सब बातों से अनजान हैं। यदि मैं उन्हें बता देता तो वह तुम्हारी ग़लती के बाद भी मुझे ऐसा नहीं करने देते। इसीलिए मैंने उन्हें भी अँधेरे में रखा लेकिन मेरे मन को अब शांति मिली है। "

"बचपन की एक छोटी सी घटना को तुमने मेरे जीवन की बर्बादी का कारण बना दिया प्रियांशु?"

"वह छोटी सी घटना तुम्हारे लिए होगी रुपाली, हमारे लिए वह कभी ना भूलने वाला अपमान था। तब से लेकर आज तक उसी आग में जलता आया हूँ। तुम कहाँ हो, हमेशा यह पता लगाता रहा। तुम्हें क्या लगता है, मैं ट्रांसफर के कारण आया था, नहीं रुपाली मैं जानबूझकर आया था। जैसा मैं चाहता था, सब बिल्कुल वैसा ही हुआ।

इतना कह कर प्रियांशु ने अपने भाई का हाथ पकड़ा और कहा, "चलो भैया।"

रत्ना पांडे, वडोदरा {गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः