Akshaypatra - 4 in Hindi Short Stories by Rajnish books and stories PDF | अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 4

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अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 4

अक्षयपात्र: अनसुलझा रहस्य

(भाग - ४)


अवंतिका वापस दिखाई देने लगती है।

सैम: अवंतिका तुम गायब कैसे हो गई?
अवंतिका: मैंने इन पलाश के फूलों की कुछ पंखुड़ियां अपनी जीभ पर रखी थी। पर प्लीज़, ये गायब वायब बोलकर तुम दोनों मुझे डराओ मत!
सैम: अवंतिका इधर देखो (मुंह में पलाश के फूल की पंखुड़ी रखते हुए)

देखते ही देखते सैम अवंतिका की आंखों के सामने से ओझल हो जाता है।

अवंतिका: सैम....!!!!
इसका मतलब मैं सच में दिखाई नहीं दे रही थी। जबकि मैं यहीं थी, तुम दोनों के सामने (आश्चर्य प्रकट करते हुए)
यश: हां, अवंतिका!

सैम पंखुड़ियों के मुंह में घुलते ही वापस दिखने लगता है।

सैम: रात होने को है और अभी तक कोई मदद नहीं आई। इतनी फिसलन भरी, चिकनी खड़ी दीवारों पर चढ़ना नामुमकिन है। जब तक कोई व्यक्ति ऊपर से मदद नहीं देता हमारा निकलना मुश्किल है। न जाने दोनों पोर्टर कहां रह गए। लेकिन हममें से किसी को भी अंदर इतनी ऊंचाई से गिरने पर भी कोई गंभीर चोट नहीं! अजीब बात है।

यश: हमारे पास खाने, पीने को कुछ भी नहीं। यहां न जाने कब तक रहना पड़ेगा। इन हालातों में खुद को कब तक और कैसे बचा कर रख पायेंगे?
अवंतिका: अभी फिलहाल हम सभी को कुछ देर आराम करना चाहिए। फिर प्लानिंग करके इन जुग्नुओं की रोशनी से कोई दूसरा रास्ता खोजने की कोशिश करेंगे।

सभी एक ऊंची चट्टान पर चढ़ते है। जिसकी ऊंचाई पर आराम करते हुए वो नीचे किसी भी तरह के खतरे से बचे भी रहेंगे और गुफा के बड़े भाग पर नजर भी रख पायेंगे।
अवंतिका को चट्टानों के पास ही एक शंख पड़ा दिखता है। वो उसे उठाती है और कान से लगाती है।
अंदर से आ रही आवाज़ कुछ स्पष्ट नहीं। वो अपनी पलकें बन्द करती है और मन को एकाग्र करके उस आवाज़ पर ध्यान केंद्रित करती है।
शंख में से समन्दर की उठती लहरों की आवाजे आ रही है। अवंतिका अपनी आंखें खोलती है और आश्चर्यचकित रह जाती है।
वो एक अनजान जगह पर समन्दर किनारे रेत पर खड़ी है।
समंदर की लहरें उसके पांव को छूकर वापस जा रहीं हैं। वो हैरान है ये सोचकर कि आखिर वो यहां कैसे पहुंची। तभी उसे अपनी पीठ और हाथों पर चुभन महसूस होती है।

अवंतिका (पीछे मुड़कर): कौन ??
अत्यन्त काले, कुरूप, जंगली आदमियों से खुद को घिरा देखकर वो घबरा जाती है। उसकी रीढ़ में चीटियां सी चढ़ने लगती है। शरीर में कंपन्न होने लगता है। माथे पर पसीना आ जाता है। उसका दिमाग पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, आंखों के सामने धुंधलापन छाने लगता है और वो निढाल होकर गिर जाती है।

उधर सैम, यश के चट्टानों पर से धूल झाड़ने से खांसने लगता है और आंखों में किरकिरी जाने से परेशान हो जाता है।

गुफा के ही एक छोर पर एकत्रित पानी के पास जाकर वो अपनी आंखों को धुलने लगता है। मुंह को धुलकर जैसे ही वो ऊपर की तरह देखता है तो खुद को एक घने जंगल में किसी जलाशय के पास बैठा हुआ पाता है।

वो उठता है और चारों तरफ आश्चर्य से देखता है। उसे समझ नहीं आता कि आखिर वो यहां कैसे आ गया। वो अवंतिका और यश को खोजने लगता है। तभी उसे जलाशय के दूसरे कोने से हल्की सी एक आवाज़ आती है। ये आवाज़ उसे किसी स्त्री के गाने की लगती है। अवंतिका सोचकर वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ता है।
गाने की आवाज़ तेज़ और साफ सुनाई देने लगती है।
सैम महसूस करता है कि घनी बेलों के पीछे से आवाज़ आ रही है। बेलों के झुरमुट को जैसे ही वो हटाता है तो देखता है कि एक अनजान स्त्री उस जलाशय में निर्वस्त्र अकेले स्नान कर रही है।
सैम के मुंह से अनायास ही निकलता है: अवंतिका! क्या तुम हो?
वो स्त्री अचानक आई अनजान आवाज़ से भयभीत होकर, लज्जा वश बाहर आकर एक पेड़ के पीछे छुप जाती है।
और पूछती है।
कौन हो तुम? और यहां क्या कर रहे हो? ऐसे किसी स्त्री को स्नान करता देख तुम्हें लज्जा नहीं आई? यूं अधीर से बेलों के पीछे से टकटकी लगाए मुझे तृष्णा के साथ असंयमित होकर देखने का विशेष कारण?
सैम: मुझे माफ़ करना। मुझे नहीं पता था कि यहां कोई ऐसे खुले में नहा रहा होगा। मैं तो बस गाने की आवाज़ सुनकर इधर चला आया। मुझे लगा...
सैम को बीच में ही टोकते हुए..
बस बस बस.. बहाने बनाने की जरूरत नहीं।
अपना परिचय दो!
कौन हो तुम?
और यहां आने का प्रयोजन?
सैम: मैं अपने साथियों से बिछुड़कर यहां आ गया हूं। वो मुझे दिख नहीं रहे और ये जगह भी मेरे लिए अनजान है।

इससे पहले कि सैम कुछ और कह पाता वो स्त्री पेड़ की ओट से वस्त्र धारण करती हुई बाहर आती है और सैम के होठों पर अपनी अंगुलियां रखकर उसे शांत कर देती है।

उसकी खूबसूरती देख सैम, सम्मोहित सा हो जाता है। ऐसी गढ़ी हुई सुंदरता उसने मूर्तियों या किताबों में ही देखी थी। छरहरी देह, पतली कमर के साथ गहरी सुंदर नाभि, मुलायम स्कंध पर लहराते भीगे हुए केश, जो कभी उसके कोपलों को तो कभी उसके रसीले अधरों को छेड़ रहे थे। उसके हिरनी से नैन और उनकी चंचलता सैम को विस्मृत कर देती है।

सैम बस उसे एकटक निहारता ही रह जाता है। उसकी सांस अटकी सी रहती है।

उधर सारी बातों से अनजान, गुफा में यश सो रहा है।
वो सपने में ऊंटों के बलबलाने की आवाज़ सुनता है जो ठीक उसके पीछे से आती है। यश चौंककर आंखे खोलता है। तभी एक बंदूक कि बट उसे बेहोश कर देती है।
कुछ समय बाद यश को होश में लाने के लिए उसके ऊपर पानी डाला जाता है। ठंडे पानी के शरीर पर पड़ने से उसकी चेतना वापस आ जाती है।
अपने आस पास खड़े लोगों को देखने से उसे महसूस होता है कि वो किसी लुटेरों के बीच एक विशाल मरुस्थल में कैद खड़ा है।
मासूम छोटे बच्चों की आवाजे जो पीड़ा में रो, चिल्ला रहे हो के करुण स्वर उसके कानों में पड़ते है।
सिर पर होती तीव्र पीड़ा उसे फिर से अचेत कर देती उससे पहले एक महिला उसके सिर पर मरहम लगाकर कपड़े से घाव को बांध देती है।
और उनके आदेश पर उसे ले जाकर एक पिंजरे में डाल देती है।
पिंजरे के नीचे पहिए लगे हुए है। जिन्हें कुछ व्यक्ति सरका कर पिंजरे को जिसमें यश कैद है उसे एक अंधेरी सी कोठरी में छोड़ आते है।
यश को शाम होने तक अब चोट में थोड़ा आराम है। पर प्यास और भूख से वो व्याकुल होने लगता है।

उसे अंधेरी कोठरी में एक शोर सुनाई देता है। जो समय के साथ बढ़ता जाता है। ऐसा लगता है जैसे वो बहुत से व्यक्तियों के बीच हो पर भी अकेला।

कोठरी का द्वार गड़गड़ाहट की आवाज़ के साथ खुलता है।
पिंजरे को एक धक्का लगता है। यश खुद को संभालता है। द्वार के दूसरी तरफ से आ रही तेज़ रोशनी उसकी आंखों को चौंधियां देती हैं। वो अपनी आंखों को द्वार के उस तरफ देखने के लिए उन्हें अनुकूल बनाने की कोशिश करता है।
यह क्या?....
खुद को वो एक बड़े रणस्थल में, सैकड़ों लोगों के बीच खड़ा पाता है।
सामने का द्वार खुलता है, जो यश के द्वार के विपरीत, मैदान के दूसरी तरफ है।
एक लकड़बग्घा पिंजरे में रण क्षेत्र में लाया जाता है।
गुर्रा कर पिंजरे से बाहर निकल, चीड़ फाड़ कर देने की उसकी व्याकुलता साफ दिख रही थी।

यश को समझ आता है कि वो अरब देशों के सबसे पुराने डेजर्ट फेस्टिवल मोरीब डून जैसी ही किसी जगह पर है। जहां ऊंट रेस में बेहद छोटे बच्चे, गरीब देशों से लाकर ऊंटों की पीठ पर बांधे जाते थे और उन बच्चों के रोने की आवाज से ऊंट तेज भागते थे। इस दौरान बच्चे गिरकर जख्मी हो जाते थे। इनकी मौत तक हो जाती थी।

जैसा सोचा था वैसा ही हुआ।
वो घिनौनी रेस शुरू हो जाती है। पिंजरे में बंद यश इस घिनौनी रेस को देख और मासूम बच्चों के करुण कृंदन से व्यथित और क्रोधित होता है।

रेस खत्म होते ही पिंजरा खोल दिया जाता है।
दर्शकों के बीच रोमांच बरकरार है। कोई अपनी सीट छोड़कर जाने को तैयार नहीं। सब अपनी सांसें थामे इस युद्ध को देखने के लिए तत्पर है।

यश को पिंजरे से बाहर निकालने के लिए नुकीले भालों से जख्मी किया जाता है।

उधर लकड़बग्घे को भी पिंजरे का द्वार खोलकर अपनी भूख मिटाने के लिए उकसाया जाता है। जो कल शाम से ही भूखा और मांस के लिए व्याकुल है।
उस घिनौने जानवर के बड़े दांत और मुंह में बनता झाग और टपकती लार उसकी व्याकुलता को साफ झलक रहे हैं।

उधर कुछ समय बाद अवंतिका की आंखे खुलती है।
खुद को वो एक बड़े डंडे में जानवरों की तरह बंधी और उल्टा लटका हुआ पाती है। जिसके दोनों छोर पर दो व्यक्ति उस डंडे को कंधे पर लटकाकर ले जा रहे हैं।
और उसके साथ कुछ आदमी और है जो अजीब आवाज़ें निकालते हुए बड़ी तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहे है।
थोड़े समय बाद वो स्वयं को एक कबीले वालों के बीच घिरा हुए पाती है। जहां बदसूरत से बद रंगे लोग अजीब वेशभूषा में है और उसे अजूबे की तरह आश्चर्य से देख रहे हैं।
उसकी रस्सियां खोलकर उसे जमीन पर खड़ा किया जाता है।
थोड़ी देर बाद एक अजीब मोटी, भद्दी सी दिखने वाली महिला, जिसने अपना तन भी ढंग से नहीं ढका, आकर उसे गौर से देखती है।
अजीब तरह से उसे स्पर्श करके देखती है।
और बेहद अजीब आवाज़ से खुशी व्यक्त करते हुए किसी को बुलाने का आदेश देती है।

सामने एक टेंट लगा है जिसके गेट पर हलचल सी होती है और तेज़ धमक के साथ कोई आता प्रतीत होता है

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क्रमशः