Confront corona - 2 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | कोरोना से सामना - 2

Featured Books
  • મર્દાની

    મર્દાનીઆ લેખ નો હેતુ મર્દાની મૂવી ના રીવ્યુ લખવાનો નથી... એટ...

  • મિસ કલાવતી - 16

    'ઝયુરીક' એરપોર્ટ બહાર વાતાવરણ ખુશનુમા હતું. ખુલ્લા &...

  • ગુરુ અને શિષ્ય

    ગુરુ અને શિષ્ય   निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथ...

  • સયુંકત પરિવાર - 1

    આજનો યુગ બદલાયો છે. આજના યુગમાં માણસ માણસથી દૂર થઈને યંત્ર અ...

  • સ્વપ્નિલ - ભાગ 12

    " તો એમાં મારી દીકરી ને આમ હેરાન કરવાની " શીતલ બેન બોલ્યાં ....

Categories
Share

कोरोना से सामना - 2

"मैं इनसे डिस्चार्ज करने के लिए बोल देता हूँ।"
9 मार्च 2020 को होली थी।रंगों का त्यौहार लेकिन हमारे रंग तो बिखरे हुए थे।उस दिन बेटे की तबियत बहुत ज्यादा बिगड़ चुकी थी।घर मैने बोल दिया था।मैं बेटे की हालत देखकर बहुत घबराया हुआ था।तब मैंने अपने मित्र कालीचरण को मथुरा फोन किया सारी बात बताकर बोला," जयपुर चलना है।तुम आ जाओ।बस से।"
और चौबेजी मथुरा से आ गए थे।मुझे उम्मीद थी।2या3 घण्टे में डिस्चार्ज कि प्रकिर्या पूरी हो जाएगी।और हम दिन में ही जयपुर के लिए निकल जाएंगे।मेरे लाख प्रयास करने के बाद भी डिस्चार्ज कागज बनाने में बहुत टाइम लगा दिया।और रात के 8 बज गए।बेटा वेंटीलेटर पर था।और उसके लिए वेंटीलेटर वाली एम्बुलेंस ही चाहिए थी।मेने अस्पताल वालो से कहा।आगरा हेल्प की एम्बुलेंस 16000 रुपयों में की थी।एम्बुलेंस आने पर उसमे मौजूद डॉक्टर ने दवा का पर्चा दिया था।तबियत नाजुक थी।रास्ते मे दवा की जरूरत पड़ सकती थी।
बेटे को आई सी यू वार्ड से लाया गया था।उस समय उसके शरीर मे इतना पानी भर चुका था कि स्ट्रेचर पर 4 आदमियों से भी नही उठ रहा था।चेहरा भयंकर डरावना सा।उस समय मेरी बेटी,सुभाष,मैं, पुत्रवधू, सन्दीप और चौबेजी मौजूद थे।
एम्बुलेंस में मैं, चौबेजी, सन्दीप और पुत्रवधु आये थे।बेटी चलते समय बोली थी,"पापा आप हिम्मत मत हारना"
एम्बुलेंस कंही नही रुकी थी।रास्ते मे जगह जगह होलिका दहन का शोर और नज़ारे थे।लेकिन मैं बार बार बेटे की तरफ ही देख रहा था।मुझे देखता देखकर चौबेजी कहते,"चिंता मत करो।"
एम्बुलेंस में मौजूद डॉक्टर बेटे की फ़ाइल पढ़ रहा था।उसने समझाया था।बीमारी कैसे बढ़ी और सही कैसे होगी।
आगरा में साढ़े तीन लाख रुपया खर्च हो चुका था।जयपुर मैं एस एम एस में इलाज के इरादे से गया था।मैंने अपने भाइयों को फोन कर दिया था।वे बराबर मुझसे फोन करके सम्पर्क में थे।रात के एक बजे एम्बुलेंस सवाई मान सिंह अस्पताल की इमरजेंसी के गेट पर पहुंच गई थी।मेरे भाई,भतीजे,भांजे और भांजी दामाद वहां पहले ही पँहुच चुके थे।
एस एम एस की इमरजेंसी में भर्ती करके बेटे को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था।उसे आगरा से में आई सी यू में से वेंटीलेटर पर ले गया था।उसकी हालत ऐसी नही थी कि वह जनरल वार्ड में रह सके।आई सी यू के लिए उसका चौथा नंबर था।जनरल वार्ड का डॉक्टर बोला,"इन्हें घण्टे भर के अंदर वेंटीलेटर चाहिए।"
बाहर हमने सलाह की।दामाद राजेशजी ने फोन पर बात की।केवल मोनीलेक में आई सी यू और वेंटीलेटर उपलब्ध था।फिर दूसरी एम्बुलेंस की गई और रात को ढाई बजे हम मोनीलेक अस्पताल पहुंव्हे थे।
काउंटर पर मैने रजिस्ट्रशन कराकर पैसे जमा कराए थे।बेटे की हालत देखकर ड्यूटी डॉक्टर ने फोन पर बात की थी।और कुछ देर बाद इलाज चालू हो गया।रात को मैं और छोटा भाई रह गए।बाकी को घर भेज दिया था।
सुबह मुझे लेडी डॉक्टर ने बुलाया और बेटे की तबियत के बर्र में बताया।
मोनीलेक हॉस्पिटल किडनी का रिसर्च सेंटर है।करीब बारह बजे डॉक्टर विजय आये जो किडनी के स्पेस्लिस्ट है।उन्होंने मुझे बुलाया,"आप देख रहे है।आपके बेटे की क्या हालत हैं।आप किस हालात में इसे लाये है।हम सात दिन तक तो कुछ नहीं कहेंगे।सात दिन बाद बताएंगे
"मुझे आप पर पुरा भरोसा है।आप इलाज कीजिये

क्रमश