Me lout kar aaunga in Hindi Short Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | मैं लौट कर आऊंगा

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मैं लौट कर आऊंगा

आज जान्हवी खुश भी थी,साथ ही विगत की यादों के पुनः स्मरण से व्यथित भी थी।आज उसकी प्रिय सखी शुचि अपने डेढ़ साल के बेटे पार्थ एवं पति विनय के साथ आ रही थी।उनके स्वागत की तैयारियों में हाथ तो व्यस्त थे किंतु मन यादों की गलियों में भटक रहा था।
शुचि, जान्हवी, अन्वय एवं करण चारों मित्र ऑफिस में चौकड़ी के नाम से मशहूर थे।इनकी घनिष्ठ मित्रता के बारे में इनके परिवार वाले भी जानते थे।किसी का जन्मदिन हो,नए साल की पार्टी हो,कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम हो या वीकेंड पर फ़िल्म देखना, चारों हमेशा साथ होते।शुचि एवं जान्हवी तो बचपन से ही साथ पले बढ़े थे।अन्वय,करण से ऑफिस में हुई जान-पहचान शीघ्र ही मित्रता में परिवर्तित हो गई।
जहां शुचि करण खुराफाती एवं शरारती थे,वहीं अन्वय तथा जान्हवी धीर-गम्भीर प्रकृति के थे। उनकी समान प्रकृति कब उनकी मित्रता को प्रेम के मार्ग पर लेकर चल पड़ी,उन्हें ज्ञात ही नहीं हुआ।एक दिन शुचि ने मजाक में कहा कि तुम दोनों बिल्कुल एक जैसे हो,अतः तुम दोनों को शादी कर लेनी चाहिए, जिसे सुनकर जान्हवी के चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई और अन्वय उसे एकटक निहारता रह गया, तब उन्हें पहली बार अहसास हुआ कि वाकई उनके मन में एक दूसरे के लिए प्रेम भाव का पदार्पण हो चुका है।
तभी करण ने विरोध करते हुए कहा कि दोनों के एक जैसे होने से जीवन में नीरसता आ जाती है, न नोकझोंक, न उत्साह, हर बात में हां जी,हां जी।
खैर, अन्वय, जान्हवी शीघ्र ही अपने प्रेम संसार के सपने बुनने लगे।अन्वय के परिवार में सिर्फ एक बड़ी विवाहिता बहन थी,माता-पिता स्वर्गवासी हो गए थे, बहन भाई की पसंद से खुश थी।उधर जान्हवी के माता-पिता तथा भाई भी अन्वय को सहर्ष स्वीकार कर चुके थे।सभी की सहमति से चार माह पश्चात सगाई एवं विवाह की तिथि निर्धारित हो गई थी।
एक दिन जान्हवी ने करण से कहा कि तुम एवं शुचि एक दूसरे को अच्छी तरह जानते समझते हो, तुम दोनों भी विवाह कर लो।करण ने तुरंत प्रत्युत्तर दिया,"अरे नहीं, मैं तो उसे बहन की तरह मानता हूं।"करण की यह बात सुनकर शुचि का चेहरा उतर गया।जान्हवी जानती थी कि शुचि करण को बेहद पसंद करती थी।
विनय उनका सीनियर था, उसने कई बार परोक्ष रूप से शुचि के प्रति अपनी पसंद को जाहिर किया था, जिसे वह इग्नोर करती आ रही थी, किन्तु करण की बात सुनकर उसने विनय के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया एवं शीघ्र ही वे विवाह बन्धन में बंध गए।विनय एक अत्यंत जिम्मेदार तथा प्रेमी पति साबित हुआ, शुचि उसके साथ बेहद प्रसन्न थी।
जान्हवी के विवाह को दो माह शेष थे।वह अन्वय के साथ अपनी गृहस्थी के लिए एक-एक वस्तु, कपड़े एक दूसरे की पसंद के चुन रही थी।उन्होंने अपने बच्चों के नाम भी सोच रखे थे, पार्थ और अन्वी।इसी मध्य अन्वय का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया।जान्हवी अन्वय के जाने से दुखी थी,किन्तु अन्वय ने समझाया कि विवाह के बाद तुम्हारा भी ट्रांसफर करवा लेंगे।जान्हवी ने भारी मन से अन्वय को विदा कर दिया, वह कहां जानती थी कि यह उसकी आखिरी मुलाकात है।जाने के एक महीने बाद ही पता चला कि शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए पुल से वह बाइक समेत नदी में जा गिरा,करण भी उस दिन साथ में था जो किसी कार्यवश अन्वय के पास गया था।करण बाइक पर पीछे बैठा था जो वहीं सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया था।किसी राहगीर ने पुलिस को खबर किया था।करण को थोड़ी चोट आई थी, किन्तु अन्वय का तो मृत शरीर ही नदी से बाहर आया था।जब जान्हवी ने सुना तो उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था क्योंकि अन्वय तो कभी कभार ही ड्रिंक करता था, वह भी एकाध पैग।
जान्हवी तो दुःख से जैसे पागल ही हो गई थी।परिवार एवं शुचि, करण के सहयोग एवं देखभाल ने उसे इस दुःख से उबरने में काफ़ी सहायता की।दुःख कितना भी गहरा क्यों न हो, समय धीरे धीरे उसकी तीव्रता को कम कर ही देता है।
इसके एक वर्ष पश्चात करण ने अपना विवाह प्रस्ताव जान्हवी के परिवार के सामने रखा।जान्हवी चाहती तो नहीं थी,किन्तु मां-पिता के समझाने पर उसने स्वीकार कर लिया।अत्यंत सादे समारोह में उनका विवाह संपन्न हो गया।
अन्वय के दुर्घटना के कुछ समय पश्चात ही शुचि गर्भवती हो गई थी।विनय का भी स्थानांतरण कुछ माह पश्चात हो गया
उसके विवाह के समय शुचि की डिलिवरी होने वाली थी, जिससे वह आ नहीं सकी।फिर व्यस्तताओं में उनका मिलना नहीं हो पाया।जान्हवी ने ही पार्थ नाम रखने को कहा था।
दरवाजे की घण्टी बजने से वह विचार श्रृंखला से बाहर आ गई।दरवाजा खोलकर देखा तो शुचि सपरिवार बाहर खड़ी थी, दोनों एक दूसरे के गले लग गईं।विनय ने हंसते हुए कहा कि भई, घर के अंदर तो आने दो।पार्थ को गोद में लेकर सभजान्हवी सभी को अंदर ले आई,पार्थ अभी सो रहा था।नाश्ते-खाने के साथ बातों का दौर चलता रहा।करण बाहर गया हुआ था, रात देर से आने वाला था।
तभी पार्थ जाग गया।शुचि ने जान्हवी को दिखाकर कहा,"पार्थ,आन्टी को नमस्ते करो।"
पार्थ ने कहा,"आन्टी नहीं, जानू",इतना कहकर वह जान्हवी की गोद में जाकर बैठ गया।तीनों चकित हो गए नन्हें पार्थ की बात सुनकर।
शुचि ने कहा,"नहीं बेटा, आन्टी हैं।"
पार्थ ने जोर से कहा,"नहीं, यह जानू है, मेरी जानू है।"
जान्हवी'जानू' शब्द सुनकर अंदर तक हिल गई क्योंकि एकांत के क्षणों में अन्वय उसे प्रेम से जानू कहकर संबोधित करता था।
शुचि ने शर्मिंदा होते हुए बताया कि जबसे बोलना सीखा है, यह शब्द रटता रहता है।साथ ही कहता है मुझे जानू से मिलना है।जबकि हमारे आसपास कोई भी इस नाम का नहीं है।
पार्थ जान्हवी के गले से लिपटकर जानू-जानू की रट लगाए बैठा था।विनय ने बच्चा है कहकर टाल दिया,किन्तु जान्हवी पार्थ के व्यवहार से आश्चर्यचकित थी,जैसे वह उसे मुद्दतों से जनता हो।
जबतक करण वापस आया, पार्थ सो गया था।जबतक जगा हुआ था तबतक जान्हवी के साथ ही लगा रहा।शुचि ने मजाक में कहा भी कि यार,तूने तो मेरे बेटे को पहली ही मुलाकात में छीन लिया।दूसरे दिन प्रातः उठते ही जान्हवी के पास भागा-भागा आ गया,किंतु करण को देखते ही सहम कर गन्दा करण कह कर रोने लगा, जबकि वह करण से भी प्रथम बार मिल रहा था।
सभी पार्थ के अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थे।दो दिन बाद जब वे जाने लगे तो पार्थ जान्हवी को छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था।जैसे -तैसे वे वहां से वापस हुए, किंतु एक सप्ताह पश्चात ही जानू जानू की रट लगाकर बीमार पड़ गया, कोई दवा असर ही नहीं कर रही थी।थक हारकर डॉक्टर की सलाह पर जान्हवी को बुलाया गया, उसके आते ही जैसे चमत्कार हो गया,तीन-चार दिन में ही पार्थ पूर्ण स्वस्थ हो गया।अब हर 10-15 दिन में या तो विनय- शुचि आ जाते या जान्हवी चली जाती पार्थ से मिलने।जान्हवी के पार्थ प्रेम से करण नाराज रहने लगा था।
धीरे धीरे पार्थ तीन साल का हो गया, तीसरे जन्मदिन पर विनय-शुचि ने एक बड़ी सी पार्टी रखी थी।बड़ी अनुनय- विनय के बाद करण चलने को तैयार हुआ।केक काटते समय अचानक क्रोध में आकर पार्थ ने करण को धक्का देकर चीखते हुए कहा कि दूर रहो मेरी जानू से।करण खिसिया कर वहां से हट गया।पार्थ ने सबसे पहले केक जान्हवी को खिलाया,फिर एक मिनट को भी उसे अकेला नहीं छोड़ा।सभी के जाने के बाद आज विनय ने उसे डांटते हुए करण से माफ़ी मांगने को कहा।
पार्थ ने चीखकर कहा कि वह गन्दा है, उसने मुझे नदी में धक्का दे दिया था।करण का चेहरा भय से सफेद पड़ गया।उसने हकलाते हुए कहा कि यह क्या बकवास है?
पार्थ ने बताया कि करण ने मुझे अर्थात अन्वय को पुल से पहले शराब पिलाई।मैंने मना किया था कि घर चलकर ले लेंगे,किंतु बैचलर पार्टी के नाम पर पिला दिया।मैं उसके भयानक इरादे को समझ नहीं पाया।फिर पुल पर पहुंचते ही बाइक की हैण्डल रेलिंग की तरफ़ मोड़ दी,वहां पर रेलिंग टूटी हुई थी, यह सड़क पर कूद गया, एवं मैं नदी में जा गिरा।पार्थ ने करण की तरफ जलती निगाहों से देखकर कहा कि मैंने कहा था न कि मैं लौट कर आऊंगा।मुझे नहीं पता था कि तुम भी जान्हवी को प्यार करते हो,अब साथ देखकर समझ में आया कि तुमने जान्हवी को पाने के लिए मुझे मार दिया।धोखेबाज, एक बार कह देते तो मैं खुद ही रास्ते से हट जाता।
यह रहस्योद्घाटन सुनकर विनय,शुचि एवं जान्हवी पर वज्रपात हो गया ।होश में आने पर घृणा के तीव्र आवेग से काँपती करण के चेहरे पर जान्हवी ने थप्पड़ों की बरसात कर दी, चीखकर कहा कि कानून तो सबूत के अभाव में तुम्हें कोई सजा नहीं देगा, किंतु ईश्वर तुम्हारे पापों की सजा अवश्य देगा।
करण भी कोई शातिर अपराधी तो था नहीं, इश्क के जुनून में यह घृणित कुकृत्य कर बैठा था।वह जान्हवी की नफ़रत नहीं बर्दाश्त कर पाया एवं एक दिन उसी पुल पर से कूदकर जल समाधि लेकर अपने पाप से मुक्त हो गया।
धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ पार्थ के मस्तिष्क से पूर्व जन्म की स्मृति धूमिल होते-होते समाप्त हो गई।जान्हवी ने स्वयं को समाज सेवा में समर्पित कर दिया।अपने पूर्व प्रेम को बाल रूप से युवा होते देखना उसके लिए अपने आप में एक अभूतपूर्व संस्मरण था।
सत्य है, प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को समझ पाना मानव के लिए अत्यंत दुष्कर एवं दुरूह है।
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