Kaisa ye ishq hai - 45 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 45)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 45)



प्रशान्त ने अर्पिता को खोए हुए देखा तो वो उसके पास आये और एक नोट उसके हाथ मे थमा कर वहां से चले गए और दरवाजे पर जाकर बड़े ही प्यार से बोले अप्पू,अगर कोई परेशानी है तो मुझसे शेयर कर सकती हो हम दोस्त है न ये अधिकार है मेरा।कह वो वहां से बाहर चले जाते हैं।


उनके मुख से इतने प्यार से अपना नाम सुन अप्पू के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।लेकिन जल्द ही चित्रा का ख्याल आने पर वो कहती है ये उलझने कब सुलझेगी।हमने हमारे सारे रिश्ते खो दिये है शान!अब बस रिश्तों के नाम पर हमारे पास सिर्फ दोस्ती का रिश्ता बचा है डरने लगें है हम कहीं वक्त की मार से ये रिश्ता भी न दूर हो जाये।अभी तो आप सब थे हमारे पास हमने खुद को सम्हाल लिया लेकिन कल को अगर आप ...नही शान ऐसा होने पर हमें खुद को सम्हालना बहुत मुश्किल पड़ जायेगा।हमे अभी हमारी भावनाओ को रोकना होगा।तब तक जब तक कि हम आपके और चित्रा के रिश्ते को समझ नही लेते।कहीं ऐसा न हो हम हमारे रिश्ते को प्रेम का रिश्ता समझ आप दोनो के बीच आ जाये।और आप दोस्ती निभाते निभाते हमारा साथ देते चले आये।ऐसे तो हम पाप के भागीदारी बन जाएंगे दो प्रेमियों के बीच आ जाएंगे जो हम कभी नही कर सकते।आप हमारा प्रेम है शान!हमारी मजबूरी नही है।हमे पहले सब पता करना होगा कहते हुए वो अपनी आंखों से आंसू पोंछती है तो अपनी बन्द मुट्ठी का कारण याद कर वो तुरंत प्रशान्त का दिया हुआ नोट पढ़ने लगती है।


प्रशान्त अप्पू,तुम्हारी खामोशी बता रही है कि तुम उलझन में हो कोई बात है जो तुम्हे परेशान कर रही है।मै छत पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं!🙂


अब इस टाइम छत पर इंतजार।ये भी जिद्दी है परेशानी बिन जाने छोड़ने वाले नहीं है।सच में ऐसे दोस्त आजकल कहीं नहीं मिलते।देखते है जाकर कहते हुए अर्पिता छत की तरफ निकलती है तो श्रुति सामने आ जाती है और उससे कहती है अप्पू सुन न अभी चल कर मुझे वो भैरवी की पकड़ क्लियर करवा दे और साथ ही एक बार रियाज भी करवा दे।


अभी ..हम थोड़ा! ओह हो।कितना सोचोगी चलो चुपचाप कुछ ही देर की तो बात है और वैसे भी अभी कौन सा तुम्हे काम करना है परम भाई है न सब देख लेंगे।कहते हुए श्रुति अप्पू का हाथ पकड़ अंदर कमरे में बुला ले जाती है।


उधर छत पर बैठे हुए प्रशांत जी बार बार सीढ़ियों की ओर देखते जा रहे है शायद अर्पिता अब आ रही होगी।।जब नहीं आती दिखाई देती तो वो अपनी पॉकेट से उसकी पायल निकाल उसे गिटार के उपर रख कहते है बड़ी देर लगा रही हो तुम आने में अप्पू।कहीं ऐसा तो नहीं तुम मुझसे नाराज़ हो या मेरी किसी बात को बुरा लगा जिसका मुझे पता ही न हो।


ओह गॉड हम भी न क्या सोचने लग गए हैं।हमने तो ऐसा कुछ नहीं किया और न ही कुछ कहा। हे ठाकुर जी ये इश्क भी न बदल कर रख देता है इन्सान को।


वहीं नीचे अर्पिता श्रुति को जल्दी जल्दी समझा कर वहां से निकलने कि कोशिश करती है जिसे देख वो श्रुति कहती है ऐसा है अप्पू मै पैसेंजर ट्रेन से सवारी करने वाली हूं तो सुपरफास्ट में मत बैठाओ।चुपचाप पैसेंजर वाली में बैठा कर मंजिल तक पहुंचाओ समझी कि नहीं।


हे ठाकुर जी कहां फंस गए हम एक तरफ शान जो उपर हमारा इंतजार कर रहे हैं वहीं एक तरफ ये हमारी दोस्त श्रुति जो आज हमे छोड़ने के बिल्कुल मूड में नहीं है।अब हम करे तो करे क्या।अब आप ही कोई रास्ता दिखाइए!अर्पिता बेचारा सा दुखी सा चेहरा बना कर उपर देखती है तो श्रुति कहती है अप्पू तुम ये उपर कहां देख रही हो यहां नीचे समझाना है मुझे।


हम समझा तो रहे है पूरे मन से ध्यान दोगी तब न समझ आएगा।इधर ध्यान दो हमारे रिएक्शन पर नहीं समझी।अर्पिता ने श्रुति से कहा।ओके ओके श्रुति बोली और अर्पिता एक बार फिर से श्रुति को समझाने लगती है।इधर छत पर इंतजार करते करते काफी समय हो जाता है आसमान मे चांद निकल आता है तो प्रशांत चाँद की ओर देख कहते हैं।


तुम तो निकल आये हो आसमान मे अपनी चांदनी को लेकर। लेकिन मेरी चांदनी अभी तक नही आई है।ये चांद तो अभी भी बेनूर ही रहा है अपनी चांदनी के बिना।तुम ही मेरा संदेश उस तक पहुंचा दो जिससे कि वो भी अपने चाँद के पास आ जाये और इसमे भी चांदनी से नूर भर दे।


कहते हुए वो गिटार उठाते हैं और उसे ट्यून करने लगते हैं।


लेकिन आज वो कोई गजल न् गुनगुना कर एक मूवी का रोमांटिक सॉन्ग गुनुनाते लगते हैं।


सुन जालमा मेरे सानु कोई डर ना कि समझेगा जमाना।ओ तू वी सी कमली,मैं वी सा कमला


इश्के दा रोग सयाना,इश्क दा रोग सयाना।


सुन मेरे हमसफ़र!क्या तुझे इतनी सी भी खबर!


सॉन्ग गुनगुनाते हुए वो खो ही जाते हैं।अर्पिता नीचे श्रुति के साथ कमरे मे बैठी हुई होती है।ओह गॉड मतलब हम नही पहुंचे तो ये हमे ऐसे टॉर्चर करेंगे।जानते है ये कि इनकी अंगुली में चोट लगी हुई है लेकिन फिर भी ..!अभी बताते हैं हम इन्हें मन ही मन कहते हुए अर्पिता श्रुति से अभी आने का कह वहां से छत पर चली जाती है।छत के नजारे देख उसका पारा और चढ़ जाता है वो वहीं से नीचे लौट आती है।और बड़बड़ाते हुए वहीं इधर से उधर घूमने लगती है।कुछ भी कह लो इन्हें करना अपने मन की ही है।कितना मना किया बस दो दिन की ही तो बात थी इसीलिए तो अकैडमी जाने के लिए मना किया।वहां जाएंगे तो गिटार बजायेंगे।अंगुली हिलेगी तो जख्म ठीक नही हो पायेगा।लेकिन इन्हें क्या।उस पर भी छत पर बजाना जरूरी था खुद एन्जॉय कर रहे है या औरो को दिखा रहे कि देखो हमे आता है बजाना।।सभी पड़ोसन आ गयी छत पर।


क्या तुझे इतनी सी भी खबर!तेरी सांसे चलती जिधर रहूंगा बस वहीं उम्र भर।रहूंगा बस वहीं उम्र भर हाय! जितनी हंसी ये मुलाकाते हैं उनसे भी प्यारी तेरी बातें है।बातों में तेरी जो खो जाते हैं आऊं न होश में मैं कभी।बाहों में है तेरी जिंदगी हाय!


परम अर्पिता को ऐसे बैचेनी में टहलते देखता है तो मन ही मन सोचते हुए कहता है कुछ तो गड़बड़ है।वो इशारे से हाथ घुमा अर्पिता से पूछता है क्या हुआ।तो अर्पिता उसे इशारे से कानो में लगा हेडफोन हटाने को कहती है।ओके कह परम हेडफोन हटाते है तो आगे के बोल उसे सुनाइ देते हैं


मैं तो हुं खड़ा किस सोच में पड़ा जाने कैसे जी रहा था मैं दीवाना!छुपके से आके तूने दिल में समा के तूने छेड़ दिया कैसा ये फ़साना ..।हो मुस्कुराना भी तुझी से सीखा है दिल लगाने का तू ही तरीका है ....


ओह नो।हे ठाकुर जी आज तो भाई गये बड़बड़ाते हुए वो दौड़ते हुए छत पर जाते हैं जहां का नजारा देख वो अपना सर पर हाथ रखते हुए कहते है कहां तो अपनी कोशिशो से मैंने एक कदम फासला कम कर दिया था और ठाकुर जी आपने उसका दुगुना बढ़ा दिया।अब आगे क्या होगा आप ही जाने।लगता है वो यहां ये सब देख कर गयी हैं तभी इतनी बैचेन है।


वहीं नीचे बैचेन सी घूम रही अर्पिता के दिल और दिमाग में इस समय द्वन्द छिड़ी हुई है।


दिमाग में ख्याल आ रहे है ये उनकी अपनी लाइफ है हम होते कौन है दखलंदाजी करने वाले।है तो एक दोस्त ही न जो उन्हें समझा ही सकती है।अपना भला बुरा वो खुद समझते हैं।हम उनसे प्रेम करते है तो चुपचाप करे न हम। उन पर अपने प्रेम को लाद तो नही सकते।


वहीं दिल कहता है लादने का कहा किसने है।प्रेम करती हो तो निभाओ न।अपने प्रेमी को तकलीफ में भला तुम कैसे देख सकती हो।बाकी सब बातें बाद में सोच लेना अभी तो तुम्हे अपने प्रियतम के भले के बारे में सोचना है आगे जो होगा देखा जायेगा।प्रेम तो निस्वार्थ होता है न फिर इसमे तुम अपनी तकलीफ के बारे में कैसे सोच सकती हो।ये प्रेम नही हो सकता ये सिर्फ आसक्ति हो सकती जो कि हमारे प्रेम में तनिक भी नही है।हमे समझ आ चुका है हमे क्या करना है अर्पिता ने खुद से कहा और वो अंदर प्रशांत के कमरे में जाकर मलहम पट्टी उठा लाती है और प्रशांत के आने का इंतजार करने लगती है।वहीं छत पर परम जाकर प्रशांत को रोकते है और उनके हाथ की अंगुली दिखा कहते है ये सब क्या है भाई।प्रशांत जब उसे देखते है तो कहते है इसका मुझे तनिक भी ध्यान ही नही रहा।प्रशांत की बात सुन परम कहते है आजकल आप कुछ ज्यादा ही फिल्मी हरकते करने लगे हैं।जबकि फिल्मे तो आप इतनी देखते नही है।


वहीं प्रशांत सोच में पड़ जाते हैं और बड़बड़ाते है अप्पू से क्या कहूंगा।जब तुमने इतना सुना लिया तो छोड़ेगी तो वो भी नही।


प्रशांत को सोच में गुम देख परम कहते हैं अब सोचने से कुछ नही होना जरा आसपास भी नजर घुमा और फिर नीचे चलिये कोई आपकी राह देख रहा है।अव मेरे डांटने का अधिकार किसी और ने ले लिया है।चलो...!


मतलब वो यहां आई थी छोटे?प्रशांत ने धीमे से पूछा तो परम बोले।अब ये आप खुद समझ जाओगे क्योंकि मैं जब कमरे से बाहर निकला तो वो हॉल में बैचेनी से बड़बड़ाते हुए राउंड लगा रही थीं।


मतलब आज तो खाना नही डांट खाने को मिलेगी।हाउ स्वीट!चलो चलते है प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा और पायल जेब में रख चलने के लिए खड़े हो गये तो परम बोले भाई ये मैं जानता हूँ कि आप बदल गये हैं लेकिन इतने बदल गये ये आज देख भी लिया।


मतलब छोटे ?


मतलब ये मैं दुनिया के पहले इंसान को देख रहा हूँ जो डांट खाने का नाम सुन कर ही हंस रहा है मतलब जिसे डांट खाने में खुशी मिल रही है ..!इतना बदलाव भाई परम ने मुस्कुराते हुए कहा तो प्रशांत बोले, छोटे सच कहुं तो मैं प्रेम को जीना चाहता हूँ।उसके हर रंग को रूह से महसूस करना चाहता हूँ फिर चाहे वो रंग खुशी के हो,मिलन के हो रूठने के हो मनाने के हो,डांटने के हो या प्रेम से समझाने के हो।मैं बस डूबना चाहता हूँ प्रेम के उस सागर में जो अनंत है, और मैं जानता हूँ अर्पिता वही है जिसका इंतजार मैंने वर्षो से किया है जिसकी वजह से मेरे हृदय की धड़कने पहली बार बढ़ी है।


प्रशांत की बात सुन परम कहता है भाई इससे पहले तो आपने कभी मुझसे इस बारे में ऐसे चर्चा नही की।आज आप ऐसी बाते कर रहे है मुझे यकीन ही नही हो रहा कि ये आप ही है जिन्होंने आज मुझसे अपने, छोटे भाई से खुलकर अपने ख्यालात के बारे में बातचीत की है।मतलब आप, आपकी ख्वाहिशे, आपकी सोच सब पहली बार शेयर की है आपने।इतना मैं जानता था कि आप जिस किसी को भी पसंद करेंगे वो पहली और आखिरी पसंद होगी आपकी।लेकिन उससे कभी कहेंगे नही बस बिना किसी स्वार्थ के उसका साथ निभाते जाएंगे।लेकिन आज आपकी सोच जान मैं हैरान हो गया हूँ भाई।मतलब ..अब क्या कहूँ मैं शब्द खत्म हो गये मेरे बस इतना ही कहूंगा आपके रिश्ते को किसी की नजर न लगे।।क्योंकि ऐसे रूह के रिश्ते होते अनमोल है लेकिन कम समय के लिए होते हैं।


ना छोटे हमारा रिश्ता बहुत आगे जायेगा।तुम और ये सारी कायनात गवाह बनेगी इस बात की।मैं मानता हूँ कि मेरी बातें अभी अजीब लग रही होंगी तुम्हे,या तुम्हारी जुबां में कहो तो फिल्मी लग रही होगी लेकिन छोटे वक्त के साथ तुम सब समझोगे की कभी कभी किसी की सोच अलग हो सकती है जिसे समझना हर किसी के वश की बात नही।


हां भाई ये बात तो सही कहा।अब आपकी सोच जान कर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे अब तक मैं आपको पचास प्रतिशत भी नही जान पाया।हैरान हूँ मैं ये सोचकर कि आज के जमाने के होकर भी आपके ख्यालात तो सदियों पुराने है।एक लड़का होकर भी आपके ख्यालात है कि आप प्रेम को रूह से जीना चाहते हैं।इसके हर रंग में रंगना चाहते हैं।डूबना चाहते है आप इसके हर रंग में।


छोटे!इसमे लड़की या लड़के वाली कोई बात नही है।लड़का हूँ तो क्या हुआ लड़को की क्या ख्वाहिशे नही होती,उनका दिल नही होता उनके सपने नही होते?उनके अरमान,उनकी इच्छाये नही होती?सब होता है छोटे।लड़को के अंदर भी भावनाये होती है।बस फर्क इतना होता है कि जिम्मेदारियों के बोझ के चलते वो भावनाये दिल के किसी कौने में दब जाती है।या वो किसी रिश्ते में बंधने पर उस रिश्ते की खुशी के लिए उन भावनाओ को मार देते हैं।और उफ तक नही करते।वो दूसरो की खुशी में भूल जाते है कि वो क्या चाहते हैं।वहीं जब किसी रिश्ते में महत्वकांक्षाएं सिर उठाने लगती है तो सारा दोष हम लड़को पर डाल कर वो रिश्ता दम तोड़ देता है।


ओह माय गॉड! भाई सच में आज तो मुझे शॉक पर शॉक दे रहे हो।बस बस अब बाकी का ज्ञान कल लूंगा आपसे अभी आप जाकर डांट खाने का मजा लिए साथ ही मैं भी मजे लेता हूँ आपके साथ।परम ने हंसते हुए कहा और नीचे भाग आये।उसके पीछे पीछे धीरे धीरे प्रशांत भी आ गये।और आकर अर्पिता के सामने खड़े हो गये।अर्पिता ने कुछ नही कहा और प्रशांत का हाथ पकड़ ले जा कर सोफे पर बैठा दिया।गिटार ले टेबल पर रख देती है और खामोशी से बिन कुछ कहे खून से सनी हुई पट्टी उतारने लगती है।उसकी ख़ामोशी को देख वो परम की ओर देखते है तो परम भी कंधे उचका कर अंजान बनने का इशारा कर देते हैं।और वहां से उठ कर अपनी ड्यूटी पर लग जाते हैं।


अर्पिता भी बिन प्रशांत के चेहरे की ओर देखे बड़ी खामोशी से पट्टी उतार देती है जख्म को देख उसका जी मिचलाने लगता है लेकिन फिर भी हिम्मत कर बैठते हुए मेडिसिन लगा दोबारा पट्टी कर देती है।और कहती है इसे हम श्रुति के कमरे में लेकर जा रहे है ताकि अगली बार जब जरूरत पड़े तो हमे ढूंढना न पड़े।


अर्पिता जाने के लिए मुड़ती है तो हर बार की तरह इस बार फिर उसे रुकना पड़ता है।तो वो।शांति से मुड़ती है और बिना प्रशांत के चेहरे की ओर देखे दुपट्टा निकालने के लिए हाथ बढ़ाती है तो प्रशांत हाथ पीछे कर लेते हैं।ये देख अर्पिता उठती है और एक गहरी सांस ले मुड़ कर सीधे श्रुति के कमरे की ओर दौड़ जाती है जिस कारण उसका दुपट्टे का एक सिरा प्रशांत के हाथ में तो दूसरा उसके तन से सरक उलझा हुआ गिटार पर जाकर गिर जाता है।


हे ठाकुर जी।इतनी नाराजगी है।अब मैं इसे दूर करूँ तो करूँ कैसे।कहां तो मैं इससे बात कर इसकी परेशानी का कारण जानना चाहता था और अब कहां खुद ही नाराज कर दिया।खुद से कहते हुए वो उसकी चुन्नी सम्हाल कर एक तरफ रख देते हैं। वहीं अंदर श्रुति के कमरे में जाते ही अर्पिता ने कबर्ड से शॉल निकाल ओढ़ ली और श्रुति के पास जाकर बोली तो तुम्हे समझ आ गया टॉपिक।अब कोई परेशानी तो नही है।...कहते हुए अर्पिता बाथरूम की ओर दौड़ जाती है।अप्पू..!क्या हुआ तुम ठीक हो।कहते हुए श्रुति उसके पीछे आती है।


क्या हुआ अप्पू तुम यूँ।अचानक दौड़ी चली आई क्यों? कमरे में आती हुई श्रुति ने अर्पिता से पूछा तो अर्पिता बोली कुछ नही श्रुति वो हमे याद आया कि हमने कपड़े उठा कर रखे या नही तो बस देखने आ गये।


ओह गॉड तुम ऐसे दौड़ कर आयी मुझे लगा जाने क्या बात होगी।श्रुति ने कहा तो अर्पिता बस मुस्कुरा दी।दोनो बाहर चली आयी।और दोनो सोफे पर बैठ कर बतियाने लगती है।बातें करते हुए श्रुति का हाथ उसके बालों पर जाता है उनके रूखेपन को देख श्रुति कहती है अप्पू प्लीज मेरे बालो की चम्पी कर दो।देखो न कितने रूखे हो रखे हैं।


ओके अर्पिता ने कहा तो श्रुति बोली तुम रुको हम अभी ऑइल लेकर आते हैं।कह श्रुति अंदर चली जाती है तो प्रशांत बात करने का अच्छा मौका मिलेगा सोचते हुए अर्पिता से कहते है अप्पू हम भी लाइन में है।


जी।लेकिन आपका नंबर श्रुति के बाद ही आयेगा।अर्पिता ने गंभीरता से संक्षिप्त में उत्तर दिया।


शुक्र है अभी बात ज्यादा भी बिगड़ी नही है प्रशांत मन में ही खुद से कहा और वहीं बैठ कर अर्पिता को निहारने लगे।


श्रुति तेल लेकर आ जाती है तो अर्पिता उसके बालो में चम्पी करने लगती है।हल्के हाथो से करने के के श्रुति को नींद आने लगती है और वो जम्हाई लेने लगती है।ये देख प्रशांत उससे कहते है श्रुति मुंह धुल लो नींद आने लगी तुझे।


हां भाई वही करना पड़ेगा अब श्रुति ने मुस्कुराते हुए कहा और उठ कर वहां से चली जाती है।उसके जाते ही प्रशांत श्रुति की जगह पर आकर बैठ जाते हैं।अर्पिता ऑइल निकाल कर चम्पी करने लगती है तो प्रशांत बातचीत शुरू कर कहते है :-


अप्पू नाराज हो?


अर्पिता :- नही!


प्रशांत :- तो इतनी चुप क्यों हो?


अर्पिता :- बोलने के लिए ही कुछ नही है।


प्रशांत :- अच्छा बताओ अकैडमी में क्या हुआ था क्यों परेशान थी तुम।


अर्पिता जानबूझ कर पूर्वी वाली बात छिपा जाती है और कहती है नही कुछ खास नही थी वो बस थोड़ा तनाव था क्लास को लेकर कि आगे अगर कोई परेशानी आये तो कैसे हैंडल करे तो बोल दिया हमने परेशानी है घर बैठ कर बात करते हैं।


प्रशांत :- पक्का यही बात थी न।


अर्पिता :- हां!यही बात थी।और मन ही मन कहती है शान हम इतने स्वार्थी नही है कि अपनी परेशानियों में अपने प्रेम के लिए कोई समस्या खड़ी कर दें।आपने हमारे लिए इतना सब किया वही बहुत है।हम आगे जो करेंगे उसमे कहीं न कहीं आप तब बात जरूर पहुंचेगी क्योंकि आप भी अकैडमी के ही सदस्य है।और हम नही चाहेंगे कि हमारी वजह से आपके ऊपर कोई प्रश्न चिन्ह लगाये।बाकी अब तक जो हम बचपना करने लगे थे वो नही करना चाहिए था ये तो वही हिसाब कर रहे थे हम कि आपने अंगुली दी पकड़ने के लिए और हम कलाई पकड़ अपनी हद पार करने लगे।


सॉरी शान ये लफ्ज उसके मुंह से निकल ही जाते है जिन्हें सुन प्रशांत ने पूछा सॉरी किसलिए अप्पू?


क कुछ नही ये तो ऐसे ही मुंह से निकल गये अर्पिता बोली।


प्रशांत मन ही मन सोचते है बेटा प्रशांत बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।ज्यादा दिल दुखा दिये तुम।बड़े आये प्रेम को महसूस करने वाले उसे जीने वाले।ऐसे इसके ख्यालो में डूबे कि इसी का मन दुखा बैठे।वो अभी भी यही समझ रहे है कि कुछ देर पहले जो हुआ उसकी वजह से अर्पिता नाराज है।अब उन्हें क्या पता कि अर्पिता उनके साथ साथ खुद से भी नाराज है।वो नाराज है अपनी महत्वकांक्षाओं से।प्रशांत की परवाह को प्रेम समझने की वजह से।उसकी दोस्ती के रिश्ते को कुछ और समझने की वजह से।और ये बदलाव जो अर्पिता में आया है वो त्रिशा की बात सुनकर आया है।उनके चित्रा और त्रिशा के साथ उनके रिश्ते को लेकर आया है।


सच ही कहा है किसी ने प्रेम के धागे इतने महीन होते है कि हर धागा शांति और धैर्य से ही सुलझाया जा सकता है।और प्रेम की राहे तो इससे भी कठिन होती है जो दिखने में इतनी आसान,साफ सुथरी,बाधाओं रहित दिखती है कि चंचल मन सहर्ष ही उस राह की सुंदरता देख लुभाते हुए उस ओर दौड़ पड़ता है।लेकिन जब राह में बाधाएं उत्पन्न होती है तब प्रेम की कसौटी की परख होती है।यही कसौटी प्रशांत और अर्पिता के जीवन में तब से शुरू हो चुकी है जब से इन दोनो को ही प्रेम का एहसास हुआ।


एहसास दोनो को है लेकिन अपनी भावनाओ का।एक दूसरे की भावनाओ से अभी तक अंजान हैं।


शान सुनो!ऑयलिंग हो चुकी है अब हम जाते है ठीक।अर्पिता ने कहा और वो वहां से उठकर चली जाती है।उसके जाने के बाद प्रशांत भी उठ कर परम के पास चले जाते हैं।


परम :- भाई!बात बनी कि नही?


प्रशांत :- नही छोटे!बहुत नाराज है इतना की ठीक से बात भी नही कर रही हैं।


परम :- सही है अब शेर को सवा शेर मिल ही गया।अब आप जानो और वो जाने।मुझे अभी बीच में नही पड़ना।


ठीक छोटे।मैं ही कुछ सोचता हूँ।कहते हुए प्रशांत अपने रूम में चले जाते हैं।और बैठकर अप्पू को मनाने के तरीको के बारे में सोचने लगते हैं।


क्रमशः...