jindgi sirf shirshak badalti rahi in Hindi Poems by कृष्ण विहारी लाल पांडेय books and stories PDF | जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

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जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

के बी एल पांडेय के गीत

है कथानक सभी का वही दुख भरा

जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

जिंदगी ज्यों किसी कर्ज के पत्र पर कांपती उंगलियों के विवश दस्तखत,

सांस भर भर चुकाती रहीं पीढ़ियां ऋण नहीं हो सका पर तनिक भी विगत।

जिंदगी ज्यों लगी ओठ पर बंदिशें चाह भीतर उमड़ती मचलती रही ॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

तेज आलाप के बीच में टूटती खोखले कंठ की तान सी जिंदगी,

लग सका जो न हिलते हुए लक्ष्य पर उस बहकते हुए वाण सी जिंदगी।

हो चुका खत्म संगीत महफिल उठी जिन्दगी दीप सी किन्तु जलती रही ।

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

देखने में मधुर अर्थ जिनके लगें जिन्दगी सेज की सिलवटों की तरह,

जागरण में मगर रात जिनकी कटी जिन्दगी उन विमुख करवटों की तरह।

जिंदगी ज्यों गलत राह का हो सफर इसलिए तीर्थ की छांव टलती रही ॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

बदनियत गांव के चोंतरे पर टिकी, रूपसी एक सन्यासिनी जिंदगी,

द्वार आये क्षणों काे गंवा भूल से हाथ मलती हुई मालिनी जिंदगी।

जिंदगी एक बदनाम चर्चा हुई बात से बात जिसमें निकलती रही॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

जिंदगी रसभरे पनघटों सी जहां प्यास के पांव खोते रहे संतुलन,

जिंदगी भ्रातियों का मरूस्थल जहां हर कदम पर बिछी है तपन ही तपन।

जिंदगी एक शिशु की करूण भूख सी चंद्रमा देखकर जो बहलती रही ।

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

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नदी जन्म भर


भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।


अभी तो बहुत देर है जबकि तम चीर सूरज धरा पर उजाला करेगा,

अभी तो बहुत देर है जबकि शशि दीप नभ में सितारों के बाला करेगा ॥

प्रिया के कपोलों पे संदेश प्रिय का सिंदूरी शरम जबकि ढाला करेगा,

पिपासित अधर के चसक में किसी का विचुम्बन मधुर मत्त हाला करेगा॥

मगर प्रात उन्मन हुई सांझ जोगन मिलन से सुखद प्राण का साश चिंतन,

क्षितिज पर रहो निष्करूण पर तुम्हें देख जी लूं मुझे एक अरमार दे दो॥

भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।

दया के लुटाते रहे मेघ जैसे नदी जन्म भर बस तुम्हारी रहेगी

तुम्हे क्या खबर तोड़ विश्वास के तट जगत से प्रणय की कहानी कहेगी।

बड़ी क्षुद्र सरिता जवानी मिली तो नियंत्रण किसी का भला क्यों सहेगी।

हंसेगे सभी न्याय पर चोट होगी अगर तप्त मरभूमि प्यासी रहेगी।

बहें निम्नगाएं तुम्हे भी रिझायें नहीं है यहां द्वेष तुमको बतायें।

सभी के रहो किंतु मैं भी तुम्हे प्राण अपना कहूं एक अभिमान दे दो॥

भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।

मुझे याद चुपचाप मैंने तुम्हारी सरल मूर्ति के संग भांवर रचाई

मुझे देख स्वच्छंद नाराज थे तुम इसी से प्रथम स्वप्न में दी जुदाई।

बहुत सह चुकी हूं तुम्ही तो कहो सच किसी और से इस तरह की रूखाई

न जिसके पगों में कभी शूल कसके चुभेगी उसे खाक पीरा पराई।

कहूं‍ क्या रंगीले जनम के हठीले लुटे जा रहे स्वप्न मेरे सजीले

मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए बस स्वयं से जुड‍ी एक पहचान दे दो॥

भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।

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के बी एल पांडेय के गीत


जिंदगी का कथानक


है कथानक सभी का वही दुख भरा

जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

जिंदगी ज्यों किसी कर्ज के पत्र पर कांपती उंगलियों के विवश दस्तखत,

सांस भर भर चुकाती रहीं पीढ़ियां ऋण नहीं हो सका पर तनिक भी विगत।

जिंदगी ज्यों लगी ओठ पर बंदिशें चाह भीतर उमड़ती मचलती रही ॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

तेज आलाप के बीच में टूटती खोखले कंठ की तान सी जिंदगी,

लग सका जो न हिलते हुए लक्ष्य पर उस बहकते हुए वाण सी जिंदगी।

हो चुका खत्म संगीत महफिल उठी जिन्दगी दीप सी किन्तु जलती रही ।

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

देखने में मधुर अर्थ जिनके लगें जिन्दगी सेज की सिलवटों की तरह,

जागरण में मगर रात जिनकी कटी जिन्दगी उन विमुख करवटों की तरह।

जिंदगी ज्यों गलत राह का हो सफर इसलिए तीर्थ की छांव टलती रही ॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

बदनियत गांव के चोंतरे पर टिकी, रूपसी एक सन्यासिनी जिंदगी,

द्वार आये क्षणों काे गंवा भूल से हाथ मलती हुई मालिनी जिंदगी।

जिंदगी एक बदनाम चर्चा हुई बात से बात जिसमें निकलती रही॥

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

जिंदगी रसभरे पनघटों सी जहां प्यास के पांव खोते रहे संतुलन,

जिंदगी भ्रातियों का मरूस्थल जहां हर कदम पर बिछी है तपन ही तपन।

जिंदगी एक शिशु की करूण भूख सी चंद्रमा देखकर जो बहलती रही ।

है कथानक सभी का वही दुख भरा,जिंदगी सिर्फ शीर्षक बदलती रही॥

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