एपीसोड ----45
तीनों बच्चे दोपहर को आते हैं। उनके आने के हंगामे, रात की शानदार पार्टी में चमकीली साड़ी में हँसती, मुस्कराती उसके हृदय में कहीं चिंता धँसी हुई है। उसने आज ही जाना है। इन ड्रग्स से हृदयरोग भी हो सकता है। नशे में झूमते, आँख निकालते, गला फाड़ते अभय पहले से ही हृदयरोगी थे। ऊपरवाले की कौन सी मेहरबानी से बची है उन दोनों की जाने? किसी भयानक अपराध की काली छाया से ये घर? कौन जाने? नहीं तो वह पार्टी में ऐसे नहीं मुस्करा रही होती।
वह एम.डी. के ऑफ़िस जा धमकती है,“सर ! आप मेरी बात मानते नहीं थे।”
“कौन सी?”
“मैं कहती थी न जब भी वह इस औरत से ‘इन्फ़्लुएन्स’होते हैं तो पागल गुंडे हो जाते हैं।”
“हाँ, याद आया।”
“आप कहते थे कि कोई औरत ऐसा कर ही नहीं सकती। पता है इनको साइकोट्रॉपिक्स ड्रग दी जा रही थीं। परसों का अख़बार पढ़िए तब आपको पता लगेगा ये ड्रग्स किस तरह बिहेवियर, इमोशन्स व दिमाग तक को बदल डालतीं हैं।”
वे चुप हैं, उनका स्थानांतरण हो चुका है वे क्यों अपनी प्रतिक्रिया दें?
वह कहती जा रही है, “टी वी पर आये दिन ऐसे अपराधों के समाचार आते रहते है। ये सब हमारे आस-पास में हो रहा है। कब कौन फ़ँस जाये?”
वे फिर भी चुप हैं लेकिन वे, समिधा की बातों का विश्वास करने लगे हैं। वर्मा का ट्रांसफर उनके हाथ में नहीं है।
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अप्रैल का आरम्भ है। हमेशा समिधा इस माह ट्यूशन के बच्चों को पिकनिक पर ले जाती है। बड़े उत्साह से अभय से पूछती है,“अभय ! इस बार बच्चों को कहाँ ले चलें?”
“मुझसे क्या मतलब? कहीं भी ले जाओ। मैं पिकनिक पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा।”
“तो मत जाना।” वह बात को बढ़ायेगी नहीं।
“तुम मज़ाक समझ रही हो। मैं तुम्हारे साथ क्यों जाऊँ? तुम्हें मेरी इज्ज़त की परवाह नहीं है। मुझे पता लगा कि तुम ‘ड्रग्स’ के लिए मेरा ख़ून टेस्ट करवाना चाहती हो।”
“तुम्हें जब ड्रग दी नहीं जा रही तो क्यों टेस्ट करवाऊँगी? उन गुंडों का ब्लड टेस्ट करवाऊँगी।” वह क्या करे अपना माथा पीट ले। अभय को घेरकर कुछ न कुछ ज़हर भरा जाता है। ये ज़हर मोबाइल के एस एम एस के ज़रिये, विकेश की बातों के ज़रिये भरा जाता है। अभय का कमज़ोर किया दिमाग़ कुछ भी मान लेता है।
“तुमने कुछ भी किया तो तुम्हारी पोल खुलेगी।”
“खुलने दो न। मुझे क्या डर पड़ा है?”
“उन लोगों ने कह दिया है, सहने की भी हद होती है। वे पुलिस में एफ़ आइ आर करने जा रहे हैं।”
समिधा तन जाती है,“जाँये न ! डर पड़ा है? पहले वे करें। मुझे क्या पता नहीं है। एफ़ आई आर करने के बाद ही वर्मा का लाइ-डिटेक्टर टेस्ट हो सकता है।”
अभय भी चाबी भरे खिलौने की तरह, चाबी ख़त्म हो जाती है। वह यह क्या पोल खुलने की बात करते हैं? तो क्या विकेश के फेंके काग़ज़ के टुकडों के कारण अमित कुमार ने सुरक्षा विभाग की सहायता ली है? उसके पीछे घूमती ख़ाकी वर्दियाँ भी इसी साजिश की एक कड़ी हैं? शायद उन वर्दियों को भी पता नहीं होगा कि समिधा पर क्यों नज़र रखी जा रही है?
कुछ दिनों बाद उसे ये देख आश्चर्य होता है। अभय उसके साथ पिकनिक पर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।
वह फिर मुम्बई ज़ोनल प्रेसीडेंट को शिकायत पत्र भेज देती है, कोई तो उसकी सहायता करे। साहिल वहीं से फ़ोन करता है, “अमित कुमार से मेरी बात हुई थी कि यदि आप फ़ोटो वगैरह का प्रूफ़ दें तो वह कुछ कर सकते हैं। मैं एक बार आपको बता रहा हूँ पुलिस में भूलकर भी एफ आई आर मत करिए सब ऊपर से नीचे रुपये खाकर केस उल्टा कर देते हैं।”
“ये बात तो मैं भी समझती हूँ सुरक्षा विभाग की फ़ौज को सबूत मिलेगा भी कैसे, वह तो मेरे पीछे लगी घूमती रहती है।”
“जी?”
वह साहिल को ब्यौरा देने लगती है। मई के अंतिम दिनों की बात है। वह घूमकर अकेले लौट रही होती है। कविता व बबलू जी सीना चौड़ाए अपनी बालकनी में खड़े रहते हैं।
दुकानों के सामने सड़क के दाँयी तरफ खड़ी रहती हैं सुरक्षा विभाग की दो जीपें। एक दो बार अमित कुमार की कार भी सऽ ऽ ऽ र्र से उसके पास से निकल जाती है। जीप में बैठे खाकी वर्दी वालों को देख उसकी धड़कनें असहज हो जाती हैं, पोनी के नीचे पसीने की बूँदें छलछला आती हैं।
वह जैसे-जैसे दुकानों के पास आती जाती है वैसे-वैसे कविता व बबलू जी अपनी बालकनी की मुंडेर पकड़कर झुक जाते हैं। ऐसा तीन दिन लगातार होता है, आगे वाली जीप की हेडलाइट्स ऑन कर दी जाती है। वह उस रोशनी में नहाई अपनी सहज चाल से चलती रहती है।
उसकी वर्षगाँठ से पहले एक शनिवार को अक्षत आकर घोषणा करता है, “मॉम ! आपकी बर्थडे पर मैं नहीं आ पाऊँगा। रोली तो स्टेट्स में ही है। चलिए आज ही ‘सेलीब्रेट’ कर लेते हैं।”
यू.एस. पिज़ा रेस्तराँ के करीने से सजे बाईस सलादों में के एक-एक सलाद प्लेट में लेते हुए वह नोट कर रही है अभय का चेहरा अजीब सी चमक से चमक रहा है। वह कुछ पूछती है तो चिढ़े से जवाब देते हैं। कुर्सी को भी उसकी तरफ से घुमाकर बैठे हैं। वह अक्षत की मज़ेदार बातों में उलझी ब्राउनी को पहली बार चख रही है।
इतवार की दोपहर को कभी न निकलने वाले अभय ग्यारह बजे तैयार हो गये हैं, “ये ऑफ़िस के पेपर्स ज़ेरोक्स करवा कर ला रहा हूँ।”
वे एक बजे लौटते हैं। रसोई में आकर चिल्लाने लगते हैं, “आज तुमने पानी कम क्यों भरा है?”
वह अचकचा जाती है, “तुम्हें कब से रसोई के पानी चिन्ता होने लगी?”
“अक्षत ! देख।” वह तड़पकर आवाज़ देती है। अक्षत रसोई में आकर गैस बंद करके उसे वहाँ से हटाकर ले जाता है। वह बड़बड़ाती जा रही है, “अच्छा-खासा जीवन चलने लगता है। फिर इन्हें भूत चढ़ जाते हैं। गुंडे कुछ न कुछ कारनामा कर देते हैं।”
अक्षत को सोमवार सुबह जाना ही है। वे दोनों रात में अपने समय से टहलने निकलते हैं। समिधा के सामने न पड़ने वाला वर्मा स्कूटर से अपनी लेन से निकल रहा है। वे सीधे चले जा रहे हैं वर्मा एक लम्बी ‘पी ऽ ऽ.....’ करता चला जाता है। जानबूझ कर बजाया हॉर्न हैवानियत से घोषणा कर रहा है, बिना कपड़ों के चीख रहा है, “कल तुम्हारे पति को मेरी बीवी.....तुमने क्या कर लिया?”
नस-नस में कसमसाते अपने इस खौलते लावे का क्या करे समिधा?
समिधा नसों को ढीला कर तनावमुक्त करती है वह कुछ नहीं करेगी धीरज से प्रतीक्षा करेगी....बस धीरज से।
मंगल को अभय का चेहरा निर्मल सा है, तनाव रहित मुस्कराहट है। इस चेहरे की शांति देख उसके दिमाग में बिजली कौंधती है तो फिर इन्हें ड्रग देकर मनचाहा करवा लिया गया है। वह बेबस हो नीता के सामने बह उठती है, रो उठती है। उसे नंगे हॉर्न की बात बता देती है जिसे एक पति ने अपनी बीबी सप्लाई करने के बाद बजाया था। नीता हैरान है, “ये बात तू अब बता रही है? पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं करती?”
“इतनी नाज़ुक सी बात तुझसे भी शेयर करना क्या आसान था? जो होटलों में जाकर धंधा करती है उन्हें पकड़ना आसान है। घरों में धंधा करने वाली औरतों के लिए प्रमाण जुटाना कितना मुश्किल है।”
“तू उसके आस-पड़ोस में हंगामा कर दे।”
“सोचूँगी।”
“तू इनकी योजनायें ठप्प कैसे करती है?”
“कभी-कभी गुमनाम पत्र लिखकर ।”
“ओ माई गॉड ! तू फँस जायेगी, लिखकर कुछ मत दे।”
“ये बरस ऐसे ही निकाल रही हूँ। कुछ ‘क्लू’ मिलता है, मैं पत्र डाल देती हूँ। उनकी हिम्मत ऐसे ही टूट रही है, योजनायें फ्लॉप हो रही हैं।”
“तुझे पता कैसे चलता है?”
“अभय का चेहरा देखकर। ये सब इसने अपनी माँ-बहनों के ही दाँव-पेंच सीखे होंगे।”
“एक बार इसने रतलाम में अपनी बहन के यहाँ अड्डा बनाया। हम लोग नागदा विवाह में गये थे। वहाँ इसके पति ने व गुंडे ने अभय को ट्रेप किया।”
“ओ....लेकिन तुझे पता कैसे लगा?”
“बस ये मत पूछ तब से मैं दूसरे शहर जाकर भी सावधानी रखती हूँ।”
“अनबिलीवेबल.....।”
“तू सुनते सुनते थक जायेगी....इस बार शिवरात्रि पर अभय एक पॉलीबैग में फिंगर चिप्स व गुलाब जामुन का प्रसाद लाये थे।”
“शिवरात्रि का कभी ऐसा प्रसाद होता ही नहीं है।”
“तो तू सोच ऐसा प्रसाद क्यों भेजा गया होगा?”
“क्यों....ओ माई गॉड पॉसिबली गुलाब जामुन में सिरिंज से ड्रग इन्जेक्ट की गई होगी।”
“एक्ज़ेटली राइट !अभय ने पूछा कि प्रसाद कहाँ है। मैंने कह दिया आउट हाऊस वाले बच्चों में बाँट दिया है। वह बुरी तरह बिगड़े तब असलियत में मैंने वह प्रसाद डस्टबिन में डाल दिया था।”
“तो क्या तुझे ये ड्रग देना चाहते थे?”
“हो सकता है इन्हें पता नहीं हो। इनके सुन्न दिमाग़ में कोई बात कोई अंधविश्वास फ़िट करके वह प्रसाद दिया हो।”
“ओ माइ गॉड।”
वह अपना गुस्सा उतारने के लिए वह विकेश की बीवी प्रतिमा को फ़ोन करती है, “विकेश को वॉर्न कर देना। अभय से तीन चार दिन पहले ड्रग दी गई है। मैं देहली तक लिख कर दे चुकी हूँ कि इन्हें तीन गुंडे ड्रग देते हैं।”
“आप क्या-क्या बोल रही हैं?”
“तू सिर्फ़ सुनती जा....यदि अब इन्हें ड्रग दी तो इनका ब्लड टेस्ट करवा कर विकेश को हथकड़ी लगवा दूँगी। तुम्हारा पति ‘क्रिमिनल पिग ’ है।” वह ज़ोर से रिसीवर पटक कर हाँफने लगती है।
अभय को ड्रग दी गई है, सुरक्षा विभाग समिधा पर कड़ी नज़र रखे हैं जाँच अधिकारी अमित कुमार को फ़ोन पर बताना ज़रूरी है, “सर ! गुडमॉर्निंग ! लगता है ज़ोनल प्रेसीडेन्ट इन्क्वॉयरी करवा रहे हैं।”
“जी?.....हाँ.....हाँ।”
“मैं कुछ ‘फ़ेक्ट्स’ आपको बताना चाहती हूँ । कृपया समय बतायें।”
“कभी भी आइये।”
“प्लीज़ ! टाइम बतायें।”
नीलम कुलश्रेष्ठ ई –मेल---
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