The Author Mugdha Follow Current Read गुजिया By Mugdha Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... आई कैन सी यू - 41 अब तक हम ने पढ़ा की शादी शुदा जोड़े लूसी के मायके आए थे जहां... मंजिले - भाग 4 मंजिले ---- ( देश की सेवा ) मंजिले कहान... पाठशाला पाठशाला अंग्रेजों का जमाना था। अशिक्षा, गरीबी और मूढ़ता का... ज्वार या भाटा - भाग 1 "ज्वार या भाटा" भूमिकाकहानी ज्वार या भाटा हमारे उन वयोवृद्ध... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share गुजिया (6) 1.7k 6.3k दिया की शादी के बाद पहली होली थी। शाम की पार्टी की सभी तैयारियां लगभग हो चुकी थी। दिया ने सोचा कि वो अपने हाथों से गुजिया बनाकर सबको सरप्राइज़ देगी। पर जब उसने गुजिया बनानी शुरू की तो एक भी गुजिया सही नहीं बन पा रहा था। कोई गुजिया थोड़ी कच्ची लगती और कोई गुजिया कुछ ज्यादा ही सिक जाने की वजह से जली हुई लग रही थी। यह सब देखकर दिया काफी परेशान हो गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। ससुराल में उसका पहला त्यौहार होने की वजह से उसे लग रहा था कि सबको उससे इतनी उम्मीदें होंगी।तभी उसकी सासूमाँ सीमाजी कुछ काम से किचन में आयी और दिया का उतरा हुआ चेहरा देखकर उन्हें सब समझ आ गया। दिया उनको देखकर बहुत ही घबरा गयी और उसे लगा अब तो उसे बहुत सी बातें सुनने को मिलेगी। वह बड़ी सरलता से उसके बाजू में आकर खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली, " दिया तुम्हें पता है ये गुजिया और हमारी ज़िन्दगी कई मायनों में बहुत समान है। अब देखो जैसे ये खोवा और मेवों का मिक्सचर आटे की इस परत में अच्छे से बँधकर रहे उसके लिए इसके किनारों को बहुत ही सावधानी से बंद करना जरूरी है पर किनारों की मजबूती का ध्यान रखने में इसके सुन्दर आकार को हम खो न दे इसका भी ख्याल रखना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे एक परिवार को बाँधकर रखने के लिए उचित संतुलन की जरूरत होती है पर परिवार के समन्वय की बागडोर को थामे हुए तुम्हें अपने अस्तित्व को खोना नहीं है। तुम्हारी पहचान भी उतनी ही जरूरी है जितना कि यह परिवार।" यह कहते हुए उन्होंने आटे की परत में मसाले को भरकर एक सुन्दर आकार का गुजिया तैयार किया।फिर गैस की आँच को मद्धम करते हुए उन्होंने अपनी बात जारी रखी, "अब जरूरत है सही आँच की जो इसे पूरी तरह से सिंकने दे बिलकुल वैसे ही जैसे हमारी सोच समझ और आंतरिक ऊर्जा जो हमें सही जगह, सही समय पर इस्तेमाल करनी चाहिए।" और यह कहते हुए उन्होंने गुजिया को कढ़ाई में डाला।"अब जरूरत है इसे सही समय पर पलटते रहने की जो इसे किसी भी एक तरफ से ज्यादा सिंकने या जलने नहीं देगा। बार बार पलटते रहने से इसकी सिंकाई चारों तरफ से बराबर होगी बिलकुल वैसे ही जीवन का विकास और उसकी गति न रुक जाए, उसके लिए हमें बदलाव को अपनाना जरूरी है। एक ही ढर्रे पर चलते रहने से ज़िन्दगी में जड़ता आ जाती है और वह बोझिल बन जाती है। लेकिन बदलावों के साथ आगे बढ़ना ही जीवन को एक नयी दिशा देता है।" दोनों तरफ से गुजिया अच्छी तरह से बिलकुल सुनहरा भूरे रंग का सिंक के तैयार हो गया।"ये देखो बन गया हमारा स्वादिष्ट करारा गुजिया" यह कहते हुए सीमाजी ने गुजिये को प्लेट पर निकाला।"माँ, आज इस परफेक्ट गुजिये की रेसिपी के साथ ही आपने एक परफेक्ट जिंदगी की रेसिपी भी मुझे सीखा दी।" यह कहकर दिया ने सीमाजी का गुजिये से मुँह मीठा कराया और दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दी। Download Our App