Meena Kumari...a painful story - 2 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मीना कुमारी... दर्द भरी एक दास्तां - 2

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मीना कुमारी... दर्द भरी एक दास्तां - 2

अलीबक्श उन दिनों फिल्मों में हरमोनियम बजाते थे, घर के हालात ठीक न होने के कारण इक़बाल बानो भी काम पर जाती ऐसे में रोजी रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो गया था और तीन तीन बेटियों का खर्चा अलग, धीरे धीरे दो बेटियों के साथ इस तीसरी बेटी महजबीन की परवरिश भी होने लगी |

काम से लौटकर मां का कब आना हो इसलिए मां एक बार में ही ढेर सारी रोटियां बना कर रख जाती थी, जिसे महजबीन अपनी दोनों बहनों के साथ जब भी भूख लगती तो बासी रोटी, नमक और प्याज के साथ खा लेती |


धीरे-धीरे जिंदगी का सिलसिला यूं ही चलता रहा, एक दिन महजबीन अपनी मां के साथ स्टूडियो आई जहां उनको देखकर निर्देशक विजय भट्ट ने उनको फिल्म में काम करने के लिए कहा, घर के हालात तंग थे तो मां ने भी तुरंत हां कर दी और बस यहीं से शुरू हो गया महजबीन का फिल्मी सफर, फिल्म थी "लेदरफेस" जिसमें महजबीन ने बाल कलाकार के रूप में काम किया जिसके लिए उन्हें ₹25 मिले, उस वक़्त इनकी उम्र 7 साल की थी |

उस दिन घर में मां इक़बाल बानो और पिता अली बक्स दोनों बहुत खुश हुए महजबीन की आवाज भी बहुत अच्छी और सुरीली थी, इस वजह से उन्हें इसके बाद 8 साल की उम्र में "एक ही भूल" और "पूजा" फिल्म में गाना गाने के लिए ऑफर आया, जिसके लिए उन्हें अच्छा मेहनताना मिला |

इसके बाद फिर धीरे-धीरे घर मे पैसे आने लगे और 9 साल की उम्र में संगीतकार अनिल विश्वास में अपनी फिल्म के सारे गाने में जमीन को गाने के लिए कहा फिल्म का नाम था "बहन" जिसमें महजबीन की आवाज को काफी पसंद किया गया और यहीं से महजबीन को एक नया नाम दिया गया यह नया नाम था मीना कुमारी... जी हां मीना कुमारी |

बचपन से गृहस्थी का बोझ उठाने वाली मीना कुमारी को 14 साल में एक फिल्म मिली जिसका नाम था "बच्चों का खेल" बस यही से महजबीन को दुनिया ने "मीना कुमारी" के नाम से अपना लिया और इसी नाम से वह आज भी जानी जाती है |

इसके बाद "पिया घर आजा" में उन्होंने सारे गीत गाए और इनको अच्छे खासे पैसे मिलने लगे, अब मीना कुमारी के घर की हालत भी काफी सुधर गई थी लेकिन मीना कुमारी काम के बोझ के तले दब गई थी, उनका बचपन छिन चुका था और आने वाली जवानी भी धीरे-धीरे छीन रही थी वह एक महज पैसे छापने वाली मशीन सी बन गई थी | जिसके ज़ज्बात समझने वाला कोई नहीं था |

मीना कुमारी पढ़ना लिखना चाहती थी लेकिन उनके पिता ने इस बात को जरूरी नहीं समझा लेकिन मीना कुमारी की बढ़ती लोकप्रियता के बाद उन्होंने महसूस किया कि पढ़ा लिखा ना होने की वजह से आगे चलकर शायद काम मिलना बंद हो जाए, इस वजह से उन्होंने घर में भी ही एक मौलवी को मीना कुमारी को पढ़ाने के लिए लगा दिया |

मीना कुमारी ने बचपन से ही शेरो, शायरी करना शुरू कर दिया और अपनी शुरुआती तालीम उन्होंने बाद मे हासिल की |