Kaisa ye ishq hai - 44 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग44)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग44)

अर्पिता स्टाफ रूम में वहीं बैठ सोच रही होती है कि तभी रविश जी उसके पास आते है और अर्पिता को फोन दे कहते हैं तुम्हारे लिए फोन है।हमारे लिए फोन है अर्पिता ने दोहराया तो रविश ने कहा जी।ओके कह अर्पिता बिना नंबर देखे कहती है, हेलो!आपका पेन कैसा है अब?और हां खबरदार जो उस हाथ से कोई काम करने का सोचा तो?बताए दे रहे हैं हम।उसकी बात सुन फोन के दूसरी तरफ से आवाज आई,मुझे पता है अगर तुम्हे भनक लग गई तो बहुत डाँट पड़नी है मुझे।मैं कुछ नही कर रहा बस ये जानने के लिए पूछा तुम ठीक हो कोई परेशानी तो नही है?
प्रशान्त की बात सुन अर्पिता मन ही मन सोचती है ये कैसा रिश्ता है हमारा जो सामने न होकर भी पता चल जाता है आपको हमारे मन मे चल रही उलझन के बारे में।
फिर चुप हो गयी।मतलब जरूर कोई बात है।है न!प्रशान्त ने कहा तो अर्पिता बोली है तो लेकिन उस बारे में हम घर पर मिलकर बात करेंगे अभी नही।

ठीक है।और हां कल की तरह अकेले आने की जरूरत नही है छोटे आ जायेगा तुम्हे लेने ओके।उसे सब बता दिया है मैंने कल जो भी हुआ उस बारे में तो अब अगर मैं नही पहुँच पाया तो वो आएगा लेकिन तुम अकेले नही आओगी ठीक है।प्रशान्त ने इतने अधिकार से कहा है ये सोच अर्पिता के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।और वो बोली ठीक हम ध्यान रखेंगे।
शान :गुड अब मैं रखता हूँ आज तुम्हे दो दो क्लास हैंडल करनी पड़ेगी तो एक कार्य करना दोनो को मर्ज कर लेना फिर बाकी जो तुम्हे समझ आये करना ओके।

अर्पिता :- जी।।
शान :- ठीक अब मैं रखता हूं।आज ठीक सात बजे परम आ जायेगा।

जी अर्पिता ने कहा तो प्रशान्त फोन रख देते हैं।ऑफिस से जल्दी आकर प्रशांत घर बैठे बोर हो रहे होते है कि तभी उनके कानो में चाचू चाचू शब्द की ध्वनि।सुनाई देती है तो प्रशान्त दरवाजे की ओर देखते हैं जहां त्रिशा के साथ चित्रा अंदर चली आ रही होती है।

चित्रा को आया हुआ देख प्रशान्त के चेहरे पर तनाव झलकने लगता है और उनकी आंखों के सामने स्वप्न वाला दृश्य घूमने लगता है।

हेलो चाचू!हम आ गए त्रिशा ने सोफे पर बैठते हुए कहा।तो प्रशान्त ने मुस्कुराते हुए उससे कहा ये तो बहुत अच्छा किया माय लिटिल एंजेल!

त्रिशा को प्रशान्त के साथ मुस्कुराते हुए देख चित्रा कहती है अब देखो कैसे बातों में लग गयी है अब तक तो घर सर पर उठाये थी कि आपसे मिलना है।

अच्छा जी तो आप हमसे मिलना चाहती थी एंजेल!प्रशान्त ने कहा तो चित्रा हैरान होते हुए बोली आप राधु की तरह कब से बात करने लग गए।

ओह हो फंस गया अब क्या बोलूं इससे प्रशान्त ने मन ही मन खुद से कहा और चित्रा से बोले वो तो इसीलिए क्योंकि अभी अभी त्रिशा भी उन्ही के तरीके से बात कर रही थी तो बस इसका साथ देने के लिए बोल दिया मैंने।

ठीक।आप कुछ लेंगे चाय कॉफी।क्योंकि मैं अपने लिए चाय बनाने जा रही हूं।चित्रा ने पूछा।

जी नही।अभी मन नही है।प्रशांत ने संक्षिप्त में कहा।तो चित्रा बोली कमाल है आप चाय के लिए मना कर रहे हैं।जबकि आपको तो चाय बहुत पसंद है।

जी वो तो बस अभी मन नही है ऑफिस से आया था तो पीकर आया था।

ओह ठीक तो मैं अभी आती हूँ कह वो अंदर चली जाती है।

एकैडमी में स्टाफ रूम में बैठी अर्पिता रविश जी को फोन लौटा देती है।तो रवीश जी वहां से चले जाते हैं।अर्पिता क्लास रूम में जाती है और क्लास अटैंड करने लगती है।क्लास टाइम ओवर होने पर वो बाहर चली आती है।घड़ी में सात बजने में दो मिनट कम होते है सो वो अपना पर्स उठा एकैडमी के मुख्य द्वार पर खड़ी हो परम् का इंतजार करने लगती है।परम् अपनी गाड़ी लेकर आ जाता है तो वो गाड़ी में बैठ रूम के लिए निकल जाते हैं।परम् का फोन रिंग होता है तो अर्पिता कहती है लगता है आपके भाई का फोन आ गया।

ये सुन परम् कहता है काफी अच्छी तरह से जानने लगी है आप उन्हें।

हम शायद!उन्ही की संगत का असर है।अर्पिता ने कहा तो परम् के दिमाग मे खुराफात चलने लगी और वो अर्पिता से बोले मैं कॉल अटैंड कर रहा हूँ और भाई से कुछ बात करूंगा आप बस चुपचाप सुनना ओके..!कुछ बोलियेगा नही।।

ठीक अर्पिता ने कहा तो परम् ने कॉल बैक कर ली प्रशांत ने फोन उठाया।और बोले
हेलो!पहुंच गए परम् अर्पिता तुम्हारे साथ है न गाड़ी में।

प्रशान्त की बात सुन परम् ने मुस्कुराते हुए अर्पिता की ओर देखा और बोले नही भाई वो मेरे साथ नही आई उन्होंने मेरे साथ आगे बैठने से मना कर दिया।और पीछे बैठने लगी तो मैंने भी कह दिया कि मैं उनका ड्राइवर नही देवर हूँ तिस पर वो नाराज हो गयी और पैदल ही कहीं निकल गयी।अब मैं उन्ही को ढूंढते हुए भटक रहा हूँ।परम की बात सुन कर अर्पिता को हंसी तो बहुत आ रही है लेकिन प्रशान्त जी परेशान न हो जाये इस कारण वो परम को सच बताने की रिक्वेस्ट करने लगती है वही प्रशान्त वो परम् की बात सुन गुस्से में कहते है छोटे, ये क्या किया तुमने!तुम्हे ऐसा नही कहना चाहिए था उससे।वो न जाने क्या सोच रही होगी अब मेरे बारे में।तुम भी न अपनी शैतानियों से बाज नही आओगे।क्या जरूरत थी ये कहने की।अब तक मुझे खुद नही पता कि उसके मन मे मुझे लेकर क्या भावनाएं है,भावनाएं है भी या नही और तुम तोते की तरह बोल दिए उसे।अब तुम उसे ढूंढते रहना वो नही मिलने वाली बहुत जिद्दी है वो।न जाने कहाँ भटक रही होगी वो।अगर नही मिली तो मैं श्रुति से क्या बोलूंगा कि उसकी दोस्त अचानक गायब कहाँ हो गयी।

प्रशान्त की ये लास्ट लाइन सुन परम ने मन मे खुद को कोसते हुए कहा ये लाइन बोलनी जरूरी थी क्या अच्छा भला अपने मन की बात बोल रहे थे।ये लाइन बोल सब गुड़ गोबर कर दिए आप भाई।

प्रशांत को परेशान होता देख अर्पिता खुद को रोक नही पाती और बोल पड़ती है, आप इनकी बताओं का बुरा मत मानिए ये आपको तंग कर रहे है हम इनके ही साथ है।प्लीज हमे लेकर आप परेशान नही होइये और गुस्सा मत करिये हम अभी दस मिनट में पहुंच रहे हैं।

अर्पिता की आवाज सुन प्रशान्त एक गहरी सांस लेते है और कहते हैं ठीक है।इस नटखट को तो मैं घर आने पर बताऊंगा।और हां नटखट उधर से एक बड़ी वाली डेयरी मिल्क लेते आना एंजेल आई हुई है।

प्रशान्त की बात सुन अर्पिता कहती है एंजेल मतलब वो छोटी सी प्यारी सी बच्ची त्रिशा!

प्रशान्त :- हां वही।वो और चित्रा दोनो यहीं है।बस निकलने वाली है तो उनके निकलने के बाद ही तुम यहाँ आना।

तो फिर भाई आपने चॉकलेट क्यों लाने के लिए बोला मुझे?जब हम घर नही आ सकते तो।परम् ने कहा तो प्रशान्त बोले तुम्हे घर आने के मना नही किया बल्कि अर्पिता को कुछ देर बाद आने के लिए बोला है।वो यहां आकर नीचे बैठ जाए क्योंकि अंकल आँटी इस समय खाना खाते हुए समाचार देखने मे व्यस्त होंगे हॉल मे कोई नही होगा तो अर्पिता वहीं बैठ सकती है।

ठीक है हमे स्वीकार है अर्पिता ने कहा।ओके कह प्रशान्त फोन रख देते हैं और मन ही मन सोचते है तुम्हे इस तरह छुप कर रहना पड़ रहा है ये बात तो मेरे साथ तुम्हे भी इतनी ही दुखी कर रही होगी।लेकिन इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नही है क्योंकि तुम भी यही चाहती हो।

उधर चित्रा प्रशान्त से हल्की फुल्की बातचीत करती है और त्रिशा तो तब से उससे दूर ही हट नही रही होती है।

कुछ ही देर में परम भी घर आ जाता है।अर्पिता वहीं नीचे हॉल में जाकर बैठ जाती है।परम चॉकलेट ले जाकर त्रिशा को देता है तो त्रिशा खुश होते हुए चॉकलेट लेती हैं और प्रशान्त को थैंक यू कहती है।

जिसे देख परम कहता है ये सही है लाया मैं और थैंक यू मिल रहा है भाई को।गलत बात त्रिशा!बहुत ही गलत बात।

उसकी बात सुन प्रशान्त और चित्रा दोनो हंसने लगते हैं।वहीं नीचे बैठी हुई अर्पिता बोर हो रही होती है सो वो वही सोफे पर रखी मैगजीन उठा कर पढ़ने लगती है।

चित्रा :- त्रिशा अब आपको चॉकलेट भी मिल गयी और आपके चाचू से बात भी हो गयी तो अब घर चला जाये मासी इंतजार कर रही होंगी है न!

ओके मम्मा!छोटी सी त्रिशा ने कहा और वो चॉकलेट का एक हिस्सा प्रशान्त को देती है और कहती है ये आपके लिए चाचू!मीता ताओ औल जल्दी छे तीक हो जाओ।

ऑ थैंक यू माय एंजेल!लव यू कहते हुए प्रशान्त ने उसके माथे को चूम लिया और त्रिशा मुस्कुराते हुए उतर कर चित्रा के पास चली आती है।दोनो मुस्कुराते हुए बाय कह नीचे आती है।

मम्मा हम छब चाचू के पास ताहे नही लहते हैं।नन्ही सी त्रिशा ने अपनी तोतली सी जबान में चित्रा से पूछा जिसे सुन कर अर्पिता के हृदय की धड़कने बढ़ जाती है।
उसके मन मे ख्याल आता है कि कहीं वो शान की भावनाओ को अपने लिए समझ गलती तो नही कर रही है।हो सकता है वो हमें एक सच्चे दोस्त से ज्यादा कुछ नही समझते हो।हमे पहले पता करना होगा अगर ऐसा हुआ तो हमे खुद को रोकना होगा।लेकिन कैसे..?तभी उसके कान में हल्की आवाज में बाहर जाती हुई चित्रा के कहे शब्द पड़ते हैं त्रिशा गुड़िया अंकल के पास ढेर सारा काम होता है इसीलिए चाचू यहां छोटे चाचू के पास रहते हैं।और जब फ्री होते है तो आ जाते है हम सब से मिलने।

उनके जाने के बाद अर्पिता भी अपना बैग लेकर ऊपर चली आती है।प्रशान्त और परम जो हॉल में बैठे हुए ही होते है अर्पिता को देख मुस्कुरा देते हैं।लेकिन अर्पिता बिन कुछ रिएक्शन दिए सीधे अपने कमरे में चली जाती है।

प्रशान्त उसे देख मन ही मन कहते है लगता है कोई बात है जो इसे परेशान कर रही है।वहीं परम ये देख कहता है भाई जब आई थी तब तो मूड बहुत अच्छा था इनका अब अचानक ही क्या हो गया।

होगी कोई बात जो परेशान कर रही होगी।मैं पता करता हूँ तुम चेंज कर लो जाकर।प्रशान्त ने परम् से कहा।

और वहीं बैठ अर्पिता के बाहर आने का इंतजार करने लगा।कमरे में मौजूद श्रुति ने अर्पिता को देख हेलो कहा और बोली कैसा गया तुम्हारा दिन!

दिन भी ठीक रहा वैसे तुम्हे तो पता ही होगा तुम भी तो साथ थी।

हम सो तो है।वैसे तुम्हे पता है तुम्हारे आने के बाद चित्रा ने सात्विक की खूब बैंड बजाई।बहुत सुनाया उसे।

काहे?अर्पिता ने पूछा।

काहे क्या उसे एक प्रोजेक्ट दिया था उसमें भी उसने कुछ गलतियां कर दी है।तो बस फिर क्या उन्होंने केबिन के अंदर बहुत झाड़ लगाई।मुझे तो अभी कुछ देर पहले सात्विक ने फोन पर बताया।सच कहूं तो मुझे बहुत गुस्सा आया चित्रा पर।यार वो नया है कुछ ही दिन हुए है उसे काम सम्हाले इतनी जल्दी कोई कैसे सीख सकता है फिर भी!सोचना चाहिए था न।।

हो सकता है ये उनके काम करने का तरीका हो।अब सोचो जैसे आपके भाई के लिए प्रोफेशनल लाइफ अलग है वैसे ही चित्रा के लिए हो।अब है तो आखिर अच्छे दोस्त ही न।कहते हुए अर्पिता ने चित्रा की ओर देखा।

तो चित्रा बोली नही पहले ऐसी नही थी वो।पहले वो बहुत सॉफ्ट थी बिल्कुल राधु भाभी की तरह।बस हालातों से सामना करते करते थोड़ी कठोर हो गयी वो बस बाहर वालो के लिए।

ओके वैसे ये यहां हमारा मतलब है तुम्हारी फैमिली के साथ क्यों रहती है उनकी अपनी फैमिली भी तो होगी न्।अर्पिता ने चित्रा के बारे में जानने के उद्देश्य से पूछा तो चित्रा बोली मुझे इतना पता है कि दौसा में प्रेम भाई के साथ एक हादसा हो गया था जिसमे इनके पति की मौत हो गयी तो प्रेम भाई एक दोस्त की तरह इनकी जिम्मेदारी उठाते हुए यहां ले आये।तब से ये यहीं रहती है।साल में त्योहारों पर ये अपने घर चली जाती है।

ओह तो मतलब ये विडो हैं।अर्पिता ने कहा।

हां।प्रेम भाई और भाभी ने कोशिश की थी इनसे आगे बढ़ने के बारे में लेकिन इन्होंने साफ मना कर दिया।तो दोनो ने इन पर कोई दवाब नही दिया।और अब ये यहां प्रशान्त भाई के साथ यहां कार्य करती हैं।और सच कहूं तो इनकी बॉन्डिंग बहुत अच्छी है।दोनो ने मिलकर मामाजी की इस कम्पनी को सम्हाला हुआ है।श्रुति ने कहा।तो अर्पिता बस मुस्कुराते हुए वहां से बाहर चली आती है।हॉल में प्रशान्त को बैठा देख वो उनके पास आ पूछती है अब आप ठीक है।

प्रशान्त :- क्या हुआ अप्पू।तुम ठीक हो।
अर्पिता :- जी हम अब बिल्कुल ठीक है। उसे कुछ याद आता है तो वो उठ कर वहांसे चली जाती है।

उसके जाने के बाद प्रशान्त मन ही मन सोचते है कुछ तो ऐसा हुआ है जिसका असर तुम्हारे मन पर पड़ा है।जिस कारण जो खुशी तुम्हारे चेहरे पर रहती थी वो अभी नजर नही आ रही है।

वहीं अर्पिता रसोई में जाती है और दो कप चाय बना बाहर चली आती है।

आपकी चाय अर्पिता ने धीरे से कहा तो प्रशान्त ने चाय का प्याला हाथ मे पकड़ कर हल्का सा मुस्कुराया। अर्पिता अपनी चाय का प्याला पकड़ वहीं बैठ जाती है।

प्रशान्त उसके चेहरे की ओर देख उसे समझने की कोशिश करते हुए चाय पीने लगते है।वहीं अर्पिता अपनी नजर झुकाए चाय का पहला घूंट लेती है तो जबरन उसे गले से अंदर कर कप रखते हुए कहती है।ओह गॉड!आज हमसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी फीकी चाय!और आपने भी कुछ नही बोला।आराम से पिए जा रहे हैं।लाइये इधर हम दूसरी बना कर लाते है।कहते हुए उसने कप लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो प्रशान्त ने न कहते हुए कहा ठीक तो है।झूठ क्यों बोल रही हो कि फीकी है।

अर्पिता ने प्रशान्त की ओर देखा तो प्रशान्त ने अपने गर्दन और कंधे उचका दिए जिसे देख अर्पिता उनकी ओर देखती है और उठ कर वहां से चली जाती है।पक्का जरूर इसके मन मे कोई बात चुभी है उसके जाते ही प्रशान्त ने खुद से कहा और चाय खत्म कर वहां से चले उठ कर चले आते हैं।

अर्पिता खोई हुई सी खड़ी हो कार्य कर रही है उसे देख वो उसके पास आते है और कुछ सोच नोट बुक उठा उस पर कुछ लिखते हैं और उसे अर्पिता के हाथ मे पकड़ा कर वहां से चले आते हैं।अर्पिता उन्हें जाते हुए देख सोचती है ये उलझने कब खत्म होगी....!

क्रमशः...