UJALE KI OR - 17 in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर - 17

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उजाले की ओर - 17

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आ. स्नेही एवं प्रिय मित्रों    

       नमस्कार 

          हम उलझे रहे अच्छे-बुरे में तथा कम-अधिक और भी न जाने कितनी –कितनी आज की समसामयिक समस्याओं को ओढ़े घूमते रहे | किन्तु इन सबसे ऊपर आज जब अचानक ही मुझे अपनी एक मित्र का लेख प्राप्त हुआ मैं चौंक गई |हमने आज तक जिस विषय पर सोचा तक न था ,उन्होंने उस विषय पर शोध करके लेख के माध्यम से जहाँ तक हो सके इस गंभीर समस्या को उठाने का प्रयत्न किया था | उनसे बात करने के बाद मुझे लगा था कि महिलाओं की इस समस्या के लिए समाज में जितने लोगों तक यह पहुंच सके ,यह लेख उतना अधिक समाजोपयोगी हो सकेगा |मैं उनके द्वारा लिखी गई कई चीज़ें वैसे ही आप सबके समस्त प्रस्तुत करना चाहती हूँ ,जैसा उन्होंने लिखा है |उन्होंने लिखा ;

आ. प्रणव दीदी ......

बहुत ज़रूरी है महिलाओं के इस मुद्दे को उठाना,लेख  के माध्यम से इस विषय पर अवश्य  चर्चा की जानी चाहिए |मैं इस तथ्य से परिचित हूँ कि मेरे प्रबुद्ध पाठक इस विषय पर चिंतन करेंगे तथा अपनी प्रतिक्रिया भी देंगे |

 कल आदरणीय अंशु गुप्ता जी ‘कौन बनेगा करोडपति’ में आई थीं |आप ‘गूँज’ संस्था की  संस्थापक हैं जो देश के उपेक्षित तबके लिए सराहनीय काम कर रही हैं |

अमिताभ बच्चन जी से बात करते हुए उन्होंने कुछ बातें कहीं जो तबसे अब तक मेरेकानों में सीटी की तरह गूँज रही हैं |सच कहूँ तो उनकी कही बातों पर  मैं विश्वास  नहीं कर पाई|

    उन्हें झूठा साबित करके मैं स्वयं को आत्मिक संतुष्टि देना चाती थी किन्तु यहाँ तो जो निकलकर आया वह कल्प्नातीत  था|जब किसी गरीब का मन में ख्याल आता है तो हमें सामान्य तौर पर  उसके तन को छिपाने की कोशिश करते फटे वस्त्र और अंतड़ियाँ निकला पेट ही नज़र आता है |किन्तु कल मैंने जाना कि उनकी इससे भी बड़ी एक आवश्यकता है ,वह आवश्यकता है ‘सेनिटर नैपकिन ‘ की |

  क्या हमने कभी सोचा  है कि जिन्हें तन ढकने के लिए ही वस्त्र नसीब नहीं होते वे महिलाएं महावारी के समय क्या इस्तेमाल करती होंगी ?वे प्रति माह चार से सात  दिन निकालती हंगी ?अंशु जी ने बताया कि ऎसी महिलाएं ...........राख,गोबर,प्लास्टिक,

मिट् टी या कोई भी वह वस्तु जो तरलता को रक्त सोख सके ,उसका इस्तेमाल करने के लिए मज़बूर  हैं |

     11 वेश से 15 वर्ष की बच्चियाँ और औरतें अपने घर के पिछवाड़े में घंटों नहीं तीन से चार दिनों तक बैठे रहने के लिए मजबूर होती हैं |इनका स्कूल (यदि दोपहर के भोजन के लालच में जाती हो)अथवा काम (मजदूरी) सब छूट जाती है |जिन्हें जाना ही पड़ता है वे ‘अंडर पैंट’ के आकार में ढाली गई प्लास्टिक की थैलियों का स्तेमाल  करती हैं |ताकि भीटर ही भीतर वे कैसे भी नरक से गुजरें बाहर से वे पाक साफ़ ही नज़र आएं|ये थैलियां भी वे हमारे फेंके गए कचरे में से ही बीनकर ले जाती हैं |

      यदि कभी-कभी सफ़ाई  करते समय या कपड़े धोते  समय दो-चार घंटों तक हमारे हाथ गीले रह जाते हैं तो हाथों में सनसनाहट होने लगती है |उनका  क्या जिनके गुप्तांग घंटों गन्दगी में रहते हैं ! सोचकर भी मन घबराहट से भर उठता है |  तो फिर क्यों विश्व में सबसे अधिक गर्भाशय में होने वाली मौतों में भारत न हो ! एक स्त्री को माँ का सुख प्रदान करने वाली इस मुख्य व प्राकृतिक प्रक्रिया से जोझने का सच वास्तव में इतना भयानक है | 

     मेरे मित्र सोचते होंगे कि मैं इसे शेयर क्यों कर रही हूँ ?  मैं जानती  हूँ कि इस मीडिया  का उपयोग करने वाले इतने गरीब नहीं हैं किन्तु मैं इस बात से भी वाकिफ हूँ कि इस  मीडिया का इस्तेमाल करने वाले इतने समृद्ध तो हैं ही कि वे अपने घरों में काम करने वाली महिलाओं अथवा सड़क पर इधर से उधर घूमती महिलाओं की सहायता उन कपड़ों से कर सकें  जिन्हें हम बिलकुल काम में नहीं लेते| 

किसी अनाथ आश्रम में  जानेसे पहले या गरीब को कपड़े देते समय हम फटे हुए कपड़े अलग कर देते हैं किन्तु अब यदि हमारे पास फटे हुए सूती कपड़े हों तो उन्हें भी  अपने साथ लेकर जाएं |कुछ अधिक मदद करना चाहें तो उन कपड़ों को दर्जी से ‘सेनिटरी नेपकिन’ के रूप में बनवा लें जिन्हें ये लाचार महिलाएं व बच्चियां धोकर कई बार इस्तेमाल कर सकें |ये सौ फ़ीसदी  उनके  स्वास्थ्य के हित में होंगे |  मिट्टी ,गोबर , प्लास्टिक अथवा और किसी गैर-सेहतमंद  चीजों से उनका  बचाव हो जाएगा |जिनकी प्रतिदिन की कमाई से घर चलता है ,उन्हें इससे सहारा मिलेगा |"

     मेरा मात्र इतना निवेदन है कि हम धन खर्च करके इस कार्य में भागीदारी दें अथवा न दें किन्तु अपने घर के बेकार पड़े हुए कपड़ों को फालतू समझकर न फेंकें |

एक और बात ....पुराने कपड़ों के बदले बर्तन लेने का प्रचलन बहुत आम है |करबद्ध निवेदन है कि यदि हम सब उपरोक्त विषय पर ध्यान दें तो पुराने कपड़ों के बर्तनों से बेशक हमारे रसोई -घर न सजें किन्तु उस तबके की स्त्रियों के चेहरे अवश्य चमक जाएंगे और उन चेहरों पर बर्तनों से अधिक चमक होगी |

   मैं नहीं जानती कि यह मुझे लिखना चाहिए था अथवा नहीं किन्तु मैंने अपने दिल  की आवाज़ को आप लोगों से शेयर किया है|  पुन: निवेदन करना चाहती हूँ कि प्रत्यक्ष इसके बारे में यदि झिझक लगे तो अपने शब्दों में इस चिंता को समझकर अपने अनुसार इस महत्वपूर्ण कार्य में सहयोग दें |  

एक छोटा सा दान हमारे छोटे-छोटे प्रयास ‘वुमेन इम्पावरमेंट’के साथ ही महिलाओं के स्वास्थ्य में अवश्य खूब सहायक होंगे |

प्राकृतिक  ये बात है , न करना संकोच ,

सब जागृत होकर चलें ,यही समय की सोच | 

आप सबकी मित्र 

डॉ. प्रणव भारती 

 pranavabharti@gmail.com