Magic plant in Hindi Children Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | जादुई पौधा

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जादुई पौधा

राजकुमार आदित्य राजगढ़ का राजकुमार था, महाराज, महारानी की इकलौती संतान।सात साल का राजकुमार अत्यंत कुशाग्र बुद्धि ,सुंदर शक्ल-सूरत का बालक था।माता-पिता के साथ पूरे महल के लोग,सेवक,सेविकाएं,मंत्री सभी उसे बेहद प्यार करते थे।अत्यधिक लाड़-प्यार के कारण वह अत्यधिक शरारती हो गया था।अपने हमउम्र बच्चों के साथ जब वह खेलता तो हारते ही क्रोधित हो जाता था और खेल या तो बिगाड़ देता था, या सभी को भगा देता था।साथी बच्चे यह कहाँ सोचते थे कि राजकुमार को हमेशा जिता दें,बच्चे तो आपस में सभी को बराबर ही समझते हैं।उसके अंदर एक और गन्दी आदत आ गई थी।जब वह किसी भी बात पर क्रोधित होता था तो आसपास की वस्तुओं को तोड़ने-फोड़ने लगता था, बगीचे में पेड़-पौधों को तहस-नहस कर देता था, फूलों को तोड़ कर फेंक देता था, तितलियों के पंखों को नोच देता था, धीरे धीरे उसकी उदण्डता बढ़ती ही जा रही थी।महाराज तो अपने राजकार्य में अत्यधिक व्यस्त रहते थे लेकिन महारानी आदित्य के इन आदतों से बेहद परेशान एवं दुखी रहने लगीं थीं।वे आदित्य को कभी प्रेम से समझाती,कभी डांट लगातीं।वे जानती थीं कि बड़े होकर आदित्य को राज्य सम्हालना है, अतः प्रेम,दया,बराबरी, क्षमा इत्यादि गुणों का उसके व्यक्तित्व में समावेश अत्यंत आवश्यक है।जब वे समझातीं तो थोड़ी देर तक आदित्य को याद रहता, किंतु कुछ समय पश्चात ही वही ढाक के तीन पात हो जाते।
महारानी इस बात से अत्यधिक चिंतित रहतीं, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि राजकुमार को कैसे समझाएं।चिंता करते करते रानी जी की तबीयत खराब हो गई।धीरे धीरे वे कमजोर होने लगीं।राजवैद्य हर तरह की औषधि का प्रयोग कर रहे थे लेकिन सभी प्रयास व्यर्थ हो रहे थे।राजवैद्य ने महाराज से कहा कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि महारानी को कोई चिंता खाए जा रही है, चिंता चिता के समान होती है, मन के साथ शरीर को भी जला कर भस्म कर देती है।वैद्यजी के जाने के बाद महाराज ने रानी से पूछा कि क्या बात है, तब रानी ने आदित्य के बारे में सारी बातें बताईं।उस समय आदित्य बाहर खड़ा सारी बातें सुन रहा था।शरारती वह अवश्य था लेकिन अपनी मां से बेहद प्यार करता था।जब उसे ज्ञात हुआ कि मां की बीमारी का कारण वही है तो उसे बड़ी ग्लानि महसूस हुई।पिता के जाने के बाद वह मां के पास बैठ गया और सोचने लगा कि वह किसी भी तरह अपनी मां को अवश्य स्वस्थ करेगा, सोचते-सोचते उसे नींद आ गई, सपनें में वह परीलोक पहुंच गया।उसने देखा कि वहाँ एक बड़ा सा बहुत सुंदर बाग है, उसमें चारों ओर रंग-बिरंगे सुंदर फूल खिले हुए थे,फूलों पर अलग अलग रंगों वाली तितलियाँ मंडरा रही थीं, पेड़ तरह-तरह के फलों से लदे हुए थे।वहां उसी के बराबर की परीयां आपस में खेल रही थीं, कुछ छोटी परियां उड़ रही थीं।आदित्य उनके पास जाकर बोला,"मैं भी आपके साथ खेलूंगा"।
उन्होंने कहा,"नहीं, तुम गन्दे बच्चे हो,सबसे झगड़ा करते हो,तितलियों के पँख नोच देते हो, पेड़-पौधे-फूलों को भी तोड़कर बर्बाद कर देते हो, हम ऐसे गन्दे बच्चे के साथ बिल्कुल नहीं खेल सकते हैं।"
यह सुनकर आदित्य को बहुत शर्म महसूस हुआ, फिर उसे अपनी मां की याद आने लगी,अतः वह वहीं बैठकर रोने लगा।एक परी को दया आ गई, उसने पूछा कि तुम रो क्यों रहे हो, तब आदित्य ने अपनी मां की बीमारी के बारे में बताया।उस परी ने कहा,"चलो,मैं तुम्हें परी मां के पास ले चलती हूं, वे अवश्य तुम्हारी माँ को ठीक कर देंगी।"
परी मां के पास पहुंच कर आदित्य ने सारी बात बता कर कहा," मैं वादा करता हूँ कि मैं सारी गन्दी आदतें छोड़ दूंगा, मैं सबके साथ प्यार से मिलजुलकर रहूंगा।आप मेरी माँ को स्वस्थ कर दीजिए।"
परी मां ने मुस्कुरा कर कहा,"अब तुम अच्छे बच्चे बन गए हो,अतः तुम्हारी माँ अब जरूर ठीक हो जाएंगी।तुम्हारे बगीचे में एक छोटा सा पौधा है, उसपर गुलाबी रंग की तीन पत्तियां आज ही निकली हैं, उन पत्तों को लेकर अपनी मां को उनका रस निकालकर पिला देना, वे ठीक हो जाएंगी।"
आदित्य की नींद खुली तो उसे अपना सपना याद आया,वह दौड़ते हुए बाग में गया।वह हैरान रह गया कि वहाँ सच में एक पौधे पर तीन गुलाबी पत्तियां लगी हुई थीं।वह तुरंत उन्हें लेजाकर उनके रस को अपनी मां को पिला दिया।और माँ से वादा किया कि अब ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा, जिससे आपको परेशानी हो।कुछ ही दिनों में महारानी पूर्णतया स्वस्थ हो गईं।राजकुमार आदित्य अब बेहद समझदार, जिम्मेदार बन गया, सभी उसकी तारीफ करते थे।बड़े होकर वह प्रजा का अत्यंत प्रिय शासक बना।उसके माता-पिता को उसपर अत्यंत अभिमान था।
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