Galatfahmi - Antim Bhag in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | ग़लतफ़हमी - अंतिम भाग

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ग़लतफ़हमी - अंतिम भाग

अभी तक आपने पढ़ा माया को दीपा और राहुल के बारे में सब कुछ पता चल गया। अब माया बहुत ख़ुश थी। क्या होगा राहुल और दीपा का पढ़िए इस अंतिम भाग में: -

दीपा के कमरे में आते ही उसने प्यार से दीपा की तरफ देखकर पूछा, "क्या हुआ दीपा तबियत खराब है क्या ?"

"नहीं, शायद कुछ खाने में गड़बड़ हो गई होगी," कह कर दीपा ने बात को टाल दिया।

लेकिन राहुल सब समझ चुका था, वह सोच रहा था इतने समय दीपा कितनी मानसिक परेशानी से गुजरी होगी। बस अब मैं उसे और मानसिक तनाव में नहीं रहने दूंगा।

कुछ सोचकर राहुल ने दीपा से कहा, "दीपा रिसेप्शन पर जाकर, हम सब के लिए चाय का आर्डर दे आओ ना ।"

"मैं फोन कर देती हूं ना राहुल।"

"अरे ख़ुद जाकर कह दोगी तो फटाफट आ जाएगी, वरना बहुत समय लगाते हैं यह लोग।"

"अच्छा ठीक है, अभी जाती हूं।"

दीपा के जाते ही राहुल ने अजय से कहा, "अजय प्लीज़ मेरा एक काम कर दोगे।"

"बोलो ना राहुल क्या काम है ?"

"अजय तुम तो वह जानते हो जो दीपा मुझसे छुपा रही है। मेरी तबियत की वजह से मुझे बताने में डर रही है लेकिन मैं सब समझ चुका हूं। उसे अब कोई मानसिक तकलीफ़ ना हो इसलिए एक बहुत बड़ा फैसला कर चुका हूं।"

राहुल ने कहा, "अजय कल क्या तुम एक सिंदूर की डब्बी मुझे लाकर दे सकते हो ?"

अजय सब समझ गया ।वह यह भी समझ गया कि राहुल दीपा को सरप्राइज़ देना चाहता है । तब तक दीपा भी आ गई और चाय भी। सब ने चाय पी उसके बाद अजय और माया ने विदा ली।

कार में बैठकर अजय ने माया से कहा, "माया कैसा लगा सरप्राइज़ ?"

माया कुछ जवाब तो नहीं दे पाई लेकिन उसकी आंखों में पश्चाताप के वह मोती थे, जो बड़ी से बड़ी भूल को भी धोकर साफ़ कर देते हैं, माफ़ कर देते हैं।

अजय ने चुटकी ली, "अब मेरे देर से आने पर नाराज़ तो नहीं होगी ना तुम ?"

माया घर जाकर जल्दी से वह पत्र अजय के देखने से पहले फाड़ कर फेंक देना चाहती थी। यदि उसने तलाक के बारे में पढ़ लिया, तो क्या सोचेगा मेरे विषय में और कितना दुःखी हो जायेगा ? कितना प्यार करता है वह मुझसे और मैं उस पर विश्वास तक ना रख पाई।

उसके ऐसा सोचते सोचते वह दोनों घर पहुंच गए। घर में घुसते ही माया ने अपना पर्स उस पत्र के ऊपर रख दिया ताकि अजय देख ना पाए। अजय जानबूझकर जल्दी से अंदर के कमरे में चला गया ताकि माया को वह अवसर मिल जाए जो वह चाह रही थी। अजय के अंदर जाते ही माया ने वो पत्र फाड़ कर कचरे के डब्बे में डाल दिया।

अजय के पास जाकर वह उसके गले से लग गई और बोली, "अजय मुझे माफ कर दो।"

अजय ने उसके होठों को अपने होठों से बंद कर दिया और फ़िर वह अपनी प्यार भरी दुनिया में खो गए।

दूसरे दिन अजय और माया अस्पताल गए। अजय ने सिंदूर की डब्बी राहुल के हाथों में थमा दी।

राहुल ने दीपा को बुलाकर अपने पास बिठाया और सिंदूर की डब्बी खोल कर दीपा की मांग की तरफ़ अपना हाथ ले गया।

यह देख कर दीपा स्तब्ध रह गई, "यह क्या है राहुल इस तरह बिना परिवार के...?"

"दीपा मैं इसी पल से तुम्हें मेरी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूं। दीपा हमारे परिवारों के समक्ष भी विवाह होगा लेकिन उसमें वक़्त लग जाएगा। मैं नहीं चाहता कि ऐसे समय में तुम एक पल के लिए भी मानसिक तनाव में रहो," कहते हुए राहुल ने दीपा की मांग में सिंदूर भर दिया।

अजय ने सभी की साथ में एक सेल्फी खींच ली। सभी ने एक दूसरे के लिए ख़ुशी के रास्ते खोज निकाले। माया यह सोच कर बहुत ख़ुश थी कि उसके पत्र को अजय पढ़ नहीं पाया। अजय यह सोचकर ख़ुश था कि माया अब पहले की तरह ख़ुश है।

राहुल भी ख़ुश था कि दीपा उसकी जीवन संगिनी बन गई और इतना बड़ा सरप्राइज़ पाकर दीपा की ख़ुशी का भी ठिकाना नहीं था। इसी को तो जीवन साथी कहते हैं, जो एक दूसरे को हमेशा ख़ुश रखना चाहते हैं। ग़लतफ़हमी का पौधा अगर पनप रहा हो तो उसे मिलकर वहीं नष्ट कर देना ही सफल दांपत्य जीवन की पूंजी है, जिसे हर पति-पत्नी को अपनाना चाहिए।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त